राजपूत पुंडीर ओर गुर्जर -
पुण्डीर राजपूतों की एक शाखा या गोत्र कहा जाता है।जो अपनी उत्पत्ति के बारे में अनेक शब्द व्युपत्तियों का उद्धरण देते हैं ।
कुछ कहते हैं की वो महाराज पुण्डरीक के वंश से हैं जो रामायण के श्री राम के पुत्र कुश का पौत्र थे ।
और कुछ का कहना है की वो कुल्लू के महाऋषि पुण्डरीक के वंश से हैं जो सफेद नाग का रूप में विद्यमान हैं।
और कई लोग दाबा करते है की पुण्डीर संस्कृत के शब्द पुरन्दर से बना है जिसका अर्थ शत्रु के पुरोंका विनाशक
विदित हे कि विकल्प सत्य का द्योतक नहीं ।
पुंड्र देश (बिहार का एक भाग)। ३. पुंड्र देश के वसुदेव का पुत्र जो 'मिथ्या वासुदेव' कहलाया। दे० 'पौंड्रक'। ५. मनु के अनुसार एक जाति जो पहले क्षत्रिय थी पर पीछे संस्कारभ्रष्ट होकर वृषलत्व को प्राप्त हो गई थी। दे० 'पुंड्र—९'।
भारत के एक भाग प्राचीन नाम जो इतिहास पुराणादि में मिलता है।
जो विहार के अन्तर्गत है ।
महाभारत के अनुसार अंग, बंग, कलिंग, पुंड्र और सुह्म, आदि बलि के इन पाँच पुत्रों के नाम पर देशों के नाम पड़े
यह एक प्राचीन जाति थी विशेषत: —इस जाति का उल्लेक ऐतरेय ब्राह्मण में इस प्रकार है कि— विश्वामित्र के सौ पुत्रौं में से पचास तो मधुच्छदा से बड़े और पचास छोटे थे।
विश्वामित्र ने जब शुन शेप का अभिषेक किया तब ज्येष्ठ पुत्र बहुत असंतुष्ट हुए।
इसपर विश्वामित्र ने उन्हें शाप दिया कि तुम्हारे पुत्र अंत्यज होगे।
अंघ्र, पुंड्र, शवर, इत्यादि उन्ही पुत्रों के वंशज हुए जिनकी गिनती दस्युओं में हुई।
पिण्डारी शब्द का विकास भी इसी प्रकार है
महाभारत में एक स्थान पर यवन, किरात, गांधार, चीन, शवर आदि दस्यु जातियों के साथ पौंड्रकों का नाम भी है।
पर दुसरे स्थान पर 'पौंड्रकों' और सुपुंड्रकों में भेद किया है।
पौंड्रकों और पुंड़्रों को तो अंग, बंग, गय आदि के साथ शास्त्रधारी क्षत्रिय लिखा है जिन्होंने युधिष्ठिर के लिये बहुत साधन इकट्ठा किया था।
उनके जाने पर युधिष्ठिर के द्धारपाल ने उन्हें नहीं रोका था।
पर वंग कलिंग, मगध, ताम्रलिप्त आदि के साथ सुपुंड्रकों का द्वारपाल द्वारा रोका जाना लिखा है जिससे वे वृषलत्वप्राप्त क्षत्रिय जान पड़ते है।
मनुस्मृति में जिन पौंड्रकों का उल्लेख है वे भी संस्कारभ्रष्ट क्षत्रिय थे जो म्लेच्छ हो गए थे।
इससे पौंड्र या पुंड्र सुपुंड्रों से भिन्न और क्षत्रिय प्रतीत होते हैं।
महाभारत कर्णपर्व में भी कुरु, पांचाल, शाल्व, मत्स्य, नैनिष, कलिंग मागध आदि शाश्वत धर्म जाननेवाले महात्माओं के साथ पौंड्रों का भी उल्लेख है, आदिपर्व में बलि के पाँच पुत्रों (अंग वंग आदि) में जिस पुंड्र का नाम है उसी के वंशज संभवतः ये पुंड्र या पौड्र हों।
ब्रह्मांड और मत्स्य पुराण के अनुसार पुंड्र लोग प्राच्य (पुरबी भारत के) थे, पर विष्णु पुराण में और मार्कडेय पुराण में उन्हें दाक्षिणात्य लिखा है।
पुण्डर कौन हैं इसकी सही खोज अंग्रेज़ी इतिहास कार "डेनज़िल इब्बेटसन" ने भारत के पुराने ऐैतिहासिक दस्तावेजो के आधार पर की है उनके मुताबित पंडित दक्षिण भारत के पुंद्र(पण्डा) ब्राह्मण हैं।
जिनका तेलिंगाना(आंध्र प्रदेश)के जसमोर इलाके मे राज था।
इनके बुजुर्ग तलिंगाना से बंगाल चले गए थे ओर इन्हें बांग तिलंगाना कहा जाने लगा।
बांग तिलंगानाओ का एक समृद्ध परिवार कुरुक्षेत्र की यात्रा पर आया था जो उस वक़्त दिल्ली के चौहानो के अधीन था।
उत्तर भारत के लोग उस वक़्तों मे दक्षिण के ब्राह्मणों की इज़्ज़त किया करते थे।
कई कारणों से चौहानो ने यात्रा पर आये इन बांग तलिंगाओ को कुरुक्षेत्र के पास जागीर देकर यही बसा दिया जहाँ से ये लोग पुंद्र से पुंडीर हो गये ।
यहां इनका मुख्य गढ़ इन्ही के नाम से पुण्डरी या पुन्दरक था।
सांभार ओर हाबरी भी इनका गढ़ था।
आज कल भी इनकी मुख्य गोत्र ब्राह्मणों वाली ही हैं जैसे पुलसत्या,पाराशर, ओर भार्गव, राजपूत या ओर किसी जाती वाली गोत्र इनमे नही है।
इनका राज दिल्ली के चौहान गुर्जरों पर ही निर्भर करता था।
उनको ये लोग अपनी लडकिया भी शादी मे देते थे।पृथ्वीराज चौहान की एक रानी भी पुंडीर थी।
पुण्डरी के राजा होने के कारण अर्थात राजा के पुत्र होने के कारण ओर चौहान गुर्जरो से रिश्तेदारी होने के कारण इनको भी राजपूत कहा जाने लगा,ओर राजपूतो के दूसरे वंशो मे जो चौहान गुर्जरो के अधीन था ।
उनमे भी इनको स्वीकार किया इस प्रकार राजपूतों में एक ओर ऐसा वंश शामिल हो गया जो
कुरुक्षेत्र के इलाके मे मंधार गोत्र के गुर्जरो की चारागाह थी जहा वो अपने पशुओ के साथ रहता था।
मंधार गोत्र के गुर्जरो ने पुंडीर की गुलामी से इनकार कर दिया ओर कोई भी कर देने से इनकार कर दिया।
इस बात पर पुंडीर जो ब्राह्मण थे उन्होंने चौहानो से गुहार लगाई ओर चौहानो की मदद से मंधारो पर फौजी कार्यवाही की।
आम तौर पर तीन जगहों की लड़ाई के ऐैतिहासिक ज़िक्र मिलता है जो पुंडीर ओर मंधार गुर्जरो के बीच हुई मंधारो को इलाका छोड़ना पड़ा, मांधरो ने इलाका छोड़ दिया पर पुंडीरो की गुलामी नही स्वीकार की।
मुहम्मद गौरी से हुई जंग में कई पुंडीर पृथ्वीराज चौहान की तरफ से लड़े ओर मारे भी गए।
चौहानों का राज दिल्ली मे खत्म होने के बाद उनकी नज़रें उनके अधीन राजाओ की जगीरो को अपने कब्जे मे लेने की थी इस वजह से उनकी पुंडीर से भी अनबन हुई ओर पुंडीर को कुरुक्षेत्र छोड़कर देहरादून ओर सहारनपुर में आबाद इलाको मे जाना पड़ा।
कुरुक्षेत्र का यह इलाका चौहानों के पल्ले भी नही पड़ा,क्योंकि रियासत डिडवारहा के जिंदेढ़ गुर्जर इस इलाके मे प्रभावशाली हो रहे थे।
पुंडीर के गढ़ पुंड्रक में आज भी जिंदेढ़ गुर्जर हावी है कुछ खटाना गुर्जर भी यहा रह रहे है।
देहरादून ओर सहारनपुर के इलाके में फिर पुंडीर का वास्ता गुज्जरों से ही पड़ गया।
1750-1775 के लगभग सरदार भगेल सिंह के अधीन सिक्खो ने दून के इलाके मे मारकाट मचा रखी थी जिसका फायदा पुन्डीरों ओर गुर्जरों को भी हो रहा था।मजबूरी मे गढ़वाल के राजा ललित शाह जिसके अधीन देहरादून भी था सिक्खो, गुर्जरों ओर पुंडीर को जागीरें देकर शांति बहाल कर रहा था।
पहले उसकी कोशिश पुंडीर ओर गुर्जरों को सिक्खो के खिलाफ खड़ा करने की थी जो कामयाब नही हुई क्योंकि बहुत से पुंडीर ओर गुर्जर भी सिक्ख बन चुके थे ओर सिख टुकड़ियों के साथ दून पर हमलावर थे।आखिर ललित शाह ने गुलाब सिंह पुंडीर से अपनी लड़की की शादी करके 12 गांव की जागीर उसे दे दी।गढ़वाल के राजा से संबंध हो जाने से पुंडीर इस इलाके की राजनीतिक तौर पर मजबूत कॉम बन गई थी।
जब नेपाल के जरनैल अमर सिंह थापा ने इस इलाके मे पेशकदमी की तो पुन्दीरो ने लंढौरा के गुर्जर राजा रामदयाल सिंह से मदद की गुहार की।
रामदयाल सिंह की गुर्जर फौज ने पुन्दीरो को अमरसिंह थापा के कहर से बचाया।
1803 मे अंग्रेजी फौज ने पुन्दीरो को विजयगढ़ के किले से निकाल कर अपना गुलाम बना लिया।
पुंडीर पूरी तरह अंग्रेजो की गुलामी करने लगा।
पुन्दीरो के प्रभाव के समय में जो गुर्जर उनकी मुलाज़मत में था अपने को भी प्रभावशाली कहलाने के लिए पुंडीर लगाने लगा।
पुन्दीरो ने गुर्जरो से युद्ध कला ओर भी कुछ सीखा उसका ज़िक्र कभी किसी ओर पोस्ट मे करूँगा।
1857 मे जब इलाके के गुर्जर ओर राघड़ बगावत पर था तो मुजफ्फरनगर के पुन्ड़ीरों ने अंग्रेजो के खिलाफ हो रहे विद्रोह को दबाने के लिए 200 प्यादे फौजी दिए, अकराबाद के पुंडीरों ने अंग्रेजी फौजी कल 500 सवार ओर 5000 प्यादे फौजी दिए,सिकंदर राव परगाना के पुंडीर ने 400 सवार ओर 4000 प्यादे दिए जो सारे गुज्जरों ओर रांघड़ों के विद्रोह को दबाने के लिए इस्तेमाल किये गए।कुंदन सिंह पुंडीर को सिकंदरा राव तहसील को बागियों से बचाने की जिम्मेदारी दि गई थी जहां उसने रांघड़ आबादी पर जुल्म किये।
नारायण सिंह पुंडीर अंग्रेजो के खिलाफ था,उसने अपने बेटो मेहताब सिंह ओर मंगल सिंह के साथ अंग्रेजो के खिलाफ बगावत की पर उसकी फौज में तमाम गुर्जर ओर रांघड़ शामिल थे।
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अधूरा ज्ञान है तुम्हे !
जवाब देंहटाएंऔर ये बहोत खतरनाक होता है
ये इतिहास बिलकुल झूठा बतया गया है । इस पर व्यक्ति पर झूठा इतिहास बताने पर सख्त करवहाई हो ।
जवाब देंहटाएंमेरा एक चुटिया दोस्त भी पहले ऐसी बक्चोदी करता था फिर एक दिन उसको हिंजड़े उठा के ले गए
जवाब देंहटाएंसमझा चूटिए
राजपूतों की राखैलों की aaula
Ghut itihash Prithviraj Chauhan kshtrya Rajput h or pundir bhi kshtrya Rajput h
जवाब देंहटाएंare bhai esh pr to ky besh kru ab baki hm pundir h aur gurjaro m bhi pundir hotte h hm gurjar hi h
हटाएंSab kuch galat ha
हटाएंनक़ली नहीं पता तो ग़लत बयानी न कर
जवाब देंहटाएंनक़ली नहीं पता तो ग़लत बयानी न कर
जवाब देंहटाएंनक़ली नहीं पता तो ग़लत बयानी न कर
जवाब देंहटाएंNice joke
जवाब देंहटाएंMza aaya manghadant khanI me
I am pundeer rajput
जवाब देंहटाएंOr haan aja dikha teri koi रियासत
थी जो
हम दिखाते हैं पुंडीर राजपूतों की रियासत आओ
Teri maa ki choot
जवाब देंहटाएंTeri maa ki choot
जवाब देंहटाएंTeri maa kii choot bhosdike kuch bhi likh rha hai..aaja teri gaand me se bawasir nikaalu.....
जवाब देंहटाएंपूर्णतः चूतियापा वाला इतिहास लिखा है जो किसी भी रूप के इतिहास नही है, कही की ईंट कहि का रोड़ा ....डिलीट करो इसे
जवाब देंहटाएंकोशिश तो ऐसे लोग ही करते है जो हुक्का चोर होते है।
जवाब देंहटाएंसुना है के सबसे बुरा चोर किसे समझा जाता है जो हुक्का चुराता है और गुर्जरों को इसीलिए कोई अपने पास नही बैठता था की ये किसी का हुक्का भी नही छोड़ते थे।
भैंस चोर गुज़ज़र इतिहास भी चुराने लगे।😂🤣
जवाब देंहटाएंकुछ भी बकने की इजाज़त ह तुम्हे भोसडीके
जवाब देंहटाएंपहले साले अपना इतिहास देख लो अहिरो तम गाये चराने वालो बहनचोद डिलीट कर दे इसे नही तो अच्छा नहीं होगा।
जवाब देंहटाएंबहनचोद नम्बर तो पूरा लिखता इसमे मादर चोद
जवाब देंहटाएंभोसड़ा के कभी मिलके देखिए एक पुंडीर से तेरी मा
जवाब देंहटाएंना चोददी खड़ी करके तो नाम के पीछे पुंडीर लगाना छोड़ दूंगा madarchod
अबे साले अपने बाप का पता कर पहले हरामि कुछ भी लिख रहा हैं
जवाब देंहटाएंYogesh rohi ji, aap ka blog padha ..par aap thos roop se yeh nahi bata paaye ki Pundir vaastav mein kis samajh hai...aapp ne tathhayo ko puri tarah se bhatkane kosis ki hai...par aap iss muhim me vifal hue... mujhe lagta hai aap koi neechle samaj se hai..tabhi aap iss tarah ka bharam fela rahe hai...
जवाब देंहटाएंइतिहास कर गुज्जर होगा तेरी मा की चूत
जवाब देंहटाएंGandu tuglakput kuch bhi bol raha h chuteyi
जवाब देंहटाएंYhi inki asliyat hai . Sirf net pr hi bhink skte hai. Kha pundir aur kha gujjar. Delhi ke chauhan gujjjjjjjar kbhi sakal dekhi hi bsdk apni. Chauhano ko gujjar bta rha hai.
जवाब देंहटाएंSaale licchad plle pd gye. Mughlo se bhi kameen hai unhone desh loota ye ithias loot rhe hai.
Tertmaa chutiya
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