बुधवार, 14 मई 2025

वेद में कृष्ण

पद का अन्वय= अव । द्रप्सः । अंशुऽमतीम् । अतिष्ठत् । इयानः । कृष्णः । दशऽभिः । सहस्रैः ।आवत् । तम् । इन्द्रः । शच्या । धमन्तम् । अप । स्नेहितीः । नृऽमनाः । अधत्त ॥१३।

शब्दार्थ व व्याकरणिक विश्लेषण- १-अव= तुम रक्षा करो लोट्लकर मध्यम पुरुष एकवचन।

२-द्रप्स:= जल से द्रप्स् का पञ्चमी एकवचन यहाँ करण कारक के रूप में ।

३- अंशुमतीम् = यमुनाम् –यमुना को अथवा यमुना के पास द्वितीया यहाँ करण कारक के रूप में ।

४-अवतिष्ठत् = अव उपसर्ग पूर्वक (स्था धातु का तिष्ठ आदेश लङ्लकार रूप) स्थित हुए।

५- इन्द्र: शच्या -स्वपत्न्या= इन्द्र: पद में प्रथमा विभक्ति एकवचन कर्ता करक तथा शच्या में शचि के तृत्तीया विभक्ति करणकारक का रूप शचि इन्द्र: की पत्नी का नाम है।।

६-धमन्तं= अग्निसंयोगम् कुर्वन्तं हुंकुर्वन्तं वा। कोलाहलकुर्वन्तंवा। चमकते हुए को अथवा हल्ला करते हुए को अथवा हुंकारते हुए को। (ध्मा धातु का धम आदेश तथा +शतृ(अत्) प्रत्यय कर्मणि द्वित्तीया का रूप एक वचन धमन्तं कृष्ण का विशेषण है ।

७-अप स्नेहिती: = जल में भीगते हुए का।

८-नृमणां( धनानां)

९-अधत्त= उपहार या धन दिया ।(डुधाञ् (धा)=दानधारणयोर्लङ्लकारे आत्मनेपदीय अन्य पुरुषएकवचने)

विशेषटिप्पणी-
१०-अव्=१- रक्षण २-गति ३-कान्ति ४-प्रीति ५-तृप्ति ६-अवगम ७-प्रवेश ८-श्रवण ९- स्वाम्यर्थ १०-याचन ११-क्रिया। १२ -इच्छा १३- दीप्ति १४-अवाप्ति १५-आलिङ्गन १६-हिंसा १७-दान १८-वृद्धिषु।
११-अव् – एक परस्मैपदीय धातु है और धातुपाठ में इसके अनेक अर्थ हैं । प्रकरण के अनुरूप अर्थ ग्रहण करना चाहिए ।
प्रथम पुरुष एक वचन का लङ् लकार(अनद्यतन भूूूतकाल का रूप।
आवत् =प्राप्त किया ।

अव द्रप्सो अंशुमतीमतिष्ठदियानः कृष्णो दशभिः सहस्रैः ।
आवत्तमिन्द्रः शच्या धमन्तमप स्नेहितीर्नृमणा अधत्त ॥१३॥

  • इयानः) चलता हुआ (अंशुमतीम्) यमुना नदी को। (अव अतिष्ठत्) ठहरा है। (नृमणाः) नरों के समान मनवाले अथवा धनों का (इन्द्रः) इन्द्र ने (तम् धमन्तम्) उस हुकारते हुए को (शच्या) शचि के साथ (आवत्)- युद्ध किया।
  • लङ्(अनद्यतन भूत)
  • एकवचनम्
  • द्विवचनम्
  • बहुवचनम्
  • प्रथमपुरुषः
  • आवत्=युद्ध किया
  • युद्ध किया और (स्नेहितीः) भिगो दिया (अप अधत्त) नीचे छोड़ दिया ॥७॥
  • टिप्पणी:-
  • (धमन्तम्) हुङ्कृतम्कुुर्वन्तम् । (स्नेहितीः) स्नेहतिः क्लेदयते।क्लिद आर्द्रीभावे
    (क्लिद्यति(नृमणाः) नेतृतुल्यमनस्कः (अप अधत्त) दूरे धारितवान् ॥


द्रप्समपश्यं विषुणे चरन्तमुपह्वरे नद्यो अंशुमत्याः ।
नभो न कृष्णमवतस्थिवांसमिष्यामि वो वृषणो युध्यताजौ ॥१४॥

  • 1“द्रप्सः =। द्रुतं सरति गच्छतीति द्रप्सः । पृषोदरादिः । द्रुतं गच्छन् "दशभिः “सहसैः दशसहस्रसंख्यैर्गोपेभि:  “इयानः= “कृष्णः एतन्नामकोगोपालक: "अंशुमतीं नाम नदीम् “अव “अतिष्ठत् =अवतिष्ठते । ततः 2-“शच्या=सह इन्द्रण्या 3-“धमन्तम्= उदकस्यान्तरुच्छ्वसन्तं हुंकृतम् कुरुवन्तम्वा “तं =कृष्णं “इन्द्रः मरुद्भिः सह = इन्द्र मरुतों के साथ- 5-“आवत् = युद्धं अकरोत् । । “नृमणाः -नृषु मनो यस्य सः । यद्वा । कर्मनेतृष्वृत्विक्ष्वेकविधं मनो यस्य स तथोक्तः । तादृशः सन् “स्नेहितीः आर्द्रीकर्मसु । “अप “अधत्त । 6- अपधानं =हननम् । अवधीदित्यर्थः । ‘ अप स्नीहितिं नृमणा अधद्राः' (सा. सं. १. ४. १.४.१) इति छन्दोगाः पठन्ति । तस्यानुचरान् गोपान् हत्वा तं द्रुतं गच्छन्तमसुरमपाधत्त । हतवान् इत्यर्थे-॥
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अध द्रप्सो अंशुमत्या उपस्थेऽधारयत्तन्वं तित्विषाणः ।
विशो अदेवीरभ्याचरन्तीर्बृहस्पतिना युजेन्द्रः ससाहे ॥१५॥
ऋग्वेदः - मण्डल अष्टम(8)
सूक्तं    षण्णवतिः 96)
ऋचा - 13-14-तथा 15 का हिन्दी

सरल अर्थ-

कृष्ण दश  हजार  संख्या वाले  गोपों से घिरे हुए हैं । इन्द्र ने अञ्शुमती अथवा यमुना के तट पर. जल में  स्थित कृष्ण नाम से प्रसिद्ध उस गोप को  देखा।

इन्द्र कहता है कि विभिन्न रूपों में मैंने यमुना के जल को देखा और वहीं अंशुमती नदी के निर्जन प्रदेश में चरते हुए बैल अथवा साँड़ को भी देखा और इस साँड को युद्ध में लड़ते हुए मैं कृष्ण से  देखना चाहूगा ।

अर्थात यह साँड अपने स्थान पर अडिग खडे़ कृष्ण को संग्राम में युद्ध करे ऐसा होते हुए मैं चाहूँगा।

जहाँ जल और- ( नभ) बादल भी न हो
(अर्थात कृष्ण की शक्ति मापन के लिए इन्द्र यह इच्छा करता है )

वेदों मे वर्णित यह केशी दैत्य ही है जो कृष्ण के साथयुद्ध करता है।

अथर्ववेद -   8/6/5 
यः कृष्णः केश्यसुर स्तम्बज उत तुण्डिकः। अरायानस्या मुष्काभ्यां भंससोऽप हन्मसि ॥ 

समीक्षा-ऋग्वेद में कृष्ण को असुर कहा गया है?
नहीं, ऋग्वेद में कृष्ण को असुर नहीं कहा गया। यह गलतफहमी आचार्य सायण की टीका से हुई। सरल भाषा में समझें-
अ. ऋग्वेद की असली बात
 ऋग्वेद (4.16.15) का जिक्र किया, जो है।
विशः अदेवीः अभि आश्चरन्तीः बृहस्पतिना युजा इंद्रः सनह्यति।।15।।
विश का मतलब है लोग, प्रजा, या वैश्य (वामन शिवराम आप्टे शब्दकोश, पृष्ठ 1029)। इसका असुर से कोई लेना-देना नहीं।
अदेवी का मतलब सायण ने लिया "जो चमकता नहीं" यानी काला, क्योंकि कृष्ण का रंग काला था। यह उनके रंग का वर्णन है, न कि असुर कहना।
इस श्लोक में "असुर" शब्द ही नहीं है।
ब. सायण ने क्या गलती की?
सायण (14वीं सदी के विद्वान) ने अपनी टीका में:
विश को "असुर सेना" कहा, जो गलत है, क्योंकि विश का मतलब प्रजा या लोग होता है।
अदेवी को "गैर-चमकने वाला" कहा, जो ठीक है, लेकिन इसे असुर से जोड़ना गलत था।
स. वेद और उपनिषद् में असुर का मतलब
ऋग्वेद (1.35.10) वरुण को "असुर" कहा गया, जिसका मतलब "शक्तिशाली" या "दिव्य" है। यानी वेदों में असुर हमेशा बुरा नहीं समझे।_____________
शब्दार्थ व्याकरणिक विश्लेषण:- यादव योगेश कुमार "रोहि" द्वारा-



अव द्रप्सो अंशुमतीमतिष्ठदियानः कृष्णो दशभिः सहस्रैः ।
आवत्तमिन्द्रः शच्या धमन्तमप स्नेहितीर्नृमणा अधत्त ॥७॥

द्रप्समपश्यं विषुणे चरन्तमुपह्वरे नद्यो अंशुमत्याः ।
नभो न कृष्णमवतस्थिवांसमिष्यामि वो वृषणो युध्यताजौ ॥८॥

अध द्रप्सो अंशुमत्या उपस्थेऽधारयत्तन्वं तित्विषाणः ।
विशो अदेवीरभ्याचरन्तीर्बृहस्पतिना युजेन्द्रः ससाहे ॥९॥


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