सोमवार, 7 अक्तूबर 2019

सुमेरियन पुरालेखों में वर्णित देवी एनन्ना अथवा ईश्तर ही भारतीय पुराणों में दुर्गा और लक्ष्मी के रूप में अवतरित हुईं ...

कुछ अहंवादी परोक्ष विवादी  जान्यवर  कहते हैं ;  कि दुर्गा बंगाल की  वैश्या थी और उसने महिषासुर को नौंवी रात धोखे से मार दिया ।
तो इन चन्द मूर्खों से या मूर्ख चन्दों से मेरा प्रश्न है कि
नव दुर्गा का पर्व साल में दो वार क्यों मनाया जाता है ?

क्योंकि महिषासुर तो एक ही वार किसी विशेष ऋतु और विशेष महीने में ही मारा गया होगा ।

परन्तु ये परोक्ष विवादी जानवर स्वयं को ज्ञान वर
सिद्ध करें मेरे इस प्रश्न का उत्तर देकर
अन्यथा भौंकना बन्द कर दें !
क्यों कि किसी की श्रृद्धा पर आघात करना भी जुल्म है ।

और महिषासुर कार्तिक में शरद ऋतु में मारा था ।
या चैत्र में वसन्त ऋतु में ?
ये दो बातें एक साथ नहीं हो सकती ।
क्योंकि कि महिषासुर तो एक ही ऋतु में मारा होगा ।

यदि बुद्धि हो तो दुर्गा को वैश्या कहने वाले जान्यवर मनहूस एकजुट होकर इस प्रश्न उत्तर दें !

क्योंकि नव दुर्गा का पर्व वर्ष में दो वार मानाया जाता है।

कुछ रूढ़िवादी प्रमाण प्रस्तुत करने लगे कि दुर्गा आदिवासी महषासुर की हत्यारी थी।

वास्तव में ये मत उन रूढ़िवादी भ्रान्त-चित्त महामानवों का है ।
जो केवल अपने प्रतिद्वन्द्वी की  अच्छाई में ही बुराई का आविष्कार करते हैं ।

परन्तु दुर्गा प्राकृतिक शक्तियों की अधिष्ठात्री देवता है विशेषत: ऋतु सम्बन्धित गतिविधियों की ।
इस विषय में सुमेरियन देवी स्त्री अथवा ईष्टर का वर्णन भी है ।

और इस कारण से वासन्तिक नवदुर्गा शब्द सारदीय नव रात्रि के समानान्तरण है ।

यद्यपि कथाओं में मिथकीयता का समावेश उन्हें चमत्कारिक बना देता है ।

(अब देखें दुर्गा के विषय में भारतीय पौराणिक सन्दर्भ)

परन्तु हद की सरहद तो तब खत्म हो गयी जब
इस सुमेरियन कैनानायटी आदि संस्कृतियों में द्रुएगा (Druega) नाम से विख्यात ईश्वरीय सत्ता को
कुछ  रूढ़िवादी मानवों ने अपने पूर्वदुराग्रहों के द्वारा
अपना अशालीनताओं से पूर्ण मनोवृत्ति के अनुकूल चित्रित करने की असफल चेष्टा की !
जिसे भारतीय पुराणों मे दुर्गा कहा गया ।

सुमेरियन पुरालेखों में एक देवी जो शेर पर आरूढ है जिसके पार्श्वविक भागों में उल्लू हैं और जो हाथ में अनाज की बालें लिए हुए है ।
भारतीय पुराणों में दुर्गा श्री ( लक्ष्मी) का अवतार यहीं से हुआ है ।
क्योंकि स्त्री अथवा नना शब्द जो भारतीय समाज में आज तक यथावत स्त्री तिरिय तीय और नानी के रूप में विद्यमान हैं ।
जो सुमेरियन देवी ईश्तर और एनन्ना के रूप में है ।

शारदीय नवरात्रि के  प्राकृतिक परिवर्तन के प्रतिनिधि पर्व पर  जब सांस्कृतिक आयोजन रूढ़िवादी श्रृद्धा से प्रवण होकर देवता विषयक बन गये !
  तो जगह-जगह भव्य पाण्डाल सजाये जाने लगे हैं ।

  और वहाँ जोर-जोर से "जय महिषासुर मर्दिनी" के जयकारे लगाये जाते हैं !

कुछ अहंवादी परोक्ष विवादी  जान्यवर  कहते हैं कि दुर्गा वंगाल वैश्या थी और उसने महिषासुर को नौंवी रात धोखे से मार दिया तो मूर्ख चन्द से मेरा प्रश्न है कि
नव दुर्गा का पर्व साल में दो वार क्यो मनाया जाता है ?
क्योंकि महिषासुर तो एक ही वार किसी विशेष ऋतु और विशेष महीने में ही मारा होगा ।

परन्तु ये परोक्ष विवादी जानवर स्वयं को ज्ञान वर
सिद्ध करें मेरे इस प्रश्न का उत्तर देकर
अन्यथा भौंकता बन्द कर दें
क्यों कि किसी की श्रृद्धा पर आघात करना भी जुल्म है ।

और महिषासुर कार्तिक में शरद ऋतु में मारा था ।
या चैत्र में वसन्त ऋतु में
यदि बुद्धि हो तो दुर्गा को वैश्या कहने वाले जान्यवर मनहूस एकजुट होकर इस प्रश्न उत्तर दें !

क्योंकि नव दुर्गा का पर्व वर्ष में दो वार मानाया जाता है।

कुछ रूढ़िवादी प्रमाण प्रस्तुत करने लगे कि दुर्गा आदिवासी महषासुर की हत्यारी थी।

वास्तव में ये मत उन रूढ़िवादी भ्रान्त-चित्त महामानवों का है ।
जो केवल अपने प्रतिद्वन्द्वी की बुराई में अच्छाई का आविष्कार करते हैं ।

परन्तु दुर्गा प्राकृतिक शक्तियों की अधिष्ठात्री देवता है विशेषत: ऋतु सम्बन्धित गतिविधियों की ।
इस विषय में सुमेरियन देवी स्त्री अथवा ईष्टर का वर्णन भी है ।

और इस कारण से वासन्तिक नवदुर्गा शब्द सारदीय नव रात्रि के समानान्तरण है ।

यद्यपि कथाओं में मिथकीयता का समावेश उन्हें चमत्कारिक बना देता है ।

रूढ़िवादी धर्मावलम्बी व्यक्तियों के अनुसार -

नवरात्रि इसीलिये मनायी जाती है ; क्योंकि विश्वास है कि दुर्गा ने इसी नौ दिनों में युद्ध करके महिषासुर का वध किया था ।

अन्वेषणों में अपेक्षित यह बात  है ; कि आखिर तथ्यों के क्या ऐतिहासिक प्रमाण है ?

कि कोई दुर्गा थी, या कोई महिषासुर था ?

यद्यपि भारतीय पुराणों में दुर्गा को महामाया एवं महाप्रकृति माना जाता है ।

जो यादव अथवा गोपों की कन्या
के रूप में प्रकट होती है ।

और गायत्री भी इसी प्रकार नरेन्द्र सेन आभीर (अहीर) की कन्या है जो वेदों की अधिष्ठात्री देवी है ।

महिषासुर के विषय में जो भी  जानकारी पौराणिक कथाओं में है, वह मिथक ही प्रतीत होती है!
क्यों कि

देवीपुराण के पञ्चम् स्कन्द में एक कथा आती है ; कि असुरों के राजा रम्भ को अग्निदेव ने वर दिया कि तुम्हारी पत्नी के  एक पराक्रमी पुत्र का जन्म  होगा।

जब एक दिन रम्भ भ्रमण कर रहा था तो उसने एक नवयौवना उन्मत्त  महिषी को  देखा ।

रम्भ का मन उस भैंस पर आ गया और उसने उससे सम्भोग किया ! तब कालान्तरण में रम्भ के वीर्य से गर्भित होकर उसी भैंस( महिषी ) ने महिषासुर को जन्म दिया !

और इस महिषासुर को यादव बताने वाले भ्रमित हैं ।

यद्यपि असुर असीरियन जन-जाति का भारतीय संस्करण है ।

जो साम की सन्तति( वंशज) होने से सोमवंशी हैं ।

परन्तु महिषासुर जैसे काल्पनिक पात्र को हम कैसे यादव मानें ।

क्यों कि इसकी जन्म कथा ही स्वयं में हास्यास्पद व अशालीनताओं से पूर्ण मनोवृत्ति की द्योतक है ।

महिषासुर की काल्पनिक कथा का अंश आगे इस प्रकार है ।👇

कुछ दिनों बाद जब वह महिषी ग्रास चर रही थी तो अकस्मात्  एक भयानक भैसा कहीं आ गया, और वह उस भैंस  से मैथुन करने के लिये उसकी ओर दौड़ा...
रम्भ भी वहीं था, उसने देखा कि एक भैसा मेरी भैंस से  सम्भोग करने का प्रयास कर रहा है!

तो उसकी स्वाभिमानी वृत्ति जाग गयी और वह भैंसे से भिड़ गया।
फिर क्या था, उस भैसे की नुकीली सींगों से रम्भ मारा गया, और जब रम्भ के सेवकों ने उसके शव को चिता पर लेटाया तो उसकी पत्नी पतिव्रता भैंस भी चिता पर चढ़कर रम्भ के साथ सती हो गयी।👅

वास्तव में सतीप्रथा राजपूती काल की उपज है ।
यह कथा भी उसी समय की है ।

यह विचार कर भी आश्चर्य होता है कि किसी जमाने मे भारत मे इतनी पतिव्रता भैंस भी हुआ करती थी जो अपने पति के साथ आत्मदाह कर लेती थी।
👅
अस्तु !... ऐसे ही अनेक मनगड़न्त व काल्पनिक कथाओं का सृजन राजपूती काल में हुआ ।

____________________________________________

महिषासुर से सम्बन्धित एक दूसरी कथा वराहपुराण अध्याय-95 मे भी मिलती है,
जो निम्न है-

विप्रचित नामक दैत्य की एक सुन्दर कन्या थी माहिष्मती! माहिष्मती मायावी-शक्ति से वेष बदलना जानती थी ।

एक दिन वह अपनी सखियों के साथ घूमती हुई एक पर्वत की तराई मे आ गयी, जहाँ एक सुन्दर उपवन था और एक ऋषि (सुपार्श्व) वहीं तप कर रहे थे।

माहिष्मती उस मनोहर उपवन मे रहना चाहती थी, उसने सोचा कि इस ऋषि को डराकर भगा दूँ और अपनी सखियों के साथ यहाँ कुछ दिन विहार करूँ!
यही सोचकर माहिष्मती ने एक भैंस का रूप धारण किया और सुपार्श्व ऋषि को पास आकर उन्हे डराने लगी!

ऋषि ने अपनी योगशक्ति से सत्य को जान लिया और माहिष्मती को श्राप दिया कि तू भैंस का रूप धारण करके मुझे डरा रही है तो जा ...
मै तुझे श्राप देता हूँ कि तू सौ वर्षों तक इसी भैंस-रूप मे रहेगी!

अब माहिष्मती भैंस बनकर नर्मदा तट पर रहने लगी; वहीं नजदीक सिन्धुद्वीप नामक एक ऋषि तप करते थे। एक दिन जब ऋषि स्नान करने के लिये नर्मदा नदी के तट पर गये तो उन्होने देखा कि वहाँ एक सुन्दर दैत्यकन्या इन्दुमती नंगी होकर स्नान कर रही थी।

उसे नग्नावस्था मे देखकर ऋषि का जल मे ही वीर्यपात हो गया!
माहिष्मती ने उसी जल को पी लिया, जिससे वह गर्भवती हो गयी और कुछ महीनों बाद इसी माहिष्मती भैंस ने महिषासुर को जन्म- दिया ।

महिषासुर की कथा केवल इन्ही दो पुराणों में मिलती है, और दोनो के अनुसार वह भैंस के पेट से पैदा हुआ।

साधारण बुद्धि तो यह मानने को तैयार नही कि एक भैंस किसी व्यक्ति के भ्रूण को जन्म दे सकती है!
अतः इससे स्पष्ट है कि पौराणिक कहानी तो पूरी तरह से काल्पनिक है।

अब बड़ा सवाल यह होता है कि क्या महिषासुर काल्पनिक है!

इतिहासकारों ने भी महिषासुर पर अलग-अलग राय दी है!
कोसम्बी कहते थे कि वह म्हसोबा (महोबा) का था, तो मैसूर के निवासी कहते हैं कि मैसूर का पुराना नाम ही महिष-असुर ही था !

मैसूर मे महिषासुर की एक विशालकाय प्रतिमा भी है।

रही बात दुर्गा की तो उनके बारें मे भी पढ़े तो कुछ अता-पता नही चलता!

एक पुराण कहता है कि दुर्गा कात्यायन ऋषि की पुत्री थी।

दूसरा कहता है कि दुर्गा मणिद्वीप मे रहने वाली जगदम्बा ही थी।

यही नही.. कुछ लोग तो यह भी कहते हैं कि वह चोलवंश की राजकुमारी थी।

अगर दुर्गा को जानने के लिये देवीपुराण पढ़ो तो पूरी पौराणिक-मान्यताऐं ही पलट जाती है!

देवीपुराण मे लिखा है कि अब तक राम-कृष्ण समेत जितने भी अवतार हुये हैं, वह सब दुर्गा के थे, विष्णु के नही!
बल्कि यह पुराण तो कहता है कि विष्णु भी दुर्गा की प्रेरणा से ही जन्मे!

दुर्गा चालीसा मे भी नरसिंह अवतार दुर्गा का कहा गया है।
ये निम्न चौपाई देखें-

"धरा रूप नरसिंह को अम्बा।
प्रकट भई फाड़ कर खम्बा।।
रक्षा करि प्रहलाद बचायो।
हिरनाकुश को स्वर्ग पठायो।।"

जहाँ तक मेरा मानना है तो यह कथा पाखण्ड ही हैं और दुर्गा को प्रतिष्ठित करना या पूजना बेकार मे समय की बर्बादी के अलावा और कुछ नही है!

वैसे भी जो गलती हमारे पूर्वजों ने अज्ञानतावश की है, उसे हम परम्परा मानकर आखिर कब तक दोहरा रहेंगे।

नना ( दुर्गा )वैदिक सन्दर्भों में तो इनन्ना Inanna सुमेरियन सभ्यता में है ।

प्रस्तुति करण :- यादव योगेश कुमार "रोहि"

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें