मंगलवार, 6 मार्च 2018

ख़तना एक विश्लेषण    योगेश कुमार रोहि की ज़ानिब से पेश ए नज़र नाज़रीन की खिद़मत में दुनियाँवी शरीयत की ऱोशनी में .... ________________________________________


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ख़तना एक विश्लेषण
   योगेश कुमार रोहि की ज़ानिब से पेश ए नज़र
नाज़रीन की खिद़मत में
दुनियाँवी शरीयत की ऱोशनी में ....🗣🗣🗣🗣🗣🔪🗡⚔⚔🗡🗡🔪⚔⚔✂✂✂✂✂✂✂📍📌📍📍📍📍
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पाक कुरान में हालाँकि
ख़तना और हलाला जैसी
नापा़क रवायतों का तजिकिरा नहीं हैं ...परन्तु इस्लामीय विचारधारा का मरक़ज ए शरायत, तथा ईसाई विचार की भी श्रोत यहूदी परम्पराऐं हैं

इन परम्पराओं का सम्बन्ध द्रुज लोगों की परम्परा से है ..
द्रुज जनजाति सीरिया लेबनॉन जोर्डन तथा इज़राएल ( पैलेस्टाइन) में सदीयो से रह रही है ये वस्तुत: बाल्टिक सागर के तटवर्ती क्षेत्रों मे रहने वाले ड्रयूड (Druid )पुरोहित के वंशज हैं
जो फारस में दारेजी कहलाए यद्यपि ये असुर संस्कृति के उपासक आर्य ( यौद्धा ) ही थे ....परन्तु देव संस्कृति के उपासक आर्यों से इनका दीर्घ काल से सांस्कृतिक भेद है ...
देव संस्कृति के उपासक आर्यों के वैदिक अरि ( ईश्वर )..के समान इनका ईश्वर भी अलि या एल था ....जिससे सैमेटिक परम्पराओं में एलॉहिम इलाम तथा इल्लाह जैसे ईश्वर वाचक शब्दों का विकास हुआ ...
एल शब्द सभी प्राचीन संस्कृतियों में ईश्वर का वाचक है.......
भारत में दक्षिणीय क्षेत्रों में द्रविड इन्हीं के वंशज हैं ....जिनकी निकासी ( निष्क्रमण ) सुमेरिया ( प्रचीन ईरान तथा ईराकीय क्षेत्रों से हुई है ....पणि या फ़नीसी भी यहीं लेबनान में रहते थे ...जिनका वेदों में जिक्र है
जो द्रविडों से ही सम्बद्ध थे ...
वास्तव में सांस्कृतिक भेद के कारण द्रुजों के कुछ कबीलों में लिंगाग्र- कर्तन  या ख़तना की परम्परा प्रचलित हुई ....थी परन्तु कुछ कबीलों में कर्ण- छेदन को ही अपनी पहचान बनाया .......
जैसे भारतीय आर्य ....
भारती आर्य महिलाओं में यह परम्परा असुर संस्कृति के द्वारा निर्मित स्त्री जाति पर किये गये उन बन्धनों के अवशेष मात्र हैं जब वे लोग स्त्रीयों को अनुबन्धित रखते थे ..आज भी असीरिया सुमेरिया की माइथॉलॉजी में इसके साक्ष्य हैं ...
जो कालान्तरण में रूढ़बद्ध होकर श्रृंगार परक आभूषणीय परम्परा (प्रथा )बन गयीं ...
परन्तु बात ख़तना की है तो यह ...केवल हानिकारक दुखद..
यद्यपि ख़तना प्रथा केवल अवैज्ञानिक तथा रुढ़ि वादिता से ज्यादा कुछ नहीं है ................
क्यों कि ईश्वर या अल्लाह त़आला ने इन्सानीय जिस्म को पूर्ण- रूपेण सर्वांग रूप से सार्थक ही बनाया है ..
इसमें कुछ भी निरोद्देश्य नहीं है ....
सभी अंगों का अपना अपना कार्य तथा उपयोग है ..
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क्यों कि जिस अंग में रक्त सञ्चरण होता है ...तथा एक वार ही जिसका विकास या वर्धन होता है ....उसका शरीर से उच्छेदन करना मूर्खता पूर्ण या ज़हालत है .. .
नख या बालों में रक्त सञ्चरण नहीं होता है और ना ही पीड़ा या दर्द अत: ये काटना उचित भी है क्यों कि इनमें निरन्तर वर्धन क्रिया होती रहती है ....
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अत: इसकी तुलना इस्लामीय आलमीन् ख़तना से कदापि न करें ....
 
________________________               योगेश कुमार रोहि
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पुरूषों का खतना उनके शिश्न की अग्र-त्वचा (खलड़ी) को पूरी तरह या आंशिक रूप से हटा देने की प्रक्रिया है।
“खतना (circumcision)" लैटिन भाषा का शब्द है circum (अर्थात “आस-पास”) और cædere (अर्थात “काटना”). खतने के प्रारंभिक चित्रण गुफा चित्रों और प्राचीन मिस्र की कब्रों में मिलते हैं, हालांकि कुछ चित्रों की व्याख्या स्पष्ट नहीं है।
यहूदी संप्रदाय में पुरूषों का धार्मिक खतना ईश्वर का आदेश माना जाता है
इस्लाम में, हालांकि क़ुरान में इसकी चर्चा नहीं की गई है, लेकिन यह व्यापक रूप से प्रचलित है और अक्सर इसे सुन्नाह (sunnah) कहा जाता है।
यह अफ्रीका में कुछ ईसाई चर्चों में भी प्रचलित है, जिनमें कुछ ओरिएण्टल ऑर्थोडॉक्स चर्च भी शामिल हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization) (डब्ल्यूएचओ) (WHO) के अनुसार, वैश्विक आकलन यह सूचित करते हैं कि 30% पुरूषों का खतना हुआ है, जिनमें से 68% मुसलमान हैं।[8] खतने का प्रचलन अधिकांशतः धार्मिक संबंध और कभी-कभी संस्कृति, के साथ बदलता है। अधिकांशतः खतना सांस्कृतिक या धार्मिक कारणों से किशोरावस्था में किया जाता है
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