रविवार, 7 अप्रैल 2024

प्रस्तावना-+


सृष्टि का अस्तित्व अनन्त काल से विद्यमान है ।यह सम्पूर्ण दृश्यमान् सृष्टि परम- ब्रह्म परमेश्वर का ही साकार स्वरूप है।
वह परमात्मा परमेश्वर निराकार होकर भी साकार है और साकार होकर भी निराकार है। तत्ववेत्ताओं का कथन है कि
वही एक परमेश्वर ऊर्जा रूप में निराकार और पदार्थ रूप में साकार है।
साकार-पदार्थ  निराकार ऊर्जा का ही घनीभूत रूपान्तरण है।

वह परमात्मा परमेश्वर स्वयं में परिपूर्ण और परिपूर्णतम भी है। वही अपरिमेय और अनन्त है। उस से उत्पन्न कुछ विशिष्ट सत्ताऐं उसका प्रतिनिधित्व करती हैं। जिन्हें अवतार कहा जाता है। अथवा वह संसार में विद्यमान पात्र नर अथवा नारीयों को चुनकर अपना प्रतिनिधि निर्धारित करता है।
परमात्मा की पूर्णता के विषय में उपनिषदों में यह महावाक्य उद्घोषित है।

"पूर्णमद: पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते।
पूर्णस्य पूर्णमादाय, 
पूर्णमेवाव शिष्यते।१।

अनुवाद:-
वह पूर्ण है, ये भी पूर्ण है और ये पूर्ण उसी पूर्ण से प्रकट हुआ है। उस पूर्ण से इस पूर्ण के निकलने पर भी वो पूर्ण ही शेष बचता है।
सन्दर्भ:-
(वृहदारण्यक उपनिषद्)

जो परमात्मा सम्पूर्ण विश्व के बीज को धारण किये हुए निराकार रूप में एक परम ज्योति के रूप में विद्यमान है।

वही  परमात्मा जब सृष्टि का विस्तार करने के लिए संकल्पित होता है तो वह श्रीकृष्ण नाम से साकार होकर सृष्टि का विस्तार करता है।  
उस परम प्रभु परमात्मा को हृदय से मैं नमस्कार करता हूँ।

जिनकी कृपा और गुरुजनों की प्रेरणा से  परमात्मा श्रीकृष्ण के चरित्रों एवं उनके कारनामों को प्रस्तुत ग्रन्थ में वर्णन करने का अवसर मिला है।
हम उन समस्त गुरुजनों को भी हृदय से  प्रणाम करते हैं ।

जिस परमात्मा के अनन्त गुण और स्वरूप हों और जिसको देव ,मुनि गन्धर्व और ऋषि गण भी पूर्ण रूप से  न जान सके  हों ; तो फिर हम जैसा एक छोटा सा मानवीय जीव उस अनन्त गुणों वाले परमात्मा  को कैसे पूर्ण रूपेण जान सकता है।

फिर भी हम उस परमात्मा के गुण और स्वरूपों के  रहस्यों को  उसी परमात्मा की अनुकम्पा से इस  ग्रन्थ में एक हमने एक नम्र प्रयास किया है।


जिसको  आज कल के  कथावाचकों तथा पुरोहितों  के द्वारा जानकारी होने पर भी समाज के सामने प्रस्तुत नहीं किया जाता है अथवा उनको कृष्ण चरित के रहस्यों की जानकारी ही नहीं होती है। इन दोनों कारणों ये समाज के समक्ष कृष्ण चरित्र आज तक प्रस्तुत न हो सका है जोकि  आध्यात्मिक दृष्टिकोण से उचित नहीं है।


किन्तु इस ग्रन्थ में परमात्मा के वास्तविक गुणों और लौकिक और पारलौकिक चरित्रों को वैज्ञानिक तथ्यों और दार्शनिक पद्धतियों के द्वारा हमने प्रस्तुत किया है जो पूर्णत: यथार्थ और तथ्य परक भी है।

परमात्मा श्रीकृष्ण के चारित्रिक रहस्यों को  हमने इस महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ में  प्रसंगों के अनुसार प्रमुखत: तीन खण्डों में प्रस्तुत किया है 

जिसमें प्रत्येक खण्ड को अनेक अध्यायों में विभाजित किया गया है।
जिसमें प्रथम खण्ड *सृष्टि सर्जन* है जिसमे गोलोक , भूलोक तथा ब्रह्माण्डों की उत्पत्ति के विषय में विवरण है तथा यह खण्ड देवी -देवों तथा अन्य सभी प्राणियों की उत्पत्ति के सैद्धान्तिक रूप का विवरण प्रस्तुत करता है। इस  खण्ड अन्तर्गत मुख्यत: दश अध्याय है। 

उसी क्रम से दूसरा खण्ड आध्यात्मिक खण्ड है जिसमे परमात्मा श्रीकृष्ण के आध्यात्मिक जीवन से सम्बन्धित उनके दार्शनिक विचारों का बड़ा ही लोकोपयोगी  विवरण प्रस्तुत किया गया है जो विस्तृत पाँच अध्याय में विभाजित है।


इसी  क्रम में इस ग्रन्थ का तीसरा खण्ड
लोकाचरण नाम से प्रस्तुत है। जिसमें परमात्मा श्रीकृष्ण के लोक जीवन और उनके चरित्र (आचरण) के समाज के लिए अनुकरणीय रूपों का विवरण प्रस्तुत किया गया है जिसमें लगभग छोटे बड़े (सात अध्याय) समाविष्ट हैं।

इस प्रकार ये यह ग्रन्थ इन तमाम तथ्यों को समाविष्ट किए हुए आप लोगों के समक्ष प्रस्तुत है 

इस ऐतिहासिक विवेचनात्मक सन्दर्भों के प्रस्तुतिकरण के शुभ अवसर  पर  आज के समय में श्री कृष्ण जीवन  के इस ऐतिहासिकता पूर्ण  प्राचीन गूढ़ तथ्यों का अनावरण करना जनसाधारण के समक्ष आवश्यक ही नहीं अपितु अनिवार्य भी है। 

क्योंकि कृष्ण के जीवन और चरित्र के विषय में कुछ भ्रान्तपथिकों ने अनेक भ्रान्तियाँ समाज में फैलाई हैं। कृष्ण को एक कामी- विलासी और व्यभिचारी पुरुष बनाकर कुछ इन्द्रोपासक पुरोहितों ने प्रस्तुत किया है। 

जोकि उन कृष्ण के  द्वारा कहे श्रीमद्भगवद्गीता के उपदेशों के विपरीत होने से उनके चारित्रिक तथ्यों के विपरीत ही है।

आज हम जो पुन: भगवान गोपेश्वर श्रीकृष्ण के यथार्थ जीवन  चरित्र - चित्रण करने का प्रयास कर रहे हैं। इस महान उद्देश्य पूर्ण पावन कार्य में  हमारे सम्बल और कृष्ण भक्ति के प्रसारक,    परम सात्विक, सन्त हृदय श्री " गोपाचार्य हंस श्री आत्मानन्द" जी भी उपस्थित हैं। जिनकी  पावन प्रेरणाओं से अनुप्रेरित होकर साधक व्यक्तित्व- गोपाचार्यहंस श्री माताप्रसाद जी , गोपाचार्यहंस योगेश कुमार रोहि के साथ सहयोगी की भूमिका में उपस्थित हैं। 

आज के नवीन परिप्रेक्ष्य में वैष्णव वर्ण और तदनुरूप भागवत धर्म की उपयोगिता मानव की आध्यात्मिक पिपासा की तृप्ति के लिए अति आवश्यक है।

प्रस्तावक:- "यादव योगेश कुमार रोहि"
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