मंगलवार, 1 मई 2018

कुछ मूर्ख मेरे भाई मेरे ऊपर यह आक्षेप अारोपण करते नहीं थकते कि मैंने यादवों को शूद्र रूप में प्रस्तुत किया है परन्तु मेरी मान्यताओं का दिग्दर्शन इसके विपरीत रूप में है । मै अहीरों को दुनियाँ का सबसे बड़ी यौद्धा अथवा वीर मानता हूँ और मार्शल आर्ट का सशक्त विशेषज्ञ भी

कुछ मूर्ख मेरे भाई मेरे ऊपर यह आक्षेप अारोपण करते नहीं थकते कि मैंने यादवों को शूद्र रूप में प्रस्तुत किया है
परन्तु मेरी मान्यताओं का दिग्दर्शन इसके विपरीत रूप में है । मै अहीरों को दुनियाँ का सबसे बड़ी यौद्धा अथवा वीर मानता हूँ और मार्शल आर्ट का सशक्त विशेषज्ञ भी
क्योंकि आज भी इज़राएल में यहूदीयों की शाखा अबीर Abeer रूप में पश्चिमीय एशिया में युद्ध कला में किसी को सानी नहीं मानती है ।
इस लिए अहीरों को क्षत्रिय होने के लिए किसी ब्राह्मण या शंकराचार्य से क्षत्रिय प्रमाण पत्र लेने की आवश्यकता नहीं है ।
क्योंकि ब्राह्मणों की -व्यवस्था में अहीरों को कभी उनके नैतिक व संस्कात्मक अधिकार मिले ही नहीं ।
और एेसा क्रियान्वित करने के लिए ही तो इन्हें शूद्र वर्ण में वर्णित किया गया था ।
परन्तु हम उन्हीं ब्राह्मणों के -ग्रन्थों से  गोपों के यौद्धा अथवा वीर होने के प्रमाण प्रस्तुत करते हैं ।

मत्सहननं तुल्यानाँ , गोपानामर्बुद महत् ।
नारायण इति ख्याता सर्वे संग्राम यौधिन: ।107।
संग्राम में गोप यौद्धा नारायणी सेना के रूप में अरबों की महान संख्या में हैं ---जो  शत्रुओं का तीव्रता से हनन करने वाले हैं ।
नारायणेय: मित्रघ्नं कामाज्जातभजं नृषु ।
सर्व क्षत्रियस्य पुरतो देवदानव योरपि 108।
महाभारत के उद्योग पर्व अ०7,18,22,में

जब अर्जुन और दुर्योधन दौनों विपक्षी यौद्धा कृष्ण के पास सहायक मागने के लिए गये तो  ;
श्री कृष्ण ने प्रस्तावित किया कि आप दौनों मेरे लिए समान हो !
आपकी युद्धीय स्तर पर सहायता के लिए एक ओर मेरी  गोपों की नारायणी सेना होगी !
और दूसरी और ---मैं  स्वयं नि: शस्त्र  ---जो  अच्छा लगे वह मुझसे मांगलो !

तब स्थूल बुद्धि दुर्योधन ने कृष्ण की नारायणी गोप सेना को माँगा ! और अर्जुन ने स्वयं कृष्ण को !
गोप अर्थात् अहीर निर्भीक यदुवंशी यौद्धा तो थे ही
इसी लिए दुर्योधन ने उनका ही चुनाव किया !

यही कारण था कि गोपों ने प्रभास क्षेत्र में अर्जुन को परास्त कर लूट लिया था ।
क्योंकि नारायणी सेना के ये यौद्धा दुर्योधन के पक्ष में थे ।
और यादव अथवा अहीर किसी के साथ विश्वास घात नहीं कभी नहीं करते थे ।
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गर्ग संहिता अश्व मेध खण्ड अध्याय 60,41,में यदुवंशी गोपों ( अहीरों) की कथा सुनने और गायन करने से मनुष्यों के सब पाप नष्ट हो जाते हैं ।

और यही भाव कदाचित महाभारत के मूसल पर्व में आभीर शब्द के द्वारा वर्णित किया गया है ।
जिसे द्वेष वश कुछ रूढ़ि वादीयों ने गलत रूप में प्रस्तुत किया है । कि जैसे अहीरों ने अर्जुन सहित यदुवंशी गोपिकाओं को लूट लिया था।
और राज पूत इस बात को अहीरों के यादव न होने के रूप में प्रमाण के तौर पर पेश करते हैं ।
वह श्लोस भी यह है 😃
ततस्ते पापकर्माणो लोभोपहतचेतस ।
आभीरा मन्त्रामासु समेत्यशुभ दर्शना ।।
महाभारत मूसल पर्व अष्टम् अध्याय 47 श्लोक ।

परन्तु कालान्तरण में स्मृति-ग्रन्थों में गोपों को शूद्र रूप में वर्णित करना यादवों के प्रति द्वेष भाव को ही इंगित करता है ।
परन्तु स्वयं वही संस्कृत -ग्रन्थों में गोपों को परम यौद्धा अथवा वीर के रूप में वर्णन किया है ।

गोप शूद्र नहीं अपितु स्वयं में क्षत्रिय ही हैं ।
जैसा की संस्कृति साहित्य का इतिहास 368 पर वर्णित है
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अस्त्र हस्ताश़्च धन्वान: संग्रामे सर्वसम्मुखे ।
प्रारम्भे विजिता येन स: गोप क्षत्रिय उच्यते ।।
यादव: श्रृणोति चरितं वै गोलोकारोहणं हरे :
मुक्ति यदूनां गोपानं सर्व पापै: प्रमुच्यते ।102।

अर्थात् जिसके हाथों में अस्त्र एवम् धनुष वाण है ।
---जो युद्ध को प्रारम्भिक काल में ही विजित कर लेते हैं ।वह गोप क्षत्रिय ही रहे जाते हैं ।
---जो गोप अर्थात् आभीर यादवों के चरित्रों का श्रवण करता है ।वह समग्र पाप -तापों से मुक्त हो जाता है ।।102।

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