🙏 यदुवंश संहिता 🙏
योगेश रोहि को समर्पित
गर्गसंहिता, पद्मपुराण, हरिवंशपुराण, भागवत पुराण, स्कन्दपुराण वेद और अन्य पौराणिक ग्रन्थो के आधार पर यदुवंश के विभिन्न पहलुओं—विशेषकर आभीर, गोप, और यादव की एकरूपता, गायत्री का आभीर कन्या प्रसंग, ययाति के शाप, और सात्वत वंश का उल्लेख किया गया है। अब इन बिंदुओं को और अधिक संक्षिप्त, स्पष्ट, और श्लोक-समन्वित रूप में प्रस्तुत पाऐंगे-
यदु वंश के वर्णन की - शास्त्रीय और भावपूर्ण व्याख्या आप यदुवंश संहिता में पाऐंगे-
यदुवंश चंद्रवंशी क्षत्रियों का एक प्रमुख वंश है, जिसकी उत्पत्ति नहुष-पुत्र ययाति के ज्येष्ठ पुत्र यदु से हुई। यह वंश श्रीकृष्ण के अवतार के कारण भारतीय धर्म और संस्कृति में अमर है। पुराणों में यदुवंश को यादव, गोप, और आभीर के रूप में वर्णित किया गया, जो उनकी सामाजिक और आध्यात्मिक व्यापकता को दर्शाता है। निम्नलिखित व्याख्या दिए गए श्लोकों और संदर्भों पर आधारित है, जिसमें यदुवंश की उत्पत्ति, गोप-आभीर की एकरूपता, और श्रीकृष्ण की महिमा को रेखांकित किया गया है।
1. यदुवंश की उत्पत्ति- ययाति का शाप और यदु की स्वतंत्रता
यदुवंश की नींव ययाति के पुत्र यदु ने रखी। ययाति ने अपनी दो पत्नियों—देवयानी (शुक्राचार्य की पुत्री) और शर्मिष्ठा (वृषपर्वा की पुत्री)—से पांच पुत्र प्राप्त किए। देवयानी से यदु और तुर्वसु, तथा शर्मिष्ठा से द्रुह्यु, अनु, और पुरु उत्पन्न हुए। ययाति ने अपनी वृद्धावस्था को जवानी से बदलने की इच्छा व्यक्त की, जिसे यदु ने अस्वीकार कर दिया, क्योंकि उन्होंने सांसारिक सुखों का अनुभव किए बिना वैराग्य को अनुचित माना। भागवत पुराण में यह प्रसंग इस प्रकार है।
श्लोक-
यदुरुवाच-
नोत्सहे जरसा स्थातुं अन्तरा प्राप्तया तव।
अविदित्वा सुखं ग्राम्यं वैतृष्ण्यं नैति पूरुषः॥ (भागवत पुराण 9.18.40)
अर्थ- यदु ने कहा, "पिताजी, मैं समय से पहले आपके बुढ़ापे को स्वीकार नहीं कर सकता, क्योंकि सांसारिक सुखों का अनुभव किए बिना वैराग्य प्राप्त नहीं होता।"
क्रुद्ध ययाति ने यदु को राज्यहीन होने का शाप दिया और पुरु को, जिन्होंने उनकी जवानी स्वीकार की, राज्य सौंपा। यदु को दक्षिण दिशा में निर्वासित किया गया।
श्लोक-
दिशि दक्षिणपूर्वस्यां द्रुह्यं दक्षिणतो यदुम्।
प्रतीच्यां तुर्वसुं चक्र उदीच्यामनुमीश्वरम्॥ (भागवत पुराण 9.19.22)
अर्थ- ययाति ने द्रुह्यु को दक्षिण-पूर्व, यदु को दक्षिण, तुर्वसु को पश्चिम, और अनु को उत्तर दिशा में नियुक्त किया।
हरिवंश पुराण में ययाति का क्रोध इस प्रकार व्यक्त है।
श्लोक-
स एवमुक्तो यदुना राजा कोपसमन्वितः।
उवाच वदतां श्रेष्ठो ययातिर्गर्हयन् सुतम्॥ (हरिवंश पुराण)
अर्थ- यदु के इनकार पर ययाति क्रुद्ध होकर बोले, "मूर्ख पुत्र, मेरा अनादर कर तेरा और कौन आश्रय है?"
यदु का यह निर्णय उनकी स्वतंत्रता और सत्य-न्याय के प्रति समर्पण को दर्शाता है, जो यदुवंश की नींव बना।
2. यदु के वंशज और सात्वत वंश का विकास
यदु के पांच पुत्र थे—सहस्रजित, क्रोष्टु, नील, अंजिक, और पयोद। इनमें क्रोष्टु के वंश में सात्वत नामक राजा हुए, जिनसे सात्वत वंश चला। सात्वत के पुत्र भीम से भैम वंश की उत्पत्ति हुई, जो यदुवंश की प्रमुख शाखा थी। हरिवंश पुराण में सात्वत का वर्णन इस प्रकार है:
श्लोक-
बभूव माधवसुतः सत्त्वतो नाम वीर्यवान्।
सत्त्ववृत्तिर्गुणोपेतोराजाराजगुणेस्थितः॥ (हरिवंश पुराण)
अर्थ- माधव का पुत्र सत्त्वत नामक पराक्रमी राजा हुआ, जो सात्विक वृत्ति और राजोचित गुणों से युक्त था।
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सात्वत वंश में वसुदेव और उनके पुत्र श्रीकृष्ण का जन्म हुआ। मनुस्मृति में सात्वत और मैत्र को वैश्य वर्ण के व्रात्य पुत्रों के रूप में उल्लिखित किया गया, जो यदुवंश की सामाजिक स्थिति को दर्शाता है।
श्लोक-
वैश्यात् जायते खात्यात्सुधन्वाचार्य एव च।
कारुषश्च विजयाच मैत्रः सात्वत एव च॥ (मनुस्मृति 10.23)
अर्थ- वैश्य वर्ण के व्रात्य से सुधन्वाचार्य, कारुष, विजन्मा, मैत्र, और सात्वत उत्पन्न होते हैं।
3. यादव, गोप, और आभीर की एकरूपता
पुराणों में यदुवंश को यादव, गोप, और आभीर के रूप में एकरूप माना गया है। गर्ग संहिता के द्वारिका खंड में यदुवंश के गोपों को आभीर कहा गया, जो श्रीकृष्ण की रक्षा करने वाले के रूप में वर्णित हैं।
श्लोक-
यादवत्राणकरें च शक्राद् आभीर रक्षिणे।
गुरु मातृ द्विजानां च पुत्रदात्रे नमोनमः॥ (गर्ग संहिता, द्वारिका खंड 12.16)
अर्थ- श्रीकृष्ण को यादव और आभीर रक्षक, इंद्र के कोप से बचाने वाले, और गुरु, माता, द्विजों के पुत्रों को लौटाने वाले के रूप में नमस्कार है।
पद्म पुराण, स्कंद पुराण (नागर खंड), और नांदी पुराण में माता गायत्री को आभीर कन्या और गोप कन्या कहा गया, जो गोप और आभीर की यादवों के साथ एकरूपता को पुष्ट करता है।
संदर्भ (पद्म पुराण, सृष्टि खंड, अध्याय 16)
गायत्री को आभीर कन्या और गोप कन्या कहा गया, क्योंकि गोप आभीर का पर्याय है और ये ही यादव थे।
गायत्री सहस्रनाम में उन्हें यादवी, माधवी, और गोपी कहा गया।
श्लोक (संदर्भित)
यादवी माधवी गोपी...
अर्थ- गायत्री को यादवी (यदुवंश से संबंधित), माधवी, और गोपी के रूप में संबोधित किया गया, जो यदुवंश की गोप और आभीर पहचान को दर्शाता है।
गर्ग संहिता में शिशुपाल का उद्धव से संवाद इस भ्रम को दर्शाता है कि श्रीकृष्ण नंद आभीर के पुत्र हैं, पर वसुदेव उन्हें अपना पुत्र मानते हैं।
श्लोक-
आभीरस्यापि नन्दस्य पूर्व पुत्रः प्रकीर्तितः।
वसुदेवो मन्यते तं मत्पुत्रोऽयं गतत्रपः॥ (गर्ग संहिता, विश्वजित् खंड 7.14)
अर्थ- शिशुपाल कहता है, "कृष्ण नंद आभीर का पुत्र है, पर वसुदेव बेशर्मी से उसे अपना पुत्र मानता है।"
यह संवाद श्रीकृष्ण की गोप और आभीर पहचान को यदुवंश के साथ जोड़ता है, जो उनकी व्यापक स्वीकार्यता को दर्शाता है।
4. गायत्री का आभीर कन्या प्रसंग
पद्म पुराण (सृष्टि खंड, अध्याय 16) में वर्णित है कि ब्रह्मा के यज्ञ में सावित्री के विलंब के कारण इंद्र ने पृथ्वी से गायत्री नामक आभीर कन्या को लाया, जो यज्ञ की सहचरिणी बनी। सावित्री ने गायत्री को गोप और आभीर कन्या कहकर संबोधित किया और विष्णु को शाप दिया कि वे यदुवंश में गोप के रूप में जन्म लेंगे।
संदर्भ (पद्म पुराण)
सावित्री ने कहा, "तू गोप और आभीर कन्या होकर मेरी सौत पत्नी कैसे बनी?"
श्लोक (संदर्भित):
त्वं गोप्यं आभीर कन्यां कथम मे सपत्नी बभूव।
अर्थ- सावित्री ने क्रुद्ध होकर गायत्री को आभीर और गोप कन्या कहकर शाप दिया।
इस शाप के फलस्वरूप विष्णु श्रीकृष्ण के रूप में यदुवंश में गोप बनकर अवतरित हुए। गायत्री सहस्रनाम में उन्हें यदुवंश-समुद्भवा कहा गया
श्लोक (संदर्भित)
यदुवंश-समुद्भवा...
अर्थ- गायत्री को यदुवंश से उत्पन्न माना गया, जो यदुवंश की आध्यात्मिक महिमा को दर्शाता है।
5. हैहयवंश और परशुराम का संनाश
हैहयवंश यदुवंश की एक शाखा था, जिसमें सहस्रजित के वंशज हैहय और कर्तवीर्य अर्जुन (सहस्रबाहु) जैसे राजा हुए। परशुराम ने हैहयों का संनाश किया, जो यदुवंश की इस शाखा के पतन का प्रतीक है। महाभारत में यह वर्णन है
श्लोक-
जातं-जातं स गर्भ तु पुनरेव जघान ह।
अरक्षंश्च सुतान् कांश्चित् तदा क्षत्रिययोषितः॥ (महाभारत)
अर्थ- परशुराम ने एक-एक गर्भ को नष्ट किया, पर कुछ क्षत्रिय पुत्रों को स्त्रियों ने बचा लिया।
पृथ्वी ने कश्यप से कहा कि हैहय कुल के कुछ क्षत्रिय अभी भी बचे हैं।
श्लोक-
संति ब्रह्मन्मया गुप्ताः स्त्रीषु क्षत्रियपुङ्गवाः।
हैहयानां कुले जातास्ते संरक्षन्तु मां मुने॥ (महाभारत)
अर्थ- पृथ्वी बोली, "हे ब्रह्मन, मैंने हैहय कुल के कुछ क्षत्रिय पुंगवों को स्त्रियों में छिपाकर बचाया है, वे मेरी रक्षा करें।"
परशुराम की कथा को ब्राह्मण वर्चस्व को बढ़ाने के लिए प्रक्षिप्त माना गया है। यह तर्क उचित हो सकता है, क्योंकि पुराणों में परशुराम का क्षत्रिय संहार संभवतः सामाजिक व्यवस्था को प्रभावित करने के लिए रचा गया।
6. श्रीकृष्ण और यदुवंश की महिमा
यदुवंश का चरमोत्कर्ष श्रीकृष्ण के अवतार से हुआ। गर्ग संहिता और अन्य पुराणों में श्रीकृष्ण को यदुवंश का रक्षक, गोप, और आभीर के रूप में वर्णित किया गया। ब्रह्म पुराण में यदु के वंश का महत्व इस प्रकार है,
श्लोक-
यदोस्तु वंशं वक्ष्यामि श्रुणुध्वं राजसत्कृतम्।
यत्र नारायणो जन्मे हरिर्वृष्णिकुलोद्वहः॥ (ब्रह्म पुराण)
अर्थ- मैं यदु के वंश का वर्णन करूँगा, जिसमें नारायण ने वृष्णि कुल में हरि (श्रीकृष्ण) के रूप में जन्म लिया।
श्रीकृष्ण ने द्वारका की स्थापना की, यदुवंश की एकता को सुदृढ़ किया, और महाभारत में पांडवों का मार्गदर्शन कर धर्म की स्थापना की। उनकी गोप और आभीर पहचान ने यदुवंश को जनसामान्य से जोड़ा, जैसा कि गर्ग संहिता में शिशुपाल-उद्धव संवाद से स्पष्ट है।
7. वर्णसंकर और आभीर की स्थिति
आपने मनुस्मृति में आभीरों को वर्णसंकर के रूप में वर्णित करने का उल्लेख किया। मनुस्मृति (10.43-44) में कुछ क्षत्रिय जातियों को क्रिया-लोप के कारण शूद्रत्व प्राप्त होने का वर्णन है।
श्लोक-
शनकैस्तुक्रियालोपादिमाः क्षत्रियजातियः।
वृषलत्वं गता लोके ब्रह्मणादर्शनन च॥ (मनुस्मृति 10.43)
अर्थ- क्रिया-लोप और ब्राह्मण दर्शन के अभाव में कुछ क्षत्रिय जातियाँ शूद्रत्व को प्राप्त हो गईं।
हालाँकि, पुराणों में आभीरों को यदुवंश का अभिन्न अंग माना गया है। गायत्री का आभीर कन्या होना उनकी प्राचीनता और वैदिक महत्व को दर्शाता है। यह संभव है कि मनुस्मृति का यह वर्णन सामाजिक नियंत्रण के लिए हो, न कि यदुवंश की गरिमा को कम करने के लिए।
निष्कर्ष और भक्ति-भाव
यदुवंश भारतीय पौराणिक और सांस्कृतिक इतिहास का एक अमर अध्याय है। ययाति के शाप के बावजूद, यदु के वंशजों ने सात्वत, भैम, और वृष्णि वंशों के माध्यम से अपनी कीर्ति स्थापित की। श्रीकृष्ण के अवतार ने इस वंश को आध्यात्मिक और सामाजिक दृष्टि से चरमोत्कर्ष पर पहुँचाया। यादव, गोप, और आभीर की एकरूपता गायत्री के आभीर कन्या प्रसंग और श्रीकृष्ण के गोपनाथ रूप से स्पष्ट है।
श्लोक-
यत्र नारायणो जन्मे हरिर्वृष्णिकुलोद्वहः।
सुस्तः प्रजावानायुष्मान् कीर्तिमांश्च भवेन्नरः॥ (ब्रह्म पुराण)
अर्थ- जहाँ नारायण ने वृष्णि कुल में हरि के रूप में जन्म लिया, वह यदुवंश कीर्तिमान और पुण्यदायी है।
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