मंगलवार, 7 नवंबर 2017

भूत और पिशाच का इतिहास व यथार्थ के धरातल

देवयोनिविशेषः । स च अधोमुस्वोर्द्ध्वमुखादिः पिशाचभेदो रुद्रा- नुचरो बालग्रहः । इत्यमरभरतौ ॥ (यथा मार्कण्डेयपुराणे । ५१ । ५३ । “ विक्षिपेज्जुहुयाच्चैवानलं मित्रञ्च कीर्त्तयेत् । भूतानां मातृभिः सार्द्धं बालकानान्तु शान्तये ॥ “ ) कुमारः । इति मेदिनी । ते ४१ ॥ योगीन्द्रः । इति शब्दरत्नावली ॥ कृष्णचतुर्द्दशी । इति त्रिकाण्डशेषः ॥ * ॥ भूतनाशकौषधम् । यथा “ श्वेतापराजितामूलं पिष्टं तण्डलवारिणा । तेन नस्यप्रदानं स्याद्भूतबृन्दस्य विद्रवम् ॥ अगस्त्यपुष्पनस्यो वै समरीचश्च भूतहृत् । भुजङ्गवर्म्म वै हिङ्गु निम्बपत्राणि वै यवाः । गौरसर्षप एभिः स्याल्लेपो भूतहरः कृतः ॥ गोरोचना मरीचानि पिप्पली सैन्धवं मधु । अञ्जनं कृतमेभिः स्याद् ग्रहभूतहरं शिव ! ॥ अपि च । “ वचा त्रिकटुकञ्चैव करञ्जं देवदारु च । मञ्जिष्ठा त्रिफला श्वेता शिरीषो रजनीद्बयम् ॥ प्रियङ्गुनिम्बत्रिकटुगोमूत्रेणावघर्षितम् ॥ नस्यमालेपनञ्चैव स्नानमुद्वर्त्तनं तथा ॥ अपस्मारविषोन्मादशोषालक्ष्मीज्वरापहम् । भूतेभ्यश्च भयं हन्ति राजद्बारे च शासनम् ॥ “ इति गारुडे १९२ । १९९ अध्यायः ॥ शम्भुगणभूता यथा -- “ हते वराहस्य गणे भर्गमासाद्य ते गणाः । चतुर्भागाः स्वयं भूत्वा भूतं कर्म्मेति वै जगुः ॥ भूतत्वमभवत्तेषां चतुर्भागवतां तदा । वचनात् पद्मजातस्य भूतग्रामास्ततो मताः ॥ यो लोकविदितः पूर्ब्बं भूतग्रामश्चतुर्विधः । यतस्तेभ्योऽधिका यत्नैस्तद्भूतग्राम उच्यते ॥ इति वः सर्व्वमाख्यातं भूताः शम्भुगणा यथा । “ इति कालिकापुराणे २९ अध्यायः ॥ (वसुदेवस्य पौरवीगर्भजातद्बादशपुत्त्राणां ज्येष्ठतमः । यथा भागवते । ९ । २४ । ४७ । “ पौरव्यास्तनया ह्येते भूताद्या द्वादशाभवन् ॥ “ )
(पिशितं मांसमश्नातीति ।  पिशित +अश + “ कर्म्मण्यण् । “  ३ ।  २ ।  १ ।  इति अण् । ततः “ पृषोदरादीनि यथोपदिष्टम् । “  ६ ।  ३ । १०९ ।  इति शितभागस्य लोपः अशभागस्य शाचादेशः । )  देवयोनिविशेषः ।  इत्यमरः ।  १ । १ ।  ११ ॥  पिचाश इति भाषा ॥  (यथा   मनौ ।  १ ।  ३७ । “ यक्षरक्षःपिशाचांश्च गन्धर्व्वाप्सरसोऽसुरान् ॥ “  “ यक्षो वैश्रवणस्तदनुचराश्च ।  रक्षांसि रावणादीनि ।  पिशाचास्तेभ्योऽपकृष्टा अशुचिमरुदेशनिवासिनः । “  इति तट्टीकायां कुल्लूकभट्टः ॥ ) तस्य लोको यथा    --“ अन्तरीक्षचरा ये च भूतप्रेतपिशाचकाः । वर्जयित्वा रुद्रगणांस्ते तत्रैव चरन्ति हि ॥ नोर्द्ध्वं विक्रमणे शक्तिस्तेषां सम्भृतपाप्मनाम् । अत ऊर्द्ध्वं हि विप्रेन्द्र ! राक्षसा ये कृतैनसः । ते तु सूर्य्यादधः सर्व्वे विहरन्त्यूर्द्ध्ववर्जिताः ॥ “  इति पाद्मे स्वर्गखण्डे १५ अध्यायः ॥ प्रेतः ।  यथा    शुद्धितत्त्वे । “ अशौचान्ताद्द्वितीयेऽह्नि यस्य नोत्सृज्यते वृषः । पिशाचत्वं भवेत्तस्य दत्तैः श्राद्धशतैरपि
हनुमान् चालीसा का पूरा सच
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भारतीय समाज में सैकड़ों वर्षों से यह मान्यता प्रचलित है कि तुलसीदासकृत ‘हनुमान् चालीसा’ का पाठ करने से सब दु:ख दूर हो जाते हैं। इस मान्यता पर अंधविश्वास करने वाले मनुष्य नित्य ‘हनुमान् चालीसा’ का पाठ तो करते है, किन्तु ‘हनुमान् चालीसा’ को कभी बुद्धिपूर्वक नहीं पढ़ते।

सत्य तो यह है कि तुलसीदासकृत ‘हनुमान् चालीसा’ में अनेक मिथ्या बातें लिखी हुई हैं, जिनके पढ़ने-पढ़ाने से अमूल्य समय, श्रम, बुद्धि आदि नष्ट होते हैं। इसके कुछ प्रमाण देते है :-

1. हनुमान् के तीन पिता – ‘हनुमान् चालीसा’ में हनुमान् जी के तीन पिता बताए हैं –

                       रामदूत अतुलित बलधामा। अंजनीपुत्र पवन सुत नामा॥

                       संकर सुवन केसरी नन्दन। तेज प्रताप महा जग वन्दन॥

अर्थ:- रामदूत और अतुलित बलशाली हनुमान् अंजनी (माता) तथा पवन (पिता) के पुत्र थे ॥१॥

     हनुमान् शंकर के पुत्र तथा केसरी के पुत्र थे। उनका तेज और प्रताप महान थे तथा वे संसार के लिए वंदनीय है ॥ २ ॥
२. वेदों के विद्वान, अत्यधिक बलशाली, धर्मात्मा और ब्रह्मचारी हनुमान् के तीन पिता बताना, उनकी स्तुति है या निंदा ?

   बुद्धिमान बालक भी विश्वास नहीं कर सकता –

                        जुग सहस्त्र योजन पर भानु।

                        लील्यो ताहि मधुर फल जानू॥

अर्थ :- चार सहस्त्र योजन पर सूर्य है, जिसे हनुमान् ने मधुर फल जानकार निगल लिया था।
समीक्षा :- १. सूर्य पृथ्वी से चार सहस्त्र योजन, अर्थात बत्तीस सहस्त्र मील [लगभग इक्यावन सहस्त्र किलोमीटर] दूरी पर स्थित है। क्या इतनी दूरी पर स्थित सूर्य को कोई मनुष्य निगल सकता है?

२. सूर्य के बाह्यभाग का तापमान १२००० डिग्री फैरनहाइट है। इसका अर्थ हुआ कि सूर्य प्रज्वलित अग्नि का विशालतम लोक है, जिसके सहस्त्रों मील निकट भी कोई नहीं जा सकता। यदि कोई वस्तु या मनुष्य उसकी ओर जाने का प्रयास करे, तो वह उससे सहस्त्रों मील दूर ही जलकर भस्म हो जाएगा। क्या इतने उष्ण सूर्य को कोई बालक निगल सकता है?
३. सूर्य का आकार इस पृथ्वी से साढ़े तेरह लाख गुना बड़ा है। पृथ्वी की गोलाई २५००० मील है और  सूर्य इस पृथ्वी से तैंतीस खरब, पिछत्तर अरब मील बड़ा है। क्या इतने बड़े सूर्य को कोई पृथ्वी का प्राणी निगल सकता है ?

                    भूत पिसाच निकट नहिं आवै। महावीर जब नाम सुनावै॥

                    नासै रोग हरै सब पीरा। जपत निरन्तर हनुमत बीरा॥

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