मंगलवार, 20 मार्च 2018

यादव धर्म श्रीमद्भागवत गीता धर्म ---

वर्तमान में हिन्दुत्व के नाम पर अनेक व्यभिचारपूर्ण और पाखण्ड पूर्ण क्रियाऐं धर्म के रूप में
व्याप्त हैं ।
केवल कुछ पुराण जैसे पद्मपुराण सृष्टि खण्ड देवीभागवत पुराण मार्कण्डेय पुराण  हरिवंशपुराण आदि को छोड़ कर लगभग सभी पुराणों में कृष्ण को चारित्रिक रूप से पतित वर्णित किया है।

नियोग गामी पाखण्डी ब्राह्मणों ने  कृष्ण को एक कामी ,व्यभिचारी ,और रासलीला का नायक बनाकर
यादवों की गरिमा को षड्यन्त्र पूर्वक घूमिल करने की असफल चेष्टा की है ।
और ये ऐसा करते क्यों नहीं
क्यों ये वेदों को ईश्वरीय वाणी मानने वाले
वेदों की परम्पराओं का ही अनुपालन करते हैं ।
आपको विदित हो कि वेदों में किस प्रकार से यादवों को आदि पितामह को दास अथवा दस्यु कहा है ।।
भागवतपुराण भी इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है ।

भागवतपुराण पुराण में परस्पर विरोधाभासी वर्णन होने से वह स्वयं ही खण्डित हो जाता है।
भागवतपुराण में परस्पर विरोधाभासी व असंगत बातें हैं  देखें---👇
षड्यन्त्र पूर्वक पुराणों में कृष्ण को गोपों से पृथक दर्शाने के लिए कुछ प्रक्षिप्त श्लोक भी समायोजित किये गये हैं ।
जैसे भागवतपुराण दशम् स्कन्ध के आठवें अध्याय में👇 __________________________________________
    यदूनामहमाचार्य: ख्यातश्च भुवि सर्वत: ।
             सुतं मया मन्यते देवकी सुतम् ।।७।
अर्थात् गर्गाचार्य जी कहते हैं कि नन्द जी मैं सब जगह यादवों के आचार्य रूप में प्रसिद्ध हूँ ।
यदि मैं तुम्हारे पुत्र का संस्कार करुँगा ।
तो लोग समझेंगे कि यह तो वसुदेव का पुत्र है ।७।
-जैसे नन्द यादव न होकर कोई अन्य वंशज हों।
दूसरा श्लोक और देखें---जो भागवत पुराण की प्रक्षिप्त रूप को दर्शाता है ।👇
__________________________________________

"अयं हि रोहिणी पुत्रो रमयन् सुहृदो गुणै: ।
आख्यास्यते राम इति बलाधिक्याद् बलं विदु:।
यदूनाम् अपृथग्भावात् संकर्षणम् उशन्ति उत ।।१२

अर्थात् गर्गाचार्य जी ने कहा :- यह रोहिणी का पुत्र है। इस लिए इसका नाम रौहिणेय यह अपने सगे सम्बन्धियों और मित्रों को अपने गुणों से आनन्दित करेगा इस लिए इसका नाम राम होगा।

इसके बल की कोई सीमा नहीं अत: इसका एक नाम बल भी है। यह यादवों और गोपों में कोई भेद भाव नहीं करेगा इस लिए इसका नाम संकर्षणम् भी है ।१२।
अब यहाँं संकर्षण शब्द की व्युत्पत्ति ही पूर्ण रूपेण असंगत व व्युत्पत्ति शास्त्र (Etymology) के सिद्धान्तों को विरुद्ध है ।

परन्तु भागवतपुराण में ही परस्पर विरोधाभासी श्लोक और भी  हैं ।
देखें---
____________________________________

" गोपान् गोकुलरक्षां निरूप्य मथुरां गत ।
नन्द: कंसस्य वार्षिक्यं करं दातुं कुरुद्वह।।१९।

वसुदेव उपश्रुत्य भ्रातरं नन्दमागतम्।
ज्ञात्वा दत्तकरं राज्ञे ययौ तदवमोचनम् ।२०।

अर्थात् कुछ समय के लिए गोकुल की रक्षा का भाव नन्द जी दूसरे गोपों को सौंपकर कंस का वार्षिक कर चुकाने के लिए मथुरा चले गये।१९।
जब वसुदेव को यह मालुम हुआ कि मेरे भाई नन्द मथुरा में आये हैं जानकर कि भाई नन्द कंस का कर(Tex) दे चुके हैं ; तब वे नन्द ठहरे हुए थे बहाँ वसुदेव गये ।२०।
अब यहाँं ये परस्पर भाई हैं ।

और यह पहले हम बता चुके हैं कि वसुदेव स्वयं गोप थे , तथा कृष्ण का जन्म गोप के घर में हुआ।

महाभारत के खिल-भाग हरिवंश पुराण में नन्द ही नहीं अपितु वसुदेव को भी गोप ही कहा गया है।

और कृष्ण का जन्म भी गोप (आभीर)के घर में बताया है।
प्रथम दृष्ट्या तो ये देखें-- कि वसुदेव को गोप कहा है।
यहाँ हिन्दी अनुवाद भी प्रस्तुत किया जाता है । __________________________________________
वसुदेवदेवक्यौ च कश्यपादिती तौच
वरुणस्य गोहरणात् ब्रह्मणः शापेन गोपालत्वमापतुः।
यथाह (हरिवंश पुराण :- ५६ अध्याय )

"इति अम्बुपतिना प्रोक्तो वरुणेनाहमच्युत ।
गावां कारणत्वज्ञ:कश्यपे शापमुत्सृजन् ।२१

येनांशेन हृता गाव: कश्यपेन महर्षिणा ।
स तेन अंशेन जगतीं गत्वा गोपत्वमेष्यति।२२

द्या च सा सुरभिर्नाम अदितिश्च सुरारिण:
ते८प्यमे तस्य भार्ये वै तेनैव सह यास्यत:।।२३

ताभ्यां च सह गोपत्वे कश्यपो भुवि संस्यते।
स तस्य कश्यस्यांशस्तेजसा कश्यपोपम: ।२४

वसुदेव इति ख्यातो गोषु तिष्ठति भूतले ।
गिरिगोवर्धनो नाम मथुरायास्त्वदूरत: ।२५।

तत्रासौ गौषु निरत: कंसस्य कर दायक:।
तस्य भार्याद्वयं जातमदिति सुरभिश्च ते ।२६।

देवकी रोहिणी देवी चादितिर्देवकी त्यभृत् ।२७। सतेनांशेन जगतीं गत्वा गोपत्वं एष्यति। ____________________________________ गीता प्रेस गोरखपुर की हरिवंश पुराण 'की कृति में श्लोक संख्या क्रमश: 32,33,34,35,36,37,तथा 38 पर देखें--- अनुवादक पं० श्री राम नारायण दत्त शास्त्री पाण्डेय "राम" "ब्रह्मा जी का वचन " नामक 55 वाँ अध्याय।
उपर्युक्त संस्कृत भाषा का अनुवादित रूप इस प्रकार है :-हे विष्णु ! महात्मा वरुण के ऐसे वचनों को सुनकर तथा इस सन्दर्भ में समस्त ज्ञान प्राप्त करके भगवान ब्रह्मा ने कश्यप को शाप दे दिया और कहा ।२१।
कि हे कश्यप आप ने अपने जिस तेज से प्रभावित होकर वरुण की उन गायों का अपहरण किया है ।
उसी पाप के प्रभाव-वश होकर तुम भूमण्डल पर तुम अहीरों (गोपों) का जन्म धारण करें ।२२।

तथा दौनों देव माता अदिति और सुरभि तुम्हारी पत्नीयाें के रूप में पृथ्वी पर तुम्हरे साथ
जन्म धारण करेंगी।२३।
इस पृथ्वी पर अहीरों ( ग्वालों ) का जन्म धारण कर महर्षि कश्यप दौनों पत्नीयाें अदिति और सुरभि सहित आनन्द पूर्वक जीवन यापन करते रहेंगे ।
हे राजन् वही कश्यप वर्तमान समय में वसुदेव गोप के नाम से प्रसिद्ध होकर पृथ्वी पर गायों की सेवा करते हुए जीवन यापन करते हैं। मथुरा के ही समीप गोवर्धन पर्वत है; उसी पर पापी कंस के अधीन होकर वसुदेव गोकुल पर राज्य कर रहे हैं। कश्यप की दौनों पत्नीयाें अदिति और सुरभि ही क्रमश: देवकी और रोहिणी के नाम से अवतीर्ण हुई हैं २४-२७। (उद्धृत सन्दर्भ --) यादव योगेश कुमार' रोहि' की शोध श्रृंखलाओं पर आधारित--- पितामह ब्रह्मा की योजना नामक ३२वाँ अध्याय पृष्ठ संख्या २३० अनुवादक -
_________________________________________
यादव योगेश कुमार "रोहि"

यदुवंशी को 👉👈👉👈👉👈👉👈
इस लिए जो वास्तविक अर्थों में यादव या अहीर हैं।
उन्हें हिन्दुत्व के नाम पर सभी विकृतिपूर्ण धर्म क्रियाओं को त्याग कर केवल और "श्रीमद्भगवद् गीता के विचारों का अनुगमन कर कार्ष्ण धर्म के रूप में भगवद्गीता सम्बन्धी  श्रीमद्भभागवद् गीता धर्म स्वीकार करना चाहिए !
और श्रीमद्भगवद् गीता को अपना धर्म ग्रन्थ स्वीकार कर  अपने घर में रखना भी लेना चाहिए 
      यादव योगेश कुमार 'रोहि'
(यादव जाग्रति विचार अभियान )
__________________________________________
In the name of Hindutva, many adulterous and hypocritical activities are rife in the form of religion.
Except Harivanshpuran, all the Puranas have tried to make Krishna a progenitor of the dignity of the Yadavas by making the heroes of Kami, the adulteress, and Ras Leela, the Pskadi Brahmins. Hence
Which are in the real sense of either Yadav or Ahir.
In the name of Hindutva, they should accept all the perverse religious actions and follow the thoughts of Shri Bhagwad Gita and accept the Bhagavadgita relation, the Bhagavadwad Geeta Dharma, in the form of Carbon religion!
And Sri Bhagavad Gita should accept the scriptures of their religion.
      Yadav Yogesh Kumar 'Rohi'
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Yadav Awakening Campaign


दुनियाँ में धर्म कभी खत्म नहीं होता  युग युग में उसकी नवीन व सामयिक व्याख्याऐं स्थान और परिस्थितियों के अनुकूल होती रहती है।

धर्म मनुष्य का सदाचरण पक्ष है ।             धर्म नियम और संयम का कारक तत्व है 

जो आध्यात्मिकता के द्वार खोलता है।     

धर्म न्याय और सत्य का प्रतिरूप भी है ।   धर्म की यही व्याख्या है ।

कर्मकाण्ड धर्म का पक्ष नहीं है  धर्म तो मानसिक शुद्धि करण की साधना है।

जो नास्तिक होते है ।                                   वे दीर्घ काल तक जड़ बुद्धि रहते है ।

नास्तिकता और अज्ञानता  का युगों युगों का सञ्चय ही   अहंकार  है और कुछ नहीं


5 टिप्‍पणियां:

  1. भगवान श्री कृष्णा को अहीर कब कहा गया है कृपया बताइये

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    1. वसुदेवदेवक्यौ च कश्यपादिती तौच
      वरुणस्य गोहरणात् ब्रह्मणः शापेन गोपालत्वमापतुः।
      यथाह (हरिवंश पुराण :- ५६ अध्याय )

      "इति अम्बुपतिना प्रोक्तो वरुणेनाहमच्युत ।
      गावां कारणत्वज्ञ:कश्यपे शापमुत्सृजन् ।२१

      येनांशेन हृता गाव: कश्यपेन महर्षिणा ।
      स तेन अंशेन जगतीं गत्वा गोपत्वमेष्यति।२२

      द्या च सा सुरभिर्नाम अदितिश्च सुरारिण:
      ते८प्यमे तस्य भार्ये वै तेनैव सह यास्यत:।।२३

      ताभ्यां च सह गोपत्वे कश्यपो भुवि संस्यते।
      स तस्य कश्यस्यांशस्तेजसा कश्यपोपम: ।२४

      वसुदेव इति ख्यातो गोषु तिष्ठति भूतले ।
      गिरिगोवर्धनो नाम मथुरायास्त्वदूरत: ।२५।

      तत्रासौ गौषु निरत: कंसस्य कर दायक:।
      तस्य भार्याद्वयं जातमदिति सुरभिश्च ते ।२६।

      देवकी रोहिणी देवी चादितिर्देवकी त्यभृत् ।२७। सतेनांशेन जगतीं गत्वा गोपत्वं एष्यति। __________________________________________ गीता प्रेस गोरखपुर की हरिवंश पुराण 'की कृति में श्लोक संख्या क्रमश: 32,33,34,35,36,37,तथा 38 पर देखें--- अनुवादक पं० श्री राम नारायण दत्त शास्त्री पाण्डेय "राम" "ब्रह्मा जी का वचन " नामक 55 वाँ अध्याय।
      उपर्युक्त संस्कृत भाषा का अनुवादित रूप इस प्रकार है :-हे विष्णु ! महात्मा वरुण के ऐसे वचनों को सुनकर तथा इस सन्दर्भ में समस्त ज्ञान प्राप्त करके भगवान ब्रह्मा ने कश्यप को शाप दे दिया और कहा ।२१।
      कि हे कश्यप अापने अपने जिस तेज से प्रभावित होकर वरुण की उन गायों का अपहरण किया है ।
      उसी पाप के प्रभाव-वश होकर तुम भूमण्डल पर तुम अहीरों (गोपों) का जन्म धारण करें ।२२।

      तथा दौनों देव माता अदिति और सुरभि तुम्हारी पत्नीयाें के रूप में पृथ्वी पर तुम्हरे साथ
      जन्म धारण करेंगी।२३।
      इस पृथ्वी पर अहीरों ( ग्वालों ) का जन्म धारण कर महर्षि कश्यप दौनों पत्नीयाें अदिति और सुरभि सहित आनन्द पूर्वक जीवन यापन करते रहेंगे ।
      हे राजन् वही कश्यप वर्तमान समय में वसुदेव गोप के नाम से प्रसिद्ध होकर पृथ्वी पर गायों की सेवा करते हुए जीवन यापन करते हैं। मथुरा के ही समीप गोवर्धन पर्वत है; उसी पर पापी कंस के अधीन होकर वसुदेव गोकुल पर राज्य कर रहे हैं। कश्यप की दौनों पत्नीयाें अदिति और सुरभि ही क्रमश: देवकी और रोहिणी के नाम से अवतीर्ण हुई हैं २४-२७। (उद्धृत सन्दर्भ --)

      जब इसमें वासुदेव को ग्वाल बताया गया है तो अब कृष्ण के लिए तुम्हे किस प्रकार का प्रमाण चाहिए?

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  2. CHHORA AHEER ka
    Aheer or yadav same hai
    Nandbaba or vasudev chachere bhaai the

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