सोमवार, 23 अप्रैल 2018

स्वयम्भू योग्यों की योग्यता! मनुष्यों में ब्राम्हण,तेजों में सूर्य और शरीरों में मस्तिष्क के समान सब धर्मों में श्रेष्ठ है (मनु0 8--82)।

स्वयम्भू योग्यों की योग्यता!

मनुष्यों में ब्राम्हण,तेजों में सूर्य और शरीरों में मस्तिष्क के समान सब धर्मों में श्रेष्ठ है
(मनु0 8--82)।
मूर्ख ब्राह्मण का भी श्रेष्ठता में उच्च स्थान है।
जिस प्रकार हवन की आग व साधारण आग दोनों ही श्रेष्ठ देवता हैं,उसी प्रकार मूर्ख ब्राम्हण भी श्रेष्ठ होता है(--मनु:-स्मृति :– 9--317)।

जिस प्रकार तेजस्वी अग्नि शमशान में भी दूषित नही होती और यज्ञ में हवन करने पर फिर पवित्र होकर बढ़ती है,उसी प्रकार यद्यपि ब्राह्मण निन्दित कार्यों में लिप्त रहते हैं तो भी वे सब प्रकार से श्रेष्ठ व पूजनीय ही हैं क्योंकि वे उत्तम देवता हैं (मनु:-स्मृति  9--319)

ब्राह्मण दुश्चरित्र हो तो भी पूजनीय है और शूद्र जीतेंद्रिय होकर भी पूज्य नही है क्योंकि कौन ऐसा मूर्ख है जो दुष्ट गाय को छोड़कर सुशील गधी को दुहेगा
(पाराशर स्मृति 8/33)
पूजिय विप्र सकल गुणहीना,शूद्र न गुण गन ज्ञान प्रवीना।(राम-चरित मानस अरण्य-काण्ड)

ब्राह्मण की किसी बात पर शंका या सन्देह नही करना चाहिए क्योंकि यह वेद की आज्ञा है।
(ऋग्वेद 8-4-10)।

ब्राह्मणों को विद्या से,क्षत्रियो को बल से,वैश्यों को धन से,तथा शूद्रों की जन्म से श्रेष्ठता होती है।
(मनु0 12--155)👇🌸

नास्ति स्त्रीणां पृथग्यज्ञो न व्रतं नाप्युपोषणम् ।पतिं शुश्रूषते येन तेन स्वर्गे महीयते ।।5/155
मनुःस्मृति में अनेक स्थलों पर पारस्परिक विरोधाभास है ।

शापत ताड़त पुरुष कहंता,विप्र पूजिय अस गावहि सन्ता।(रामचरितमानस)
अर्थ-यदि ब्राम्हण मारे पीते शाप दे,गाली दे फिर भी वह पूजा करने योग्य है ऐसा सन्त कहते हैं।

जिस ब्राह्मण वर्ग के मुंह में डाली गयी हवि द्वारा पितर और देवताओं की भूख मिट जाती है।अर्थात उसे श्राद्ध खिलाने से पितरों और देवताओं की भूख शांत होती है।उससे बढ़कर संसार में कौन हो सकता है।
(मनु:स्मृति 1--94)

देवाधीनं जगत सर्वे मंत्राधीना च देवता
ते मंत्रा ब्राह्मणाधीना तस्मात् ब्राह्मण देवता ।
अर्थ :- समस्त संसार देवता के अधीन है और समस्त देवता मंत्रों के अधीन हैं । सभी मंत्र ब्राह्मणों के अधीन हैं, इसलिए ब्राह्मण देवता है।
अर्थात् मंत्रों को जानने वाला ज्ञानी ब्राह्मण देवता के समान पूजनीय है ।

जपस्तपस्तीर्थ यात्रा प्रव्रज्या मंत्र साधनम्।
देवताराधनं चैव स्त्री शूद्र पतनानि षट्।।
      अत्रिस्मृति११३

अत्रि स्मृति में नारी के पतन के 6 कारण है ।
१- वेदमंत्रों का जप ।
२- अकेले तीर्थ यात्रा।
३- संन्यास ग्रहण।
४- मंत्रानुष्ठान।
५- विना पति के वैदिक पूजा।
६- अविवाहित।

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