रविवार, 19 अगस्त 2018

गोपों अथवा अहीरों ने गोपिकाओं को अर्जुन को परास्त कर क्या लूट था ?

गोपों अथवा अहीरों ने गोपिकाओं को अर्जुन को परास्त कर क्या लूट था ?
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जब अर्जुन और दुर्योधन दौनों विपक्षी यौद्धा ;
कृष्ण के पास युद्ध में सहायता माँगने के लिए गये तो  ;
श्री कृष्ण ने प्रस्तावित किया कि आप दौनों मेरे लिए समान रूप में हो !
आपकी युद्धीय स्तर पर सहायता के लिए :-
एक ओर तो मेरी  गोपों (यादवों )की नारायणी सेना होगी !
और दूसरी और ---मैं  स्वयं नि:शस्त्र रहुँगा !
दौनों विकल्पों में जो अच्छा लगे उसका चयन कर लो !

तब स्थूल बुद्धि दुर्योधन ने कृष्ण की नारायणी गोप - सेना को चयन किया  ! और अर्जुन ने स्वयं कृष्ण को !
गोप अर्थात् अहीर निर्भीक यदुवंशी यौद्धा तो थे ही इसमें कोई सन्देह नहीं !
इसी लिए दुर्योधन ने उनका ही चुनाव किया !
और समस्त यादव यौद्धा तो अर्जुन से तो पहले से ही क्रुद्ध थे !
क्योंकि यादवों की वीरता को धता बता कर अर्जुन ने धोखे से बलराम तथा कृष्ण की बहिन सुभद्रा का अपहरण कर लिया था
कहते हैं कि इस अपहरण के लिए कृष्ण की सहमति थी  ... परन्तु ये तो यादवों अथवा समस्त गोपों के पौरुष को ललकारना ही था
और गोप अथवा यादव इसे यदु वंश का अपमान समझ रहे थे ।
यही कारण था कि ; गोपों (अहीरों)ने अपने इस अपमान का बदला लेने के लिए प्रभास क्षेत्र में अर्जुन को परास्त कर लूट लिया था ।
क्योंकि नारायणी सेना के ये यौद्धा दुर्योधन के पक्ष में थे । और कृष्ण का देहावसान हो गया था और बलदाऊ भी नहीं रहे थे ।
फिर तो इन यदुवंशी गोपों ने अर्जुन पर तीव्रता से आक्रमण कर तीर कमानों से उसे परास्त कर दिया ।
और यदुवंश की सभी स्त्रीयों को अर्जुन के साथ न जाने के लिये कहा ! परन्तु ---जो साथ चलने के लिए सहमत नहीं हुईं उन्हें प्रताडित कर चलने के लिए कहा !
और यादव अथवा अहीर  स्वयं ही  ईश्वरीय शक्तियों (देवों) के अंश थे तब  प्रभास क्षेत्र में अर्जुन इनका मुकाबला कैसे करता ?
यद्यपि अवान्तर काल में बहुत सी काल्पनिक घटनाओं का समायोजन ही है ---जो अहीरों को हेय सिद्ध करने के लिए जोड़ी
यादव किसी के साथ विश्वास घात कभी नहीं करते थे ।
क्यों कि यह क्षात्र-धर्म के विरुद्ध भी था ।
गर्ग संहिता अश्व मेध खण्ड अध्याय 60,41,में यदुवंशी गोपों ( अहीरों) की कथा सुनने और गायन करने से मनुष्यों के सब पाप नष्ट हो जाते हैं ; एेसा वर्णन है ।
महाभारत के मूसल पर्व में आभीर शब्द के  द्वारा अर्जुन को परास्त कर लूट लेने की घटना वर्णित की गयी है  ।
निश्चित रूप से वह मूल भाव से मेल नहीं खाती है । क्योंकि यहाँ अर्जुन और यादवों (गोपों) के युद्ध की पृष्ठ-भूमि का वर्णन नहीं है ;और अहीरों को अशुभ-दर्शी तथा पापकर्म करनेवाला, लोभी के रूप में वर्णन करना महाभारत कार की अहीरों के प्रति विकृतिपूर्ण अभिव्यक्ति मात्र है ।
इतना ही नहीं भागवतपुराण पुराण कार ने भी आभीर के स्थान पर गोप शब्द के प्रयोग द्वारा गोपों को दुष्ट विशेषण से अभिव्यक्ति किया है ।
अहीरों अथवा गोपों ने अर्जुन सहित कृष्ण की 16000 गोपिकाओं के रूप में पत्नियों को लूटा था । एसा वर्णन है ।
निश्चित रूप से गोपों द्वारा अर्जुन को परास्त करने की घटना तो रही होगी परन्तु स्त्रीयाँ लूटने और धन लूटने की घटना काल्पनिक व मनगढ़न्त ही हैं ।
कुछ मूर्ख रूढ़ि वादी ब्राह्मणों ने यादवों के प्रति द्वेष स्वरूप गलत रूप में प्रस्तुत करने के लिए ही बहुत सी काल्पनिक घटनाओं का समायोजन कर दिया  है।
क्योंकि अर्जुन और यादवों (गोपों)के मध्य पूर्व युद्ध की पृष्ठ-भूमि को वर्णित ही नहीं किया है ।
यादवों की किसी कन्या का अपहरण उस समय उनकी प्रतिष्ठा का विषय था ।
अब गोपों ने भी एक स्त्री के अप हरण में अर्जुन के साथ चलने वाली हजारों स्त्रीयों का अपहरण किया ! और वे स्त्रीयाँ वृष्णि वंशी गोपों की पत्नी रूप में गोपिकाऐं ही थीं । तब भी आश्चर्य क्या ? परन्तु इनकी घटनाओं के विस्तार में कल्पना मात्र है ।
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और इसी लिए कुछ मूर्खों को अहीरों के विषय में यह कहने का अवसर मिल जाता है कि " अहीरों ने गोपिकाओं सहित प्रभास क्षेत्र में अर्जुन को परास्त कर लूट लिया था ।
परन्तु जिसे द्वेष वश कुछ अर्जुन और नाराणी सेना के गोपों की यौद्धिक घटनाओं को जो  दुर्योधन की पक्ष लेने वाली थी ।
रूढ़ि वादीयों ने गलत रूप में प्रस्तुत किया है ।

और राज पूत इस बात को अहीरों (गोपों) के यादव न होने के रूप में प्रमाण के तौर पर पेश करते हैं ।
और मूर्ख स्वयं को यदुवंशी होने की दलील देते हैं।
महाभारत के विक्षिप्त (नकली )मूसल पर्व के अष्टम् अध्याय का वही श्लोक  यह है और जिसका प्रस्तुती करण ही गलत है ।
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ततस्ते पापकर्माणो लोभोपहतचेतस ।
आभीरा मन्त्रामासु समेत्यशुभ दर्शना ।।
अर्थात् उसके बाद उन सब पाप कर्म करने वाले लोभ से युक्त अशुभ दर्शन अहीरों ने अापस में सलाह करके एकत्रित होकर वृष्णि वंशीयों गोपों की स्त्रीयों सहित  अर्जुन को परास्त कर लूट लिया ।।
महाभारत मूसल पर्व का अष्टम् अध्याय का यह 47 श्लोक है।
निश्चित रूप से यहाँ पर युद्ध की पृष्ठ-भूमि का वर्णन ही नहीं है ।
और इसी बात को बारहवीं शताब्दी में रचित ग्रन्थ -भागवत पुराण के प्रथम अध्याय स्कन्ध एक में श्लोक संख्या 20 में आभीर शब्द के स्थान पर गोप शब्द के प्रयोग द्वारा अर्जुन को परास्त कर लूट लेने की घटना का  वर्णन किया गया है ।
इसे भी देखें---
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"सो८हं नृपेन्द्र रहित: पुरुषोत्तमेन 
सख्या  प्रियेण सुहृदा हृदयेन शून्य: ।।
अध्वन्युरूक्रम परिग्रहम् अंग रक्षन् ।
गौपै: सद्भिरबलेव विनिर्जितो८स्मि ।२०।
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हे राजन् ! जो मेरे सखा अथवा प्रिय मित्र ---नहीं ,नहीं मेरे हृदय ही थे ; उन्हीं पुरुषोत्तम कृष्ण से मैं रहित हो गया हूँ ।
कृष्ण की पत्नीयाें को द्वारिका से अपने साथ इन्द्र-प्रस्थ लेकर आर रहा था ।
परन्तु मार्ग में दुष्ट गोपों ने मुझे एक अबला के समान हरा दिया।
और मैं अर्जुन कृष्ण की  गोपिकाओं अथवा वृष्णि वंशीयों की पत्नीयाें की रक्षा नहीं कर सका!
(श्रीमद्भगवद् पुराण अध्याय
एक श्लोक संख्या २०)
पृष्ठ संख्या --१०६ गीता प्रेस गोरखपुर संस्करण देखें-

महाभारत के मूसल पर्व में गोप के स्थान पर आभीर शब्द का प्रयोग सिद्ध करता है।
कि गोप शब्द ही अहीरों का विशेषण है।तुलसी नर का क्या बड़ा, समय बड़ा बलवान।
भीलां लूटी गोपियाँ, वही अर्जुन वही बाण।।

अर्थ- तुलसी दास जी कहते हैं ।
कि समय बड़ा बलवान होता है।
वो समय ही है जो व्यक्ति को छोटा या बड़ा बनाता है। जैसे एक बार जब महान धनुर्धर अर्जुन का समय खराब हुआ तो वह भीलों के हमले से गोपियों की रक्षा नहीं कर पाए।
पता नहीं तुलसी ने भीलों वाला अनुवाद कहाँ से किया ?

यदुवंशीयों का गोप अथवा आभीर विशेषण ही वास्तविक है ;  क्योंकि गोपालन ही इनकी शाश्वत वृत्ति (कार्य) वंश परम्परागत रूप से आज तक अवशिष्ट रूप में मिलता है ।
महाभारत के खिल-भाग हरिवंश पुराण में नन्द ही नहीं अपितु वसुदेव को गोप ही कहा गया है।
और कृष्ण का जन्म भी गोप (आभीर)के घर में बताया है ।

प्रथम दृष्ट्या तो ये देखें-- कि वसुदेव को गोप कहा है।
यहाँ हिन्दी अनुवाद भी प्रस्तुत किया जाता है ।
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"इति अम्बुपतिना प्रोक्तो वरुणेनाहमच्युत ।
गावां कारणत्वज्ञ:कश्यपे शापमुत्सृजन् ।२१
येनांशेन हृता गाव: कश्यपेन महर्षिणा ।
स तेन अंशेन जगतीं गत्वा गोपत्वमेष्यति।२२
द्या च सा सुरभिर्नाम अदितिश्च सुरारिण:
ते८प्यमे तस्य भार्ये वै तेनैव सह यास्यत:।।२३
ताभ्यां च सह गोपत्वे कश्यपो भुवि संस्यते।
स तस्य कश्यस्यांशस्तेजसा कश्यपोपम: ।२४
वसुदेव इति ख्यातो गोषु तिष्ठति भूतले ।
गिरिगोवर्धनो नाम मथुरायास्त्वदूरत: ।२५।
तत्रासौ गौषु निरत: कंसस्य कर दायक:।
तस्य भार्याद्वयं जातमदिति सुरभिश्च ते ।२६।
देवकी रोहिणी देवी चादितिर्देवकी त्यभृत् ।२७।
सतेनांशेन जगतीं गत्वा गोपत्वं एष्यति।
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गीता प्रेस गोरखपुर की हरिवंश पुराण 'की कृति में
श्लोक संख्या क्रमश: 32,33,34,35,36,37,तथा 38 पर देखें---
अनुवादक पं० श्री राम नारायण दत्त शास्त्री पाण्डेय "राम" "ब्रह्मा जी का वचन " नामक  55 वाँ अध्याय।
उपर्युक्त संस्कृत भाषा का
अनुवादित रूप इस प्रकार है
:-हे विष्णु ! महात्मा वरुण के ऐसे वचनों को सुनकर तथा इस सन्दर्भ में समस्त ज्ञान प्राप्त करके भगवान ब्रह्मा ने कश्यप को शाप दे दिया और कहा
।२१। कि  हे कश्यप  अापने अपने जिस तेज से  प्रभावित होकर वरुण की उन गायों का
अपहरण किया है ।
उसी पाप के प्रभाव-वश होकर तुम भूमण्डल पर तुम अहीरों (गोपों) का जन्म धारण करें ।२२।
तथा दौनों देव माता अदिति और सुरभि तुम्हारी पत्नीयाें के रूप में पृथ्वी पर तुम्हरे साथ जन्म धारण करेंगी।२३।
इस पृथ्वी पर अहीरों ( ग्वालों ) का जन्म धारण कर महर्षि कश्यप दौनों पत्नीयाें अदिति और सुरभि सहित आनन्द पूर्वक जीवन यापन करते रहेंगे ।
हे राजन् वही कश्यप वर्तमान समय में वसुदेव गोप के नाम से प्रसिद्ध होकर पृथ्वी पर गायों की सेवा करते हुए जीवन यापन करते हैं।
मथुरा के ही समीप गोवर्धन पर्वत है; उसी पर पापी कंस के अधीन होकर वसुदेव गोकुल पर राज्य कर रहे हैं।
कश्यप की दौनों पत्नीयाें अदिति और सुरभि ही क्रमश: देवकी और रोहिणी के नाम से अवतीर्ण हुई हैं
२४-२७।(उद्धृत सन्दर्भ --)
यादव योगेश कुमार' रोहि' की शोध श्रृंखलाओं पर आधारित---
और यही प्रकरण गायत्री परिवार के संस्थापक पं० श्री राम शर्मा आचार्य द्वारा अनुवादित हरिवंश पुराण के बरेली संस्करण में है ।

पितामह ब्रह्मा की योजना नामक ३२वाँ अध्याय पृष्ठ संख्या २३० अनुवादक -- पं० श्रीराम शर्मा आचार्य   " ख्वाजा कुतुब संस्कृति संस्थान वेद नगर बरेली संस्करण)
अब कृष्ण को भी गोपों के घर में जन्म लेने वाला बताया है ।
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गोप अयनं य: कुरुते जगत: सार्वलौकिकम् ।
स कथं गां गतो देशे विष्णुर्गोपर्त्वमागत: ।।९।
अर्थात्:-जो प्रभु भूतल के सब जीवों की
रक्षा करनें में समर्थ है ।
वे ही प्रभु विष्णु इस भूतल पर आकर गोप (आभीर) क्यों हुए ? अर्थात् अहीरों के घर में जन्म क्यों ग्रहण किया ? ।९।
हरिवंश पुराण "वराह ,नृसिंह  आदि अवतार नामक १९ वाँ अध्याय पृष्ठ संख्या १४४ (ख्वाजा कुतुब वेद नगर बरेली संस्करण)
सम्पादक पण्डित श्री राम शर्मा आचार्य . तथा
गीता प्रेस गोरखपुर की हरिवंश पुराण की कृति में वराहोत्पत्ति वर्णन " नामक पाठ चालीसवाँ अध्याय
और इतना ही नहीं समस्त ब्राह्मणों की आराध्या ज्ञान की अधिष्ठात्री देवी सत्ता गायत्री भी नरेन्द्र सेन अहीर की कन्या हैं ।
और उसका वर्णन भी आभीर तथा गोप शब्द के पर्याय वाची रूप में वर्णित किया है ।
देखें--- निम्न श्लोकों में -

और अनेक भारतीय पुराणों में जैसे अग्नि- पुराण,पद्मपुराण आदि में अहीरों को देवताओं के रूप में  अवतरित किया है और ज्ञान की अधिष्ठात्री देवी गायत्री को भी नरेन्द्र सेन अहीर की कन्या के रूप में भी वर्णन किया गया है।
वहाँ भी अहीर (आभीर) तथा गोप शब्द परस्पर पर्याय वाची रूप में वर्णित हैं।
गोपों (अहीरों) को देवीभागवतपुराण तथा महाभारत , हरिवंश पुराण आदि मे देवताओं का अवतार बताया गया है ।
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" अंशेन त्वं पृथिव्या वै ,
प्राप्य जन्म यदो:कुले ।
भार्याभ्याँश संयुतस्तत्र ,
गोपालत्वं करिष्यसि ।१४।
अर्थात् हे कश्यप तुम  अपने अंश से तुम पृथ्वी पर गोप बनकर यादव कुल में जन्म लोग !और अपनी भार्यायों के साथ गोपालन करोगे !

अब निश्चित रूप से आभीर और गोप परस्पर पर्याय वाची रूप हैं।
यह शास्त्रीय पद्धति से प्रमाणित भी है ।
और सुनो !
गो-पालन यदु वंश की परम्परागत वृत्ति ( कार्य ) होने से ही भारतीय इतिहास में यादवों को गोप ( गो- पालन करने वाला ) कहा गया है
वैदिक काल में ही यदु को दास सम्बोधन के द्वारा असुर संस्कृति से सम्बद्ध मानकर ब्राह्मणों की अवैध वर्ण-व्यवस्था ने शूद्र श्रेणि में परिगणित किया  था ।
तो यह दोष ब्राह्मणों का ही है ।
यदु की गोप वृत्ति को प्रमाणित करने के लिए ऋग्वेद की ये ऋचा सम्यक् रूप से प्रमाण है ।
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" उत् दासा परिविषे स्मद्दिष्टी
गोपरीणसा यदुस्तुर्वश्च च मामहे ।
(ऋ०10/62/10)
अर्थात् यदु और तुर्वसु नामक दौनों दास गायों से घिरे हुए हैं ; गो-पालन शक्ति के द्वारा सौभाग्य शाली हैं हम उनका वर्णन करते हैं
(ऋ०10/62/10/) 
विशेष:-  व्याकरणीय विश्लेषण - उपर्युक्त ऋचा में दासा शब्द प्रथमा विभक्ति के अन्य पुरुष का द्विवचन रूप है ।
क्योंकि वैदिक भाषा ( छान्दस् ) में प्राप्त दासा द्विवचन का रूप पाणिनीय द्वारा संस्कारित भाषा लौकिक संस्कृत में दासौ रूप में है

परिविषे:-परित: चारौ तरफ से व्याप्त ( घिरे हुए)

स्मद्दिष्टी स्मत् + दिष्टी सौभाग्य शाली अथवा अच्छे समय वाले द्विवचन रूप ।

गोपर् +ईनसा सन्धि संक्रमण रूप गोपरीणसा :- गो पालन की शक्ति के द्वारा ।

गोप: ईनसा का सन्धि संक्रमण रूप हुआ गोपरीणसा
जिसका अर्थ है शक्ति को द्वारा गायों का पालन करने वाला ।
अथवा गो परिणसा गायों  से घिरा हुआ

यदु: तुर्वसु: च :- यदु और तुर्वसु दौनो द्वन्द्व सामासिक रूप ।
मामहे :- मह् धातु का उत्तम पुरुष आत्मने पदीय  बहुवचन रूप  अर्थात् हम सब वर्णन करते हैं ।
अब हम इस तथ्य की विस्तृत व्याख्या करते हैं ।

पुराणों में कहीं गोपों को क्षत्रिय कहा गया है तो स्मृति-ग्रन्थों में उन्हीं गोपो को शूद्र रूप में वर्णित कर दिया है ।

अब निश्चित रूप से आभीर और गोप परस्पर पर्याय वाची रूप हैं।
यह शास्त्रीय पद्धति से प्रमाणित भी है ।

अहीरों को संस्कृत भाषा में अभीरः अथवा आभीरः
संज्ञा से अभिहित किया गया ..
संस्कृत भाषा में इस  शब्द  की व्युपत्ति "
अभित: ईरयति इति अभीरः"
अर्थात् चारो तरफ घूमने वाली निर्भीक जनजाति "
अभि एक धातु ( क्रियामूल ) से पूर्व लगने वाला उपसर्ग (Prifix)..तथा ईर् एक धातु है ।
जिसका अर्थ :- गमन करना (जाना)है इसमें कर्तरिसंज्ञा भावे में अच् प्रत्यय के द्वारा निर्मित विशेषण -शब्द अभीरः विकसित होता है  |
और इस अभीरः शब्द में  श्लिष्ट अर्थ है... जो पूर्णतः भाव सम्पूर्क है ..."अ" निषेधात्मक उपसर्ग तथा भीरः/ भीरु कृदन्त शब्द जिसका अर्थ है कायर ..अर्थात् जो भीरः अथवा कायर न हो वीर पुरुष ।
शब्द कल्पद्रुम कोश में आभीर शब्द की व्युपत्ति आनुमानिक रूप ये इस प्रकार दर्शायी है ।
आभीरः, पुं, (आ समन्तात् भियं राति  रा दाने आत इति कः ।) गोपः । इत्यमरः कोश ॥ आहिर इति भाषा में ।
ईज़राएल के यहूदीयो की भाषा हिब्रू में भी अबीर (Abeer)  शब्द का अर्थ वीर तथा सामन्त है !
..तात्पर्य यह कि इजराईल के यहूदी वस्तुतः यदु की सन्तानें थीं जिनमें अबीर भी एक प्रधान युद्ध कौशल में पारंगत शाखा थी ।
यद्यपि आभीरः शब्द अभीरः शब्द का ही बहुवचन समूह वाचक रूप है |
अभीरः+ अण् = आभीरः
..हिब्रू बाईबिल में सृष्टिखण्ड (Genesis) ..में यहुदः तथा तुरबजू के रूप में यदुः तुर्वसू का ही वर्णन है ! और देव संस्कृति के अनुयायीयों के प्राचीन ग्रन्थ ऋग्वेद में
जैसा कि वर्णन है
देखें - ऋग्वेद के दशम् मण्डल के 62 में सूक्त का 10 वीं ऋचा में
उत दासा परिविषे स्मद्दिष्टी (समत् दिष्टी )
गोपरीणसा यदुस्तुर्वश् च मामहे =
अर्थात् यदु और तुर्वशु नामक जो दास हैं ! जो गोओं से परिपूर्ण है अर्थात् चारो ओर से घिरे हुए हैं हम सब उनकी स्तुति करते हैं |
वस्तुतः अभीरः शब्द से कालान्तरण में स्वतन्त्र रूप से एक अभ्र् नामधातु का विकास हुआ ;
जो संस्कृत धातु पाठ में भी परिगणित है !
जिसका अर्थ है...----चारौ ओर घूमना ..इतना ही नही मिश्र के टैल ए अमर्ना के शिला लेखों पर हबीरु शब्द का अर्थ भी घुमक्कड़ ही है।
..अंग्रेजी में आयात क्रिया शब्द
(Aberrate ) का अर्थ है ।...to Wander or deviate from the right path"turn aside or wander from the (right) way," from Late Latin deviatus, past participle of deviare "to turn aside, turn out of the way," from Latin phrase de via, from de "off" (see de-) + via "way" (see via). Meaning "take a different course, diverge,
बाद की लैटिन में डेवियतस से अर्थ  अलग-अलग मोड़ने के लिए, रास्ते से बाहर निकलने के लिए, "लैटिन वाक्यांश से," ऑफ "से (दाएं देखें) से (दाएं) रास्ते से अलग हो जाएं, + "रास्ता" के माध्यम से (देखें)। मतलब "1690 से एक अलग कोर्स लेना, अलग करना, आदि अर्थ रूढ़ हो गये  
व्युत्पत्ति रूप -
लैटिन aberrātus से, aberrō ("भटकना,  या विचलित होना") Ab  + errō ("भटकना घुम्मकड़ होना ") से बना है।
aberrate (तीसरे व्यक्ति एकवचन सरल वर्तमान aberrates, वर्तमान भागने aberrating, सरल अतीत और पिछले भाग aberrated)
Etymology -- शब्द- व्युपत्ति
From Latin aberrātus, perfect passive participle of aberrō अबेरो (“wander, stray or deviate from ), formed from ab (“from, away from”) + errō (“stray” or Go).
(अप्रचलित रूप ) भटकने के लिए; अलग करना; विचलित करने के लिए से सम्बद्ध अर्थ;  [18 वीं शताब्दी के मध्य से प्रारम्भ है ।
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अर्थात् सही रास्ते से भटका हुआ..आवारा ..संस्कृत रूप अभीरयति  परस्मै पदीय रूप ... सत्य तो यह है कि सदीयों से आभीरः जनजाति के प्रति तथा कथित कुछ ब्राह्मणों के द्वारा द्वेष भाव का कपट पूर्ण नीति निर्वहन किया गया जाता रहा ..शूद्र वर्ग में प्रतिष्ठित कर उनके लिए शिक्षा और संस्कारों के द्वार भी पूर्ण रूप से बन्द कर दिए गये ..
जैसा कि " स्त्रीशूद्रौ नाधीयताम् " अर्थात् स्त्री और शूद्र  ज्ञान प्राप्त न करें ...अर्थात् वैदिक विधान का परिधान पहना कर इसे ईश्वरीय विधान भी सिद्ध किया गया ...
क्यों कि वह तथाकथित समाज के स्वमभू अधिपति जानते थे कि शिक्षा अथवा ज्ञान के द्वारा संस्कारों से युक्त होकर ये अपना उत्धान कर सकते हैं ..शिक्षा हमारी प्रवृत्तिगत स्वाभाविकतओं का संयम पूर्वक दमन  करती है
अतः  दमन संयम  है और संयम  यम अथवा धर्म है  ... यद्यपि कृष्ण को प्रत्यक्ष रूप से तो शूद्र अथवा दास नहीं कहा गया परन्तु परोक्ष रूप से
उनके समाज या वर्ग को आर्यों के रूप में स्वीकृत नहीं किया है ..कृष्ण को इन्द्र के प्रतिद्वन्द्वी के रूप मे भी वैदिक साहित्य में वर्णित किया गया है ..

वस्तुतः अहीर एक गौ पालक जाति है, जो उत्तरी और मध्य भारतीय क्षेत्र में फैली हुई है। इस जाति के साथ बहुत ऐतिहासिक महत्त्व जुड़ा हुआ है ।
क्योंकि इसके सदस्य संस्कृत साहित्य में उल्लिखित आभीर के समकक्ष माने जाते हैं। हिन्दू पौराणिक ग्रंथ 'महाभारत' में इस जाति का बार-बार उल्लेख आया है। कुछ विद्वानों का मत है कि इन्हीं गौ पालकों ने, जो  दक्षिणी राजस्थान और सिंध (पाकिस्तान) में बिखरे हुए हैं, गोपालन भगवान् कृष्ण की कथा का एक महत्त्वपूर्ण पक्ष हैं।
'अहीर' भारत की प्राचीन जाति है, जो अराजकता के लिए काफ़ी प्रसिद्ध रही है। यह सर्व सत्य है कि शिक्षा और संस्कारों से वञ्चित समाज कभी सभ्य या सांस्कृतिक रूप से समुन्नत नहीं हो सकता है अतः आभीरः जनजाति भी इसका अपवाद नहीं है ...
जैसा की तारानाथ वाचस्पत्यम् ने अहीरों की इसी प्रवृत्ति गत स्वभाव को आधार मानकर
संस्कृत भाषा में आभीरः शब्द की व्युत्पत्ति भी की है।
"आ समन्तात् भीयं राति इति आभीरः कथ्यते "..अर्थात्
जो चारो ओर से जो भय प्रदान करता है वह आभीरः है ...यद्यपि यह शब्द व्युत्पत्ति प्रवृत्ति गत है
अन्यत्र दूसरी व्युत्पत्ति अभीरः शब्द की है ।
अभिमुखी कृत्य ईरयति गाः  इति अभीरः अर्थात् दौनो तरफ मुख करके जो गायें चराता है या घेरता है  वह अभीरः है।
शब्द- विश्लेषक  यादव योगेश कुमार "रोहि"
ग्राम- आजादपुर पत्रालय -पहाड़ीपुर जनपद -अलीगढ़ के द्वारा प्रायोजित है
.....फारसी मूल का आवरा शब्द भी अहीर /आभीरः का तद्भव रुप है ..
जाटों का इन अहीरों से रक्त सम्बन्ध तथा सामाजिक सम्बन्ध मराठों और गूजरों जैसा निकटतम है। स्वयं गुज्जर / गूजर अथवा संस्कृत गुर्जरः भी संस्कृत के पूर्ववर्ती शब्द गोश्चरः ---- गायों को चराने वाला !
हरियाणा के जाट , अहीर तथा गुजरात के गूज़र (गौश्चर:) इन्हीं यदुवंशी गोपों की बिखरी हुई शाखाऐं हैं ।
अहीर(अभीर) नाम प्राचीनत्तम है
विदित हो कि अहीर और गूज़र तो लोक मान्यताओं में समानार्थक ही हैं।
गौ - गाय तथा पृथ्वी इन दौनो से सम्बद्ध होने से ही तो ये गौश्चर: से गुर्जर तथा गूज़र शब्दों का विकास हुआ।
---जो गौ- चारण करते करते आज कृषि कार्य भी  करते हैं ।
---जो गुर्जर परिहार राजपूत समुदाय है ।
वह जॉर्जिया के अधिवासी हैं ।
जबकि गुर्जर गौश्चर शब्द का परिवर्तित ---जो रूप है ।
वह गोपों की शाखा है।
और ये ही भारतीय कृषि का आधार स्तम्भ हैं।
---जो परम्परागत रूप से गौ- चारण करते रहे हैं ।
---जो अहीरों की एक शाखा हैं ।
शब्दकोषों में अभीरः शब्द की काल्पनिक व्युपत्ति आनुमानिक रूप से इस प्रकार की है ।
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अभिमुखीकृत्य ईरयति गाः अभि + ईरः अच् । गोपे जातिवाचकादन्तशब्दत्वेन ततः स्त्रियां ङीप् ।
  आधुनिक काल में भी कुछ रूढि वादी काशी ब्राण्ड ब्राह्मण तथा राजपूत  अहीर ,जाट तथा गूजरों को हीनता की दृष्टि से देखते हैं ।
अहीर शब्द प्राचीनत्तम है ;
जब जाट और गुर्जर जैसे- शब्द भी अस्तित्व में नहीं थे।
१.गुर्जर - प्रतिहार राजपूत राजवंश को गुज्जर जाति ने गुज्जरो का वंश बताया है -
अगर एसा होता तो पृथ्वीराज रासौ में गुज्जरो के दूध -दही बेचने का प्रकरण क्यों होता ?👇
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'' पै सक्करि सूबभत्तौ एकत्तो
कणय राइ भाइसी ,
कर कस्सी गुज्जरियं ।
रब्बरियं नेव जीवंती ''
इस प्राकृत भाषाओं के दोहे मे लिखा है।
इन गुज्जरियों के हाथ की बनी चीज
कोइ नहीं खाता था -
उसमें

अगर गुर्जर राजा होते तो दूध - दही बेचकर गुजारा क्यों करते ? गुर्जर जाति का नाम भारत मे गोचर (गौश्चर) क्यौं हैं ? और
सबसे बडी बात ---

मिली अगर गुर्जर राजा थे तो जंगलो मे जीवन क्यों
बिता रहे थे ? गोपों का पर्याय वाची रूप गौश्चर: वल्लभ , आभीर ,यादव आदि ..

परवर्ती रूप है जिससे गुर्जरायत या गुजरात प्रदेश वाची शब्द का विकास हुआ है ..
यादव प्राय: 'अहीर' शब्द से भी नामांकित होते हैं, जो संभवत: आभीर जाति से संबद्ध हैं
कुछ लोग आभीरों को अनार्य कहते हैं!
...क्यो ऋग्वेद के दशम् मण्डल के62 में सूक्त के 10 वें मन्त्र में यदु और तुर्वशु को दास कहा गया है ..
जैसा कि उपर्यक्त वर्णित है .
उत दासा परिविषे स्मत् दृष्टी
गोपरिणसा यदुस्तुर्वसुश्च मामहे |
अतः आभीरः जनजाति के पूर्व- पुरुष यदु आर्यों के समुदाय से बहिष्क.त कर दिये गये थे ..यदि आभीरः जनजाति को
  अभीर जाति से संबंधित किया जाये तो ये विदेशी ठहरते हैं। जैसा कि इजराईल के यहूदी अबीर Abeer जनजाति जो युद्ध और पराक्रम के लिए दुनिया मे विख्यात हैं ..से साम्य है..

श्रीकृष्ण को जाे  दोनों ही अपना पूर्व-पुरुष मानते हैं। यद्यपि अहीरों में परस्पर कुछ ऐसी दुर्भावनाएं उत्पन्न हो गई हैं कि वे स्वयं एक शाख वाले, दूसरी शाख वालों को, अपने से हीन समझते हैं। लेकिन जाटों का सभी अहीरों के साथ चाहे वे अपने लिए यादव, गोप, नंद, आभीर कहें, एक-सा व्यवहार है। जैसे खान-पान में जाट और गूजरों में कोई भेद नहीं, वैसे ही अहीर और जाटों में भी कोई भेद नहीं।
पाश्चात्य इतिहास कारों की अवधारणा है कि
गुर्जर और आभीर  आयबेरिया या गुर्जिस्तान के निवासी भी रहे हैं  जो जॉर्जिया अथवा आयरलेण्ड का का ही एक उपनिवेश था ।

संस्कृत अमर कोश में गोप: शब्द आभीर शब्द का विशेषण है ।👇

(गां गोजातिं पाति रक्षतीति गोप (गो + पा + कः ।)  यादव जातिविशेषः । गोयाला इति भाषा में ॥ तत्पर्य्यायः ।१ गोसंख्यः २ गोधुक् ३ आभीरः ४ वल्लवः ५ गोपालः ६   गौश्चर: इत्यमरः कोश पृष्ठ संख्या- (२ । ९ । ५७)

कामं प्रकामं पर्याप्तं निकामेष्टं यथेप्सितम्. गोपे गोपालगोसंख्यगोधुगाभीरवल्लवाः
गां भूमिं वा पाति रक्षति पा--क । (गोयाणा) गुजाणा - गोजारा --
जो गोपालन और कृषि करता है ।

ऋग्वेदे।१०।६१।१०। “द्विबर्हसोयउपगोपमागुरदक्षिणासोअच्युतादुदुक्षन्
_________________________
दुह् धातु का वैदिक रूप - आ दुदुक्षन् :- दुहने की इच्छा करता हुआ ।
लिट्
एकवचनम्
द्विवचनम्
बहुवचनम्
प्रथमपुरुषःदुदोहदुदुहतुःदुदुहुः
मध्यमपुरुषःदुदोहिथ दुदुहथुःदुदुह
उत्तमपुरुषःदुदोहदुदुहिवदुदुहिम
________________________
यादव योगेश कुमार "रोहि"

7 टिप्‍पणियां:

  1. Gurjer ka Matlab shatru vinashak hota hai baad mai wo sabd bigad ker goojer aur goucher hua hai ved harivansh puran ramayan Mahabharata mai go palan aur go raksha ko sabse bada ksatriya dharm btaya hai kyoki vedic ksatriyo ka kaam hi gopalan tha dhenu se dhan sabd bana gop ka matlab raja hota hai jiske paas ek lakh hoti isse jyada gai hone per rajan ka darja milta tha vedic Ksatritya jaati ahir aur purani Ksatriya jaati gurjaro ka itihaas Middle East europe asia sab kahi mil jayega kyoki jaat gujjer abhir kyoki ye sabse purane vedic Ksatritya hai air ye teeno ek hi bus ye sab upaadhi hai pritiviraaj raaso ke page No 144 mai pritiviraaj ko gujjer hi likha hai kn ojha pandit balkrishna shram tond Km munsi Smith crooke ne gurjer prathhaar ko gurjaro se nikla btaya hai phir tumne ye kaise kah diya gurjer prathihaar georgia se aaya gurjer air goojer alag gurjer goojer goucher gujjer ye sabd ek hi samay ke saath bhasha bhed ho gaya hai ab koi kahe ahir abheer aveer Yadav gop nand sab alag hai jaat jutt jat ye sab ek hai vaise hi gurjer gujjer sab ek hi hai Rajput khud ek upaadhi jisme gurjer abhir bhar gop bhraman aur bhi bahut saari jaatiya mili
    Mai balramvanshi Yadav hoon dau gotra ka
    Bhar chhorker Yadav jaat gujjer Rajput ek hi log hai

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  2. तुलसी नर का क्या बड़ा, समय बड़ा बलवान। भीलन लूटी गोपियां, वही अर्जुन वही बाण॥'
    Bhai kya murkh post ki h tuney bheel loti gopiya tuney yadav kyu bola

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    उत्तर
    1. बिल्कुल सही
      भीलन लूटी गोपियां वही अर्जुन वही बाण

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  3. भैया तुमने जो पड़ा हे वी गीता प्रेस द्वारा छपी गई नकली सच हे,
    असली वेद पुराण जो मथुरा से प्रकाशित होते हे उसमे साफ साफ़ लिखा है भिलन लूटी गोपिका वहीं अर्जुन वहीं बान,

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  4. भैया तुमने जो पड़ा हे वी गीता प्रेस द्वारा छपी गई नकली सच हे,
    असली वेद पुराण जो मथुरा से प्रकाशित होते हे उसमे साफ साफ़ लिखा है भिलन लूटी गोपिका वहीं अर्जुन वहीं बान,

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  5. यह पोस्ट लिखी कितने बजे थी?
    किस स्थान किस मनोदशा में?

    आखिर प्रसाद कौनसा लेते हो शिवजी का जो पृथ्वी के बदले अंतरिक्षवास में हो???

    जरा नीचे उतरो पृथ्वी पर
    जब श्रीकृष्ण स्वयं को वृष्णि वंशीय बताये
    तो समझ नहीं पाता कि की वृष्णि ज्यादा बड़े तेजवान प्रतापवान सुकीर्ति वाले थे या यदु महाराज जिनके नाम परिचय का प्रयोग यादव और यादव वंशियों के रूप में किया जाता है????
    बड़ा कौन वृष्णि या यदु ???
    उत्तर दीजिये क्योंकि सर्वप्रथम योगेश्वर श्रीकृष्ण की स्वीकारोक्ति गीता में है कि वृष्णि वंशियों में मैं श्रीकृष्ण हूं

    द्वितीय आप सब यूपी बिहार एमपी में ही पायेजाने वाले सर्वज्ञात टाइटल यदु महाराज के वंशज यदुवंशी यादव हो

    बड़ा कौन है वृष्णि और यदु में

    ये योगेश को जानने सुनने इसके लिखे को पढ़ने वाले सभी भाइयों बहनों जरा बताईये..... श्रीलंकन यदि कहें कि हम तीनों लोक दशो दिशाओं के विजेता महाज्ञानी महायोद्धा महामांत्रिक माहाबली महाराक्षस दशानन रावण के ही वंशज हम रावण वंशीय हैं

    तो बताईये की महाराक्षस दशानन रावण के कौन से गुण उनके वंशजों में 2022 में आप सबको दिखाई सुनाई पड़ता है या कहीं उनके विशेष वंशीय गुण को कहीं किसी लेख में पढ़ा है???

    मुंबई में "कुर्ला के बदले पार्ला" हर बात को समझनेवालों को देखा सुना व पढा भी था लेकिन ई योगेश तो सीधे सीधे "काशी के बदले काबा" पहुंच गया भीलन को यादव ,अहीर गोप कह व लिखकर प्रमाण दे दिया कि जिसे यह तक नहीं पता की भील भीलन आदिवासी वनवासियों में यदुवंशी वृष्णिवंशि ग्रामवासियों में क्या अंतर है लेकिन यह तो लंठसम्राट प्रतियोगिता का प्रतियोगी ही है तो अपेक्षा क्या करें हां एक प्रतियोगिता के प्रतियोगी को लंठसम्राट बनने की अग्रिम हार्दिक बधाई व शुभकामनाएं💐 आप शीघ्र ही लंठशिरोमणि का ताज अपने सर पर पहने ऐसी मंगल शुभकामनाएं💐

    कॉपी-पेस्ट किंग उधार के ज्ञानी आत्माओं से स्वमस्तिष्क की शांति वृष्णि वंशीय योगेश्वर श्रीकृष्ण ही बचाएं व्यक्तिगत स्वयं के लिए यही शुभकामनाएं मंगल प्रार्थना।

    ॐ कृष्णाय नमः

    ॐ जय दादा महाकाल ॐ

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