शुक्रवार, 13 जून 2025

गुरु:

गुरुः= (गीर्य्यते स्तूयते महत्त्वात् ।  अर्थात गुरु: वह है- जिसकी महानताओं का गान किया जाता है। गुरु शब्द भारोपीय परिवार की अनेक भाषाओं में अपनी गरिमा ( भारीपन) के अर्थ में ही विद्यमान है। भारी का तात्पर्य उसकी महानता (Greatness) से है। 

भारतीय संस्कृति में गुरु: पद आध्यात्मिक और वैज्ञानिक गहराईयों को स्पर्श करता है। जो एक साधारण शिक्षक से श्रेष्ठ व पूज्य है। सर्वप्रथम हम ऋग्वेद में ही गुरु: शब्द को  भारीपन के अर्थ में देखते गैं।
 

इदं मे अग्ने कियते पावकामिनते गुरुं भारं न मन्म.। बृहद्दधाथ धृषता गभीरं यह्वं पृष्ठं प्रयसा सप्तधातु. ।। ऋग्वेदे । ४। ५। ६।

अनुवाद:- हे पवित्र करने वाले अग्नि देव ,गुरु भार भी मन्त्र बल से अनुभव नहो होता । अपनी पीठ पर सात धातुओं का अत्यधिक भार धारण करने वाले गम्भीर और धैर्यवान- अग्निदेव आप प्रसन्न हो।६।

यूरोपीय भाषाओं में गुरु: शब्द पूर्व उत्पत्ति काल से ही विद्यमान है। जब कभी सभी भारोपीय संस्कृतियों का एक ही मञ्च पर सम्मेलन रहा होगा। यूरोपीय भाषाओं में ह़म गुरु: शब्द को निम्नलिखित रूपों में देखते हैं-

संस्कृत- गुरु:= महान (भार युक्त)"heavy, weighty, venerable;" 

ग्रीक- बेरो:(baros) barys भार ( weight ) लम्बाई( strength ) या शक्ति(force) के अर्थ में प्रचलित है।

लैटिन- ग्रेविस-(gravis)

पुरानी अंग्रेज़ी- क्वेरन= cweorn  /quern (भारी)

प्राचीन जर्मन ( गॉथिक भाषा-में) कॉरुस kaurus भारी("heavy);"

लैटिस- गुरुत्-(gruts)- "heavy।

अवेस्ता- ग़र- मनन-चिन्तन अथवा स्तुति करना।

- लिथुआनियन- गिरियु (giriu) girti - स्तुति  करना। 

गुरु: में विशेष ज्ञान का भाव था इसीलिए गुरु: ज्ञान का श्रोत हुआ। ज्ञान व्यक्ति के मौलिक अनुभवों ये सिद्ध व प्रमाणित बौद्धिक सम्पदा  होता है। जबकि शिक्षा दूसरे से सीखी हुई ही होती है।इसीलिए गुरु: शिक्षक पद से उच्च व गरिमा नया है।

भगवान श्रीकृष्ण एक शिक्षक न होकर एक पूर्ण गुरु है। उनमें अनुभव जन्य ज्ञान  और  सिद्ध ज्ञान की गरिमा समाहित है। जो अर्जुन जैसे जिज्ञासु शिष्य को तृप्त करती है।

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