"मिश्र और मिश्रा ब्राह्मण की उत्पत्ति गोपाल बालक और चातुर्विद्या ब्राह्मण बालिकाओं के प्रेम सम्बन्धों से हुई -
"स्कन्द पुराण ब्रह्म खण्ड से उद्धृत-
"ब्रह्मोवाच"
चातुर्विद्यास्तु ये विप्रा नागताः पुनरागताः।।
वसतिं तत्र रम्ये च चक्रिरे ते द्विजोत्तमाः।।८३।।
ब्रह्मा ने कहा :
"जो चतुर्विद्या ब्राह्मण पहले नहीं आये थे, वे ही बाद में आये। उन श्रेष्ठ ब्राह्मणों ने वहाँ अपना मनोहर निवास बनाया।८३।
चतुर्विंशतिसंख्याका रामशासनलिप्सया ।।
हनुमन्तं प्रति गता व्यावृत्ताः पुनरागताः।।८४।।
"अनुवाद- वे चौबीस की संख्या में थे और राम का अधिकार-पत्र प्राप्त करने के उद्देश्य से हनुमानजी के पास गये; वे फिर लौट आये।८४।
भिन्नाचारा भिन्नभाषा वेशसंशयमागताः ।।
पञ्चदशसहस्राणि मध्ये ये के च वाडवाः।।८६।।
"अनुवाद-अपने दोष के कारण वे सभी अपने-अपने स्थानों से विस्थापित और निष्कासित कर दिये गये। कुछ समय बीतने के बाद वे (एक-दूसरे के) विरोधी उनके आचार-विचार, भाषा और वेश-भूषा भिन्न थी। पन्द्रह हजार ब्राह्मणों में से कुछ वाडवा हो गये।८६।
कृषिकर्मरता आसन्केचिद्यज्ञपरायणाः।।
केचिन्मल्लाश्च संजा ताः केचिद्वै वेदपाठकाः।।८७।।
"अनुवाद-कुछ कृषि-कार्य में लगे हुए थे, कुछ यज्ञ में लगे हुए थे, कुछ पहलवान बन गए थे, और कुछ वेदों के मंत्रोच्चार करने वाले थे। ८७।
आयुर्वेदरताः केचित्केचिद्रजकयाजकाः ।।
संध्यास्नानपराः केचिन्नीलीकर्तृप्रयाजकाः।।८८।।
"अनुवाद-कुछ आयुर्वेद का अध्ययन करते थे , कुछ धोबियों के लिए यज्ञ करने वाले बन गए थे। कुछ संध्या के समय नियमित रूप से स्नान और प्रार्थना करते थे , कुछ नील बनाने वालों के लिए यज्ञ करते थे।८८।
तन्तुकृद्याचनरतास्तन्तुवायादियाचकाः।
कलौ प्राप्ते द्विजाः भ्रष्टा भविष्यन्ति न संशयः।८९।
"अनुवाद- (यज्ञ का याचन शब्द ग़लत लगता है याजन शब्द होना चाहिए ) कुछ ब्राह्मण सूत बनाने वालों के लिए यज्ञ करने में लगे हुए थे, और कुछ बुनकरों आदि के लिए याजक बने। इसमें कोई संदेह नहीं है कि कलि के आगमन पर ब्राह्मण पतित और भ्रष्ट हो जाएँगे।८९।
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शूद्रेषु जातिभेदः स्यात्कलौ प्राप्ते नराधिप ।।
भ्रष्टाचाराः परं ज्ञात्वा ज्ञातिबन्धेन पीडिताः ।। 3.2.39.२९० ।।
"अनुवाद-हे राजा, जब कलि युग का आगमन होगा, तो शूद्रों के बीच जातियों में विभाजन हो जाएगा ,वे भी भ्रष्ट आचरण वाले होंगे और जातियों के प्रतिबंधों के अधीन होंगे।
भोजनाच्छादने राजन्परित्यक्ता निजैर्जनैः।।
न कोऽपि कन्यां विवहेत्संसर्गेण कदाचन ।।
ततस्ते वणिजो राजं स्तैलकाराः कलौ किल ।। ९१ ।।
"अनुवाद-एक साथ भोजन करने और पहनने-ओढ़ने के मामले में वे अपने ही लोगों द्वारा त्याग दिए जाएंगे; उनका कभी संपर्क नहीं होगा, क्योंकि कोई भी अपनी बेटी से शादी नहीं करेगा। तब कलियुग में वे बनियों के राज में तैल बेचने वाले होंगे। ९१।
केचिच्च कलकाराश्च केचित्तन्दुलकारिणः ।।
राजपुत्राश्रिताः केचिन्नानावर्णसमाश्रिताः ।।
कलौ प्राप्ते तु वणिजो भ्रष्टाः केपि महीतले।।९२।
"अनुवाद:-हे राजा, कलियुग में कुछ ब्राह्मण कारीगर होंगे ,कुछ चावल के व्यापारी होंगे; कुछ राजपूतों का सहारा लेंगे जबकि कुछ अन्य विभिन्न जाति वर्णों पर निर्भर होंगे कलियुग में पृथ्वी पर वणिक भ्रष्ट और पतित हो जाऐंगे।९२।
तेषां तु पृथगाचाराः सम्बन्धाश्च पृथक्कृता ।।
सीतापुरे च वसतिः केषांचित्समजायत ।। ९३ ।।
"अनुवाद:- उनकी आचार संहिता अलग होगी, उनके रिश्तेदार भी अलग होंगे। उनमें से कुछ ने सीतापुर में अपना निवास स्थान ले लिया। ९३।
साभ्रमत्यास्तटे केचिद्यत्र कुत्र व्यवस्थिताः।।
सीतापुरात्तु ये पूर्वं भयभीता समागताः ।।९४।।
"अनुवाद:-कुछ साभ्रमती( साबरमती) नदी के तट पर विभिन्न स्थानों पर बस गए जो लोग डर के कारण पहले सीतापुर से आगये थे ।९४।
साभ्रमत्युत्तरे कूले श्रीक्षेत्रे ये व्यवस्थिताः ।।
यदा तेषां पदं स्थानं दत्तं वै सुखवासकम् ।।९५।।
"अनुवाद:-जो लोग साभ्रमती के उत्तरी तट पर श्रीक्षेत्र में बस गए थे, जब उनको स्थान दिया वह सुखवासक नाम से उन्हें निवास के लिए दिया गया था।९५।
पुनस्तेऽपि गताः सद्यस्तस्मिन्सीतापुरे स्वयम्।।
पञ्चपञ्चाशद्ग्रामाश्च दत्तास्तु पुनरागमे ।। ९६ ।।
"अनुवाद:-वे सीतापुर पुन: वापस चले गए । उनकी वापसी पर ने उन्हें राम के द्वारा पचपन गाँव दिये। ९६।
रामेण मोढविप्राणां निवासांस्तेषु चक्रिरे ।।
वृत्तिबाह्यास्तु ये विप्रा धर्मारण्यान्तरस्थिताः ।९७।
"अनुवाद:-उनमें मोढ़ ब्राह्मणों के निवास स्थान बनाए गए थे। जिन ब्राह्मणों को आजीविका के साधनों के कार्यभार से बाहर रखा गया था, वे धर्मारण्य में आकर बस गए।९७।
नास्माकं वणिजां वृत्तौ ग्रामवृत्तौ न किञ्चन ।।
प्रयोजनं हि विप्रेन्द्रा वासोऽस्माकं तु रोचते ।२९८।
"अनुवाद:-उन्होंने कहा, “व्यापारियों के व्यवसाय या गाँव में काम सौंपने से हमारा कोई लेना-देना नहीं है। लेकिन यहां रहना हमें अच्छा लगता है।९८।
इत्युक्ते समनुज्ञातास्त्रैविद्यैस्तैर्द्विजोत्तमैः।।
तेषु ग्रामेषु ते विप्राश्चातुर्विद्या द्विजोत्तमाः।।२९९।।
"अनुवाद:-इस प्रकार कहे जाने पर, उत्कृष्ट त्रैविद्या ब्राह्मणों ने उन चातुर्विद्या ब्राह्मणों को अपने गाँव में रहने की अनुमति दे दी।२९९।
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स्वकर्मनिरताः शान्ताः कृषिकर्मपरायणाः ।।
धर्मारण्यान्नातिदूरे धेनूः सञ्चारयन्ति ते ।।3.2.39.३००।।
"अनुवाद:-वे उत्कृष्ट चातुर्विद्या ब्राह्मण अपनी गतिविधियों की देखभाल स्वयं करते हुए कृषि कार्यों में लगे हुए थे। वे गायों को धर्मारण्य से कुछ दूर चराने के लिए ले जाने लगे।३००।
*बहवस्तत्र गोपाला वभूवुर्द्विजबालकाः।।
चातुर्विद्यास्तु शिशवस्तेषां धेनूरचारयन् ।।१।
"अनुवाद:-वहाँ बहुत से गोपाल( आभीर ) बालक उन चातुरविद्या द्विजों के बालकों के साथ हो लिए वे चातुरविद्या ब्राह्मण बालक उनके साथ गाय चलाते रहे-।१।
तेषां भोजनकामाय अन्नपानादिसत्कृतम् ।
अनयन्वै युवतयो विधवा अपि बालकाः ।। २ ।।
"अनुवाद:-उनमें से कई ब्राह्मण लड़के चरवाहे बन गए। चतुर्विद्या बालक गायें चराते थे। उन चातुरविद्या बालकों को खाना खिलाने के लिए, ब्राह्मण युवतीयाँ जो बिना पति की थीं उनके लिए भोजन और पेय लाती थीं ।२।
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कालेन कियता राजंस्तेषां प्रीतिरभून्मिथः।
गोपाला बुभुजुः प्रेम्णा कुमार्यो द्विजबालिकाः ।३।*******
"अनुवाद:- हे राजा कुछ समय बीतने पर उन ब्राह्मण युवतियों को गोपाल बालकों से प्रेम सम्बन्ध हो गये उन चातुरविद्या ब्राह्मण बालकों के मित्र ग्वालों ने प्रेमपूर्वक ब्राह्मण लड़कियों और युवतियों का भोग किया।३।
जाताः सगर्भास्ताः सर्वा दृष्टास्तैर्द्विजसत्तमैः ।।
परित्यक्ताश्च सदनाद्धिक्कृताः पापकर्मणा ।। ४ ।।
"अनुवाद:- उन सभी के गर्भवती होने का पता लगा लिया गया अथवा देख लया गया तो पाप कर्म के कारण विकृता उन कन्याओं को श्रेष्ठ ब्राह्मणों के द्वारा घर से निकाल दिया गया।४।
तेभ्यो जाता कुमारा ये कातीभा गोलकास्तथा।
धेनुजास्ते धरालोके ख्यातिं जग्मुर्द्विजोत्तमाः।।५।।
"अनुवाद:-पूरी पृथ्वी पर नाजायज तरीके से पैदा हुए उन बालकों को विभिन्न प्रकार से कातीभ, गोलक[8] और धेनुज कहा जाता था।५।
वृत्ति बाह्यास्तु ते विप्रा भिक्षां कुर्वन्ति नित्यशः।।
अन्यच्च श्रूयतां राजंस्त्रैविद्यानां द्विजन्मनाम्।।६।।
"अनुवाद:-जीविका के साधनों के आवंटन से वंचित ब्राह्मण प्रतिदिन भिक्षा मांगने लगे। हे राजन, और भी बहुत कुछ सुना जा सकता है।६।
कुष्ठी कोऽपि तथा पङ्गुर्मूर्खो वा बधिरोऽपि वा ।।
काणो वाप्यथ कुब्जो वा बद्धवागथवा पुनः।।७।।
"अनुवाद:-त्रैविद्या ब्राह्मणों में कुछ कोढ़ी, कुछ लंगड़े, कुछ मंदबुद्धि, कुछ बहरे, कुछ एक आँख वाले, कुछ कुबड़े तथा कुछ बोलने में असमर्थ थे।७।
अप्राप्तकन्यका ह्येते चातुर्विद्यान्समाश्रिताः।।
वित्तेन महता राजन्सुतांस्तेषां कुमारिकाः।।८।।
"अनुवाद:-ये लोग जो कन्याएँ वधू के रूप में प्राप्त नहीं कर सके, वे चतुर्विद्या के पास आए। उन्हें बहुत से धन का लालच देकर उनकी कन्याओं को वधू के रूप में ले लिया गया।
उद्वाहितास्तदा राजंस्तस्माज्जातार्भकास्तु ये।।
त्रिदलजास्ते विख्याताः क्षितिलोकेऽभवंस्ततः।।९।।
"अनुवाद:-हे राजन, इन (जबरन विवाहों) से उत्पन्न पुत्र सारी पृथ्वी पर त्रिदलज के नाम से प्रसिद्ध हुए।९।.
वृत्तिं चक्रुर्ब्राह्मणास्तेऽन्योन्यं मिश्रसमुद्भवाः ।।
अन्यच्च श्रूयतां राजंस्त्रैविद्यानां द्विजन्मनाम् ।। 3.2.39.३१० ।।
इन अंतरजातीय( गोपाल- बालकों और ब्राह्मण कन्याओं ) के संबंधों के मिश्रण से उत्पन्न बालक ये त्रैविद्या ब्राह्मण किसी तरह अपनी आजीविका चलाते रहे। हे राजन, इन त्रैविद्या ब्राह्मणों के बारे में और भी सुना जा सकता है।१०।
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