बुधवार, 21 अक्तूबर 2020

दुर्गा के भारतीय और सुमेरियन मिथक यादवों की देवी दुर्गा ...

यह समस्त शोध यादव इतिहासकारों में मील के पत्थर
और आधुनिक युग में यदुवंश के गहन इतिहास के उद्भासक गुरु देव श्री सुमन्त कुमार यादव के निर्देशन में
प्राचीन संस्कृत ग्रन्थों तथा सुमेरियन पुराकथाओं के तथ्य से संग्रहीत है

प्रस्तुति करण :-- यादव योगेश कुमार "रोहि"
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भले ही धर्म ग्रन्थ के रूप मान्य पुराण पुराने न हो परन्तु इनका जो मिथकीय आधार है या जो थीम है

वह प्राचीनत्तम ही है जब संस्कृतियों में धर्म की प्रथानता थी ...

और कालान्तरण में अनेक कल्पनाओं और अलंकारों  के माध्यम से अनेक कथा लेखकों के द्वारा मूल कथाओं को (मोडीफाई )किया जाता रहा है

वह भी इतना कर दिया गया कि अब मूल और चूल- (शिखा) दौंनों बिन्दुओं में जबरदस्त विरोधाभासी स्थिति हो गयी है

जैसे सुकरात की कुल्हाड़ी का हाल हुआ जब एक वार अपने अकेडमिया उद्यान में जब सुकरात वृक्षों की काट छाँट कर रहे थे -

तब किसी  व्यक्ति ने उनसे उनकी कुल्हाड़ी के बारे में पूछा कि "गुरु- ये कुल्हाड़ी आपके पास कितनी पुरानी है

सुकरात ने जबाव दिया कि ये कुल्हाड़ी मेरे  पास  मेरे पूर्वजों की है 
कई वार इसका बैंट और कई वार फाल भी बदल गयी है

अब आप ही विचार करों की कुल्हाड़ी का सब कुछ बदल जाने पर भी कुल्हाड़ी का नाम  पुराना है

ऐसे ही ये मिथक हैं  जिनके पात्र भी बदले गये ,नाम भी बदले और कहीं कहीं काम भी बदल गये हैं
ठीक इसी सुकरात की कुल्हाड़ी के समान  हमारे पुराणों के पात्र भी  हैं
जिनमें बहुत से काल्पनिक पात्र भी हैं

आपको ये भी बता दें यह शब्द ग्रीक शब्द  (अकादेमस) का लैटिन रूप है अकेडमिया,

जिसका स्पष्ट अर्थ है  "शान्त  स्थान  "
  यह शब्द यह ट्रोजन युद्ध की कहानियों के एक अकादेमस महान नायक का नाम से सम्बद्ध था
जिसकी संपत्ति (एथेंस से छह स्टेडियम) बाड़े थी जहाँ प्लेटो ने अपने शिष्यो को पढ़ाया था।
सुकरात ने भी यहीं विचार मन्थन किया था ..

सुकरात के शिष्य अरस्तू और अरस्तू के शिष्य प्लूटों ने परम्परागत रूप से अपने शिष्यों को पढ़ाया तो अकेडमिया शब्द ही शिक्षा संस्थान के अर्थ रूढ़ हो गया  उन्होंने अकादेमी का स्कूल अर्थ कर दिया
"अकोडेमोस का उपवन या बाग को ही अकेडमिया कहा गया था ",
जिसे अंग्रेजी में अकादमी के रूप में जाना जाता है।

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यह उपर्यक्त बात केवल मूल विषय से पृथक 
ज्ञान विज्ञापन ही था
अब हम बात करते सुमेर के सबसे प्रसिद्ध देव पिक्स-नु की बात जो भारतीरत पुराणों विष्णु रूप में अवतरित हुआ है और दुर्गा वैष्णवी शक्ति हैं न कि शिव की शक्ति है

सुमेरियन पुरा कथाओ में विष्णु को (पिस्क-नु) के रूप में वर्णित किया गया है .👇

Sumerian Pisk-nu,(पिस्क- नु ) and to mean " The reclining Great Fish (-god)
of the Waters " ;
and it will doubtless be found in that full form in Sumerian when searched for.

सुमेरियन पिस्क-नू, (पिस्क-न्स) और इसका अर्थ है "  पानी पर लेटी हुई महान मछली"
The reclining Great Fish (-god) of the Waters "

भारतीय पुराणों में विष्णु भी  क्षीर सागर में नागों की शैय्या पर लेटे हुए हैं ये समुद्रीय देवता हैं
"और जब भारतीय और सुमेरियन मिथकीय समानताओं को खोजा जाएगा तो यह नि: संदेह सुमेरियन मिथको में पूर्ण रूप में पाया जाएगा।
________________________________________' संख्या 82 वीं इंडो-सुमेरियन (सील )में प्राचीन सुमेरियन और हिट्टो फॉनिशियन पवित्र मुद्राओं पर पिक्स-नु देव नर मत्स्य देव के रूप  में है ( और ये तथ्य प्राचीन ब्रिटान स्मारकों पर भी हस्ताक्षर किए गए हैं ।

जिनमें से मौहर संख्या (1) में से परिणाम घोषित किए गए हैं ।
अब इन इंडो-सुमेरियन सीलों के प्रमाण के आधार पर पुष्टि की गई है कि इस सुमेरियन "मछली देव" पर सूर्य-देवता का आरोपण है ।

और अन्य ताबीज  या मुद्राओं के लिए शीर्ष पर,
"स्थापित सूर्य (सु-ख़ाह) की मछली" के रूप में भारतीय संस्कृति में  की सुमेरियन मूल की स्थापना के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण साम्य है ।

, और सुमेरियन भाषा के देव चरित्र के रूप में, यह सूर्य-देवता "विष्णु" के लिए वैदिक नाम की उत्पत्ति और अब तक अज्ञात मछली अर्थ के रूप में प्रकट होता है और मछली मानव के रूप में उनकी प्रतिनिधि की समान साथ ही अंग्रेजी शब्द "फिश" के सुमेरियन मूल,
गॉथिक "फिसक" और लैटिन "पिसिस।"

और  भारतीय पौराणिक कथाओं में सूर्य-देव को विष्णु का पहला "अवतार" मत्स्य नर के रूप में  प्रस्तावित करता है !

, और अत्यधिक सीमा तक उसी तरह के रूप में सुमेरियन मछली-नर के रूप में सूर्य के देवता के रूप में चित्रण सुमेरियन मुद्राओं  में हुआ और अब मेसोपोटामिया के सुमेरियन मुद्राओं पर उत्कीर्ण है।

और सूर्य के लिए "मछली" के इस सुमेरियन शीर्षक को द्विभाषी सुमेरो-अक्कादियन शब्दावलियों में वास्तविक शब्द और अर्थ इस प्रकार के अन्य इंडो-सुमेरियन ताबीज पर  भी व्याख्यायित है ।

इस प्रकार हम विष्णु रूप में "मत्स्य मानव "पंखधारी मछलीमानव " आदि अर्थों के रूप पढ़ते हैं।

इस प्रकार पंखों या बढ़ते सूर्य को "पृथ्वी के नीचे के पानी में" लौटने या पुनर्जीवित करने वाले सूरज के मछली के संलयन के रूप में सह-संबंधित कथाओं का सृजन सुमेरियन संस्कृति में हो गया था ।।

और वहीं से भारतीय पुराणों विष्णु की परिकल्पना हुई

"द विंगेड फिश" पंखो वाली मछली के इस सौर शीर्षक को ,(biis विस को फिश" का समानार्थ दिया गया है।

सूर्य और विष्णु भारतीय मिथकों में समानार्थक अथवा पर्याय वाची भी रहे हैं।

"विष्-धातु " में प्रत्यय नु  स्पष्ट रूप से सूर्य-देवता के जलीय रूप और उनके पिता-देवता  इन-दुरु (इन्द्र) के "देवता के रूप में सुमेरियन (आदम) का ही शीर्षक है।

यह इस प्रकार विष्णु के सामान्य भारतीय प्रतिनिधित्व को जल के बीच दीप के नाग पर पुन: और यह भी लगता है कि "दीप के देवता" के लिए प्राचीन मिस्र के नाम आतम के सुमेरियन मूल का खुलासा किया गया है।

इस प्रकार "विष्णु" नाम सुमेरियन (पिस्क-नु) के बराबर माना जाता है।
और " जल की बड़ी मछली(-गोड) को जो जल पर लेटी है द्योतित करता है

और ऐसा प्रतीत होता है कि "अवतार" के लिए विष्णु के इस बड़ी "मछली" का उपदेश भारतीय ब्राह्मणों ने अपने बाद के "अवतारों" में भी सूर्य-देवता को स्वर्ग में सूर्य-देवता के रूप में लागू किया है। ।

वास्तव में "महान मछली" के लिए सुमेरियन मूल शब्द पिश या पिस अभी भी संस्कृत में यह शब्द  विसर- "मछली" के रूप में जीवित है।

जो वैदिक विसर से साम्य "यह नाम इस प्रकार कई उदाहरणों में से एक है जिसे , पीश, पीश या पीस (या विश-नु) के जल के सुमेरियन सूर्य-देवता का यह
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MISHARU - The Sumerian god of law and justice, brother of Kittu.

भारतीय पुराणों में मधु और कैटव मत्स्यः से लिए वैदिक सन्दर्भों में एक शब्द पिसर भारोपीयमूल की धातु से ही यूोपीय फिश शब्द का विकास हुआ
प्रोटो-जर्मनिक * फिस्कज़ तो(पुरानी सैक्सोन में और  पुरानी फ्रिसिज़, पुरानी उच्च जर्मन फ़िश, तथा पुरानी नोर्स फिस्कर, मध्य डच विस्सी, डच, जर्मनी, फ़िश्च, गॉथिक फिसक शब्दों  का स्रोत)  भी सुमेरियन पिक्स ही
सभी का सजातीय सुमेरियन पिक्श-नु ही है.

"मछली" (pisk-) "एक मछली। *pisk- Proto-Indo-European root meaning
"a fish."
यूरोप की लगभग बीस बाइस भाषाओं फिश मूलक शब्द

It forms all or part of: fish; fishnet; grampus; piscatory; Pisces; piscine;
porpoise. It is the hypothetical source of/evidence for its existence is provided by:
__________________
1-Latin piscis
(source of Italian pesce,
2-French poisson, Spanish pez,
3-Welsh pysgodyn,
4-Breton pesk);
5-Old Irish iasc;
6-Old English fisc,
7-Old Norse fiskr,
8-Gothic fisks.
9-Latin piscis,
10-Irish íasc/iasc,
11-Gothic fisks,
12-Old Norse fiskr,
13-English fisc/fish,
14-German fisc/Fisch,
15-Russian пескарь (peskarʹ),
16-Polish piskorz,
17-Welsh pysgodyn,
18-Sankrit visar
19-Albanian peshk __________________________________________ This important reference is researched by Yadav Yogesh Kumar 'Rohi'.

Thus, no gentleman should not add to its break!

(pisk)-पिष्क  शब्द आद्य-यूरोपीय मूल रूप का है जिसका अर्थ है "एक मछली।"
पिष्क शब्द व्यापक अर्थों में रूढ़ है ।
लैटिन पिसीस (इतालवी पेस, फ्रेंच पॉिसन का स्रोत, स्पैनिश पेज़, वेल्श पेस्डोगोन, ब्रेटन पेस्क); पुरानी आयरिश आईसकैस; पुरानी अंग्रेज़ी फिस, पुरानी नोर्स फाइस्कर, गॉथिक फिस्क।

विष्णु वैष्णव परमेश्वर वैदिक समय से ही विष्णु सम्पूर्ण विश्व की सर्वोच्च शक्ति तथा नियन्ता के रूप में मान्य रहे हैं।
विष्ण कीक शक्ति वैष्णवी ही दुर्गा है

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भारतीय पुराणों में दुर्गा को यदु वंश में उत्पन्न  नन्द आभीर  की पुत्री कहा गया है |

और सुमेरियन, बैबीलोनियन मिथकों में नना या ईश्तर  जो दुर्गा का पूर्व रूप है  को असीरीयन देवी कहा गया है
असीरी ही भारतीय पुराणों में असुर रूप में दृष्टिगोचर होते हैं |

देवी भागवत पुराण और मार्कण्डेय पुराण में दुर्गा ही  यशोदा माता के उदर से जन्म धारण करती हैं

हम आपको  मार्कण्डेय पुराण और देवी भागवत पुराण  से कुछ सन्दर्भ देते हैं जो दुर्गा को यादव या अहीर कन्या के रूप में वर्णन करते हैं |

देखें निम्न श्लोक ...
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नन्दा नन्दप्रिया निद्रा नृनुता |
नन्दनात्मिका नर्मदा नलिनी नीला
नील कण्ठसमाश्रया ||८१|

उपर्युक्त श्लोक में नन्द जी की प्रिय पुत्री होने से नन्द प्रिया दुर्गा का ही विशेषण है ...
( देखें श्रीमद् देवी भागवत पुराण द्वादश स्कन्ध षष्ठम् अध्याय )

नन्दजा नवरत्नाढ्या नैमिष्यारण्यवासिनी |
नवनीत प्रिया नारी नील जीमूत निस्वना |८६|

उपर्युक्त श्लोक में भी नन्द की पुत्री होने से दुर्गा को नन्दजा (नन्देन यशोदायाम् जायते इति नन्दजा) कहा गया है ..

यक्षिणी योगयुक्ता च यक्षराजप्रसूतिनी |
यात्रा यानविधानज्ञा
यदुवंशसमुद्भवा ||१३१||

उपर्युक्त श्लोक में दुर्गा देवी यदुवंश में नन्द आभीर के  घर  यदुवंश में जन्म लेने से (यदुवंशसमुद्भवा) कहा है जो यदुवंश में अवतार लेती हैं 

(देखें श्रीमद्देवी भागवत पुराण  द्वादश स्कन्ध षष्ठम्  अध्याय)
नीचे मार्कण्डेय पुराण से श्लोक उद्धृत हैं
जिनमेनमंनम दुर्गा को यादवी कन्या कहा है

वैवस्वते८न्तरे प्राप्ते अष्टाविंशतिमे युगे
शम्भो निशुम्भचैवान्युवत् स्येते महासुरौ |३७|

______________________________________
अठ्ठाईसवें वैवस्वत मन्वन्तर के प्रकट होने पर जब दूसरे शुम्भ  - निशुम्भ दैत्य प्रकट होगें तब |३७|

नन्द गोप गृहे  यदुकुले जाता यशोदा गर्भ सम्भवा !
ततस्तौ सास्यामि विन्ध्याचल वासिनी |३८|
_____________________________________
तब मैं नन्द आभीर के घर यादवों की कुल देवी यादवी के रूप में यशोदा के गर्भ से उत्पन्न होकर|३८|

शुम्भ निशम्भ दौनों का नाश करुँगी और
विन्ध्याचल पर्वत पर निवास करुँगी ।३८|

(मार्कण्डेय पुराण  इक्यानवे वाँ अध्याय )

आप को बता दें गर्ग संहिता पद्म पुराण आदि ग्रन्थों में
नन्द को आभीर कह कर सम्बोधित किया है

🌻आभीरस्यापि नन्दस्य पूर्वपुत्र: प्रकीर्तित:।
वसुदेवो मन्यते तं मत्पुत्रोऽयं गतत्रप: ।१४।
____________________________
कृष्ण वास्तव में नन्द अहीर का पुत्र है ।
उसे वसुदेव ने वरबस अपना पुत्र माने लिया है उसे इस बात पर तनिक भी लाज ( त्रप) नहीं आती है ।१४।।
(गर्ग संहिता उद्धव शिशुपालसंवाद )
उपर्यक्त श्लोक में नन्द को आभीर(अहीर) कहा गया है
🌻
तं द्वारकेशं पश्यन्ति मनुजा ये कलौ युगे ।
सर्वे कृतार्थतां यान्ति तत्र गत्वा नृपेश्वर:| 40||

य: श्रृणोति चरित्रं वै गोलोक आरोहणं हरे: |
मुक्तिं यदुनां गोपानां सर्व पापै: प्रमुच्यते |

अन्वयार्थ ● हे राजन् (नृपेश्वर)जो (ये) मनुष्य (मनुजा) कलियुग में (कलौयुगे ) वहाँ जाकर ( गत्वा)
उन द्वारकेश को (तं द्वारकेशं) कृष्ण को देखते हैं (पश्यन्ति) वे सभी कृतार्थों को प्राप्त होते हैं (सर्वे कृतार्थतां यान्ति)।40।।

य: श्रृणोति चरित्रं वै गोलोक आरोहणं हरे: |
मुक्तिं यदुनां गोपानां सर्व पापै: प्रमुच्यते | 41||
अन्वयार्थ ● जो (य:)  हरि के (हरे: )

  🍒● यादव गोपों के (यदुनां गोपानां )गोलोक गमन (गोलोकारोहणं )   चरित्र को (चरित्रं )  निश्चय ही (वै )
सुनता है (श्रृणोति ) 
वह मुक्ति को पाकर (मुक्तिं गत्वा) सभी पापों से (सर्व पापै: ) मुक्त होता है ( प्रमुच्यते )
इति श्रीगर्गसंहितायाम् अश्वमेधखण्डे राधाकृष्णयोर्गोलोकरोहणं नाम षष्टितमो८ध्याय |

(  इस प्रकार गर्गसंहिता में अश्वमेधखण्ड का
राधाकृष्णगोलोक आरोहणं

हरिवंश पुराण विष्णु पर्व (संस्कृत) अध्याय 35 श्लोक संख्या>  36-40

अद्यप्रभृति सैन्यैर्मे पुरीरोध: प्रवर्त्यताम्।
यावदेतौ रणे गोपौ वसुदेवसुतावुभौ।।36।।

संकर्षणं च कृष्णंव च घातयामि शितै: शरै:।
आकाशमपि बाणौघैर्नि: सम्पातं यथा भवेत्।।37।।

मयानुशिष्टाऽस्तिष्ठान्तु पुरीभूमिषु भूमिपा:।
तेषु तेष्ववकाशेषु शीघ्रमारुह्यतां पुरी।।38।।

मद्र: कलिंगाधिपतिश्चेाकितान: सबा‍ह्लिक:।
काश्मीरराजो गोनर्द: करूषाधिपतिस्तथा।।39।।

द्रुम: किम्पुनरुषश्चैव पर्वतीयो ह्यनामाय:।
नगर्या: पश्चिमं द्वारं शीघ्रमारोधयन्त्विति।।40।।

हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: पञ्चत्रिंश अध्याय: श्लोक 36 -40 का हिन्दी अनुवाद

_______
आज से मेरे सैनिकों द्वारा मथुरापुरी पर घेरा डाल दिया जाय और उसे तब तक चालू रखा जाय, जब तक कि मैं युद्ध में इन दोनों ग्वालों वसुदेवपुत्र संकर्षण और कृष्ण को अपने तीखे बाणों द्वारा मार न डालूं।

उस समय तक आकाश को भी बाण समूहों से इस तरह रूंध दिया जाय, जिससे पक्षी भी उड़कर बाहर न जा सके।

मेरा अनुशासन मानकर समस्त भूपाल मथुरापुरी के निकटवर्ती भू-भागों में खड़े रहें और जब जहाँ अवकाश मिल जाय, तब तहां शीघ्र ही पुरी पर चढ़ाई कर दें।

मद्रराज (शल्य), कलिंगराज श्रुतायु, चेकितान, बाह्कि, काश्‍मीरराज गोनर्द, करूषराज दन्तवक्त्र तथा पर्वतीय प्रदेश के रोग रहित किन्नरराज द्रुम- ये शीघ्र ही मथुरापुरी के पश्चिम द्वार को रोक लें।

पूरुवंशी वेणुदारि, विदर्भ देशीय सोमक, भोजों के अधिपित रुक्मी, मालवा के राजा सूर्याक्ष, अवन्ती के राजकुमार विन्द और अनुविन्द, पराक्रमी दन्तवक्त्र, छागलि, पुरमित्र, राजा विराट, कुरुवंशी मालव, शतधन्वा, विदूरथ, भूरिश्रवा, त्रिगर्त, बाण और पञ्चनद- ये दुर्ग का आक्रमण सह शकने वाले नरेश मथुरा नगर के उत्तर द्वार पर चढ़ाई करके शत्रुओं को कुचल डालें।
_______€
यादवों को गाो पालक होनो से ही गोप कहा गया

🍒● यादव गोपों के (यदुनां गोपानां )गोलोक गमन (गोलोकारोहणं )   चरित्र को (चरित्रं )  निश्चय ही (वै )
सुनता है (श्रृणोति ) 
वह मुक्ति को पाकर (मुक्तिं गत्वा) सभी पापों से (सर्व पापै: ) मुक्त होता है ( प्रमुच्यते )
इति श्रीगर्गसंहितायाम् अश्वमेधखण्डे राधाकृष्णयोर्गोलोकरोहणं नाम षष्टितमो८ध्याय |
(  इस प्रकार गर्गसंहिता में अश्वमेधखण्ड का
राधाकृष्णगोलोक आरोहणं नामक साठवाँ अध्याय  |
_____
आभीरसुतां  श्रेष्ठा राधा वृन्दावनेश्वरी |
अस्या : शख्यश्च ललिता विशाखाद्या: सुविश्रुता: |83 |।

अहीरों की कन्यायों में राधा  श्रेष्ठा है ;  जो वृन्दावन की स्वामिनी है और ललिता , विशाखा आदि जिसकी सखीयाँ  हैं |83||
उद्धरण ग्रन्थ   "श्रीश्री राधाकृष्ण गणोद्देश्य दीपिका " रचियता श्रीश्रीलरूप गोस्वामी

नामक साठवाँ अध्याय  |

भ्रातरं वैश्य कन्यां शूरवैमात्रेय भ्रातुर्जात्वात् |
अतएव अग्रेभ्रातर: इति पुनरुक्ति :  गोपानां

वैश्यकन्योद्भवत्वाद् वैश्वत्वं परं च ते यादवा एव " रक्षिता यादवा: सर्वे इन्द्रवृष्टिनिवारणात् इति स्कान्दे इति तोष○
(भागवतपुराण  दशम स्कन्द वसुदेव उपश्रुत्य भ्रातरं नन्दमागतम् "
श्लोकांश की व्याख्या पर  श्रीधरीटीकी का भाष्य पृष्ठ संख्या 910)

हिन्दी अनुवाद :●
शूर की विमाता (सौतेली माँ)वरीयसी के पुत्र पर्जन्य शूर के पिता की सन्तान होने से भाई ही हैं  जो गोपालन के कारण वैश्य वृत्ति वाहक  हुए अथवा वैश्य कन्या से उत्पन्न होने के कारण यद्यपि दौनों तर्क पूर्वदुराग्रह पूर्ण ही हैं !

क्यों कि माता में भी पितृ बीज की ही प्रथानता होती है जैसे खेत में बीज के आधार पर फसल का स्वरूप होता है --

दूसरा दुराग्रह भी बहुत दुर्बल है
कि गाय पालने से ही यादव गोप के रूप में वैश्य हो गये
"गावो विश्वस्य मातर: " महाभारत की यह सूक्ति वेदों का भावानुवाद है जिसका अर्थ है कि गाय विश्व की माता है !

और माता का पालन करना किस प्रकार तुच्छ या वैश्य वृत्ति का कारण हो सकता है ...

राजा लोग गो की रक्षा और पालन का पुनीत उत्तर दायित्व सदीयों से निर्वहन करते रहे हैं राजा दिलीप नन्दनी गाय की सेवा करते हैं परन्तु वे क्षत्रिय ही हैं

परन्तु ये तर्क कोई दे कि दुग्ध विक्रय करने से यादव या गोप वैश्य हैं तो सभी किसान दुग्ध विक्रय के द्वारा अपनी आर्धिक आवश्यकताओं का निर्वहन करते हैं ...

अत: गोपाल या दुग्ध विक्रय प्रत्येक किसान करता है वे सभी वैश्य ही हुए जो अपने को क्षत्रिय या ठाकुर लिखते हैं वे भी दूध वेचते हैं वे सभी वैश्य है
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आभीर सुभ्रवां  श्रेष्ठा राधा वृन्दावनेश्वरी |
अस्या: सख्यश्च ललिताविशाखाद्या सुविश्रुता: ||135||

अनुवाद ●⬇
ये आभीर कन्यायें सुन्दर भ्रूकटियों वाली व्रज की आभीर कन्यायों में वृन्दावनेश्वरी श्रीराधा और इनकी प्रधान सखियाँ ललिता और विशाखा सर्वश्रेष्ठ  व विख्यात  हैं ||135||

यादवों को गो पालक होनो से ही गोप कहा गया |
भागवत पुराण के दशम स्कन्ध के अध्याय प्रथम के श्लोक संख्या बासठ ( 10/1/62) पर वर्णित है|

नन्दाद्या ये व्रजे गोपा याश्चामीषां च योषितः ।
वृष्णयो वसुदेवाद्या देवक्याद्या यदुस्त्रियः ॥ ६२ ॥
●☆• नन्द आदि यदुवंशी की वृष्णि की शाखा के व्रज में रहने वाले गोप और उनकी  देवकी आदि  स्त्रीयाँ |62|

सर्वे वै देवताप्राया उभयोरपि भारत |
ज्ञातयो बन्धुसुहृदो ये च कंसमनुव्ररता:।63||

हे भरत के वंशज जनमेजय  ! सब यदुवंशी नन्द आदि गोप दौनों ही नन्द और वसुदेव सजातीय (सगे-सम्बन्धी)भाई और परस्पर सुहृदय (मित्र) हैं ! जो तुम्हारे सेवा में हैं| 63||

(गीताप्रेस संस्करण  पृष्ठ संख्या 109)..
पशुपालस्त्रिधा वैश्या आभीरा गुर्जरास्तथा ।
गोप वल्लभ पर्याया यदुवंश समुद्भवा : ।।७।।

इसी पुराण में दुर्गा शब्द की व्युत्पत्ति दो रूपों में है

दुर्गति नाशिनी इति दुर्गा
और दुर्गम: दैत्य को मारने से दुर्गा

वास्तव में दुर्गम् नाम का दैत्य सुमेरियन मिथकों में भी है
दुर्गा के अन्य नामों में किशोरी , युवती ,स्त्री तथा नना जैसे नाम भी हैं

सुमेर या बैबीलोन के मिथको में नना और ईश्तर नाम इस देवी के ही  हैं

भारतय पुराणों में कुछ अन्तर के साथ यही देवी अवतरित हुई है
सुमेरियन मिथकों में यह कृषि और उत्पादन की अधिष्ठात्री है
लक्ष्मी का भी यही रूप है क्यों कि सुमेरियन मिथकों में नना या ईश्तर के साथ उलूक पक्षी भी हैं |

ये देवी वैष्णवी ही है यही शाकम्भरी  शाक और अन्य को उत्पन्न करने वाली है कालान्तरण में भारतीयों ने दुर्गा नाम करण इसके द्रवा नाम के आधार पर किया
देखें भारतीय यपुराणों कुछ श्लोक 👇
________________________
शाकैरासृष्टै: प्राणधारकै:|४४|
शाकम्भरीति विख्याति तदा यास्याम्यहं भुवि |
तदैव च बधिष्यामि दुर्गमारूपं महासुर ||४५|

इसी कारण से मैं पृथ्वी पर शाकम्भरी नाम से विख्यात होऊँगी और उसी समय दुर्गम नाम के महान दैत्य का संहार करुँगी |४५|

इससे मेरा नाम दुर्गा प्रसिद्ध होगा ,
वास्तव में ये दुर्गा शब्द की व्युत्पत्ति भारतीय पुरोहितों की
स्वयं देवी का निर्वचन नहीं
__________________
( देखें मार्कण्डेय पुराण बानवें वाँ अध्याय में )

दुर्गा देवीति विख्यातं तन्मे नाम भविष्यति |

पुराणों में यादवी नाम दुर्गा का इसी लिए है कि वे यशोदा की पुत्री और कृष्ण की बहिन भी हैं
जेसै दुर्गाशप्तशती में वर्णन है ...

इस देवी की अंगभूता छ: देवियाँ हैं –१- नन्दा, २-रक्तदन्तिका, ३-शाकम्भरी, ४-दुर्गा, ५-भीमा और ६-भ्रामरी. ये देवियों की साक्षात मूर्तियाँ हैं, इनके स्वरुप का प्रतिपादन होने से इस प्रकरण को मूर्तिरहस्य कहते हैं.

मार्कण्डेय पुराण से संग्रहीत दुर्गाशप्तशती में दुर्गा को नन्दा के रूप में नन्द आभीर की पुत्री होने से नन्दजा (नन्द आभीरेण जायते इति देवी नन्दा विख्यातम् )

                       ऋषिरुवाच

"नन्दा भगवती नाम या भविष्यति नन्दजा ।
स्तुता सा पूजिता भक्त्या वशीकुर्याज्जगत्त्रयम् ।।1।।

अर्थ – ऋषि कहते हैं – राजन् ! नन्दा  नाम की देवी जो नन्द से उत्पन्न होने वाली है, उनकी यदि भक्तिपूर्वक स्तुति और पूजा की जाए तो वे तीनों लोकों को उपासक के अधीन कर देती हैं ||1|
________________________________________

(इति श्रीमार्कण्डेय पुराणे सावर्णिके मन्वन्तरे देवीमाहात्म्ये
मूर्तिरहस्यं सम्पूर्णम् ॥ अध्याय ९६)

जिसने जगत् जना , वह सुमेरियन असीरियन देवी नना ही भारतीय पुराणों में दुर्गा अथवा नैना (नयना )देवी है -
कुछ अहंवादी मानसिकता से ग्रस्त परोक्ष विवादी  जानवर या जानकार कहते हैं ;

  कि दुर्गा बंगाल की  वैश्या थी और उसने महिषासुर को नौंवी रात धोखे से मार दिया ।
कुछ विशेष विचार धारा के लग जो नास्तिक और स्वयं को वैज्ञानिक मानते हैं

तो इन चन्द मूर्खों से या मूर्ख चन्दों से मेरा प्रश्न है कि
नव दुर्गा का पर्व साल में दो वार ही क्यों मनाया जाता है ?

क्योंकि जब दुर्गा ने महिषासुर को मारा था  तो एक ही वार में किसी विशेष ऋतु और विशेष महीने में ही मारा  होगा ।

और नव दुर्गा का उत्सव वर्ष में दो वार आता है
इस लिए महिषसुर के वध से क्या तात्पर्य ?

परन्तु ये परोक्ष विवादी जानवर जो स्वयं को ज्ञान वर
सिद्ध करें मेरे इस प्रश्न का उत्तर देकर
अन्यथा भौंकना बन्द कर दें !

क्योंकि किसी की श्रृद्धा पर आघात करना भी जुल्म है ।

और महिषासुर कार्तिक में शरद ऋतु में मारा था ।
या चैत्र में वसन्त ऋतु में ?
यह तो निश्चित नहीं है

ये दौनों बातें एक साथ नहीं हो सकती ।
क्योंकि कि महिषासुर तो एक ही ऋतु में मारा होगा ।
न किक दो ऋतुओं में
यदि बुद्धि हो तो दुर्गा को वैश्या कहने वाले जानवर मनहूस एकजुट होकर हमारे  इस प्रश्न का भी उत्तर देदें !

क्योंकि नव दुर्गा का पर्व वर्ष में दो वार मानाया जाता है।

कुछ रूढ़िवादी प्रमाण प्रस्तुत करने लगे हैं कि दुर्गा आदिवासी महिषासुर की हत्यारी थी।

वास्तव में ये मत उन रूढ़िवादी भ्रान्त-चित्त महामानवों के हैं ।
जो केवल अपने प्रतिद्वन्द्वी की अच्छाई में ही बुराई का आविष्कार करते हैं ।

भले ही उनमें वे गुण ही क्यों न हो
विदित हो सुमेरियन असीरियन और यहूदीयों के पुराने निय किताब में
दुर्गा  ईश्तर और नना के रूप में प्राकृतिक शक्तियों की अधिष्ठात्री देवता है विशेषत: ऋतु सम्बन्धित गतिविधियों की ।

इस विषय में  वेदों में वर्णित  सुमेरियन देवी "स्त्री" अथवा ईष्टर का वर्णन भी अपेक्षित है ।

यही ईश्तर यूरोपीय संस्कृतियों में एष्ट्रो "Eustro"
के रूप में विद्यमान है।

जो वसन्त ऋतु की अधिष्ठात्री देवी है।
शरद और वसन्त दौनों ही सृष्टि की सबसे उत्तम ऋतु हैं

और इस कारण से वासन्तिक नव-दुर्गा शब्द और शारदीय नव- रात्रि के समानान्तरण ही है ।

यद्यपि कथाओं में कालान्तरण में मिथकीयता का समावेश उन्हें चमत्कारिक बना देता है ।
जैसे सभी संस्कृतियों में होता है

परन्तु हद की सरहद तो तब खत्म हो गयी जब
इस सुमेरियन कैनानायटी आदि संस्कृतियों में द्रवा (Drava) नाम से विख्यात

ईश्वरीय सत्ता को
कुछ  रूढ़िवादी मानवों ने अपने पूर्वदुराग्रहों के द्वारा
अपना अशालीनताओं से पूर्ण
मनोवृत्ति के अनुकूल चित्रित करने की
असफल चेष्टा की ।

यह परिवर्तन काल प्रवाह के  अज्ञान-तमस पूर्ण थपेड़ों से हुआ।
द्रवा ही भारतीय पुराणों में कालान्तरण दुर्गा हो गयी
प्रारंभिक काल में दुर्गा नदी का वाचक था ।

क्यों अन्न उत्पादन के लिए सिंचन नदी द्वारा होता था
और बाद में कृषि और उत्पादन दनकीदनक देवी नना हुई
________________________________

सुमेरियन पुरालेखों में एक देवी जो शेर पर आरूढ है जिसके पार्श्वविक भागों में दो उल्लू हैं और जो हाथ में अनाज की बालें लिए हुए है |
उसे सुमेरियन पुरालेखों में इनन्ना  या नना है  तो बैबीलोनिया में ईश्तर या अशेरा के रूप में स्वीकार किया गया है।

भारतीय पुराणों में दुर्गा और श्री ( लक्ष्मी) का अवतार यहीं से हुआ है ।
दुर्गा को पुराणों में वैष्णवी देवी कहा
वेदों नना शब्द माता का वाचक है

१मातरि २ दुहितरि च ३स्त्री
“उपल प्रक्षिणी नना” ऋगवेद ९ । ११२ । ३
“नना माता दुहिता वा नमनक्रियायोग्यत्वात् ।
माता खल्वपत्यं प्रति स्तनपानादिना नमनशीला भवति । दुहिता वा शुश्रूषार्थम्” भाष्य टीका यास्क ।

क्योंकि स्त्री अथवा नना शब्द जो भारतीय समाज में आज तक यथावत "स्त्री" "तिरिय "तीय" और "नानी" के रूप में विद्यमान हैं ।
सदीयों पुराने हैं
जब से देव संस्कृति के अनुयायीयों आगमन ईसा पूर्व 1500  में मैसोपोटामिया के सम्पर्क से हुआ ..

नना या स्त्री प्राचीनत्तम सास्कृतिक शब्द हैं
जो सुमेरियन देवी ,ईश्तर ,और ,एनन्ना, के रूप में है ।

शारदीय नवरात्रि के  प्राकृतिक परिवर्तन के प्रतिनिधि पर्व पर  जब सांस्कृतिक आयोजन रूढ़िवादी श्रृद्धा से प्रवण होकर देवता विषयक बन गये !

तो जगह-जगह भव्य पाण्डाल सजाये जाने लगे हैं
और आज इन्हें पुरोहितों द्वारा आख्यानक का रूप देकर
मञ्चन का रूप दिया गया |

आज कुछ रूढ़िवादी प्रमाण प्रस्तुत करने लगे कि दुर्गा आदिवासी महषासुर की हत्यारी थी।

वास्तव में ये मत उन रूढ़िवादी भ्रान्त-चित्त महामानवों का ही  है हमारा नहीं  ।

जो केवल अपने प्रतिद्वन्द्वी की बुराई में अच्छाई का आविष्कार करते हैं ।

परन्तु दुर्गा प्राकृतिक शक्तियों की अधिष्ठात्री देवता है विशेषत: ऋतु सम्बन्धित गतिविधियों की ।

इस विषय में सुमेरियन देवी स्त्री अथवा ईष्टर का वर्णन भी है ।

और इस कारण से वासन्तिक नवदुर्गा शब्द सारदीय नव रात्रि के समानान्तरण है ।

यद्यपि कथाओं में मिथकीयता का समावेश उन्हें चमत्कारिक बना देता है ।

रूढ़िवादी धर्मावलम्बी व्यक्तियों के अनुसार -

नवरात्रि इसीलिये मनायी जाती है ; क्योंकि विश्वास है कि दुर्गा ने इसी नौ दिनों में युद्ध करके महिषासुर का वध किया था ।

अन्वेषणों में अपेक्षित यह बात  है ; कि आखिर तथ्यों के क्या ऐतिहासिक प्रमाण भी हैं ?

यद्यपि भारतीय पुराणों में दुर्गा को महामाया एवं महाप्रकृति माना जाता है ।

जो यादव अथवा गोपों की कन्या
के रूप में प्रकट होती है ।

और गायत्री भी इसी प्रकार नरेन्द्र सेन आभीर (अहीर) की कन्या है जो वेदों की अधिष्ठात्री देवी है ।

महिषासुर के विषय में जो भी  जानकारी पौराणिक कथाओं में है, वह मिथक ही प्रतीत होती है वास्तविक नहीं !
क्यों कि देवी  भागवत पुराण के पञ्चम् स्कन्द में एक कथा आती है ;
कि असुरों के राजा रम्भ को अग्निदेव ने वर दिया कि तुम्हारी पत्नी के  एक पराक्रमी पुत्र का जन्म  होगा।

जब एक दिन रम्भ भ्रमण कर रहा था तो उसने एक नवयौवना उन्मत्त  महिषी को  देखा ।

रम्भ का मन उस भैंस पर आ गया और उसने उससे सम्भोग किया ! तब कालान्तरण में रम्भ के वीर्य से गर्भित होकर उसी भैंस( महिषी ) ने महिषासुर को जन्म दिया !

वस्तुत: यह रूढी वादी पुरोहितों की काल्पनिक उपज है

और इस महिषासुर को यादव बताने वाले भी भ्रमित हैं ।

यद्यपि असुर असीरियन जन-जाति का भारतीय संस्करण है ।

जो साम की सन्तति( वंशज) होने से सोमवंशी हैं ।
इनका स्थान भी इतिहास में मैसोपोटामिया के दजला- फरात के दुआवों बताया जाता है

परन्तु महिषासुर जैसे काल्पनिक पात्र को हम कैसे यादव मानें ।

क्यों कि इसकी जन्म कथा ही स्वयं में हास्यास्पद व अशालीनताओं से पूर्ण मनोवृत्ति की द्योतक है ।

महिषासुर की काल्पनिक कथा का अंश आगे इस प्रकार है ।👇

कुछ दिनों बाद जब वह महिषी ग्रास चर रही थी तो अकस्मात्  एक भयानक भैसा कहीं आ गया,
और वह उस भैंस  से मैथुन करने के लिये उसकी ओर दौड़ा...

रम्भ भी वहीं था, उसने देखा कि एक भैसा मेरी भैंस से  सम्भोग करने का प्रयास कर रहा है!

तो उसकी स्वाभिमानी वृत्ति जाग गयी और वह भैंसे से भिड़ गया।
फिर क्या था, उस भैसे की नुकीली सींगों से रम्भ मारा गया, और जब रम्भ के सेवकों ने उसके शव को चिता पर लेटाया तो उसकी पत्नी पतिव्रता भैंस भी चिता पर चढ़कर रम्भ के साथ सती हो गयी।👅

वास्तव में सतीप्रथा राजपूती काल की ही उपज है ।
और यह कथा भी उसी समय की है ।

यह विचार कर भी आश्चर्य होता है कि किसी जमाने में भारत मे इतनी पतिव्रता भैंस भी हुआ करती थी जो अपने पति के साथ आत्मदाह कर लेती थी।
👅
अस्तु !... ऐसे ही अनेक मनगड़न्त व काल्पनिक कथाओं का सृजन राजपूती काल में हुआ ।

____________________________________________

महिषासुर से सम्बन्धित एक दूसरी कथा वराहपुराण के अध्याय-९५ में भी मिलती है,
जिसका हिन्दी रूपान्तरण निम्न है-

विप्रचित नामक दैत्य की एक सुन्दर कन्या थी माहिष्मती; माहिष्मती मायावी-शक्ति से वेष बदलना जानती थी ।

एक दिन वह अपनी सखियों के साथ घूमती हुई एक पर्वत की तराई मे आ गयी, जहाँ एक सुन्दर उपवन था और एक ऋषि (सुपार्श्व) वहीं तप कर रहे थे।

माहिष्मती उस मनोहर उपवन मे रहना चाहती थी, उसने सोचा कि इस ऋषि को भयभीत कर भगा दूँ

और अपनी सखियों के साथ यहाँ कुछ दिन विहार करूँ !
यही सोचकर माहिष्मती ने एक भैंस का रूप धारण किया और सुपार्श्व ऋषि को पास आकर उन्हे डराने लगी!

ऋषि ने अपनी योगशक्ति से सत्य को जान लिया और माहिष्मती को श्राप दिया कि तू भैंस का रूप धारण करके मुझे डरा रही है तो जा ...
मै तुझे श्राप देता हूँ कि तू सौ वर्षों तक इसी भैंस-रूप मे रहेगी!

अब माहिष्मती भैंस बनकर नर्मदा तट पर रहने लगी; वहीं नजदीक सिन्धुद्वीप नामक एक ऋषि तप करते थे।

एक दिन जब ऋषि स्नान करने के लिये नर्मदा नदी के तट पर गये तो उन्होने देखा कि वहाँ एक सुन्दर दैत्यकन्या इन्दुमती नंगी होकर स्नान कर रही थी।

उसे नग्नावस्था मे देखकर ऋषि का जल मे ही वीर्यपात हो गया!

माहिष्मती ने उसी जल को पी लिया, जिससे वह गर्भवती हो गयी और कुछ महीनों बाद इसी माहिष्मती भैंस ने महिषासुर को जन्म- दिया ।

अब आश्चर्य है कि ऋषि तपस्या करके भी  काम को विजित नहीं कर पाते थे ?

महिषासुर के जन्म की कथा केवल इन्ही दो पुराणों में मिलती है, परन्परनतु महिषासुर का वर्णन अनेक पुराणों में है  इन दौंनो पुराणों के अनुसार वह भैंस के पेट से पैदा हुआ।

साधारण बुद्धि तो यह मानने को तैयार नही कि एक भैंस किसी व्यक्ति के भ्रूण को जन्म दे सकती है!

अतः इससे स्पष्ट है कि पौराणिक कहानी तो पूरी तरह से काल्पनिक है।

अब बड़ा सवाल यह होता है कि क्या महिषासुर काल्पनिक है!

इतिहासकारों ने भी महिषासुर पर अलग-अलग राय दी है!

कोसम्बी वाले कहते थे कि वह महिषासुसर  म्हसोबा (महोबा) का था, तो मैसूर के निवासी कहते हैं कि मैसूर का पुराना नाम ही महिष-असुर ही था !

मैसूर में महिषासुर की एक विशालकाय प्रतिमा भी है।

रही बात दुर्गा की तो उनके बारें मे भी पढ़े तो कुछ अता-पता नही चलता!

एक पुराण कहता है कि दुर्गा कात्यायन ऋषि की पुत्री थी।
दूसरा कहता है कि दुर्गा मणिद्वीप मे रहने वाली जगदम्बा ही थी।

यही नही.. कुछ लोग तो यह भी कहते हैं कि वह चोलवंश की राजकुमारी थी।

अगर दुर्गा को जानने के लिये देवीपुराण पढ़ो तो पूरी पौराणिक-मान्यताऐं ही पलट जाती है।

देवीपुराण मे लिखा है कि अब तक राम-कृष्ण समेत जितने भी अवतार हुये हैं, वह सब दुर्गा के थे, विष्णु के नहीं।

बल्कि यह पुराण तो कहता है कि विष्णु भी दुर्गा की प्रेरणा से ही जन्मे!

जहाँ तक हमारा मानना है तो यह है कि ये  कथा काल्पनिक व मनगड़न्त ही हैं
ये समग्र मिथक सुमेरियन पुरालेखों का आनुषाँगिक रूप है।
दुर्गा का एक नाम "नैना देवी" भी विख्यात है ।

यह नना का पर्वर्तित रूप है जो ( दुर्गा या द्रवा )वैदिक सन्दर्भों में है ।
नना ही इनन्ना "Inanna" के रूप में सुमेरियन सभ्यता में है ।

हिन्दी और मगधी भाषाओं आयात "नानी" शब्द माता की माता के लिए आज तक रूढ़ है ।

असीरियन और बैबीलोनियन ( प्राचीनता ईराक-ईरान) की संस्कृतियों में माता को "नन" कहते थे ।

जो सुमेरियन देवी "एनन्ना" का रूपान्तरण है;
ऋग्वेद में "नना" शब्द माता को अर्थ में प्राप्त है
___________________________
"कारूरहं ततो भिषगुपल प्रक्षिणी नना" (ऋग्वेद :-9/112/3 )

यही शब्द नागालेण्ड की नाग-भाषा इडु में "ननँ "के रूप में माता का अर्थ वाची है।
यद्यपि दुर्गा वैदिक शब्द ही है

इसी प्रकार "कुडुख भाषा" में भी ननी, नानी के रूप में यह शब्द प्रयुक्त है ।

यूरोपीय संस्कृतियों में नना के अनेक रूपान्तरण प्राप्त हैं जिनका कुछ विवरण निम्न है ।
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1-Old English nunne "

2-Late Latin nonna  "nun, tutor,"

3-Sanskrit nana,

4-Persian nana "mother,"

5-Greek nanna  "aunt,"

6-Serbo-Croatian nena "mother,"

7-Italian nonna,

8-Welsh nain "grandmothe

संज्ञा स्त्री० [संस्कृत] १. माता। २. कन्या। ३. वाक्य।

नना:- १ मातरि २ दुहितरि च स्त्री
“उपल प्रक्षिणी नना” ऋ० ९। ११२ ।३
“नना माता दुहिता वा नमनक्रियायोग्यत्वात् ।

माता खल्वपत्यं प्रति स्तनपानादिना नमनशीला भवति ।
दुहिता वा शुश्रूषार्थम्” भाष्य-टीका ।

यह शब्द पुरानी अंग्रेजी में "nunne"  नन्ने शब्द का अर्थ है "महिला"

एक महिला जो ब्रह्मचर्य, गरीबी और श्रेष्ठता की आज्ञा के तहत धार्मिक जीवन के लिए समर्पित है। वह नन है ।

वैदिक सन्दर्भों में नना शब्द माता के अर्थ में है ।

लेट लैटिन भी "nonna"  "nun, (नन्ना ,नन) शिक्षिका के अर्थ में है"

बुजुर्गों के संबोधन का एक शब्द, शायद बच्चों के भाषण से, नाना की याद दिलाता है।

यह ध्वनि अनुकरण मूलक रूप से व्युपन्न है ।

१-संस्कृत में नना का अर्थ है:- स्त्री

२-फ़ारसी "nana" नाना "माँ,"

३-ग्रीक नन्ना nanna "चाची,"

४-सर्बो-क्रोएशियाई nena नीना का अर्थ "माँ,"

५-इतालवी में nonna नोन्ना,

६-वेल्श में  nain नैन "दादी;"

कालान्तरण भारतीय पुरोहितों ने "नना" को नैना/नयना बना दिया और सुमेरियन असीरियन देवी नना को नयनादेवी के रूप में स्वीकार कर एक काल्पनिक कथा का सृजन कर लिया ।

कुछ किंवदन्तियों के अनुसार नैना नामक गुज्जर
के आधार पर नैना देवी नाम पड़ा
परन्तु ये सब सत्य पूर्ण कथन नहीं है

जैसे एक बार की बात है कि नैना नाम का गुज्जर
चारावाहा अपने मवेशियों को चराने गया तो वहाँ पर देखा कि एक सफेद गाय अपने स्तनों से एक पत्थर पर दूध धार गिरा रही थी।

उसने यह दृश्य अगले कई दिनों तक लगातार देखा।
फिर एक रात जब वह सो रहा था, उसने देवी माँ को सपने मे यह कहते हुए देखा कि वह पत्थर ही उनकी पिंडी है।

नैना गुर्जर ने पूरी स्थिति और अपने सपने के बारे में राजा बीरचंद को बताया।
जब राजा ने देखा कि गुर्जर की बात सत्य है तो, राजा ने उसी स्थान पर श्री नयना देवी नाम के मंदिर का निर्माण करवाया।

दूसरी किंवदन्तियों की कथा के अनुसार :-
किंवदंतियों के अनुसार, महिषासुर एक शक्तिशाली राक्षस था जिसे श्री ब्रह्मा द्वारा अमरता का वरदान प्राप्त था, लेकिन उस पर शर्त यह थी कि वह एक अविवाहित महिला द्वारा ही परास्त हो सकता था।

इस वरदान के कारण, महिषासुर ने पृथ्वी और देवताओं पर आतंक मचाना शुरू कर दिया।

राक्षस के साथ सामना करने के लिए सभी देवताओं ने अपनी शक्तियों को संयुक्त किया और एक देवी को बनाया जो उसे हरा  सके वही नना हुई ।

एक काल्पनिक कथा के अनुसार देवी को सभी देवताओं द्वारा अलग अलग प्रकार के हथियारों की भेंट प्राप्त हुई।

महिषासुर देवी की असीम सुंदरता से मंत्रमुग्ध हो गया और उसने शादी का प्रस्ताव देवी के समक्ष रखा।

देवी ने उसके समझ एक शर्त रखी कि अगर वह उसे हरा देगा तो वह उससे शादी कर लेगी।

लड़ाई के दौरान, देवी ने दानव को परास्त किया और उसकी दोनों आंखें निकाल दी।

और जिसने ये आँखे निकाली वही नयना देवी हुई।
वस्तुत ये सभी कल्पनाऐं मात्र हैं ।

आज भारतीय धरा पर नैना देवी मंदिर हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिले में स्थित है।

यह शिवालिक पर्वत श्रेणी की पहाड़ियो पर स्थित एक भव्य मंदिर है।

यह देवी के 51 शक्ति पीठों में शामिल है।
नैना देवी का मन्दिर हिन्दु मतावलम्बीयों के पवित्र तीर्थ स्थलों में से एक है।

किंवदन्तियों के अनुसार इस स्थान पर देवी सती के नेत्र (नयन) गिरे थे इसीलिए इसका नाम नयना देवी हो गया
परन्तु ये कथाऐं बाद में बनायीं गयीं हैं।

नयना देवी के मन्दिर के मुख्य द्वार के पार करने के पश्चात आपको दो शेर की प्रतिमाएं दिखाई देगी।
शेर नयना माता का वाहन माना जाता है।
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वस्तुत यहाँं असीरियन सुमेरियन देवी "स्त्री" अथवा "ईष्टर" नना ही है ; जो शेर पर आरूढ है ।

इसमें भारतीय पुरोहितों ने कुछ परिवर्तन कर लिया है ।
नना ( दुर्गा )वैदिक सन्दर्भों में ,
तो इनन्ना "Inanna" सुमेरियन सभ्यता में है ।

यह असीरियन देवी ईश्वरीय शक्ति को पुनर्निदेशित करती है
इनान्ना एक प्राचीन मेसोपोटामियन देवी है;

जो प्यार, सौंदर्य, लिंग, इच्छा, प्रजनन, युद्ध, न्याय और  सम्पूर्ण राजनैतिक शक्ति से जुड़ी है।

उनकी मूल रूप से सुमेर में पूजा की गई थी ;और बाद में उन्हें "अक्कदार" नाम के तहत अक्कडियन , बाबुलियों और अश्शूरियों में भी पूजा की थी।

इसे  सृष्टि की प्रारम्भिक माता" के रूप में जाना जाता था;
और यह उरुक (प्राचीन ईराक) शहर में इनन्ना मंदिर की संरक्षक देवी थी, जो उसका मुख्य पंथ केंद्र था।

इसकी समानता रोमवासीयों ने वीनस देवी से की ।
और उसके सबसे प्रमुख प्रतीकों में शेर और आठ-बिन्दु वाले तारे शामिल थे ।

उसका पति देव डुमुज़िद (जिसे बाद में तमुज़ के नाम से जाना जाता था) कहा गया ।
यह तमुज भारतीय पुराणों में वर्णित तमस् =रूद्र का रूप है ।
दुर्गा को भी पुराणों में तामसी विशेषण से वर्णित किया गया है।
📵

और उसका सुक्कल , या व्यक्तिगत परिचर, देवी निनशूबुर (जो बाद में पुरुष देवता पाप्सुकल बन गया) था।
जिसे लाँगुल रूप में भारतीयों ने स्वीकार कर लिया।

इनन्ना (ईश्तर) :-स्वर्ग की रानी  जो प्यार, सौंदर्य, लिंग, इच्छा, प्रजनन, युद्ध, न्याय और राजनीतिक शक्ति की अधिष्ठात्री देवी थी ।

निप्पपुर में इनन्ना के मंदिर से एक पत्थर की पट्टिका का टुकड़ा प्राप्त हुआ है जो सुमेरियन देवी, संभवतः इनान्ना ( 2500 ईसा पूर्व) का दिखाई देता  है ।

तब असुरों का शासन मेसोपोटामिया में था ।

हित्ताइट पौराणिक कथाओं में: तेशब (भाई) समकक्ष ग्रीक समकक्ष Aphrodite

हिंदू धर्म समकक्ष दुर्गा (स्त्री)

कनानी समकक्ष "Astarte

बेबीलोनियन समकक्ष "Ishtar

इनन्ना की पूजा कम से कम उरुक काल (सदी 4000 ईसा पूर्व -से 3100 ईसा पूर्व) के रूप में की गई थी।

लेकिन अक्कादियन के सरगोन की विजय से पहले उनकी छोटा पंथ था।

सर्गोनिक युग के बाद, वह मेसोपोटामिया के मन्दिरों के साथ सुमेरियन बहुदेवों  में सबसे व्यापक रूप से पूज्य देवताओं में से एक बन गई।
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इनन्ना-ईश्तर की पंथ से है जिसे सुमेरियन पुरालेखों में ही कालान्तरण में समलैंगिक (ट्रांसवेस्टाइट) पुजारी और पवित्र वेश्यावृत्ति समेत विभिन्न यौन संस्कारों से जोड़ दिया गया था।

भारत में विशेषत बंगाल में वैश्याओं का समाज दुर्गा को
अपनी आराध्या के रूप में मान्यताऐं दिए है ।

यह प्रथा सुमेरियन देवी स्त्री अथवा नना से सम्बन्धित है।

नना  अश्शूरियों द्वारा विशेष रूप से श्रृद्धेया थी, जिसने उन्हें अपने स्वयं के राष्ट्रीय देवता अशूर के ऊपर रैंकिंग में अपने देवताओं में सर्वोच्च देवता बनने के लिए प्रेरित किया ।

इनान्ना-ईश्वर को हिब्रू बाइबल में बताया गया है और उसने फीनशियन देवी स्त्री (एस्त्रेत) को बहुत प्रभावित किया।

जिसने बाद में ग्रीक देवी एफ़्रोडाइट के विकास को प्रभावित किया।

और ईसाई धर्म के मद्देनजर पहली और छठी शताब्दी ईस्वी के बीच धीरे-धीरे गिरावट तक उसकी परम्पराऐं बढ़ती रही,

हालांकि यह अठारहवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में ऊपरी मेसोपोटामिया के कुछ हिस्सों में उसके अवशिष्ट रूप बचे।
इनन्ना किसी भी अन्य सुमेरियन देवता की तुलना में अधिक मिथकों में दिखाई देती है।

गिलगमेश के महाकाव्य के मानक अक्कडियन संस्करण में, ईश्तर को एक खराब और गर्म सिर वाली महिला फेटेल के रूप में चित्रित किया गया है,
जो गिलगाम की मांग करती है।

जब वह मना कर देता है, तो वह स्वर्ग की बुल को उजागर करती है, जिसके परिणामस्वरूप एन्किडू
और गिलगमेह की मृत्यु दर उसके
मृत्यु के साथ होती है।

अत: दुर्गा की अवधारणा सुमेरियन पुरालेखों में वर्णित
स्त्री , नना अथवा द्रवा का परिवर्तित रूप है ।
_____________________________________
वैदिक स्त्री अथवा नना के विषय में सुमेर की संस्कृतियों से एक रूपता के सन्दर्भों में यूरोपीय पुरातात्विक विश्लेषकों के साक्ष्य:-👇

"Ishtar" ( स्त्री )
मेसोपोटामियन देवी है ।
यह लेख एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका के संपादक द्वारा लिखित है।

"इन्ना"

मेसोपोटामियन धर्म में ईशर (अशेरा)(अक्कादियन) पुरालेखों में है  तो  सुमेरियन लेखों में इन्ना (नना), युद्ध की देवी और लैंगिक  प्रेम की देवी है ।

ईश्तर पश्चिम सेमिटिक देवी अस्तेर के अकाडियन समकक्ष हैं।

सुमेरियन पैन्थियॉन (बहुदेववाद) में एक महत्वपूर्ण देवी इन्ना की पहचान ईश्तर के साथ हुई थी।

लेकिन यह अनिश्चित है कि क्या इन्नना सेमिटिक मूल की है या नहीं,
जैसा कि अधिक संभावना है, ईश्तर के लिए उसकी समानता की वजह से दोनों की पहचान की जा सकती है।

इनन्ना की आकृति में कई परम्पराओं को जोड़ दिया गया लगता है: जैसे
वह कभी आकाश देव की बेटी है, तो कभी उसकी पत्नी;
अन्य मिथकों में
वह नन्ना, चंद्रमा के देवता या पवन देवता एनिल की बेटी है।

अपनी शुरुआती अभिव्यक्तियों में वह भण्डारगृह से जुड़ी हुई थीं और इस तरह उन्हें खजूर, ऊन, मांस, और अनाज की देवी के रूप में प्रतिष्ठित किया गया; भंडारगृह उसके प्रतीक थे।

श्री का रूपान्तरण यहीं से लक्ष्मी के रूप में हुआ ।
रोमन संस्कृतियों में "सेरीज" कृषि की देवी है !

वह बारिश और गरज की देवी भी थी - एक आकाश देवता के साथ उसके संबंध के लिए अग्रणी - और उसे अक्सर शेर के साथ चित्रित किया गया था,

जिसकी गर्जन गड़गड़ाहट से मिलती-जुलती थी।
भारतीय पुराणों मे यही रूप दुर्गा का रूप  है

युद्ध में उसके लिए जिम्मेदार शक्ति तूफान के साथ उसके संबंध से उत्पन्न हो सकती है।

इनन्ना भी एक उर्वरता की आकृतिस्वरूपा देवी थी, और, भंडार गृह की देवी के रूप में भी मान्य है।

और यह भगवान दुमूज़ी-अमौशमगलाना की दुल्हन है  जिसने खजूर के पेड़ की वृद्धि और मादकता का प्रतिनिधित्व किया, उसे युवा, सुंदर और आवेगी के रूप में चित्रित किया गया।

- कभी भी मददगार के रूप में या मां के रूप में
उन्हें कभी-कभी (लेडी ऑफ द डेट क्लस्टर्स )
के रूप में जाना जाता है।

सुमेरियन परम्परा से ईश्तर की प्राथमिक विरासत प्रजनन क्षमता की भूमिका है;
भारतीय वैदिक सन्दर्भों में स्त्री इसका प्रतिरूप है ।👇👆

वह, हालांकि, एक और अधिक जटिल चरित्र में, मृत्यु और आपदा, विरोधाभासी धारणाओं और ताकतों की एक देवी - आग और आग-शमन, आनन्द और आँसू, निष्पक्ष खेल और दुश्मनी से मिथक में घिरा हुआ है।

अकाडियन ईशर भी एक हद तक, एक सूक्ष्म देवता है, जो शुक्र ग्रह से जुड़ा हुआ है।

शम्श के साथ, सूर्य देव, और चंद्रमा, वह एक माध्यमिक सूक्ष्म त्रय का निर्माण करते हैं।


नना अथवा ईश्तर के  पूजा में शायद मन्दिर की वेश्यावृत्ति शामिल थी।
यही प्रथा भारतीय बंगाली वैश्याओं में प्रस्फुटित हुई

प्राचीन मध्य पूर्व में उसकी लोकप्रियता सार्वभौमिक थी।
और पूजा के कई केंद्रों में उसने संभवतः
कई स्थानीय देवी-देवताओं की उपासना की थी।

बाद के मिथक में वह एन, एनिल और एनकी की शक्तियों को लेते हुए (क्वीन ऑफ़ द यूनिवर्स )  विश्व की रानी के रूप में जानी जाती थी।

एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका के संपादक ने
यह लेख एडम ऑगस्टीन, प्रबंध संपादक द्वारा हाल ही में संशोधित और अद्यतन किया गया था।

अशूर, ने उत्तरी इराक में तिग्रिस (दजला) नदी के पश्चिमी तट पर स्थित असीरिया की प्राचीन धार्मिक राजधानी, जो भारतीय पुराणों में असुर को रूप में वर्णित हैं।

भारतीय पुराणों में दुर्गा का वर्णन प्रारम्भिक सन्दर्भों में नदी का वाचक है ।
जो द्रवा का रूपान्तरण ही है ।
परन्तु परवर्ती पुरोहितों ने दुर्गा को एक विशेष दैवीय सत्ता के रूप में स्थापित किया ।

दुर्गा, स्त्री, (दुर्दुःखेन गम्यते प्राप्यतेऽसौ ।
गम + अन्यत्रापि दृश्यते । इति डः ।
जिसे बड़े दु:थे से प्राप्त किया जाए "

दुर्दुःखेन गम्यतेऽस्यामिति ।
दुर् + गम + “सुदुरोरधिकरणे ।३।२ । ४८ ।
इत्यस्य वार्त्तिकोक्त्या डः । ततष्टाप् )
नीली । इति मेदिनीकोश :- अपराजिता ।

इति शब्दचन्द्रिका ॥ श्यामापक्षी ।

इति राज- निर्घण्टः ॥ (नववर्षा कुमारी ।
यथा, देवी- भागवते । ३ । २६ । ४३ ।
________________________________
“नववर्षा भवेद्दुर्गा सुभद्रा दशवार्षिकी ॥
अस्याः पूजाफलमाह । तत्रैव ।३।२६ । ५०।

“दुःखदारिद्र्यनाशाय संग्रामे विजयाय च । क्रूरशत्रुविनाशार्थं तथोग्रकर्म्मसाधने ॥

दुर्गाञ्च पूजयेद्भक्त्या परलोकसुखाय च ॥
यः स्मरेत् सततं दुर्गां जपेत् यः परमं मनुम् ।

स जीवलोको देवेशि ! नीलकण्ठत्वमवाप्नुयात् ॥”
इति मुण्डमालातन्त्रम् ।

अमरकोशः
दुर्गा स्त्री।
पार्वती

समानार्थक:-१-उमा, २-कात्यायनी, ३-गौरी,४-काली, ६-हैमवती, ७-ईश्वरी, ८-शिवा, ९-भवानी,१०-रुद्राणी, ११-शर्वाणी १२सर्वमङ्गला, १३-अपर्णा, १५-पार्वती, १६-दुर्गा,१७मृडानी,१८नना, १९-दृवा, २०-चण्डिका,२१-अम्बिका,२२-आर्या,२३-दाक्षायणी,२४-गिरिजा,२५-मेनकात्मजा,२६-वृषाकपायी २७-स्त्री, २८-नयना, ।
१९- नन्दा २०- विन्ध्यवासिनी २१- यादवी: |
1।1।37।2।3
शिवा भवानी रुद्राणी शर्वाणी सर्वमङ्गला।
अपर्णा पार्वती दुर्गा मृडानी चण्डिकाम्बिका।
आर्या दाक्षायणी चैव गिरिजा मेनकात्मजा॥

पति : शिवः
जनक : हिमवान्
पदार्थ-विभागः : , द्रव्यम्, आत्मा, देवता
वाचस्पत्यम्
'''दुर्गा'':-पुंस्त्री दुर्गशब्दोक्ते

१ देवीभेदे तन्निरुक्त्यादिकं तत्र दर्शितम्।

२ नीलीवृक्षे मेदि॰।

३ अपराजितायाम
[पृष्ठ संख्या:-3636-b+ 38] शब्दच॰

४ श्यामाखगे राजनि॰।

५ हिमालयकन्यायाञ्च
“सा दुर्गा मेनकाकन्था दैन्यदुर्गतिनाशिनी” ब्रह्मवैर्त  पुराण

Monier-Williams

दुर्गा/ दुर्--गा See. दुर्गा(p. 487).

दुर्गा f. See. दुर्गा

दुर्गा f. (of ग See. )the Indigo plant or Clitoria Ternatea L.

दुर्गा f. a singing bird(= श्यामा) L.

दुर्गा f. N. of two rivers MBh. vi , 337

दुर्गा f. " the inaccessible or terrific goddess " N. of the daughter of हिमवत् and wife of शिव(also called उमा, पार्वतीetc. , and mother of कार्त्तिकेयand गणे-शSee. -पूजा) TA1r. x , 2 , 3 ( दुर्गा देवी) MBh. etc.

दुर्गा f. of a princess Ra1jat. iv , 659 , and of other women.

Purana index

(I)--one of the names of योगमाय propitiated by देवकी and others for कृष्ण's safe return from the cave of जाम्बवान्; {{F}}1: भा. X. 2. ११; ५६. ३५.{{/F}} worship of; {{F}}2: Ib. XI. २७. २९.{{/F}} a शक्ति; {{F}}3: Br. III. ३२. २४, ४८ and ५९; IV. १९. ८१; ३९. ५७.; ४४. ७६.{{/F}} worshipped in the ग्रहबलि: Icon of. {{F}}4: M. ९३. १६; २६०. ५५-66.{{/F}}

(II)--a R. originating from the Vindhya Moun- tains. Br. II. १६. ३३; वा. ४५. १०३.

Purana Encyclopedia

Durgā : f.: Name of a river.
दुर्गा :- एक नदी का नाम ।

Listed by Saṁjaya twice among the rivers of the Bhāratavarṣa;
its water used by people for drinking 6. 10. 29 (duṛgām antaḥśilāṁ caiva)
and 32 (durgām api ca bhārata)
6. 10. 13; all the rivers listed here are said to be mothers of the universe and very strong 6.
10. 35 (for citation see Atikṛṣṇā ).

_______________________________

*3rd word in right half of page p362_mci (+offset) in original book.

Mahabharata Cultural Index

Durgā : f.: Name of a river.

Listed by Saṁjaya twice among the rivers of the Bhāratavarṣa; its water used by people for drinking
6. 10. 29 (duṛgām antaḥśilāṁ caiva) and 32 (durgām api ca bhārata)

6. 10. 13; all the rivers listed here are said to be mothers of the universe and very strong 6. 10. 35 (for citation see Atikṛṣṇā ).

_______________________________
*3rd word in right half of page p362_mci (+offset) in original book.

Vedic Rituals Hindi

दुर्गा स्त्री.
यदि यजमान मरणासन्न स्थिति में हो और उसकी पत्नी का मासिक स्राव हो रहा हो, तो प्रायश्चित्त के रूप में दी जाने वाली आहुतियां; ये (आहुतियां) ‘मनस्वती’ महाव्याहृति एवं पूर्णाहुति आहुतियों के साथ-साथ दी जाती हैं,
श्रौ.को. (अं.) I.ii. 1०37.  वैखा.श्रौ.सू. 2०.27 घृत के शुद्घीकरण के पूर्व, इसके छिटकने की स्थिति में आहुति का विधान करता है।

यह (आहुति) ‘जातवेदसे......’, इस मन्त्र के साथ दी जाती है, श्रौ.को. (अं) I.46०

एक देवता के रूप में दुर्गा की उत्पत्ति के निशान जंगली क्षेत्रों जैसे विंध्य पर्वत की और पुराने जनजातियों जैसे शबर और पुलिंदों में पाए गए हैं।

दुर्गा का उल्लेख सबसे पहले महाभारत में एक कुंवारी कन्या की प्रसन्नता के रूप में शराब, मांस और पशु बलि में मिलता है।
परन्तु दुर्गा वैदिक शब्द है

दुर्गा का कृषि के साथ संबंध, विशेष रूप से उनके प्रमुख त्योहार, दुर्गा पूजा में, उनके प्रारंभिक उद्भव से उत्पन्न हो सकता है।

उसे फसलों की वृद्धि और सभी वनस्पतियों में निहित शक्ति माना जाता है।

देवी दुर्गा की उत्पत्ति बहुत ही अजीब तरीके से हो सकती है, जो मेसोपोटामिया की संस्कृति से जुड़ी हुई है।

मेसोपोटामिया में पूजा की जाने वाली देवी ईश्तर के चित्रण और रूप, हिंदू धार्मिक ग्रंथों में देवी दुर्गा के प्रति एक समानता रखते हैं।

प्राचीन काल का मेसोपोटामिया एक ऐसा क्षेत्र है, जो वर्तमान इराक द्वारा ज्यादातर समायोजित किया जाता है।

देवी ईश्तर की पूजा लगभग 2000 ई.पू. के बाद से सुमेरियों, अश्शूरियों, बेबीलोनियों और यहां तक ​​कि रोमनों और मिस्रियों द्वारा की जाती थी।

वैदिक युग के अन्त में स्पष्ट रूप से कई देवी-देवता शिव की पत्नियों के रूप में स्वीकार किए जाते थे।

जबकि अन्य देवी-देवताओं को विभिन्न जातियों द्वारा पूजा जाता था

प्राचीन सिंधु घाटी सभ्यता में यह स्पष्ट है कि महिला देवताओं की पूजा का समाज में बहुत महत्वपूर्ण स्थान था।

कई मुहरों और मूर्तियों में पाए गए समय के धर्म में महिला देवताओं के स्पष्ट रूप से अत्यधिक महत्वपूर्ण स्थान के लिए सबूत प्राप्त होते हैं।

एक देवता के रूप में दुर्गा की उत्पत्ति
एक देवता के रूप में दुर्गा की उत्पत्ति के निशान जंगली क्षेत्रों जैसे विंध्य पर्वत और पुराने जनजातियों जैसे शबर और पुलिंदों में पाए गए हैं।

संभवत: ये जड़ें उसे शराब पीने और गैर-वनस्पतिवाद की गैर-दैव संस्कृति वादी आदतों से जोड़ती हैं।

दुर्गा का उल्लेख सबसे पहले महाभारत में एक कुंवारी कन्या के रूप में शराब, मांस और पशु बलि में मिलता है।

दुर्गा का कृषि के साथ संबंध, विशेष रूप से उनके प्रमुख त्योहार, दुर्गा पूजा में, उनके प्रारंभिक उद्भव से उत्पन्न हो सकता है।

उसे फसलों की वृद्धि और सभी वनस्पतियों में निहित शक्ति माना जाता है।

देवी दुर्गा की उत्पत्ति बहुत ही अजीब तरीके से हो सकती है, जो मेसोपोटामिया की संस्कृति से जुड़ी हुई है।

मेसोपोटामिया में पूजा की जाने वाली देवी ईश्तर के चित्रण और रूप, हिन्दू धार्मिक ग्रंथों में देवी दुर्गा के प्रति एक समानता रखते हैं।

प्राचीन काल का मेसोपोटामिया एक ऐसा क्षेत्र है, जो वर्तमान इराक द्वारा ज्यादातर कवर किया जाता है।

देवी ईशर की पूजा लगभग 2000 ई.पू. के बाद से सुमेरियों, अश्शूरियों, बेबीलोनियों और यहां तक ​​कि रोमनों और मिस्रियों द्वारा की जाती थी।

और शायद इससे पहले भी, क्योंकि ईश्तर के वंशज नामक एक महाकाव्य पहले से ही उस समय की एक पुरानी कहानी का पता लगाया गया था।

ईश्तर को एक स्वतंत्र देवी के रूप में वर्णित किया गया है जो वनों और रेगिस्तानों में घूमती थी और युद्ध का एक निरंतर खोजी थी।

उसे एक शेर की सवारी के रूप में चित्रित किया गया था और उसके पास कई हथियार थे।

सभी सामाजिक वर्गों के प्रेमियों के व्यापक प्रोफाइल के कारण उसके वर्गीय विभाजन की इस भावना पर जोर दिया गया।

देवी दुर्गा की व्यापक पूजा 4 वीं और 7 वीं शताब्दी के ग्रंथों में मिलती है।

उन दिनों के दौरान देवी पूजा के पुनरुत्थान के साथ।
वह एकमात्र महिला देवता हैं जिनके नाम पर पूरे उपनिषद का नाम रखा गया है।

वैदिक युग के अंत में स्पष्ट रूप से कई देवी-देवता शिव की पत्नियों के रूप में स्वीकार किए जाते थे,
जबकि अन्य देवी-देवताओं को विभिन्न जातियों द्वारा पूजा जाता था

भारत में ये विविध देवता अंततः एक महान देवी, महादेवी, के रूप में प्रतिष्ठित हुए, जिनकी मूल उत्पत्ति सिंधु घाटी सभ्यता की मातृ देवी रही होगी।

प्राचीन सिंधु घाटी सभ्यता में यह स्पष्ट है कि महिला देवताओं की पूजा का समाज में बहुत महत्वपूर्ण स्थान था।
कई मुहरों और मूर्तियों में पाए गए समय के धर्म में महिला देवताओं के स्पष्ट रूप से अत्यधिक महत्वपूर्ण स्थान के लिए सबूत प्रदान करते हैं।

इस अवधि में एक माता या पृथ्वी देवी के अस्तित्व के होने के प्रमाण मिलते हैं।

Ēostre or Ostara (Old English: Ēastre [æːɑstrə]  or [eːɑstrə],
संस्कृत रूप उषा,  स्त्री , श्री ,आदि शब्दों के सहवर्ती रूप हैं यूरोपीय संस्कृतियों प्राप्त ।

1-Northumbrian dialect Ēastro,

Mercian dialect and West Saxon dialect

2- (Old English) Ēostre;

3-Old High German: *Ôstara ) is a Germanic goddess who, by way of the Germanic month bearing her name.

4- (Northumbrian: Ēosturmōnaþ

5-West Saxon: Ēastermōnaþ;

6-Old High German: Ôstarmânoth) is the namesake of the festival of Easter in some languages.

Ēostre is attested solely by Bede in his 8th-century work The Reckoning of Time, where Bede states that during Ēosturmōnaþ (the equivalent of April),

pagan Anglo-Saxons had held feasts in Ēostre's honour, but that this tradition had died out by his time, replaced by the Christian Paschal month, a celebration of the resurrection of Jesus.

By way of linguistic reconstruction, the matter of a goddess called
*Austrō in the Proto-Germanic language has been examined in detail since the foundation of Germanic philology in the 19th century by scholar Jacob Grimm and others.

As the Germanic languages descend from Proto-Indo-European  (PIE), historical linguists have traced the name to a Proto-Indo-European goddess of the dawn *H₂ewsṓs ( *Ausṓs), उषस्

from which descends the Common Germanic divinity from whom Ēostre and Ostara are held to descend.

Additionally, scholars have linked the goddess's name to a variety of Germanic personal names, a series of location names (toponyms) in England, and, discovered in 1958, over 150 inscriptions from the 2nd century CE referring to the matronae  Austriahenae.

Theories connecting Ēostre with records of Germanic Easter customs, including hares  and eggs, have been proposed. Particularly prior to the discovery of the matronae Austriahenae and further developments in Indo-European studies, debate has occurred among some scholars about whether or not the goddess was an invention of Bede.

Ēostre and Ostara are sometimes referenced in modern popular culture and are venerated in some forms of Germanic neopaganism.

Etymology

Old English Ēostre continues into modern English as Easter and derives from Proto-Germanic *Austrǭ, itself a descendant of the Proto-Indo-European root *h₂ews-, meaning 'to shine'

(modern English east also derives from this root.......
प्रस्तुति -करण यादव योगेश कुमार  "रोहि"

गुरु जी सुमन्त कुमार यादव की अनुकम्पा से प्रेरित ...

...

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