मंगलवार, 20 फ़रवरी 2018

प्राचीन गुरू शिष्य परम्पराओं का विधान १

क्योंकि संसार रूपी नदी की आधुनिक परिप्रेक्ष्य में आप किस प्रकार का अनुभव करते हैं कि प्राचीन भारतीय गुरु शिष्य परंपरा में आमूलचूल परिवर्तन हुआ है यदि आप शिक्षक पद के पूर्णत को को प्राप्त करते हैं तो प्राचीन गुरु प्रणाली की किन किन विशेषताओं को आत्मसात करना चाहेंगे उत्तर प्राचीन भारत में गुरु पद को गौरवान्वित करने के लिए विविध प्रकार की उत्तरदायित्व पूर्ण भूमिकाओं का निर्वहन करना पड़ता था वास्तविक अर्थों में गुरु विद्यालय रूपी उद्यान का सजग और कर्तव्यनिष्ठ माली बनकर विद्यार्थी रूपी लघु पादप अर्थात पौधे कोई सम्यक प्रकार से संस्कार हनी काट छांट कर उसे उन्नत कोटि में प्रतिष्ठित करता था उसके सभी स्वभाव जन्मे व्यक्तियों का परिमार्जन करता था गुरु ही विद्यार्थी के माता-पिता की पावन कर्तव्य में परंपराओं का संपादन करता था गुरुर ब्रह्मा गुरुर विष्णु गुरुर देवो महेश्वरा गुरुर साक्षात परब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नमः अखंडमंडलाकारं व्याप्तं येन चराचरम् तत्पदं दर्शितं येन
अध्यापन क्रिया गुरु शिष्य में मौखिक संभागों के रूप में संचालित होती थी आंतरिक व्याख्यान प्रवचन वाद विवाद तथा अध्ययन विवेचना ए व्याकरण क्रियाओं के अंतर्गत स्वर उच्चारण पुनरावृति प्राचीन छात्रों की दैनिक क्रियाओं के अभिन्न अवयव होते थे छात्र छाया के समान उनके कपड़ों में आचरण का अनुगमन करता था और व्रजेश रूप में वह छात्र संख्या को गुरु के अवगुणों को छाता साबित कर के 1 गुणों को ही ग्रहण करके चरितार्थ भी करता था ।
छात्र छात्र छात्र मोड़ को सलाम आज़म तक्षशिला मत्स्य छात्र अर्थात छात्र और गुरु का छात्र और गुरु का आचरण बिंब और प्रतिबिंब के समान होता था सतगुरु के प्रवृत्ति जन्म दोषों को साबित कर उसके उत्तम गुणों को ग्रहण करता था छात्र शिव से और विद्यार्थी परस्पर पर्यायवाची शब्द हैं छात्र से संज्ञा से इसलिए अभिहित किए जाते थे क्योंकि गुरु उनके जीवन में उन्हें अनुशासित रहकर मंकी स्वभाव जन प्रवृतियों के दमन करने का निर्देशन देता था

क्योंकिं  संसार रूपी रूपी नदी की  नदी की धाराओं में भराओ में प्रवृतियों के तीव्र वेग हैं और इन सभा भजन प्रवृतियों का दमन भी संयम है और तैर कर हम इस क्रिया को निभाते हैं तब हमें सफलताओं के किनारे मिलते हैं मुलायम शिष्य थे मनुष्य के असम शचिन गुरु 1 गुरु 1 गरिमामय शब्द होता है गुरु शब्द का भार भी शिक्षा जगत में सबसे अधिक है संस्कृत भाषा में गुरु शब्द की व्युत्पत्ति उसके गुणों को अनुरोध करते हुए व्याकरणाचार्य ने इस प्रकार की है संस्कृत भाषा में गुरु शब्द की व्युत्पत्ति उसके गुणों को अनुरोध करते हुए
संस्कृत भाषा में संस्कृत भाषा में गुरु शब्द की उत्पत्ति व्याकरण आचार्य ने उसके गुणों को अनुवाद करते हुए इस प्रकार की है गिराती उपदेशक बेदाग शास्त्री शिष्यवृत्ती गुरु अर्थात

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें