रविवार, 21 जुलाई 2024

धातुरूप

संस्कृत भाषा में  भी क्रिया के आत्मनेपदी तथा परस्मनेपदी इन दोनों से एक अथवा दोनों ही स्वरूप हो सकते हैं। इनके कर्तरि (कर्तृवाच्य — active voice), भावकर्मण ( Passive Voice), सन्नन्त (इच्छा सूचक), णिजन्त (प्रेरणार्थक क्रिया), तथा यङन्त (बारम्बार होने वाली क्रिया) स्वरूप  होते हैं।

इसमें प्रत्येक स्वरूप के दस लकार हैं।

१. लट् (वर्तमान)

२. लिट् (परोक्ष भूत)

३. लुट् (अनद्यतन भविष्य)

४. लृट् (सामान्य भविष्य)

५. लिङ् (दो प्रकार के)

  • विधिलिङ् (यह इच्छा, निर्देश, विधि, प्रश्न अथवा निमंत्रण के लिए "ऐसा हो" के रूप में)
  • आशीर्लिङ् (आशीर्वाद)

६. लोट् लकार (आज्ञा, अनुमति, प्रार्थना, आशीर्वाद के लिए "ऐसा हो ही" के रूप में)

७. लङ् (अनद्यतन भूत)

८. लुङ् (सामान्य भूतकाल)

९. लृङ्(हेतु हेतुमद भूतकाल, "ऐसा कर देते तो वैसा हो जाता" के रूप में)

१०. लेट् लकार (कोई काल-भेद नहीं, यह वेदों में ही प्रयुक्त है)

इन लकारों के भिन्न एकवचन, द्विवचन, तथा बहुवचन रूप हैं, जिनमें प्रत्येक के प्रथम, मध्यम, तथा उत्तम पुरुष स्वरूप हैं। अर्थात प्रत्येक लकार से कम से कम ९० शब्द रचे जाते हैं, यहाँ यह भी जानकारी आवश्यक है कि किन्हीं शब्दों के ९० से अधिक स्वरूप हो सकते हैं। यथा स्मृ धातु के परस्मैपदी कर्तरि लोट्लकार में प्रथम पुरुष एकवचन रूप स्मरतु तथा स्मरतात् हैं; इसी के मध्यमपुरुष एकवचन रूप स्मर तथा स्मरतात् हैं।

अतः एक धातु शब्द × दो पद × पाँच क्रिया प्रत्यय स्वरूप × दस लकार × तीन वचन × तीन पुरुष मिला कर नौ सो शब्दों की रचना की जा सकती है (इनसे अधिक भी सम्भव हैं; और कम भी)।

इन शब्दों को एक या अधिक उपसर्ग जोड़ कर इनसे भी क्रियावाचक शब्द बना सकते हैं। संस्कृत भाषा में २२ मुख्य उपसर्ग हैं, अतः इन ९०० ( ९०) शब्दों से सिद्धान्त रूप से १९,८०० एक उपसर्ग लाए हुए शब्दों की रचना सम्भव है (कुल २०,७००), जैसे समृ धातु को वि- उपसर्ग लगा कर विस्मृ (भूलने से सम्बन्धित) क्रियावाचक शब्द बना सकते हैं। ध्यान रहे कि संस्कृत व्याकरण एक से अधिक उपसर्ग लगाने की अनुमति देती है। अतः एक से अधिक उपसर्गों का भी प्रयोग कर और अधिक शब्द रचना सकते हैं। अतः बनाए जा सकने योग्य शब्दों की सङ्ख्या और भी अधिक है।

उदाहरणार्थ, स्मृ धातु से रचे गए कर्तरि (कर्तृवाच्य) के परस्मैपदी क्रिया शब्दों अपूर्ण सूची यह है :—

  • कर्तरि
    • कर्तरि लट्लकारः (परस्मैपदम्) स्मरण करना
      • स्मरति, स्मरतः, स्मरन्ति
      • स्मरसि, स्मरथः, स्मरथ
      • स्मरामि, स्मरावः, स्मरामः
    • कर्तरि लिट्लकारः (परस्मैपदम्)
      • सस्मार, सस्मरतुः, सस्मरुः
      • सस्मरिथ — सस्मर्थ, सस्मरथुः, सस्मर
      • सस्मर — सस्मार, सस्मरिव, सस्मरिम
    • कर्तरि लुट्लकारः (परस्मैपदम्)
      • स्मर्ता, स्मर्तारौ, स्मर्तारः
      • स्मर्तासि, स्मर्तास्थः, स्मर्तास्थ
      • स्मर्तास्मि, स्मर्तास्वः, स्मर्तास्मः
    • कर्तरि लृट्लकारः (परस्मैपदम्)
      • स्मरिष्यति, स्मरिष्यतः, स्मरिष्यन्ति
      • स्मरिष्यसि, स्मरिष्यथः, स्मरिष्यथ
      • स्मरिष्यामि, स्मरिष्यावः, स्मरिष्यामः
    • कर्तरि लोट्लकारः (परस्मैपदम्)
      • स्मरतु / स्मरतात्, स्मरताम्, स्मरन्तु
      • स्मर / स्मरतात्, स्मरतम्, स्मरत
      • स्मराणि, स्मराव, स्मराम
    • कर्तरि लङ्लकारः (परस्मैपदम्)
      • अस्मरत्, अस्मरताम्, अस्मरन्
      • अस्मरः, अस्मरतम्, अस्मरत
      • अस्मरम्, अस्मराव, अस्मराम
    • कर्तरि विधिलिङ्लकारः (परस्मैपदम्)
      • स्मरेत्, स्मरेताम्, स्मरेयुः
      • स्मरेः, स्मरेतम्, स्मरेत
      • स्मरेयम्, स्मरेव, स्मरेम
    • कर्तरि आशीर्लिङ्लकारः (परस्मैपदम्)
      • स्मर्यात्, स्मर्यास्ताम्, स्मर्यासुः
      • स्मर्याः, स्मर्यास्तम्, स्मर्यास्त
      • स्मर्यासम्, स्मर्यास्व, स्मर्यास्म
    • कर्तरि लुङ्लकारः (परस्मैपदम्)
      • अस्मारीत्, अस्मारिष्टाम्, अस्मारिषुः
      • अस्मारीः, अस्मारिष्टम्, अस्मारिष्ट
      • अस्मारिषम्, अस्मारिष्व, अस्मारिष्म
    • कर्तरि लृङ्लकारः (परस्मैपदम्)
      • अस्मरिष्यत्, अस्मरिष्यताम्, अस्मरिष्यन्
      • अस्मरिष्यः, अस्मरिष्यतम्, अस्मरिष्यत
      • अस्मरिष्यम्, अस्मरिष्याव, अस्मरिष्याम

संस्कृत भाषा में अनुमानित ३५५६ धातुएँ हैं।

स्मृ धातु से रचे क्रिया शब्दों की पूर्ण सूची मेरे इस उत्तर में वर्णित हैं। इस उत्तर के पूर्वार्ध में अरबी भाषा के क्रिया शब्दों तथा उत्तरार्ध में संस्कृत के क्रिया शब्दों की रचना की तुलना की गई है।



ज़िक्र,मुज़ाकरा,तज़किरा,अज़कार ,इसका मूल ज़िक्र ही है परंतु इस तरह पर्यायवाची बनाने की सुविधा संस्कृत में क्यों नहीं है ?
सबसे पहली भ्रान्ति से मुक्ति पा लें कि यह पर्यायवाची शब्द हैं तथा इनका मूल ज़िक्र है। यह शब्द समान भाव के हैं किन्तु समानार्थक नहीं। यह अरबी भाषा से आयातित शब्द हैं। इन्हें किस प्रकार रचा गया है इसका उत्तर आपको मेरे इस आलेख में मिल जाएगा :— प्रत्येक भाषा की अपनी विशेषताएँ हैं। संस्कृत भारोपीय मूल की भाषा है, तथा इसमें भारोपीय मूल धातु शब्दों के उपसर्ग (prefixes), प्रत्यय (suffixes), अथवा / तथा प्रोतय (infixes) जोड़ कर उनसे सम्बन्धित शब्द रचे जाते हैं। वहीं, अरबी सेमेटिक मूल की भाषा है। सेमेटिक मूल की दूसरी मुख्य भाषाओं हिब्रू, आरामी, सीरियाक आदि के समान ही अरबी भाषा में भी तीन अथवा चार अक्षर वाली धातुएँ (मूल शब्द) होते हैं। इन शब्दों में उपसर्ग तथा/अथवा प्रोतय लगाकर शब्दों के रूप बदल कर नए किन्तु सम्बन्धित अर्थों में शब्द बनाए जाते हैं। संस्कृत और अरबी दोनों ही श्लिष्ट योगात्मक भाषाएँ हैं। किन्तु, इनमें एक मुख्य अन्तर है; अरबी अन्तर्मुखी है (अर्थात अरबी में मुख्यतः प्रोतय लगते हैं; अर्थात शब्द रूप बनाने में मूल धातु शब्दों के मध्य में मात्रा अथवा अतिरिक्त वर्णों को जोड़ दिया जाता है)। वहीँ संस्कृत बहिर्मुखी है अर्थात मुख्य रूप से धातु शब्दों के आगे उपसर्ग तथा पीछे प्रत्यय लगाकर शब्द रचना की जाती है। दोनों ही भाषाओं में धातु शब्दों के रूप में परिवर्तन होता है। अतः जिन विधियों से अरबी भाषा में सम्बन्धित शब्द रचे जाते हैं लगभग उन्हीं विधियों का प्रयोग संस्कृत भाषा में भी होता है (किन्तु भिन्न भाषाएँ होने से इन विधियों में प्रयोग होने वाले शब्द तो समान होने से रहे)। संस्कृत भाषा में शब्द निर्माण की अतिरिक्त विधियाँ भी हैं। जिससे संस्कृत की किसी भी मूल धातु शब्द से शब्द रचने की क्षमता अरबी भाषा की तुलना में बहुत अधिक है। अन्तः तक धैर्यपूर्वक यह आलेख पढें। जिससे आपके भ्रम का निराकरण हो जाएगा। ज़िक्र शब्द की अरबी मूल धातु है ذ ك ر (द़ क र), हिब्रू भाषा में यह धातु ז־כ־ר (ज़ क र) है। इससे स्मृति तथा दुर्भावना के अर्थों में शब्द रचे जाते हैं। संस्कृत की स्मृ धातु जिससे स्मृति शब्द रचा गया है, उससे अरबी भाषा की ذ ك ر (द़ क र) धातु से तुलनात्मक अध्ययन तथा विवेचन के आधार पर मैं अपने मत की पुष्टि में तथ्य प्रस्तुत करता हूँ। अरबी भाषा की ذ ك ر (द़ क र) धातु से रचे शब्द यह हैं :— क्रिया-रूप— * प्रथम प्रकार : ذَكَرَ‎ (द़कर, “याद करना, स्मरण करना”) * * क्रियावाचक सञ्ज्ञा : ذِكْر‎ (द़िक्र), تَذْكَار‎ (तद़कार) * * सक्रिय : ذَاكِر‎ (द़ाकिर — अध्ययन) * * निष्क्रिय : مَذْكُور‎ (मद़कूर — उपरोक्त) * द्वितीय प्रकार : ذَكَّرَ‎ (द़क्कारा, “याद कराना, इंगित करना”) * * क्रियावाचक सञ्ज्ञा : تَذْكِير‎ (तद़कीर — पुल्लिङ्ग), تَذْكِرَة‎ (तद़किरा — ज्ञापन, टिकट, आज्ञा-पत्र) * * सक्रिय : مُذَكِّر‎ (मुद़क्किर — पौरुष) * * निष्क्रिय : مُذَكَّر‎ (मुद़क्कर — पुल्लिङ्ग) * तृतीय रूप : ذَاكَرَ‎ (द़ाकर, “वाद-विवाद करना, समझौता करना, वार्तालाप”) * * क्रियावाचक सञ्ज्ञा : مُذَاكَرَة‎ (मुद़ाकरा — सम्मेलन, वार्ता, विचार-विमर्श), ذِكَار‎ (द़िकार — अंजोर जैसी वृक्ष प्रजातियों का नर पेड़) * * सक्रिय : مُذَاكِر‎ (मुद़ाकिर — वार्ताकार) * * निष्क्रिय : مُذَاكَر‎ (मुद़ाकर — श्रोता) * चतुर्थ रूप : أَذْكَرَ‎ (अद़्करा, “याद दिलाना, याद करना, ध्यान देना”) * * सक्रिय : إِذْكَار‎ (इद़्कार— याद दिलाने वाला) * * सक्रिय : مُذْكِر‎ (मुद़्किर — नर) * * निष्क्रिय : مُذْكَر‎ (मुद़्कर — नर) * पंचम रूप: تَذَكَّرَ‎ (तद़्द़क्कर, “याद रखना, ध्यान रखना”), اِذَّكَّرَ‎ (इद़्द़क्कर, “याद रखना, ध्यान रखना”) * * क्रियावाचक सञ्ज्ञा : تَذَكُّر‎ (तद़क्कुर) * * सक्रिय : مُتَذَكِّر‎ (मुतद़क्किर), مُذَّكِّر‎ (मुद़्द़क्किर) * * निष्क्रिय : مُتَذَكَّر‎ (मुतद़क्कर), مُذَّكَّر‎ (मुद़्द़क्किर) * षष्ठम रूप : تَذَاكَرَ‎ (तद़ाकर, “आपसी परामर्श, विमर्श”) * * क्रियावाचक सञ्ज्ञा : تَذَاكُر‎ (तद़ाकुर — विमर्श) * * सक्रिय : مُتَذَاكِر‎ (मुतद़ाकिर) * * निष्क्रिय : مُتَذَاكَر‎ (मुतद़ाकर) * अष्टम रूप : اِذَّكَرَ‎ (इद़्द़ाकर, “याद रखना, स्मृतिबद्ध करना”), اِدَّكَرَ‎ (इद़्द़कर, “याद रखना, स्मृतिबद्ध करना”) * * क्रियावाचक सञ्ज्ञा : اِذِّكَار‎ (इद़्द़िकार — स्मृति, स्मारक) * * सक्रिय : مُذَّكِر‎ (मुद़्द़किर - स्मारक) * * निष्क्रिय : مُذَّكَر‎ (मुद़्द़कर) * दशम रूप : اِسْتَذْكَرَ‎ (इस्तद़्कर, “याद रखना, स्मृत करना”) * * क्रियावाचक सञ्ज्ञा : اِسْتِذْكَار‎ (इस्तिद़्कर) * * सकर्मक : مُسْتَذْكِر‎ (मुस्तिद़्कर) * * अकर्मक : مُسْتَذْكَر‎ (मुस्तद़्कर) सञ्ज्ञाएँ :— * द़िक्र (ذِكْر‎), “अनुस्मरण, स्मरण) * द़कर (ذَكَر‎, “नर, पुरुष”) * दकर (ذَكَر‎, “शिश्न”) * द़करिय्य (ذَكَرِيّ‎ , “मर्दाना, पौरुषवान”) * द़ाकिर (ذَاكِرَة‎, “स्मृति”) * द़ुक्कारذُكَّار‎ (अंजीर जैसे वृक्षों का नर पेड़ ) * द़ाकिर (ذَكِير‎ , “स्मरण करने वाला”) * द़िक्कीर ذِكِّير‎ (“स्मरणीय, जिसका स्मरण हो रहा हो”) * द़ुकरा (ذُكْرَة‎, “उत्साह; लोकवाद, अफ़वाह”) * द़िकरा (ذِكْرَى‎, “चेतावनी”) * तद़्कार (تَذْكَار‎) * तद़्कारिय्य (تَذْكَارِيّ‎) * तद़्किर (تَذْكِرَة‎, “स्मरणपत्र; स्मरणीय, टिकट”) * मुद़कार (مُذَاكَرَة‎) * मुद़्द़किर (مُذَكِّرَة‎) इनमें से अनेक शब्द समरूप हैं। जैसा कि अरबी भाषा में देखा गया है कि अनेक अरबी शब्द एक अरबी मूल धातु शब्द (अंग्रेजी भाषा में root words) से बनते हैं। इसी प्रकार संस्कृत भाषा के शब्दों की रचना संस्कृत धातुओं से होती है। संस्कृत भाषा में मूल धातु शब्दों को उपसर्ग, प्रत्यय, अथवा / तथा प्रोतय (infix) लगा कर इन धातुओं से सम्बन्धित शब्द रचना की जाती है। अरबी भाषा की शब्द रचना के उपरोक्त उदाहरण में हमें मुख्य रूप से उपसर्ग, अथवा / तथा प्रोतय का ही प्रयोग देखने को मिलता है। ज़िक्र (अरवी उच्चारण द़िक्र) का संस्कृत समानार्थक शब्द है स्मृति। जिसकी मूल धातु है 'स्मृ'। स्मृ स्मृ आध्यानेभ्वादिः, परस्मैपदी, सकर्मकः, सेट् (स्मरण करना, ध्यान करना) — पाणिनीय धातुपाठ १.९१९ स्मृ स्मृ चिन्तायाम्भ्वादिः, परस्मैपदी, सकर्मकः, अनिट् (स्मरण करना, याद करना) — पाणिनीय धातुपाठ १.१०८२ स्मृ स्मृ प्रीतिबलनयोःस्वादिः, परस्मैपदी, सकर्मकः, अनिट् (प्रीति करना, सन्तुष्ट , बलप्रयोग करना) — पाणिनीय धातुपाठ ५.१५ संस्कृत धातुओं के दो मुख्य प्रकार से क्रियावाचक शब्द बनाए जा सकते हैं, प्रथम आत्मनेपद, दूसरा परस्मैपद। प्रत्येक पद के लिए क्रियावाचक शब्दों को कर्तरि (कर्तृवाच्य — active voice), भावकर्मण ( Passive Voice), सन्नन्त (इच्छा सूचक), णिजन्त (प्रेरणार्थक क्रिया), तथा यङन्त (बारम्बार होने वाली क्रिया), इन पाँच मुख्य प्रत्ययों से से शब्द रचे जाते हैं; इनमें प्रत्येक प्रकार के दस लकारों (काल-भेदों) से शब्द बनाए जा सकते हैं, इन शब्दों के प्रथम पुरुष, मध्यम पुरुष, तथा उत्तम पुरुष रूप हैं, इन तीनों पुरुषों के लिए तीन भिन्न वचन (एक, द्वि, बहु) की शब्द रचना है। यह कुल २ पद × ५ प्रत्यय × १० लकार × ३ पुरुष × ३ वचन = ९०० शब्द हो सकते हैं। संस्कृत भाषा के लकारों की जानकारी मेरे इस उत्तर में समाहित है :— संस्कृत भाषा में स्मृ धातु से यह शब्द रचे जा सकते हैं :— * कर्तरि (१.१०८२, १.९१९) * * कर्तरि लट्लकारः (परस्मैपदम्) स्मरण करना * * * स्मरति, स्मरतः, स्मरन्ति * * * स्मरसि, स्मरथः, स्मरथ * * * स्मरामि, स्मरावः, स्मरामः * * कर्तरि लिट्लकारः (परस्मैपदम्) * * * सस्मार, सस्मरतुः, सस्मरुः * * * सस्मरिथ — सस्मर्थ, सस्मरथुः, सस्मर * * * सस्मर — सस्मार, सस्मरिव, सस्मरिम * * कर्तरि लुट्लकारः (परस्मैपदम्) * * * स्मर्ता, स्मर्तारौ, स्मर्तारः * * * स्मर्तासि, स्मर्तास्थः, स्मर्तास्थ * * * स्मर्तास्मि, स्मर्तास्वः, स्मर्तास्मः * * कर्तरि लृट्लकारः (परस्मैपदम्) * * * स्मरिष्यति, स्मरिष्यतः, स्मरिष्यन्ति * * * स्मरिष्यसि, स्मरिष्यथः, स्मरिष्यथ * * * स्मरिष्यामि, स्मरिष्यावः, स्मरिष्यामः * * कर्तरि लोट्लकारः (परस्मैपदम्) * * * स्मरतु / स्मरतात्, स्मरताम्, स्मरन्तु * * * स्मर / स्मरतात्, स्मरतम्, स्मरत * * * स्मराणि, स्मराव, स्मराम * * कर्तरि लङ्लकारः (परस्मैपदम्) * * * अस्मरत्, अस्मरताम्, अस्मरन् * * * अस्मरः, अस्मरतम्, अस्मरत * * * अस्मरम्, अस्मराव, अस्मराम * * कर्तरि विधिलिङ्लकारः (परस्मैपदम्) * * * स्मरेत्, स्मरेताम्, स्मरेयुः * * * स्मरेः, स्मरेतम्, स्मरेत * * * स्मरेयम्, स्मरेव, स्मरेम * * कर्तरि आशीर्लिङ्लकारः (परस्मैपदम्) * * * स्मर्यात्, स्मर्यास्ताम्, स्मर्यासुः * * * स्मर्याः, स्मर्यास्तम्, स्मर्यास्त * * * स्मर्यासम्, स्मर्यास्व, स्मर्यास्म * * कर्तरि लुङ्लकारः (परस्मैपदम्) * * * अस्मारीत्, अस्मारिष्टाम्, अस्मारिषुः * * * अस्मारीः, अस्मारिष्टम्, अस्मारिष्ट * * * अस्मारिषम्, अस्मारिष्व, अस्मारिष्म * * कर्तरि लृङ्लकारः (परस्मैपदम्) * * * अस्मरिष्यत्, अस्मरिष्यताम्, अस्मरिष्यन् * * * अस्मरिष्यः, अस्मरिष्यतम्, अस्मरिष्यत * * * अस्मरिष्यम्, अस्मरिष्याव, अस्मरिष्याम * कर्तरि (५.१५) * * कर्तरि लट्लकारः (परस्मैपदम्) * * * स्मृणोति, स्मृणुतः, स्मृण्वन्ति * * * स्मृणोषि, स्मृणुथः, स्मृणुथ * * * स्मृणोमि, स्मृणुवः / स्मृण्वः, स्मृणुमः / स्मृण्मः * * कर्तरि लिट्लकारः (परस्मैपदम्) * * * सस्मार, सस्मरतुः, सस्मरुः * * * सस्मरिथ / सस्मर्थ, सस्मरथुः, सस्मर * * * सस्मर / सस्मार, सस्मरिव, सस्मरिम * * कर्तरि लुट्लकारः (परस्मैपदम्) * * * स्मर्ता, स्मर्तारौ, स्मर्तारः * * * स्मर्तासि, स्मर्तास्थः, स्मर्तास्थ * * * स्मर्तास्मि, स्मर्तास्वः, स्मर्तास्मः * * कर्तरि लृट्लकारः (परस्मैपदम्) * * * स्मरिष्यति, स्मरिष्यतः, स्मरिष्यन्ति * * * स्मरिष्यसि, स्मरिष्यथः, स्मरिष्यथ * * * स्मरिष्यामि, स्मरिष्यावः, स्मरिष्यामः * * कर्तरि लोट्लकारः (परस्मैपदम्) * * * स्मृणोतु / स्मृणुतात्, स्मृणुताम्, स्मृण्वन्तु * * * स्मृणु / स्मृणुतात्, स्मृणुतम्, स्मृणुत * * * स्मृणवानि, स्मृणवाव, स्मृणवाम * * कर्तरि लङ्लकारः (परस्मैपदम्) * * * अस्मृणोत्, अस्मृणुताम्, अस्मृण्वन् * * * अस्मृणोः, अस्मृणुतम्, अस्मृणुत * * * अस्मृणवम्, अस्मृणुव / अस्मृण्व, अस्मृण्म / अस्मृणुम * * कर्तरि विधिलिङ्लकारः (परस्मैपदम्) * * * स्मृणुयात्, स्मृणुयाताम्, स्मृणुयुः * * * स्मृणुयाः, स्मृणुयातम्, स्मृणुयात * * * स्मृणुयाम्, स्मृणुयाव, स्मृणुयाम * * कर्तरि आशीर्लिङ्लकारः (परस्मैपदम्) * * * स्मर्यात्, स्मर्यास्ताम्, स्मर्यासुः * * * स्मर्याः, स्मर्यास्तम्, स्मर्यास्त * * * स्मर्यासम्, स्मर्यास्व, स्मर्यास्म * * कर्तरि लुङ्लकारः (परस्मैपदम्) * * * अस्मार्षीत्, अस्मार्ष्टाम्, अस्मार्षुः * * * अस्मार्षीः, अस्मार्ष्टम्, अस्मार्ष्ट * * * अस्मार्षम्, अस्मार्ष्व, अस्मार्ष्म * * कर्तरि लृङ्लकारः (परस्मैपदम्) * * * अस्मरिष्यत्, अस्मरिष्यताम्, अस्मरिष्यन् * * * अस्मरिष्यः, अस्मरिष्यतम्, अस्मरिष्यत * * * अस्मरिष्यम्, अस्मरिष्याव, अस्मरिष्याम * भावकर्मणो: * * भावकर्मणोः लट्लकारः (आत्मनेपदम्) * * * स्मर्यते, स्मर्येते, स्मर्यन्ते * * * स्मर्यसे, स्मर्येथे, स्मर्यध्वे * * * स्मर्ये, स्मर्यावहे, स्मर्यामहे * * भावकर्मणोः लिट्लकारः (आत्मनेपदम्) * * * सस्मरे सस्मराते सस्मरिरे * * * सस्मरिषे सस्मराथे सस्मरिध्वे * * * सस्मरे सस्मरिवहे सस्मरिमहे * * भावकर्मणोः लुट्लकारः (आत्मनेपदम्) * * * स्मरिता स्मरितारौ स्मरितारः * * * स्मरितासे स्मरितासाथे स्मरितासाध्वे * * * स्मरिताहे स्मरितास्वहे स्मरितास्महे * * भावकर्मणोः लृट्लकारः (आत्मनेपदम्) * * * स्मारिष्यते , स्मरिष्यते स्मारिष्येते , स्मरिष्येते स्मारिष्यन्ते , स्मरिष्यन्ते * * * स्मारिष्यसे , स्मरिष्यसे स्मारिष्येथे , स्मरिष्येथे स्मारिष्यध्वे , स्मरिष्यध्वे * * * स्मारिष्ये , स्मरिष्ये स्मारिष्यावहे , स्मरिष्यावहे स्मारिष्यामहे , स्मरिष्यामहे * * भावकर्मणोः लोट्लकारः (आत्मनेपदम्) * * * स्मर्यताम् स्मर्येताम् स्मर्यन्ताम् * * * स्मर्यस्व स्मर्येथाम् स्मर्यध्वम् * * * स्मर्यै स्मर्यावहै स्मर्यामहै * * भावकर्मणोः लङ्लकारः (आत्मनेपदम्) * * * अस्मर्यत अस्मर्येताम् अस्मर्यन्त * * * अस्मर्यथाः अस्मर्येथाम् अस्मर्यध्वम् * * * अस्मर्ये अस्मर्यावहि अस्मर्यामहि * * भावकर्मणोः विधिलिङ्लकारः (आत्मनेपदम्) * * * स्मर्येत स्मर्येयाताम् स्मर्येरन् * * * स्मर्येथाः स्मर्येयाथाम् स्मर्येध्वम् * * * स्मर्येय स्मर्येवहि स्मर्येमहि * * भावकर्मणोः आशीर्लिङ्लकारः (आत्मनेपदम्) * * * स्मारिषीष्ट , स्मरिषीष्ट , स्मृषीष्ट स्मारिषीयास्ताम् , स्मरिषीयास्ताम् , स्मृषीयास्ताम् स्मारिषीरन् , स्मरिषीरन् , स्मृषीरन् * * * स्मारिषीष्ठाः , स्मरिषीष्ठाः , स्मृषीष्ठाः स्मारिषीयास्थाम् , स्मरिषीयास्थाम् , स्मृषीयास्थाम् स्मारिषीढ्वम् , स्मारिषीध्वम् , स्मरिषीढ्वम् , स्मरिषीध्वम् , स्मृषीढ्वम् , स्मृषीध्वम् * * * स्मारिषीय , स्मरिषीय , स्मृषीय स्मारिषीवहि , स्मरिषीवहि , स्मृषीवहि स्मारिषीमहि , स्मरिषीमहि , स्मृषीमहि * * भावकर्मणोः लुङ्लकारः (आत्मनेपदम्) * * * अस्मारि , अस्मरि अस्मारिषाताम् , अस्मरिषाताम् अस्मारिषत , अस्मरिषत * * * अस्मारिष्ठाः , अस्मरिष्ठाः अस्मारिषाथाम् , अस्मरिषाथाम् अस्मारिढ्वम् , अस्मारिध्वम् , अस्मरिढ्वम् , अस्मरिध्वम् * * * अस्मारिषि , अस्मरिषि अस्मारिष्वहि , अस्मरिष्वहि अस्मारिष्महि , अस्मरिष्महि * * भावकर्मणोः लृङ्लकारः (आत्मनेपदम्) * * * अस्मारिष्यत , अस्मरिष्यत अस्मारिष्येताम् , अस्मरिष्येताम् अस्मारिष्यन्त , अस्मरिष्यन्त * * * अस्मारिष्यथाः , अस्मरिष्यथाः अस्मारिष्येथाम् , अस्मरिष्येथाम् अस्मारिष्यध्वम् , अस्मरिष्यध्वम् * * * अस्मारिष्ये , अस्मरिष्ये अस्मारिष्यावहि , अस्मरिष्यावहि अस्मारिष्यामहि , अस्मरिष्यामहि * सन्नन्ते * * सन्नन्ते लट्लकारः (आत्मनेपदम्) * * * सुस्मूर्षते, सुस्मूर्षेते, सुस्मूर्षन्ते * * * सुस्मूर्षसे, सुस्मूर्षेथे, सुस्मूर्षध्वे * * * सुस्मूर्षे, सुस्मूर्षावहे, सुस्मूर्षामहे * * सन्नन्ते लिट्लकारः (आत्मनेपदम्) * * * सुस्मूर्षाञ्चक्रे / सुस्मूर्षामास /सुस्मूर्षाम्बभूव, सुस्मूर्षाञ्चक्राते ,/सुस्मूर्षामासतुः / सुस्मूर्षाम्बभूवतुः * * * सुस्मूर्षाञ्चक्रिरे / सुस्मूर्षामासुः / सुस्मूर्षाम्बभूवुः, सुस्मूर्षाञ्चकृषे / सुस्मूर्षामासिथ / सुस्मूर्षाम्बभूविथ, सुस्मूर्षाञ्चक्राथे / सुस्मूर्षामासथुः / सुस्मूर्षाम्बभूवथुः * * * सुस्मूर्षाञ्चकृढ्वे / सुस्मूर्षाञ्चकृध्वे , सुस्मूर्षामास / सुस्मूर्षाम्बभूव, सुस्मूर्षाञ्चक्रे / सुस्मूर्षामास / सुस्मूर्षाम्बभूव, सुस्मूर्षाञ्चकृवहे / सुस्मूर्षामासिव / सुस्मूर्षाम्बभूविव, सुस्मूर्षाञ्चकृमहे / सुस्मूर्षामासिम / सुस्मूर्षाम्बभूविम * * सन्नन्ते लुट्लकारः (आत्मनेपदम्) * * * सुस्मूर्षिता, सुस्मूर्षितारौ, सुस्मूर्षितारः, * * * सुस्मूर्षितासे, सुस्मूर्षितासाथे, सुस्मूर्षिताध्वे * * * सुस्मूर्षिताहे, सुस्मूर्षितास्वहे, सुस्मूर्षितास्महे * * सन्नन्ते लृट्लकारः (आत्मनेपदम्) * * * सुस्मूर्षिष्यते, सुस्मूर्षिष्येते, सुस्मूर्षिष्यन्ते * * * सुस्मूर्षिष्यसे, सुस्मूर्षिष्येथे, सुस्मूर्षिष्यध्वे * * * सुस्मूर्षिष्ये, सुस्मूर्षिष्यावहे, सुस्मूर्षिष्यामहे * * सन्नन्ते लोट्लकारः (आत्मनेपदम्) * * * सुस्मूर्षताम्, सुस्मूर्षेताम्, सुस्मूर्षन्ताम् * * * सुस्मूर्षस्व, सुस्मूर्षेथाम्, सुस्मूर्षध्वम् * * * सुस्मूर्षै, सुस्मूर्षावहै, सुस्मूर्षामहै * * सन्नन्ते लङ्लकारः (आत्मनेपदम्) * * * असुस्मूर्षत, असुस्मूर्षेताम्,असुस्मूर्षन्त * * * असुस्मूर्षथाः, असुस्मूर्षेथाम्, असुस्मूर्षध्वम् * * * असुस्मूर्षे, असुस्मूर्षावहि, असुस्मूर्षामहि * * सन्नन्ते विधिलिङ्लकारः (आत्मनेपदम्) * * * सुस्मूर्षेत, सुस्मूर्षेयाताम्सु, स्मूर्षेयन् * * * सुस्मूर्षेथाः, सुस्मूर्षेयाथाम्, सुस्मूर्षेध्वम् * * * सुस्मूर्षेय, सुस्मूर्षेवहि, सुस्मूर्षेमहि * * सन्नन्ते आशीर्लिङ्लकारः (आत्मनेपदम्) * * * सुस्मूर्षिषीष्ट, सुस्मूर्षिषीयास्ताम्, सुस्मूर्षिषीरन् * * * सुस्मूर्षिषीष्ठाः, सुस्मूर्षिषीयास्थाम्, सुस्मूर्षिषीढ्वम् / सुस्मूर्षिषीध्वम् * * * सुस्मूर्षिषीय, सुस्मूर्षिषीवहि, सुस्मूर्षिषीमहि * * सन्नन्ते लुङ्लकारः (आत्मनेपदम्) * * * असुस्मूर्षिष्ट, असुस्मूर्षिषाताम्, असुस्मूर्षिषत * * * असुस्मूर्षिष्ठाः, असुस्मूर्षिषाथाम्, असुस्मूर्षिढ्वम् / असुस्मूर्षिध्वम् * * * असुस्मूर्षिषि, असुस्मूर्षिष्वहि, असुस्मूर्षिष्महि * * सन्नन्ते लृङ्लकारः (आत्मनेपदम्) * * * असुस्मूर्षिष्यत, असुस्मूर्षिष्येताम्, असुस्मूर्षिष्यन्त * * * असुस्मूर्षिष्येथाः, असुस्मूर्षिष्येथाम्, असुस्मूर्षिष्येध्वम् * * * असुस्मूर्षिष्ये, असुस्मूर्षिष्यावहि, असुस्मूर्षिष्यामहि * णिजन्ते * * णिजन्ते लट्लकारः (परस्मैपदम्) * * * स्मरयति, स्मरयतः, स्मरयन्ति * * * स्मरयसि, स्मरयथः, स्मरयथ * * * स्मरयामि, स्मरयावः, स्मरयामः * * णिजन्ते लट्लकारः (आत्मनेपदम्) * * * स्मरयते, स्मरयेते, स्मरयन्ते * * * स्मरयसे, स्मरयेथे, स्मरयध्वे * * * स्मरये, स्मरयावहे, स्मरयामहे * * णिजन्ते लिट्लकारः (परस्मैपदम्) * * * स्मरयाञ्चकार / स्मरयामास / स्मरयाम्बभूव, स्मरयाञ्चक्रतुः / स्मरयामासतुः / स्मरयाम्बभूवतुः, स्मरयाञ्चक्रुः / स्मरयामासुः / स्मरयाम्बभूवुः * * * स्मरयाञ्चकर्थ / स्मरयामासिथ / स्मरयाम्बभूविथ, स्मरयाञ्चक्रथुः / स्मरयामासथुः / स्मरयाम्बभूवथुः, स्मरयाञ्चक्र / स्मरयामास / स्मरयाम्बभूव * * * स्मरयाञ्चकार / स्मरयाञ्चकर / स्मरयामास / स्मरयाम्बभूव, स्मरयाञ्चकृव / स्मरयामासिव / स्मरयाम्बभूविव, स्मरयाञ्चकृम / स्मरयामासिम / स्मरयाम्बभूविम * * णिजन्ते लिट्लकारः (आत्मनेपदम्) * * * स्मरयाञ्चक्रे / स्मरयामास / स्मरयाम्बभूव, स्मरयाञ्चक्राते / स्मरयामासतुः / स्मरयाम्बभूवतुः, स्मरयाञ्चक्रिरे / स्मरयामासुः / स्मरयाम्बभूवुः * * * स्मरयाञ्चकृषे / स्मरयामासिथ / स्मरयाम्बभूविथ, स्मरयाञ्चक्राथे / स्मरयामासथुः / स्मरयाम्बभूवथुः, स्मरयाञ्चकृढ्वे / स्मरयाञ्चकृध्वे / स्मरयामास / स्मरयाम्बभूव * * * स्मरयाञ्चक्रे / स्मरयामास / स्मरयाम्बभूव, स्मरयाञ्चकृवहे / स्मरयामासिव / स्मरयाम्बभूविव, स्मरयाञ्चकृमहे / स्मरयामासिम / स्मरयाम्बभूविम * * णिजन्ते लुट्लकारः (परस्मैपदम्) * * * स्मरयिता, स्मरयितारौ, स्मरयितारः * * * स्मरयितासि, स्मरयितास्थः, स्मरयितास्थ * * * स्मरयितास्मि, स्मरयितास्वः, स्मरयितास्मः * * णिजन्ते लुट्लकारः (आत्मनेपदम्) * * * स्मरयिता, स्मरयितारौ, स्मरयितारः * * * स्मरयितासे, स्मरयितासाथे, स्मरयिताध्वे * * * स्मरयिताहे, स्मरयितास्वहे, स्मरयितास्महे * * णिजन्ते लृट्लकारः (परस्मैपदम्) * * * स्मरयिष्यति, स्मरयिष्यतः, स्मरयिष्यन्ति * * * स्मरयिष्यसि, स्मरयिष्यथः, स्मरयिष्यथ * * * स्मरयिष्यामि, स्मरयिष्यावः, स्मरयिष्यामः * * णिजन्ते लृट्लकारः (आत्मनेपदम्) * * * स्मरयिष्यते, स्मरयिष्येते, स्मरयिष्यन्ते * * * स्मरयिष्यसे, स्मरयिष्येथे, स्मरयिष्यध्वे * * * स्मरयिष्ये, स्मरयिष्यावहे, स्मरयिष्यामहे * * णिजन्ते लोट्लकारः (परस्मैपदम्) * * * स्मरयतु / स्मरयतात्, स्मरयताम्, स्मरयन्तु * * * स्मरय / स्मरयतात्, स्मरयतम्, स्मरयत * * * स्मरयाणि, स्मरयाव, स्मरयाम * * णिजन्ते लोट्लकारः (आत्मनेपदम्) * * * स्मरयताम्, स्मरयेताम्, स्मरयन्ताम् * * * स्मरयस्व, स्मरयेथाम्, स्मरयध्वम् * * * स्मरयै, स्मरयावहै, स्मरयामहै * * णिजन्ते लङ्लकारः (परस्मैपदम्) * * * अस्मरयत्, अस्मरयताम्, अस्मरयन् * * * अस्मरयः, अस्मरयतम्, अस्मरयत * * * अस्मरयम्, अस्मरयाव, अस्मरयाम * * णिजन्ते विधिलिङ्लकारः (परस्मैपदम्) * * * स्मरयेत्, स्मरयेताम्, स्मरयेयुः * * * स्मरयेः, स्मरयेतम्, स्मरयेत * * * स्मरयेयम्, स्मरयेव, स्मरयेम * * णिजन्ते विधिलिङ्लकारः (आत्मनेपदम्) * * * स्मरयेत, स्मरयेयाताम्, स्मरयेयन् * * * स्मरयेथाः, स्मरयेयाथाम्, स्मरयेध्वम् * * * स्मरयेय, स्मरयेवहि, स्मरयेमहि * * णिजन्ते आशीर्लिङ्लकारः (परस्मैपदम्) * * * स्मर्यात्, स्मर्यास्ताम्, स्मर्यासुः * * * स्मर्याः, स्मर्यास्तम्, स्मर्यास्त * * * स्मर्यासम्, स्मर्यास्व, स्मर्यास्म * * णिजन्ते आशीर्लिङ्लकारः (आत्मनेपदम्) * * * स्मरयिषीष्ट, स्मरयिषीयास्ताम्, स्मरयिषीरन् * * * स्मरयिषीष्ठाः, स्मरयिषीयास्थाम्, स्मरयिषीढ्वम् / स्मरयिषीध्वम् * * * स्मरयिषीय, स्मरयिषीवहि, स्मरयिषीमहि * * णिजन्ते लुङ्लकारः (आत्मनेपदम्) * * * अस्मरयिष्ट, अस्मरयिषाताम्, अस्मरयिषत * * * अस्मरयिष्ठाः, अस्मरयिषाथाम्, अस्मरयिढ्वम् / अस्मरयिध्वम् * * * अस्मरयिषि, अस्मरयिष्वहि, अस्मरयिष्महि * * णिजन्ते लृङ्लकारः (परस्मैपदम्) * * * अस्मरयिष्यत्, अस्मरयिष्यताम्, अस्मरयिष्यन् * * * अस्मरयिष्यः, अस्मरयिष्यतम्, अस्मरयिष्यत * * * अस्मरयिष्यम्, अस्मरयिष्याव, अस्मरयिष्याम * * णिजन्ते लृङ्लकारः (आत्मनेपदम्) * * * अस्मरयिष्यत, अस्मरयिष्येताम्, अस्मरयिष्यन्त * * * अस्मरयिष्येथाः, अस्मरयिष्येथाम्, अस्मरयिष्येध्वम् * * * अस्मरयिष्ये, अस्मरयिष्यावहि, अस्मरयिष्यामहि * यङन्ते * * यङन्ते लट्लकारः (आत्मनेपदम्) * * * सास्मर्यते, सास्मर्येते, सास्मर्यन्ते * * * सास्मर्यसे, सास्मर्येथे, सास्मर्यध्वे * * * सास्मर्ये, सास्मर्यावहे, सास्मर्यामहे * * यङन्ते लिट्लकारः (आत्मनेपदम्) * * * सास्मर्याञ्चक्रे / सास्मर्यामास / सास्मर्याम्बभूव, सास्मर्याञ्चक्राते / सास्मर्यामासतुः / सास्मर्याम्बभूवतुः, सास्मर्याञ्चक्रिरे / सास्मर्यामासुः / सास्मर्याम्बभूवुः * * * सास्मर्याञ्चकृषे / सास्मर्यामासिथ / सास्मर्याम्बभूविथ, सास्मर्याञ्चक्राथे / सास्मर्यामासथुः / सास्मर्याम्बभूवथुः, सास्मर्याञ्चकृढ्वे / सास्मर्याञ्चकृध्वे / सास्मर्यामास / सास्मर्याम्बभूव * * * सास्मर्याञ्चक्रे / सास्मर्यामास / सास्मर्याम्बभूव, सास्मर्याञ्चकृवहे / सास्मर्यामासिव / सास्मर्याम्बभूविव, सास्मर्याञ्चकृमहे / सास्मर्यामासिम / सास्मर्याम्बभूविम * * यङन्ते लुट्लकारः (आत्मनेपदम्) * * * सास्मर्यिता, सास्मर्यितारौ, सास्मर्यिरः * * * सास्मर्यितासे, सास्मर्यितासाथे, सास्मर्यिताध्वे * * * सास्मर्यिताहे, सास्मर्यितास्वहे, सास्मर्यितास्महे * * यङन्ते लृट्लकारः (आत्मनेपदम्) * * * सास्मर्यिष्यते, सास्मर्यिष्येते, सास्मर्यिष्यन्ते * * * सास्मर्यिष्यसे, सास्मर्यिष्येथे, सास्मर्यिष्यध्वे * * * सास्मर्यिष्ये, सास्मर्यिष्यावहे, सास्मर्यिष्यामहे * * यङन्ते लोट्लकारः (आत्मनेपदम्) * * * सास्मर्यताम्, सास्मर्येताम्, सास्मर्यन्ताम् * * * सास्मर्यस्व, सास्मर्येथाम्, सास्मर्यध्वम् * * * सास्मर्यै, सास्मर्यावहै, सास्मर्यामहै * * यङन्ते लङ्लकारः (आत्मनेपदम्) * * * असास्मर्यत, असास्मर्येताम्, असास्मर्यन्त * * * असास्मर्यथाः, असास्मर्येथाम्, असास्मर्यध्वम् * * * असास्मर्ये, असास्मर्यावहि, असास्मर्यामहि * * यङन्ते विधिलिङ्लकारः (आत्मनेपदम्) * * * सास्मर्येत, सास्मर्येयाताम्, सास्मर्येरन् * * * सास्मर्येथाः, सास्मर्येयाथाम्, सास्मर्येध्वम् * * * सास्मर्येय, सास्मर्येवहि, सास्मर्येमहि * * यङन्ते आशीर्लिङ्लकारः (आत्मनेपदम्) * * * सास्मर्यिषीष्ट, सास्मर्यिषीयास्ताम्, सास्मर्यिषीरन् * * * सास्मर्यिषीष्ठाः, सास्मर्यिषीयास्थाम्, सास्मर्यिषीढ्वम् / सास्मर्यिषीध्वम् * * * सास्मर्यिषीय, सास्मर्यिषीवहि, सास्मर्यिषीमहि * * यङन्ते लुङ्लकारः (आत्मनेपदम्) * * * असास्मर्यिष्ट, असास्मर्यिषाताम्, असास्मर्यिषत * * * असास्मर्यिष्ठाः, असास्मर्यिषाथाम्, असास्मर्यिढ्वम् / असास्मर्यिध्वम् * * * असास्मर्यिषि, असास्मर्यिष्वहि, असास्मर्यिष्महि * * यङन्ते लृङ्लकारः (आत्मनेपदम्) * * * असास्मर्यिष्यत, असास्मर्यिष्येताम्, असास्मर्यिष्यन्त * * * असास्मर्यिष्यथाः, असास्मर्यिष्येथाम्, असास्मर्यिष्यध्वम् * * * असास्मर्यिष्ये, असास्मर्यिष्यावहि, असास्मर्यिष्यामहि इन शब्दों को उपसर्ग जोड़ कर इनसे भी क्रियावाचक शब्द बना सकते हैं। संस्कृत भाषा में २२ मुख्य उपसर्ग हैं, अतः इन ९०० शब्दों से सिद्धान्त रूप से १९,८०० उपसर्ग वाले शब्दों की रचना सम्भव है (कुल २०,७००), जैसे समृ धातु को वि- उपसर्ग लगा कर विस्मृ (भूलने से सम्बन्धित) क्रियावाचक शब्द बना सकते हैं। ध्यान रहे कि संस्कृत व्याकरण एक से अधिक उपसर्ग लगाने की अनुमति देती है। अतः बनाए जा सकने योग्य शब्दों की सङ्ख्या और भी अधिक है। संस्कृत भाषा में अनुमानित ३५५६ धातुएँ हैं। सञ्ज्ञा शब्दों की रचना के लिए कृदन्त प्रत्ययों का प्रयोग किया जाता है। संस्कृत भाषा की व्याक एक से अधिक प्रत्ययों को जोड़ने की अनुमति देती है। अतः सैद्धान्तिक रूप से इस प्रकार के सहस्रों शब्द बनाए जा सकते हैं। संस्कृत भाषा में सञ्ज्ञावाचक तथा विशेषण शब्द रचने के लिए कृन्त प्रत्ययों का प्रयोग किया जाता है। कृदन्त प्रत्यय से रचे कुछ सञ्ज्ञावाचक शब्द, ध्यान रहे कि इनके भिन्न पुल्लिंग, स्त्रीलिंग तथा नपुंसकलिङ्ग रूप हैं : * स्मृ + ण्वुल — स्मारकः, स्मारिका, स्मारकम् * स्मृ + ण्यत — स्मार्यं * स्मृ + क्यप् — स्मृत्य, स्मृत्या * स्मृ + क्तवा — स्मृत्वा * स्मृ + क्त — स्मृतः, स्मृता, स्मृतम् * स्मृ + क्तवतु — स्मृतवान्, स्मृत्वती, स्मृतवत् * स्मृ + अनीयर् — स्मरणीयः, स्मरणीया, स्मरणीयम् * स्मृ + शानच — स्मुरवाणः, स्मुरवाणा, स्मुरवाणम् * स्मृ + ल्युट — स्मरणम् * स्मृ + ण्मुल — स्मारम् * स्मृ + तृच — स्मर्तृ, स्मर्ता (गुरु) * स्मृ + क्तिन — स्मृतिः * स्मृ + क्तिन + मतुप् — स्मृतिमानः, स्मृतिमत् * स्मृ + णिच् + अच् — स्मरः (कामदेव) * स्मृ + तुमन् = स्मर्तुम् * स्मृ + तव्यत् = स्मर्तव्य (स्मरण के योग्य होना) * स्मार्त * स्मृ + शान * च् = स्मुरवाणः * स्मृ + णमुल् = स्मारम् * स्मृ + ल्युट + ल्यप् = स्मरणाय इसके अतिरिक्त विशेषण रचना के लिए संस्कृत भाषा में तद्धित प्रत्ययों के माध्यम से विशेषण बनाए जाते हैं। यथा : * स्मृति + मतुप् = स्मृतिवान * स्मृत + वतुप् = स्मृतवत् * स्मरणीय + तरप् = स्मरणीयतर * स्मरणीय + तमप् = स्मरणीयतम * स्मृति + मयट् = स्मृतिमय * स्मरणीय + तल् = स्मरणीय संस्कृत सञ्ज्ञा शब्दों को सात विभक्तियों (सम्बोधन को जोड़ कर आठ विभक्तियों) में शब्द रचना की जाती है। इनमें प्रत्येक विभक्ति के एकवचन, द्विवचन, तथा बहुवचन के भिन्न शब्द-रूप हैं। विभक्ति शब्दों की रचना सुबन्त प्रत्यय से की जाती है। सात + एक विभक्तियों के लिए, तीन वचनों के लिए, प्रत्येक सञ्ज्ञा शब्द को २१ शब्द रूपों में लिख सकते हैं। यथा, स्मृ धातु से रचे कामदेव के नाम स्मर की विभक्तियाँ यह हैं :— * प्रथमा (कर्ता) : स्मरः, स्मरौ, स्मराः * द्वितीया (कर्म) : स्मरम्, स्मरौ, स्मराण् * तृतीया (करण) : स्मरेण्, स्मराभ्याम्, स्मरैः * चतुर्थी (सम्प्रदान) : स्मराय, स्मराभ्याम्, स्मरेभ्य * पञ्चमी (अपादान) : स्मरात्, स्मराभ्याम्, स्मरेभ्य * षष्ठी (सम्बन्ध) : स्मरस्य, स्मरयो, स्मराणाम् * सप्तमी (अधिकरण) : स्मरे, स्मरयो, स्मरेषु * अष्टमी (सम्बोधन) : हे स्मरः, हे स्मरौ, हे स्मराः ज्ञात रहे कि क्रिया, विशेषण, तथा सञ्ज्ञा शब्दों में संस्कृत भाषा के २२ उपसर्ग लगा कर भी शब्द रचे जा सकते हैं। जैसे :— * अ + स्मृत = अस्मृत, अ + * अ + स्मार्त = अस्मार्त * वि + स्मृत = विस्मृत, वि + स्मरण = विस्मरण * अप + स्मृ + करणे घञ् = अपस्मारः * अ + वि + स्मृति = अविस्मृति * अनु + स्मरण = अनुस्मरण * अप + स्मृति = अपस्मृति * उप + स्मृ = उपस्मृ * सम् + स्मरण = संस्मरण * प्रति + स्मृति = प्रतिस्मृति * प्र + स्मृत = प्रस्मृत * प्र + स्मृतव्य = प्रस्मृतव्य (भूल जाना) * वि + नि + स्मृत = विनिस्मृत (अभिलेख किया हुआ) * अति + वि + स्मरण = अतिविस्मरण * दुः + स्मर = दुःस्मर इन शब्दों को भी अन्य शब्दों से जोड़ कर सहस्रों अन्य शब्दों का निर्माण कर सकते हैं। कुछ उदाहरण प्रस्तुत हैं :— * प्रातःस्मरणीय * स्मृतिकारिन् * नित्यस्मरणीय * स्मरणशक्ति * स्मृतिबद्ध * स्मृतिलोप * स्मृतिलोपित * स्मृतिह्रास * विस्मृतिबोध * स्मार्तानुष्ठान * स्मार्तानुष्ठानपद्धति * स्मार्त्तकाल * बोधिसत्त्वबुद्धानुस्मृतिसमाधि * महास्मृत्युपस्थान * यथास्मृतिमय * भगवन्नामस्मरणस्तुति (भगवान का नाम स्मरण कर उनकी स्तुति करना) * शिवपारम्पर्यप्रतिपादिकश्रुतिस्मृत्युदाहरण (शैव परम्परा के प्रतिपादित वेद तथा स्मृति ग्रंथों के उदाहरण) * श्रौतस्मार्तकर्मपद्धति (वेद-वेदांगों के अनुसार कर्म करने की विधि) * स्मरछत्र (भगनासा) * संस्मरणीयशोभ (जिसकी शोभा स्मरण करने योग्य थी, किन्तु अब नहीं) * स्मरस्मर्य (स्मर = कामदेव द्वारा स्मरण के योग्य, गधे को यह उपमा दी गई है) * … आदि। इस तुलना से यह स्पष्ट है कि संस्कृत भाषा में अरबी भाषा की शब्द रचना के प्रयोग की जाने वाली कुछ विधियाँ समान ही हैं। अरबी भाषा की तुलना में संस्कृत में शब्दों के निर्माण की अतिरिक्त विधियाँ भी हैं। हाँ, जिन उपसर्ग तथा प्रत्ययों का प्रयोग होता है, वह इनके भिन्न भाषा-परिवारों के होने के कारण अलग रूपों में हैं। विशेष टिप्पणी :— अरबी भाषा का सम्बन्ध बोधक निस्बा प्रत्यय (ـِيّ — ईय) जो अरब (عرب) से अरबी (عربي) बनाता है, संस्कृत भाषा के सम्बन्ध बोधक प्रत्यय जो 'भारत' से 'भारतीय' बनाता है, इन दोनों भाषाओं के असम्बद्ध होते हुए भी एक ही जैसे हैं। इस प्रकार के अन्य रोचक उत्तर आप मेरे मञ्च भाषा-विज्ञान और शब्द-व्युत्पत्ति पर देख सकते हैं। © अरविन्द व्यास, सर्वाधिकार सुरक्षित। इस आलेख को उद्धृत करते हुए इस लेख के लिंक का भी विवरण दें। इस आलेख को कॉपीराइट सूचना के साथ यथावत साझा करने की अनुमति है। सन्दर्भ :— ذ ك ر - Wiktionary ז־כ־ר - Wiktionary Ashtadhyayi Dhatu Dhatu Roop In Sanskrit - धातु रूप - (तिड्न्त प्रकरण) की परिभाषा, भेद और उदाहरण, सूची, टेबल पर क्लिक करें – (संस्कृत व्याकरण) - A Plus Topper धातु रूप - (तिड्न्त प्रकरण) Dhatu Roop in Sanskrit, List, Table Trick संस्कृत शिक्षण पाठशाला 4 (संस्कृत में कृदन्त प्रत्यय) उपसर्ग प्रकरण - संस्कृत में उपसर्ग : संस्कृत व्याकरण

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