शुक्रवार, 17 नवंबर 2017

• ये जो क्षणिक जीवन है रोहि ~

• ये जो क्षणिक जीवन है रोहि ~ अनन्त जीवन की श्रंखला है !
हज़ारो वार जन्म लिए हैं तृष्णा ने हर वार छला है !!
जन्म लेकर मरते हैं हम कैसा ये सिलसिला है !!
मन-सुमन नें इच्छा गन्ध रोहि पराग संकल्पों का झला है !!
वेग इच्छाओं का है रूप वेग में फिर कौन सम्हला है !! कामना सौन्दर्य अनुगामी ! पैर अच्छों का फिसला है !! हुश्न पर मिट जाना रोहि दुनिया में सदीयों का सिलसिला है !!
मन पर जब जोश के साये हुश्न कोई मादक हला है !! सृष्टि है द्वन्द्व की लीला !
सुन्दरता इसकी कला है !!
🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺 ज्ञान की रोशनी नहीं है जहाँ हुश्न खूबसूरत ब़ला है !!
मन द्वन्द्व प्रतिक्रियाओं की भूमि यहाँ तूफानों का ज़लज़ला है !
जहाँ हुश्न है ज़हालत है नज़ाकत रूप आ मिला है वहीं क़यामत है रोहि . फिर हमको किससे क्या ग़िला है !! अरे !
मन संयमित कर रोहि ये हक़ीकत की नेकी सलाह है ! जहाँ हुश्न इश्क़ के साये . फॉल्टों में द़िल ही जला है ! इश़्क जीवन की सुगन्ध है हुश्न का पराग मला है !!
सही सम्मोहन दुनियाँ का. जोर इसपे न चला है !! बच गया इस सम्मोहन से वही सुरक्षित भला है !!
मन को संयमित कर रोहि . हुश्न कोई ज़लज़ला है! ज्ञान की दृष्टि धारण कर. शमा पर परवाना जला है !!
🍃🍂🍃🍂🍃🍂🍃🍂 अरे ! तू पहले अकेला था पथ पर ! आज फिर अकेला है !!
कोई काँरवा नहीं है तेरा तू तन्हाईयों में चला है !!
यहाँ सब बीच की मुलाकातें हैं बीच का सारा मेला है !!🌺🌻🌺🌻🌺🌻🌺🌻🌺🐇🐇🐇🐇🐇🐇🐇🌴 प्रस्तुत काव्य यादव योगेश कुमार रोहि का प्रेम और सौन्दर्य पर एक दार्शनिक विश्लेषण है !!!!
पाठक गण अपनी प्रतिक्रियाऐं अवश्य दें ~आमीन् ! 👐👐👐👐👐👐👐👐🏃🏻💃🏼🚶🏽🚶🏽🏃🏻💃🏼🚶🏽🚶🏽🚶🏽🌴

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