शुक्रवार, 23 अक्तूबर 2020

गोपों की कन्या राधा, दुर्गा और गायत्री ...


उनके लिए बता दें कि दुर्गा के यादवी अर्थात् यादव कन्या होने के पौराणिक सन्दर्भ हैं
परन्तु महिषासुर के अहीर या यादव होने का कोई पौराणिक सन्दर्भ नहीं !

देवी भागवत पुराण और मार्कण्डेय पुराण में दुर्गा ही नंदकुल में अवतरित होती है--

हम आपको  मार्कण्डेय पुराण और देवी भागवत पुराण  से कुछ सन्दर्भ देते हैं जो दुर्गा को यादव या अहीर कन्या के रूप में वर्णन करते हैं...

देखें निम्न श्लोक ...

 नन्दा नन्दप्रिया निद्रा नृनुता नन्दनात्मिका ।
 नर्मदा नलिनी नीला नीलकण्ठसमाश्रया ॥ ८१ ॥
~देवीभागवतपुराणम्/स्कन्धः १२/अध्यायः ०६

उपर्युक्त श्लोक में नन्द जी की प्रिय पुत्री होने से नन्द प्रिया दुर्गा का ही विशेषण है ...

नन्दजा नवरत्‍नाढ्या नैमिषारण्यवासिनी ।
 नवनीतप्रिया नारी नीलजीमूतनिःस्वना ॥ ८६ ॥
 ~देवीभागवतपुराणम्/स्कन्धः १२/अध्यायः ०६

उपर्युक्त श्लोक में भी नन्द की पुत्री होने से दुर्गा को नन्दजा (नन्देन सह यशोदायाञ् जायते  इति नन्दजा) कहा गया है ..

यक्षिणी योगयुक्ता च यक्षराजप्रसूतिनी ।
 यात्रा यानविधानज्ञा यदुवंशसमुद्‍भवा॥१३१॥
 ~देवीभागवतपुराणम्/स्कन्धः १२/अध्यायः ०६

उपर्युक्त श्लोक में दुर्गा देवी यदुवंश में नन्द आभीर के  घर  यदुवंश में जन्म लेने से (यदुवंशसमुद्भवा) कहा है जो यदुवंश में अवतार लेती हैं 

नीचे मार्कण्डेय पुराण से श्लोक उद्धृत हैं
जिनमे दुर्गा को यादवी कन्या कहा है:-

वैवस्वतेऽन्तरे प्राप्ते अष्टाविंशतिमे युगे ।
शुम्भो निशुम्भश्चैवान्यावुत्पत्स्येते महासुरौ॥३८॥
नन्दगोपगृहे जाता यशोदागर्भसम्भवा ।
ततस्तौ नाशयिष्यामि विन्ध्याचलनिवासिनी॥३९॥
~मार्कण्डेयपुराणम्/अध्यायः ९१

अट्ठाईसवें युग में वैवस्वत मन्वन्तर के प्रगट होने पर जब दूसरे शुम्भ निशुम्भ दैत्य उत्पन्न होंगे तब मैं नन्द गोप के घर यशोदा के गर्भ से उत्पन्न होकर उन दोनों(शुम्भ और निशुम्भ) का नाश करूँगी और विन्ध्याचल पर्वत पर रहूंगी।

मार्कण्डेय पुराण के मूर्ति रहस्य प्रकरण में आदि शक्ति की छः अंगभूत देवियों का वर्णन है उसमे से एक नाम नंदा का भी है:-
इस देवी की अंगभूता छ: देवियाँ हैं –१- नन्दा, २-रक्तदन्तिका, ३-शाकम्भरी, ४-दुर्गा, ५-भीमा और ६-भ्रामरी. ये देवियों की साक्षात मूर्तियाँ हैं, इनके स्वरुप का प्रतिपादन होने से इस प्रकरण को मूर्तिरहस्य कहते हैं...

दुर्गा सप्तशती में देवी दुर्गा को स्थान स्थान पर नंदा और नंदजा कहकर संबोधित किया है जिसमे की नंद आभीर की पुत्री होने से देवी को नंदजा कहा है-
 "नन्द आभीरेण जायते इति देवी नन्दा विख्यातम्"

                  ऋषिरुवाच
नन्दा भगवती नाम या भविष्यति नन्दजा।
सा स्तुता पूजिता ध्याता वशीकुर्याज्जगत्त्रयम्॥१॥
~श्रीमार्कण्डेय पुराणे सावर्णिके मन्वन्तरे देवीमाहात्म्ये
मूर्तिरहस्यं

अर्थ – ऋषि कहते हैं – राजन् ! नन्दा नाम की देवी जो नन्द से उत्पन्न होने वाली है, उनकी यदि भक्तिपूर्वक स्तुति और पूजा की जाए तो वे तीनों लोकों को उपासक के अधीन कर देती हैं|

आप को बता दें गर्ग संहिता, पद्म पुराण आदि ग्रन्थों में नन्द को आभीर कह कर सम्बोधित किया है:-

आभीरस्यापि नन्दस्य पूर्वं पुत्रः प्रकीर्तितः ॥
वसुदेवो मन्यते तं मत्पुत्रोऽयं गतत्रपः॥१४॥

~गर्गसंहिता/खण्डः ७ (विश्वजित्खण्डः)/अध्यायः ०७
इति श्रीगर्गसंहितायां श्रीविश्वजित्खण्डे श्रीनारदबहुलाश्वसंवादे गुर्जरराष्ट्राचेदिदेशगमनं नाम सप्तमोऽध्यायः ॥७॥

नारद और बहुलाक्ष ( मिथिला) के राजा में संवाद चलता है तब नारद बहुलाक्ष से  शिशुपाल और उद्धव के संवाद का वर्णन करते हैं 
 अर्थात् यहाँ संवाद में ही संवाद है 👇

अर्थ:- दमघोष पुत्र  शिशुपाल  उद्धव जी से कहता हैं कि कृष्ण वास्तव में नन्द अहीर का पुत्र है ।
उसे वसुदेव ने वरबस अपना पुत्र माने लिया है उसे इस बात पर तनिक भी लाज ( त्रप) नहीं आती है।


अन्य स्थानों पर नंद को गोप लिखा है किंतु इस श्लोक में आभीर इससे एक बाद स्पष्ट हो जाती है कि आभीर और गोप परस्पर पर्यायावाची शब्द है...

हरिवंश पुराण , गर्गगसंहिता  और देवी भागवत में वसुदेव को भी गोप रूप में जन्म लेना  बताया गया है !

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यद्यपि शिशुपाल भी हैहयवंश यादवों  के विदर्भ के वंशजों में परिगणित है;  परन्तु यहाँ ग्रन्थकार ने अज्ञानता वश शिशुपाल को अन्य वंश से सम्बद्ध कर के ही तो यदुवंशीयों की अवहेलना करने वाले के रूप में वर्णित किया है 
ये बाते असंगत ही हैं 

पद्म पुराण में गायत्री देवी को एक स्थान पर गोप कन्या लिखा है "गोप कन्यां च तां दृष्टवा" एवं एक स्थान पर आभीर कन्या ""आभीरः कन्या रूपाढ्या ,शुभास्यां चारू लोचना"" लिखा है...

श्री कृष्ण,वसुदेव व अन्य यादवों को भी गर्ग संहिता में अनेकों स्थानों पर गोप कहा गया है:-

 तं द्वारकेशं पश्यंति मनुजा ये कलौ युगे ।
 सर्वे कृतार्थतां यांति तत्र गत्वा नृपेश्वरः॥४०॥

 यः शृणोति चरित्रं वै गोलोकारोहणं हरेः ।
 मुक्तिं यदूनां गोपानां सर्वपापैः प्रमुच्यते॥४१॥

(गर्गसंहिता/खण्डः १० (अश्वमेधखण्डः)/अध्यायः ६०)

हे राजन् (नृपेश्वर)जो (ये) मनुष्य (मनुजा) कलियुग में (कलौयुगे ) वहाँ जाकर ( गत्वा)
उन द्वारकेश को (तं द्वारकेशं) कृष्ण को देखते हैं (पश्यन्ति) वे सभी कृतार्थों को प्राप्त होते हैं (सर्वे कृतार्थतां यान्ति)।
 जो (य:)  हरि के (हरे:) यादव गोपों के (यदुनां गोपानां )गोलोक गमन (गोलोकारोहणं )   चरित्र को (चरित्रं )  निश्चय ही (वै )
सुनता है (श्रृणोति ) 
वह मुक्ति को पाकर (मुक्तिं गत्वा) सभी पापों से (सर्व पापै: ) मुक्त होता है ( प्रमुच्यते )।
और भागवत पुराण के दशम स्कन्ध के अध्याय के बासठ तिरेसठ वें श्लोकों में नन्द और वसुदेव को सजातीय वृष्णि वंशी कहा है ।

नन्दाद्या ये व्रजे गोपा याश्च आमीषां च योषितः ।
 वृष्णयो वसुदेवाद्या देवक्याद्या यदुस्त्रियः॥६२॥

सर्वे वै देवताप्राया उभयोरपि भारत ।
 ज्ञातयो बन्धुसुहृदो ये च कंसं अनुव्रताः॥६३॥
~श्रीमद्भागवतपुराणम्/स्कन्धः १०/पूर्वार्धः/अध्यायः १

परीक्षित् ! इधर भगवान् नारद कंस के पास आये और उससे बोले कि 'कंस ! व्रजमें रहनेवाले नन्द आदि गोप, उनकी स्त्रियां, वसुदेव आदि वृष्णिवंशी यादव, देवकी आदि यदुवंश की स्त्रियाँ और नन्द, वसुदेव दोनों सजातीय बन्धु- बान्धव और सगे-सम्बन्धी-सब- के-सब देवता है जो इस समय तुम्हारी सेवा कर रहे हैं, वे भी देवता ही है। 

उन्होंने यह भी बतलाया कि "दुष्टों  के  कारण पृथ्वी का भार बढ़ गया है। इसीलिए देवताओं की और से अब उनके वध की तैयारी की जा रही है।
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अद्यप्रभृति सैन्यैर्मे पुरीरोध: प्रवर्त्यताम्।
यावद् एतौ रणे (गोपौ) वसुदेवसुतावुभौ।।३६।।

संकर्षणं च कृष्णं च घातयामि शितै: शरै:।
आकाशमपि बाणौघैर्नि: सम्पातं यथा भवेत्।।३७।।

मयानुशिष्टाऽस्तिष्ठान्तु पुरीभूमिषु भूमिपा:।
तेषु तेष्ववकाशेषु शीघ्रमारुह्यतां पुरी।।३८।।

मद्र: कलिङ्गाधिपतिश्चेाकितान: सबा‍ह्लिक:।
काश्मीरराजो गोनर्द: करूषाधिपतिस्तथा।।३९।।

द्रुम: किम्पुनरुषश्चैव पर्वतीयो ह्यनामाय:।
नगर्या: पश्चिमं द्वारं शीघ्रमारोधयन्त्विति।।४०।।
~हरिवंशपुराणम्/विष्णुपर्व/अध्याय: ३५

आज से मेरे सैनिकों द्वारा मथुरापुरी पर घेरा डाल दिया जाय और उसे तब तक जारी रखा जाय, जब तक कि मैं युद्ध में इन दोनों (गोपों )वसुदेवपुत्र संकर्षण और कृष्ण को अपने तीखे बाणों द्वारा मार न डालूं। 

उस समय तक आकाश को भी बाण समूहों से इस तरह रूंध दिया जाय, जिससे पक्षी भी उड़कर बाहर न जा सके। 
मेरा अनुशासन मानकर समस्त भूपाल मथुरापुरी के निकटवर्ती भू-भागों में खड़े रहें और जब जहाँ अवकाश मिल जाय, तब तहां शीघ्र ही पुरी पर चढ़ाई कर दें।
 
मद्रराज (शल्य), कलिंगराज श्रुतायु, चेकितान, बाह्कि, काश्‍मीरराज गोनर्द, करूषराज दन्तवक्त्र तथा पर्वतीय प्रदेश के रोग रहित किन्नरराज द्रुम- ये शीघ्र ही मथुरापुरी के पश्चिम द्वार को रोक लें।
स्कन्द पुराण में एक स्थान पर कहा 
गोपरूप(श्री कृष्ण)धारी भगवान विष्णु को नमस्कार है:--
नमस्ते गोपरूपाय विष्णवे परमात्मने ॥
~स्कन्दपुराणम्/खण्डः ७ (प्रभासखण्डः)/द्वारकामाहात्म्यम्/अध्यायः १३
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गोपायनं यः कुरुते जगतः सार्वलौकिकम् ।
स कथं गां गतो देवो विष्णुर्गोपत्वमागतः ।। १२ ।।

~हरिवंशपुराणम्/पर्व १ (हरिवंशपर्व)/अध्यायः ४०
भावार्थ:-जो प्रभु विष्णु पृथ्वी के समस्त जीवों की रक्षा करने में समर्थ है l
वही गोप (आभीर) के घर (अयन)में गोप बनकर आता है ।

वसुदेव बाबा को भी हरिवंश पुराण में गोप कहा गया है:--
"इति अम्बुपतिना प्रोक्तो वरुणेन अहमच्युत !
गावां कारणत्वज्ञ सतेनांशेन जगतीं गत्वा गोपत्वं एष्यति !!
अर्थात् हे विष्णु वरुण के द्वारा कश्यप को व्रज में गोप (आभीर) का जन्म धारण करने का शाप दिया गया ..
क्योंकि उन्होंने वरुण की गायों का अपहरण किया था..
अब विचारणीय है कि अहीर या गोप शूद्र क्यों है 

आभीर शूद्र है तो नंद बाबा व यशोदा मैया,नंदजा(दुर्गा मैया),गायत्री देवी भी शूद्र हुए क्योंकि ऊपर हमने देखा कि इन्हें आभीर लिखा है ! ☺️

और निम्न श्लोक में राधा रानी सहित अन्य गोपियों को भी आभीर ही लिखा है...


और चैतन्श्रीय परम्परा के सन्त  श्रीलरूप गोस्वामी  द्वारा रचित श्रीश्रीराधाकृष्णगणोद्देश-दीपिका नामक ग्रन्थ में श्लोकः १३४ में राधा जी को आभीर कन्या कहा ।
/लघु भाग/श्रीकृष्णस्य प्रेयस्य:/श्री राधा/श्लोकः १३४
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आभीरसुभ्रुवां श्रेष्ठा राधा वृन्दावनेश्वरी |
अस्या : सख्यश्च ललिता विशाखाद्या: सुविश्रुता:।।


भावार्थ:- सुंदर भ्रुकटियों वाली ब्रज की आभीर कन्याओं में वृंदावनेश्वरी श्री राधा और इनकी प्रधान सखियां ललिता और विशाखा सर्वश्रेष्ठ व विख्यात हैं।

अमरकोश में जो गुप्त काल की रचना है ;उसमें अहीरों के अन्य नाम-पर्याय वाची रूप में गोप शब्द भी वर्णित हैं।

आभीर पुल्लिंग विशेषण संज्ञा गोपालः समानार्थक: 
१-गोपाल,२-गोसङ्ख्य, ३-गोधुक्, ४-आभीर,५-वल्लव,६-गोविन्द, ७-गोप ८ - गौश्चर: 
(2।9।57।2।5)
अमरकोशः)

रसखान ने भी गोपियों को आभीर ही कहा है-
""ताहि अहीर की छोहरियाँ...""

करपात्री स्वामी भी भक्ति सुधा और गोपी गीत में गोपियों को आभीरा ही लिखते हैं

500 साल पहले कृष्णभक्त चारण इशरदास रोहडिया जी ने पिंगल डिंगल शैली में  श्री कृष्ण को दोहे में अहीर लिख दिया:--

दोहा इस प्रकार है:-
"नारायण नारायणा, तारण तरण अहीर, हुँ चारण हरिगुण चवां, वो तो सागर भरियो क्षीर।"

अर्थ:-अहीर जाति में अवतार लेने वाले हे नारायण(श्री कृष्ण)! आप जगत के तारण तरण(सर्जक) हो, मैं चारण (आप श्री हरि के) गुणों का वर्णन करता हूँ, जो कि सागर(समुंदर) और दूध से भरा हुआ है।

भगवान श्री कृष्ण की श्रद्धा में सदैव लीन रहने वाले कवि इशरदास रोहडिया (चारण), जिनका जन्म विक्रम संवत 1515 में राजस्थान के भादरेस गांव में हुआ था। जिन्होंने मुख्यतः 2 ग्रंथ लिखे हैं "हरिरस" और "देवयान"।

 यह आजसे 500 साल पहले ईशरदासजी द्वारा लिखे गए एक दुहे में स्पष्ट किया गया है कि कृष्ण भगवान का जन्म अहीर(यादव) कुल में हुआ था।

सूरदास जी ने भी श्री कृष्ण को अहीर कहते हुए सूरसागर में "सखी री, काके मीत अहीर" नाम से एक राग गाया!!
तिरुपति बालाजी मंदिर का पुनर्निर्माण विजयनगर नगर के शासक वीर नरसिंह देव राय यादव और राजा कृष्णदेव राय ने किया था।

विजयनगर के राजाओं ने बालाजी मंदिर के शिखर को स्वर्ण कलश से सजाया था। 
विजयनगर के यादव राजाओं ने मंदिर में नियमित पूजा, भोग, मंदिर के चारों ओर प्रकाश तथा तीर्थ यात्रियों और श्रद्धालुओं के लिए मुफ्त प्रसाद की व्यवस्था कराई थी।तिरुपति बालाजी (भगवान वेंकटेश) के प्रति यादव राजाओं की निःस्वार्थ सेवा के कारण मंदिर में प्रथम पूजा का अधिकार यादव जाति को दिया गया है।

तब ऐसे में आभीरों को शूद्र कहना युक्तिसंगत नहीं

गोप शूद्र नहीं अपितु स्वयं में क्षत्रिय ही हैं ।
जैसा की संस्कृति साहित्य का इतिहास नामक पुस्तकमें पृष्ठ संख्या  368 पर वर्णित है👇

अस्त्र हस्ताश्च धन्वान: संग्रामे सर्वसम्मुखे ।
प्रारम्भे विजिता येन स: गोप क्षत्रिय उच्यते ।।

और गर्ग सहिता
 में लिखा है !

 यादव: श्रृणोति चरितं वै गोलोकारोहणं हरे :
मुक्ति यदूनां गोपानं सर्व पापै: प्रमुच्यते ।102।

अर्थात् जिसके हाथों में अस्त्र एवम् धनुष वाण हैं ---जो युद्ध को प्रारम्भिक काल में ही विजित कर लेते हैं वह गोप क्षत्रिय ही कहे जाते हैं ।

जो मनुष्य गोप अर्थात् आभीर (यादवों )के चरित्रों का श्रवण करता है ।
वह समग्र पाप-तापों से मुक्त हो जाता है ।।
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 विरोधीयों का दूसरा दुराग्रह भी बहुत दुर्बल है
कि गाय पालने से ही यादव गोप के रूप में वैश्य हो गये
परन्तु 
"गावो विश्वस्य मातर: " महाभारत की यह सूक्ति वेदों का भावानुवाद है जिसका अर्थ है कि गाय विश्व की माता है !
और माता का पालन करना किस प्रकार तुच्छ या वैश्य वृत्ति का कारण हो सकता है ...

राजा लोग गो की रक्षा और पालन का पुनीत उत्तर दायित्व सदीयों से निर्वहन करते रहे हैं 
 राजा दिलीप नन्दनी गाय की सेवा करते हैं परन्तु वे क्षत्रिय ही हैं ।

परन्तु ये तर्क कोई दे कि दुग्ध विक्रय करने से यादव या गोप वैश्य हैं तो सभी किसान दुग्ध विक्रय के द्वारा अपनी आर्थिक आवश्यकताओं का निर्वहन करते हैं ...
अत: गोपाल या दुग्ध विक्रय प्रत्येक किसान करता है वे सभी वैश्य ही हुए जो अपने को क्षत्रिय या ठाकुर लिखते हैं वे भी दूध वेचते हैं वे सभी वैश्य है क्या ?
गुर्जर व जाट का भी यदुवंश से सम्बन्ध है...

ते कृष्णस्य परीवारा ये जना व्रजवासिनः। 
पशुपालास्तथा विप्रा बहिष्ठाश्चेति ते त्रिधा॥

पशुपालास्त्रिधा वैश्या आभीरा गुर्जरास्तथा।
गोप-बल्लव-पर्याया यदुवंश-समुद्भवाः॥

व्रजवासीजन ही श्रीकृष्णका परिवार है। उनका यह परिवार पशुपाल, विप्र और बहिष्ठ (शिल्पकार) रूपसे तीन प्रकारका है।

पशुपाल भी पुनः वैश्य, आभीर (अहीर) और गुर्जर (गूजर) भेद तीन प्रकारके हैं। 

इनकी उत्पत्ति यदुवंशसे हुई है तथा ये सभी गोप और बल्लव जैसे समानार्थक नामोंसे जाने जाते हैं

श्री कृष्णचंद्र दीपिका और यदुवंश दर्पण के यदुवंश वृक्ष नामक अध्याय में लिखा हुआ मिलता है:-

पुरुजित वंशी जाट हैं,ज्यामघ वंश अहीर।
रुक्म वंश गूजर कहे,तीनों कुल यदुवीर।

महाराजा सूरजमल की प्राचीन प्रतिमाओं पर यादव वंशी जाट वीर लिखा मिल जायेगा 
और अनेकों पुस्तकों में भी इस सन्दर्भ में बहुत से प्रमाण मिल जायेंगे जैसे विश्वास पटियाला की पानीपत पुस्तक...

महाभारत शांतिपर्व अध्याय 81 श्लोक 29 में कुकुर,भोज, अंधक व वृष्णिवंश को यदुवंश की शाखा बतलाया है...

वर्तमान में अहीरों के अतिरिक्त अंधक जाटों में एक गौत्र है और भोज गुर्जरों में इसके अतिरिक्त गुर्जरों में एक अहीर गोत्र है और अहीरों में एक गौत्र गूजर है!!
कुकुर गौत्र से मिलता जुलता जाटों में एक गौत्र कक्कड़ है...
यह पारस्परिक सामञ्जस्य इनकी प्राचीनतम मोनो -रैसीयल (एक नस्ल)  होने का प्रमाण है ।

भक्तिकालीन कवियों ने गोप गोपियों को कहीं कहीं गूजर गुजरिया कहा कहीं कहीं अहीर तब अहीर जाट गुर्जर किसी समय पर एक जाति रही होगी जो की बाद में बट गयी !!

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