(श्रीकृष्ण-स्तुति)
- "वन्दे वृन्दावन-वन्दनीयम्। सर्व लोकै रभिनन्दनीयम्।। कर्मस्य फल इति ते नियम। कर्मेच्छा सङ्कल्पो वयम्।।१।।
- भक्त-भाव सुरञ्जनम् । राग-रङ्ग त्वं सञ्जनम्।। बोधि -शोध मनमञ्जनम्। नमस्कार खल-भञ्जनम्।२।
- मयूर पुच्छ तव मस्तकम्। मुरलि मञ्जु शुभ हस्तकम्।। ज्ञान रश्मि त्वं प्रभाकरम्। गुणातीत गुरु-गुणाकरम्।३।
- नमामि याम: त्वमष्टकम्- । हरि-शोक अति कष्टकम्।। भव-बन्ध मम मोचनम् । सर्व भक्तगण रोचनम्।४।
- कृष्ण श्याम त्वं मेघनम्, लभेमहि जीवन धनम्।। रोमैभ्यो गोपा: सर्जकम्। सकल सिद्धी: त्वमर्जकम्।५।
- कृपा- सिन्धु गुरु-धर्मकम्। नमामि प्रभु उरु-कर्मकम्।। इन्द्र-यजन त्वं निवारणम्। पशु-हिंसा तस्या कारणम्।६।
- स्नातकं प्रभु- सुगोरजम् । सदा विराजसे त्वं व्रजम्।। दधान ग्रीवायां मालकम्। नमामि-आभीर बालकम्।७।
- कृषि कर्मणेषु प्रवीणम् । आपीड केकी-पणम्।। कृषाणु शाण हल कृपाणु वन्दे कर्षण-संकर्षणम्।८।
- गोप-गोपयो रधिनायकम्। वैष्णव धर्मस्य विधायकम्।। व्रज रज ते प्रभु भूषणम् । नमामि कोटिश: पूषणम्।९।
- निष्काम कर्मं निर्णायकम्। सुतान वेणु लय -गायकम्।। दीन बन्धो: त्वं सहायकम्। नमामि यादव विनायकम्।१०।
- किशोर वय- सुव्यञ्जितम्। राग-रङ्ग शोभित नितम्।। नमस्कार प्रभु सत्-व्रतम्।। "पेय ज्ञान गीतामृतम्।११।
- वन्यमाल कण्ठे धारिणम्। नमामि व्रज- विहारिणम्।। वैजयन्ती लालित्य हारिणं। लीला विलोल विस्तारिणं।१२।
वृन्दावन के लोगों के लिए वन्दनीय और सभी लोगों के द्वारा अभिनन्दन (स्वागत ) करने योग्य भगवान श्रीकृष्ण ही कर्म सिद्धान्त के नियामक हैं। उन्होंने ही सृष्टि के प्रारम्भ में अहं समुच्चय( वयं( से संकल्प और संकल्प से इच्छा उत्पन्न करके संसार में कर्म का अस्तित्व निश्चित किया।१।
भक्तों के भावों में समर्पण के रंग भरने वाले ,राग और रंग के समष्टि रूप, मन को भक्ति में स्नान कराकर उसे शुद्ध करके ज्ञान का प्रकाश भरने वाले खलों (दुष्टों) को दण्डित करने वाले प्रभु को हम नमस्कार करते हैं।२।
अनुवाद:-मयूर के पूँछ से निर्मित मुकुट तेरे मस्तक पर और हाथों में सुन्दर और शुभ मुरली है। हे मन मोहन ! तू ज्ञान की किरणें विकीर्ण करने वाला प्रभाकर (सूर्य)है। तू आत्मा का ज्ञान देने वाला गुरु, प्रकृति के तीन गुणों से परे होने पर भी कल्याणकारी गुणों का भण्डार है।३।
अनुवाद:- हे मनमोहन ! मैं आठो पहर तुमको नमन करूँ ! तुम अत्यधिक शोक और कष्टों को हरने वाले साक्षात् हरि हो ! संसार के द्वन्द्व मयी बन्धनों से मुझे मुक्त करने वाले और सब भक्तों को प्रिय हे मोहन ! मैं तुझे नमन करता हूँ।४।
अनुवाद:- हे कृष्ण तुम्हारी कान्ति काले बादलों के समान है। हम तुझ जीवन के धन को प्राप्त करें। तुमने गोलोक में ही पूर्वकाल में सभी गोपों की सृष्टि अपने ही रोम कूपों से की थी। तुम सभी सिद्धियों को स्वयं ही प्राप्त हो।५।
अनुवाद:- कृपा के समुद्र, धर्म का यथार्थ बोध कराने वाले गुरु ! महान कर्मों के कर्ता प्रभु ! हम तुझे नमस्कार करते हैं। तूने इन्द्र की पशुओं की बलि ( हिंसा) से पूर्ण यज्ञें बन्द करायीं, जो निर्दोष पशुओं की हिंसा का कारण थी ।६।
अनुवाद:- सुन्दर गाय के निवास स्थान की रज( मिट्टी) से स्नान करने वाले, सदैव व्रज( गायों का बाड़ा) में विराजने वाले, गले में माला धारण करने वाले, अहीर बालक के रूप में रहने वाले प्रभु ! मैं तुम्हें नमस्कार हूँ।७।
अनुवाद:- हे कृष्ण तुम गोप और गोपियों के अधिनायक ( मार्गदर्शन करने वाले), वैष्णव वर्ण और धर्म का संसार में विधान करने वाले भक्तों का पोषण करने वाले हो ! प्रभु तुम्हें हम कोटि -कोटि नमस्कार करते हैं।९।
अनुवाद:- संसार को निष्काम कर्म का उपदेश देने वाले ,बाँसुरी पर सुन्दर तान के द्वारा लय से गायन करने वाले , दीन दु:खीयों के सहायता करने वाले, यादवों के विशेष नेता तुमको हम नमस्कार करते हैं। १०।
अनुवाद:- गोलोक में सदैव किशोर अवस्था में विद्यमान, राग -रंग से शोभित, रासधारी सत्य व्रतों का पालन करने वाले, तुमने गीता का अमृत पिलाया ।११।
अनुवाद:- वनों की सुन्दर माला कण्ठ में धारण करने वाले और सम्पूर्ण व्रज में भ्रमण करने वाले, सुन्दर लीलाओं का विस्तार करने वाले, सुन्दर वैजयन्ती माला धारण करने वाले, भगवान कन्हैया को हम नमस्कार करते हैं।१२।
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