सोमवार, 28 सितंबर 2020

यदुवंशी और यादव का अर्थ ही अब विपरीत हो गया है ...

कुछ आधुनिक दौर के फर्जी यदुवंशी जो ज्यादातर अहीर या यादव टाइटल न लगाकर यदुवंशी 
लिखने लगे हैं ! 

वे अक्सर मेरी पोष्टों पर नकारात्मक  प्रतिक्रिया ही देते हैं 
ये बात है पते की ...

यदु से यादव  सन्तान वाचक अण् प्रत्यय करे से बना
( यदु+अण् ) तद्धित रूप में  यदु के वंशज  उसे लगायो गोप लगाओ, अहीर लगायो  क्यों कि यही तीन विशेषण प्राचीनत्तम  हैं 

 यदु के वंशी बने वाे तो बहुत से  फर्जी भी हैं जैसे जडैजा भाटी चुडासमा आदि आदि ...

 असली और नकली का सिद्धान्त यही है कि यदुवंशी वो उन्नीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध से लगाने लगे हैं जो  बाकई यादव नहीं थे चारण या भाट ही थे 

क्यों  व्यक्ति जो नहीं होता है उसे ही फर्जी तरीके से दिखाने के लिए उसी जगह से दूसरी सैंध मारता है 
जैसे आज के दलाल व्यापारी अपना ट्रेडमार्क ( व्यापार चिन्ह) कुछ अन्तर से ही दूसरी कम्पनी की बरावरी या नकल करने के लिए  जैसे चीनी एप टिकटाॅक की प्रसिद्धी भुनाने के लिए अब "टकाटक " नाम से एप प्ले स्टोर पर है !
उसी प्रकार 
असली को यानि अहीरों को नकली दिखाने वाले ज्यादातर यदुवंशी लगाते हैं ..
जैसे अहीर या यादव यदुवंशी ही न हों ...

 जबकि असली तो अहीर ही यदुवंशी हैं या जो अहीरों निकले हैं वे  जैसे मध्यप्रदेश के घोसी या करौली जादौन ( दशवें अहीर शासक ब्रह्म पाल अहीर से उत्पन्न) भारवाड , धेनुगरों के कुछ पुराने कबीले ) कुछगुर्जर संघ के  गूजर और जाट भी 
जो वास्तव में आज अलग थलग पड़ गये हैं धूर्तों साजिस के तहत परन्तु जो धूर्त थे वे फर्जी यदुवंशी बनते हैं 

वे लोग ही यदुवंशी क्षत्रिय या राजपूत हने का भी दाा करते रहते हैं 

जैनेटिक कोड है कि यदुवंशी का मतलब खुद तय कर लो लिखने का मतलब ही ये है यदुवंशी तो हो तुम यादव नही क्यो की यादव होने के लिये माता पिता दोनौं का यादव होना जरूरी होता है यदुवंशी होने के लिये नही 
नहीं ...

यदुवंशी क्षत्रिय  लिखने का अर्थ ही है उनको अहीर समाज से हटा दिया गया है जबरन चिपके है वो परन्यतु ये यादवो का  आन्तिरिक कानून है जो क्षत्रिय राजा बना वो यदुवंश से  खारिज हो गया ये रहस्य है ।

क्यों अहीरों ने वर्ण व्यवस्था को नकार दिया 
ब्राह्मणों की पाखण्ड पूर्ण कुव्यवस्थाओं के प्रति बगावत का रूख अख्तियार कर लिया ...

वंश की मान्यताओं का आधार यही होता है की माता पिता दोनों का  सजातीय होना किन्यातु विभिन्न गोत्र का होना आवश्यक है   जैसे दौनों अहीर हो तो ही यादव अहीर संतान हो सकता है  वंश धर्म की आधार शिला है

 साइंस भी यही कहता है सन्तान में माता पिता दोनों का क्रोमोसोम  गुण सूत्र बराबर ही रहता है  
आनु पातिक होते है 
माता का गुणसूत्र( xx )  तो पिता का (xy) केवल लैंगिक आधार पर 
 परन्तु वंश का आधार दौनों का एक वंश का होना 
अन्यथा वर्ण संकर जैसी स्थति से वंशसंकर जैसी स्थिति बन जाती है !
 यादव यादव के सन्तान तो यादव होगा परन्तु आधुनिक  हिन्दु मान्यताओं के अनुसार पिता से वंश चलता है यानी सिरे से गलत है अब राजपूतों  , ब्राह्मणो में मिश्रा से  मिश्रा में विवाह नही करता हमेशा क्रॉस करते है 
राजपूतो में भी ऐसा ही होता है अब भाटी खुद को यदुवंशी कहता है उसका विवाह सूर्यवंशी में हुआ तो संतान में तो सूर्यवंशी का और यदुवंश का दोनो का अंश हुवा ना यानी 50-50 अब वो सन्तान किसी अग्निवंशी से विवाह कर लिया तो पहले ही 50-50 था !
 अब 1/4 हो जायेगा अब वो खुद को यदुवंशी कहेगा क्यों की पिता से जोड़ा जाता है उनको परन्तुत हकीकत में उसमे यदुवंशी से ज्यादा अन्य वंशो का अंश ही होता है ऐसे ही लोग वंशी होते है 

जैसे जाडेजा ,भाटी आदि
शुद्ध दुनिया में आज भी असली जैनेटिक भारत  यादव (अहीर)और  इजराएल के यहूदी ही होते है क्यों की इनमें ही  वंश के ये नियम हैं ..
माता पिता दोनों ही  यादव या यहूदी होंगे तभी सन्तान यहूदी या यादव होगा बर्ना  खुद को यदुवंशी कहकर सन्तोष करो वैसे तो आदिमजाति नश्ल तो अहीर ही है सभी यदुवंशीयों का मूल ...

यादव अवर्ण हैं बिल्कुल  वर्ण-व्यवस्था से परे 

जैसे कृष्ण और बलराम  कर्षण करने के लिए हल और दुश्मनों परास्त करने के लिए हथियार भी और गाय का पालन किया और गीता का ज्ञान भी दिया। 
और शूद्र के रूप में सूत या सारथी भी बने 


वैसे ही हमारी कौम किसी वर्ण व्यवस्था के अनुरूप नहीं है यही हमें इस ब्राह्मण धर्म से अलग करता है ।।



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