गणेशजी की ही तरह हनुमानजी के स्वरूप और जन्म को लेकर भी काफी भ्रांतियाँ हैं।
रामायण समेत तमाम पुराणों मे हनुमानजी के जन्म को लेकर अलग-अलग कहानियाँ लिखी हैं।
हनुमानजी के जन्म को लेकर सबसे पहली कथा रामायण किष्किंधाकाण्ड सर्ग-66 मे मिलती है!
कथानुसार एक दिन अंजना पर्वत शिखर पर विचरण कर रही थी, तभी पवनदेव की दृष्टि उन पर पड़ी!
अंजना की सुन्दरता को देखकर पवनदेव काम-मोहित हो गये, और झपटकर अंजना को अपनी भुजाओं मे भरकर सीने से लगा लिए!
अंजना पतिव्रता नारी थी, उसने पवनदेव को धिक्कारते हुये कहा कि तुम कौन हो जो मेरा सतित्व नष्ट करने पर तुले हो?
पवनदेव ने कहा कि मै वायु का देवता पवन हूँ, मै तुम्हारे सतित्व को नष्ट नही करूँगा, बस तुमसे मानसिक समागम करके अपने जैसा ही बलवान और वेगवान पुत्र उत्पन्न करूँगा! हे देवी! इससे मेरी इच्छा भी पूरी हो जायेगी और तुम्हारा सतीत्व भी बचा रहेगा!
इसके बाद पवनदेव ने जो समागम किया उसी का परिणाम था कि हनुमान का जन्म हुआ! इसीलिये हनुमान को "पवनपुत्र" भी कहा जाता है! (चित्र-1&2)
दूसरी कथा शिवपुराण शतरुद्रसंहिता अध्याय-10 मे लिखी है।
इस कथानुसार जब विष्णु ने मोहिनी का रूप बनाया तो उस अद्वितीय सुन्दरता को देखकर शिवजी कामातुर हो गये और उनका वीर्यपात हो गया। तब सप्तऋषियों ने उस वीर्य को एक पात्र मे रख लिया और बाद मे उसी शिव-वीर्य को अंजना के कान-मार्ग से गर्भाशय मे स्थापित कर दिया और उसी के परिणाम-स्वरूप हनुमान का जन्म हुआ! यही कारण है कि हनुमान को शिव का रुद्रावतार भी कहते हैं। (चित्र-3)
वैसे शिवपुराण भले ही हनुमान को शिव का अवतार बताता है, पर पद्मपुराण पातालखण्ड अध्याय-119 मे तो शिव और हनुमान का युद्ध तक लिखा है, जिस युद्ध मे हनुमान अपने गदा से मार-मारकर शिव की पसलियां तोड़ डालते हैं! (चित्र-4 पढ़कर देख लें)
खैर हनुमान जन्म की तीसरी कथा स्कन्दपुराण वैष्णव-भूमिवाराहखण्ड अध्याय-73 मे लिखी है।
यहाँ लिखा है कि अंजना का विवाह केशरी नामक वानर से हुआ, पर कई वर्षों बाद भी उन्हे संतान पैदा न हुई। इसके बाद अंजना ने मतंगऋषि के आज्ञानुसार वायुदेव की घोर तपस्या की...
अंजना के तप से प्रसन्न होकर वायुदेव अंजना के पास ही रहने लगे तथा उनके आशिर्वाद से ही अंजना ने हनुमान को जन्म दिया। (चित्र-5)
इस पुराण मे जैसा लिखा है उससे तो नियोग वाला मामला लगता है।
खैर जो भी हो, पर हनुमानजी के जन्म के बारे मे सत्य कहना मुश्किल ही है।
वैसे मै यहाँ यह बताता चलूँ की हनुमान बन्दर नही बल्कि वानर थे।
हनुमान जी कर्नाटक के आदिवासी समुदाय से आते थे जो वन मे रहने के कारण "वानर" कहे जाते थे।
आज भी आस्ट्रेलियाई खिलाड़ियों को आस्ट्रेलिया के राष्ट्रीय पशु कंगारू की वजह से "कंगारू" ही कहा जाता है, और न्यूजीलैण्ड के खिलाड़ियों को कीवी, पर वे न तो कंगारू हैं और न ही कीवी।
बस ऐसा ही हनुमानजी के साथ भी हुआ था।
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