गोपाचार्य हंस श्रीआत्मानन्द जी महाराज, का संक्षिप्त जीवन परिचय-
गोपाचार्य हंस श्रीआत्मानन्द जी महाराज का जन्म- 25-07- 1972 ईस्वी सन् को उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिला में एक सम्भ्रांत कृषक परिवार में हुआ है। जो वर्तमान में एक परिषदीय विद्यालय में प्राथमिक शिक्षक रूप में सेवारत हैं। इनके पिता स्वर्गीय श्री रामाधार जी भी स्वयं एक शिक्षक थे।
श्री आत्मानन्द जी महाराज के जीवन में इनके माता-पिता के आदर्शों व आध्यात्मिक विचारों का गहरा प्रभाव पड़ा। जिसके परिणामस्वरूप ये श्रीकृष्ण भक्त हो गये।
वर्तमान समय में ये "श्रीकृष्ण सर्वस्वम् कथा संस्थान के प्रमुख संस्थापक व कथा वाचक गोपाचार्य हंस हैं।
भारतीय अध्यात्म- दर्शन एवं उपनिषद तथा वेद एवं पुराणों के सम्यक अध्येता गोपाचार्य हंस योगेश कुमार रोहि- जी ने विद्वान विचारक एवं गोपाचार्य हंस श्रीमाताप्रसाद जी के साहचर्य में प्रस्तुत ग्रन्थ का लेखन कार्य सम्पन्न किया है।
गोपाचार्य हंस योगेश रोहि जी का जन्म -10 मार्च 1983 ईस्वी सन् को -जिला फिरोजाबाद के ग्राम दभारा-पत्रालय फरिहा में हुआ ।
परन्तु - ग्राम आजादपुर पत्राल़य- पहाड़ीपुर ज़िला अलीगढ़) आपकी कर्मभूमि और साधना स्थली रही जो कि इनकी माता जी का जन्म- स्थान होने से आपकी ननिहाल भी है।
आपके पिता श्री पुरुषोत्तम सिंह" कृषक होने के साथ साथ एक परिषदीय जूनियर अध्यापक भी रहे।
बचपन में जब कई बार रोहि जी को भटकाव की हालातों में गुजरते हुए जीवन निरर्थक और लक्ष्य हीन प्रतीत हो रहा था। बचपन में मन के भटकाव और उन्माद के आवैग ने जीवन की सार्थकता को विलुप्त कर दिया था। तब ऐसी निराशा मूलक स्थितियों में कहीं से एक बार श्रीमद्भगवद्गीता गीताप्रेस की पुस्तक पढ़ने को अचानक सुयोग प्राप्त हो गयी तो जीवन को अध्यात्म के प्रति प्रेरित किया। जुवाँ पर यही उद्धार थे।
ये मजबूरियाँ हालातों की शरीक ए हयात हैं।
जीवन के सफर में रोहि बेशुमार तजुर्बात हैं।।
सम्हल रहे हैं जिन्दगी की दौड़ में जो गिर कर !किस्मतों को तराशने वाले उनके ही हाथ हैं।
श्रीमद्भगवद्गीता का कुछ अध्यन करने के पश्चात लगा कि जीवन की सभी समस्याओं का निदान और असली ज्ञान हम्हे मिल गया है। जो जीवन की चिर पुरातन समस्याओं का सरल समाधान है।
श्रीमद्भगवद्गीता के कुछ श्लोक ने बहुत प्रभावित किया - श्रीमद्भगवद्गीता का सांख्ययोग और भक्तियोग मूलक तथ्यो की व्याख्या तथा मन बुद्धि और आत्मा के स्वरूप की अर्थ समन्वित व्याख्या- हम्हें जीवन के निर्माण प्रक्रिया के यथार्थ के सन्निकट प्रतीत हुई। परिणाम स्वरूप श्रीमद्भगवद्गीता ने जीवन को एक सकारात्मक ऊर्जा दी-
संस्कृत हिन्दी और आंग्ल भाषा से परास्नातक तथा संस्कृत भाषा एवं भारोपीय परिवार की भाषाओं के जानकार रोहि जी ने प्राचीन भारतीय संस्कृति के अन्वेषक, अध्येता होने के साथ साथ भारतीय शास्त्रों में विशेषत: भारतीय दर्शन - वैशेषिक, सांख्य, तथा योग और वेदान्त के सैद्धान्तिक विवेचक के रूप में स्वयं को प्रस्तुत करने के लिए भारतीय पुराणों का सम्यक् अनुशीलन करना ही उचित समझा।
परिणाम स्वरूप महाभारत" वाल्मीकि-रामायण महाकाव्योॉ के अतिरिक्त भारतीय आध्यात्मिकता के दिग्दर्शन उपनिषदों के अध्येता के रूप में भी जीवन का अधिकांश समय व्यतीत किया । तथा आपने" ने दीर्घ काल तक अपने गृह क्षेत्र में ही रहकर भारतीय संस्कृति के शोध के अतिरिक्त विश्व की भारोपीय संस्कृतियों का सतत् अध्ययन कार्य भी किया ।
अनेक सामाजिक परिदृश्यों के अवलोकन के पश्चात सोच और समझ में परिपक्वता भी प्राप्त गुई और यह सुनिश्चित किया गया कि जीवन के हर सुख और दु:ख स्थाई नहीं है।
यह परिपक्वता अनुभव यात्रा के उपरान्त प्राप्त हुई है। व्यक्ति आयु के अनुरूप प्राप्त अनुवभों से जो सीखता है वही उसका प्रायौगिक ज्ञान सत्य होता है। और ये तजुर्बा (अनुभव) उम्र के ही मोहताज हैं। अन्यथा हमारे पास कौन से ताज़ हैं।
कोई सामान्य बालक अथवा कम उम्र का व्यक्ति जीवन के समग्र सत्य को एक्सप्लेन (व्याख्या) नए कर सकता है।
एक मध्यम किसान परिवार में जन्म, फिर सत्संग से जुड़ाव, फिर लगातार अध्ययन, समाज के साथ अनवरत आनुभाविक विमर्श ने जीवन को अनुभवों की नव्यता प्रदान की है।
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