ब्राह्मण और बकरी का ब्रह्मा के मुख से उत्पत्ति-👇
1. वैदिक स्रोत: ऋग्वेद में सृष्टि रचना और ब्राह्मण की उत्पत्ति (भाई+बहन)
ऋग्वेद का पुरुष सूक्त (10/90) सृष्टि रचना का सबसे प्राचीन और प्रामाणिक वर्णन प्रस्तुत करता है। इसमें ब्रह्मा (या पुरुष) के विभिन्न अंगों से समाज के वर्णों और अन्य प्राणियों की उत्पत्ति का उल्लेख है। श्लोक 12 इसका स्पष्ट प्रमाण है:
श्लोक:
ब्राह्मणोऽस्य मुखमासीद् बाहू राजन्यः कृतः।
ऊरू तदस्य यद्वैश्यः पद्भ्यां शूद्रो अजायत।।
(ऋग्वेद, 10/90/12)
अर्थ:
ब्रह्मा नामक पुरुष के मुख से ब्राह्मण उत्पन्न हुए।
उनकी भुजाओं से क्षत्रिय बने।
उरु (जंघा) से वैश्य उत्पन्न हुए।
पैरों से शूद्र का जन्म हुआ।
व्याख्या:
मुख का प्रतीकात्मक महत्व ज्ञान, वाणी, और सृजन से जुड़ा है। ब्राह्मण, जो वेदों के संरक्षक, याजक, और ज्ञान के वाहक हैं, मुख से उत्पन्न होने के कारण समाज में बौद्धिक और आध्यात्मिक नेतृत्व का प्रतीक हैं।
यह श्लोक वैदिक समाज की संरचना को समझाता है, जहाँ प्रत्येक वर्ण की भूमिका सृष्टि के संतुलन के लिए आवश्यक है।
2. पुराणों में बकरी की उत्पत्ति
विष्णु पुराण, पद्म पुराण, और ब्रह्माण्ड पुराण में बकरी (अजा) को ब्रह्मा के मुख से उत्पन्न बताया गया है, जो इसे ब्राह्मण के समान सृष्टि के एक महत्वपूर्ण अंग के रूप में स्थापित करता है।
(क) विष्णु पुराण
श्लोक:
अवयो वक्षसश्चक्रे मुखतोऽजाः स सृष्टवान्।
सृष्टवानुदराद्गाश्च पाश्र्वाभ्यां च प्रजापतिः।।
(विष्णु पुराण, अंश प्रथम, अध्याय 5, श्लोक 48)
अर्थ:
प्रजापति ब्रह्मा ने अपने वक्षस्थल से भेड़ (अवि), मुख से बकरी (अजा), और उदर से गाय उत्पन्न की। पाश्र्व (पार्श्वभाग अथवा पैरों ) से अश्व ( घोड़ा) का सृजन किया।४८।
व्याख्या:
यहाँ बकरी का मुख से उत्पन्न होना इसके प्रतीकात्मक महत्व को दर्शाता है। मुख, जो वाणी और सृजन का केंद्र है, बकरी को सृष्टि की प्रजनन शक्ति और पोषण का प्रतीक बनाता है।
बकरी का सृष्टि में योगदान प्रजनन, यज्ञ, और पशुधन के रूप में है, जो ब्राह्मण समाज की आर्थिक और धार्मिक व्यवस्था को बनाए रखता था।
(ख) ब्रह्माण्ड पुराण
श्लोक:
पक्षिणस्तु स सृष्ट्वा वै ततः पशुगणान्सृजन् ।
मुखतोऽजाः ऽसृजन्सोऽथ वक्षसश्चाप्यवीः सृजन् ॥ १,८.४३ ॥
मुखतोऽजाः ऽसृजन्सोऽथ वक्षसश्चाप्यवीः सृजन् ॥ १,८.४३ ॥
गावश्चैवोदराद्ब्रह्मा पार्श्वाभ्यां च विनिर्ममे ।
पादतोऽश्वान्समातङ्गान् रासभान् गवयान्मृगान् ॥ १,८.४४ ॥
(ब्रह्माण्ड पुराण, पूर्वभाग, अध्याय 8, श्लोक 43-44- )
अर्थ:
ब्रह्माजी ने पहले पक्षियों का सृजन किया, फिर पशुओं का।
मुख से बकरी (अजा) और वक्षस्थल से भेड़ (अवि) उत्पन्न की।
व्याख्या:
यह श्लोक विष्णु पुराण के कथन को पुष्ट करता है और बकरी की उत्पत्ति को ब्रह्मा के मुख से जोड़कर ब्राह्मणों की सजातीय घोषित करता है, तथा इसे सृष्टि के एक महत्वपूर्ण तत्व के रूप में भी स्थापित करता है। बकरी का मुख से उत्पन्न होना इसके यज्ञ और धार्मिक अनुष्ठानों में विशेष स्थान को दर्शाता है।
(ग) लिंग पुराण में बकरी की मातृ-छवि
श्लोक:
तामजां लोहितां शुक्लां कृष्णामेका बहुप्रजाम्।।
जनित्रीमनुशेते स्म जुषमाणः स्वरूपिणीम्।। ३.१३।।
तामेवाजामजोऽन्यस्तु भुक्तभोगां जहाति च।।
अजा जनित्री जगतां साजेन समधिष्ठिता।३.१४ ।।
जनित्रीमनुशेते स्म जुषमाणः स्वरूपिणीम्।। ३.१३।।
तामेवाजामजोऽन्यस्तु भुक्तभोगां जहाति च।।
अजा जनित्री जगतां साजेन समधिष्ठिता।३.१४ ।।
(लिंगपुराण, पूर्वभाग, अध्याय- 3, श्लोक 13-14)
अर्थ: बहुत सी प्रजा ओ
को जन्पम देने वाली वह अजा ( प्रकृति) तीन रंगों वाली है। लाल श्वेत और काली है।
(अज) पुरुष अधिष्ठित अजा (बकरी) अनंत ब्रह्माण्ड की उत्पत्तिकर्ता है। यह विश्व की जननी है।
व्याख्या:
यह श्लोक बकरी को मातृ-स्वरूप प्रदान करता है, जो सृष्टि की प्रजनन शक्ति और पोषण का प्रतीक है। इसका ब्रह्मा के मुख से उत्पन्न होना इसकी पवित्रता और सृष्टि में केंद्रीय भूमिका को और परिपुष्ट करता है।
3. उपनिषदों में सृष्टि की एकता
उपनिषदों में सृष्टि की एकता और सभी प्राणियों के एक ही स्रोत से उत्पत्ति का सिद्धांत स्पष्ट रूप से व्यक्त किया गया है। यह ब्राह्मण और बकरी के साझा स्रोत (ब्रह्मा के मुख) को दार्शनिक आधार प्रदान करता है।
प्रतीकात्मक रूप से, ब्राह्मण और बकरी को "भाई-बहन" कहना इस दार्शनिक सिद्धांत को रेखांकित करता है कि सभी प्राणी एक ही परिवार (सृष्टि) के सदस्य हैं।
(ख) बृहदारण्यक उपनिषद
श्लोक:
आत्मा वा इदमेक एवाग्र आसीत्।
नान्यत्किञ्चन मिषत्। स ईक्षत लोकान्नु सृजा इति।।
(बृहदारण्यक उपनिषद, 1.4.1)
अर्थ:
प्रारंभ में केवल आत्मा (ब्रह्म) थी, और कुछ भी नहीं था। उसने सोचा, "मैं लोकों की रचना करूँ।"
व्याख्या:
यह श्लोक सृष्टि के एकल स्रोत को पुष्ट करता है। ब्राह्मण (मानव) और बकरी (पशु) दोनों ही ब्रह्मा की इच्छा से उत्पन्न हुए, और उनका साझा स्रोत (मुख) उनकी एकता को दर्शाता है।
इस संदर्भ में, "भाई-बहन" का विचार जैविक रिश्ते से अधिक एक दार्शनिक और प्रतीकात्मक रिश्ता है, जो सृष्टि के सभी तत्वों की परस्पर निर्भरता को व्यक्त करता है।
4. ब्राह्मण और बकरी की साझा भूमिका: यज्ञ और सृष्टि का संरक्षण
ब्राह्मण और बकरी दोनों ही वैदिक यज्ञ प्रणाली और सृष्टि के संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, जो उनके साझा स्रोत (ब्रह्मा का मुख) को कार्यात्मक रूप से भी प्रामाणिक बनाता है।
(क) ब्राह्मण की भूमिका
ब्राह्मण वेदों के संरक्षक और यज्ञों के संचालक हैं। यजुर्वेद और शतपथ ब्राह्मण में यज्ञ को सृष्टि का आधार बताया गया है। ब्राह्मण, अपने ज्ञान और वाणी (मुख) के माध्यम से, यज्ञों के माध्यम से सृष्टि के संतुलन को बनाए रखते हैं।
शतपथ ब्राह्मण (1.1.1.1) में कहा गया है:
यज्ञो वै विश्वस्य संनादति।
(यज्ञ ही विश्व की उत्पत्ति और संरक्षण का आधार है।)
ब्राह्मण का मुख से उत्पन्न होना उनकी वाणी (मंत्र) और ज्ञान की भूमिका को दर्शाता है।
(ख) बकरी की भूमिका
बकरी यज्ञों में बलि, दान, और पोषण का साधन रही है। ऋग्वेद (6/57/3) में बकरी को पूषा का वाहन बताया गया, और लिंग पुराण में इसे अग्नि का वाहन कहा गया:
अ॒जा अ॒न्यस्य॒ वह्न॑यो॒ हरी॑ अ॒न्यस्य॒ संभृ॑ता। ताभ्यां॑ वृ॒त्राणि॑ जिघ्नते ॥३॥
(ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:57» ऋचा 3 )
अजारूढो वीतिहोत्रो वरुणो मकरस्थितः ।
मयूरस्थः कार्तिकेयो भारती हंसवाहिनी ॥ ४४ ॥
मयूरस्थः कार्तिकेयो भारती हंसवाहिनी ॥ ४४ ॥
श्रीगर्गसंहितायां गोलोकखण्डे नारदबहुलाश्वसंवादे श्रीनंदमहोत्सववर्णनं नाम द्वादशोऽध्यायः ॥ १२ ॥
तामजां लोहितां शुक्लां कृष्णामेका बहुप्रजाम्।।
जनित्रीमनुशेते स्म जुषमाणः स्वरूपिणीम्।। ३.१३ ।।
तामेवाजामजोऽन्यस्तु भुक्तभोगां जहाति च।।
अजा जनित्री जगतां साजेन समधिष्ठिता।। ३.१४।।
प्रादुर्बभूव स महान् पुरुषाधिष्ठितस्य च।।
अजाज्ञया प्रधानस्य सर्गकाले गुणैस्त्रिभिः।। ३.१५।
जनित्रीमनुशेते स्म जुषमाणः स्वरूपिणीम्।। ३.१३ ।।
तामेवाजामजोऽन्यस्तु भुक्तभोगां जहाति च।।
अजा जनित्री जगतां साजेन समधिष्ठिता।। ३.१४।।
प्रादुर्बभूव स महान् पुरुषाधिष्ठितस्य च।।
अजाज्ञया प्रधानस्य सर्गकाले गुणैस्त्रिभिः।। ३.१५।
(लिंग पुराण, पूर्वभाग, अध्याय 3, श्लोक 44)
भविष्य पुराण (उत्तर पर्व, अध्याय 55) में श्रीकृष्ण की पूजा में बकरी की उपस्थिति का उल्लेख है:
यवार्धं स्वस्तिका कुड्यैः शंखवादित्रसंकुलम् ।।
वद्ध्वासुरा लोहखड्गैः प्रियच्छागसमन्वितम् ।।२५।।
वद्ध्वासुरा लोहखड्गैः प्रियच्छागसमन्वितम् ।।२५।।
(ग) साझा भूमिका
ब्राह्मण यज्ञों का संचालन करते हैं, और बकरी यज्ञों में बलि/दान के रूप में योगदान देती है। यह सहयोग सृष्टि के चक्र को बनाए रखता है।
ब्रह्मा का मुख दोनों को जोड़ता है: ब्राह्मण की वाणी (मंत्र) और बकरी की प्रजनन शक्ति (जननी) सृष्टि के दो पूरक पहलू हैं।
इस दृष्टिकोण से, ब्राह्मण और बकरी का "भाई-बहन" संबंध प्रतीकात्मक रूप से उनकी साझा जिम्मेदारी को दर्शाता है, जैसे एक भाई (ब्राह्मण) और बहन (बकरी) मिलकर परिवार (सृष्टि) की देखभाल करते हैं।
5. गोप-आभीर (अहीर)-यादव संदर्भ
बकरी और गोप समुदाय: बकरी का गोप-आभीर (अहीर)-यादव समुदाय के साथ गहरा संबंध है, क्योंकि यह समुदाय पशुपालन (गाय, बकरी) पर निर्भर था। भविष्य पुराण में श्रीकृष्ण की पूजा में बकरी का उल्लेख इस समुदाय की सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान को दर्शाता है।
श्रीकृष्ण और बकरी: श्रीकृष्ण, जो स्वयं गोपाल और यदुवंशी थे, ने गोपवंश को गौरवान्वित किया। गर्ग संहिता (वृंदावन खंड, अध्याय 22) में कृष्ण को गोपवंश का रत्न कहा गया:
गोपालसिंधुपरमौक्तिकरूपधारिन् गोपालवंषगिरिनीलमणे परात्मन्।।
बकरी का यज्ञों में उपयोग और गोप समुदाय की जीवनशैली में इसका महत्व ब्राह्मण और गोप समुदाय के सहयोग को दर्शाता है। ब्राह्मण यज्ञों का संचालन करते थे, और गोप समुदाय बकरी जैसे पशुधन प्रदान करता था।
6. सामाजिक और दार्शनिक निहितार्थ
सृष्टि की एकता: छान्दोग्य उपनिषद और बृहदारण्यक उपनिषद के आधार पर, सभी प्राणी और वस्तुएँ एक ही स्रोत (ब्रह्म) से उत्पन्न हैं। ब्राह्मण (मानव) और बकरी (पशु) का ब्रह्मा के मुख से उत्पन्न होना इस एकत्व को दर्शाता है।
प्रतीकात्मक भाई-बहन: "भाई-बहन" का विचार जैविक रिश्ते से अधिक एक प्रतीकात्मक और दार्शनिक रिश्ता है। यह सृष्टि के सभी तत्वों की परस्पर निर्भरता और उनके साझा उद्देश्य (सृष्टि का संरक्षण) को व्यक्त करता है।
सामाजिक सहयोग: प्राचीन भारतीय समाज में ब्राह्मण और गोप समुदाय का सहजीवन था। ब्राह्मण यज्ञों के माध्यम से आध्यात्मिक नेतृत्व प्रदान करते थे, और गोप समुदाय पशुधन (जैसे बकरी) के माध्यम से आर्थिक और धार्मिक योगदान देता था।
7. प्रामाणिकता के लिए अतिरिक्त साक्ष्य
रामायण में बकरी का दान:
पशुकाभिश्च सर्वाभिर्गवा दशशतेन च।
(रामायण, अयोध्या कांड, सर्ग 32, श्लोक 17)
श्रीराम ने बकरी का दान दिया, जो इसके धार्मिक और सामाजिक महत्व को दर्शाता है।
महाभारत में बकरी धन का हिस्सा:
गवाश्वं बहुधेनूकमसंख्येयमजाविकम्।
(महाभारत, सभापर्व, अध्याय 65, श्लोक 6)
युधिष्ठिर ने बकरी को अपने धन का हिस्सा बताया, जो इसके आर्थिक मूल्य को पुष्ट करता है।
ऐतरेय ब्राह्मण (7.15): यज्ञों में बकरी की बलि का उल्लेख है, जो ब्राह्मणों द्वारा संचालित यज्ञों में इसकी भूमिका को दर्शाता है।
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