शनिवार, 30 मार्च 2019

अवेस्तान मे

हम्हें हिन्दु धर्म के अतिरिक्त भी  अन्य धर्मों के ग्रंथों को पढ़ने की उत्कट लालसा  है।
इसी कड़ी मे काफी दिनों से मेरी इच्छा पारसी धर्म ग्रन्थ "अवेस्ता" को पढ़ने की थी।
अवेस्ता एक प्रकार से लुप्त किताब है, क्योंकि पारसी धर्म भी दुनिया मे लगभग समाप्त ही हो गया है।

पारसी इस समय दुनिया की माइक्रो मॉइनोरिटी ( अल्पसंख्यक)मानी जाती है, जो भारत के गुजरात और महाराष्ट्र मे अभी भी मिलते हैं।

अवेस्ता को खोजते हुये मुझे एक वयोवृद्ध विद्वान आदरणीय "बृजनंदन शर्मा" के बारे मे पता चला।
शर्मा जी को अरबी, फारसी, हिब्रू, संस्कृत तथा भारत की तमाम भाषाओं का अच्छा  ज्ञान है।
इनके सम्पर्क मे आने से मुझे अवेस्ता मिल तो गयी, पर समस्या यह थी कि यह लिखी तो फारसी भाषा मे है पर लिपि गुजराती है।
दूसरी बात यह काफी प्राचीन किताब है जो 1880 मे प्रकाशित हुई थी।

वैसे लगभग सभी को यह पता ही है कि पहले ईरान मे पारसीधर्म था, बाद मे मुसलमानों के अतिक्रमण ने पारसियों और उनके धर्म को कुचल दिया, तथा कुछ पारसी किसी तरह अपनी जान बचाकर भारत (गुजरात) आ गये।

खैर, अब आते हैं अवेस्ता पर...
अवेस्ता की लेखनशैली वेदों से इतनी मिलती है कि आप यदि एक बार अवेस्ता पढ़ो तो आपको भ्रम हो जायेगा कि आप ऋगवेद ही पढ़ रहे हो! अवेस्ता मे वेदों की तरह ऋचायें तो हैं ही साथ ही इन्द्र, चन्द्र और मित्र जैसे देवताओं के नाम भी हैं।

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अवेस्ता मे चातुष्यवर्ण नही अपितु वर्ग व्यवस्था भी है जो ऋग्वेद के पुरुषसूक्त में भी लिखी है।
अवेस्ता के एक अध्याय जिसे "आफरीन अषो जरथुस्त्र" कहते हैं, उसमे लिखा है कि अवेस्ता का ईश्वर (अहुर मज्द) जरथुस्त्र (पारसी धर्म के प्रवर्तक) से कहते हैं कि "हमारे दस पुत्र हुये! उनमे से तीन अर्थवान (अथर्वऋषि जैसे ज्ञानी अर्थात ब्राह्मण) तीन रथेस्तार (क्षत्रिय) तीन वास्त्रेय (व्यापारी अर्थात वैश्य) हुये, और दसवां पुत्र हुतोक्ष (कुशल कारीगर अर्थात शूद्र) हुआ।
हांलाकि पारसियों के ईश्वर अहुर मज्द ने दसवें पुत्र की बहुत प्रशंसा भी की है और कहा कि मेरा यह पुत्र चन्द्रमा जैसा प्रकाशवान, अग्नि जैसा चमकदार, इन्द्र की तरह शत्रुओं का दमन करने वाला और राम की तरह आदरणीय होगा।"

अवेस्था कि वर्णव्यवस्था ठीक वेदों जैसी ही है, बस वैदिक-वर्णव्यवस्था मे शूद्र को निम्न दिखाया गया है, जबकि अवेस्ता का ईश्वर शूद्र को ही सबसे अधिक प्रेम करता है।

अब यहाँ सवाल यह उठता है कि अवेस्ता वेदों से इतनी अधिक मिलती कैसे है?
क्या वेदों की नकल करके अवेस्ता बनी, या अवेस्ता की नकल करके वेद बने?
वैसे भी ज्योतिबा फुले ने बहुत पहले अपनी किताब "गुलामगीरी" मे यह दावा किया था कि आर्य ईरान से भारत आये थे, जबकि दयानन्द सरस्वती का मानना था कि आर्य भारत से दूसरे देश जैसे कि ईरान वगैरह मे गये।
सच जो भी हो, पर वैदिकधर्म और पारसीधर्म का कहीं न कहीं गहरा सम्बन्ध जरूर हैं!

आज के बामसेफी भी यही कहते हैं कि ईरान से आर्यों की तीन जातियाँ (अथर्वा, रथाइस्ट और वस्तारिया) भारत मे आये!
रामायण की भी माने तो राजा दशरथ की पत्नि कैकेयी ईरान की ही थी। वही पुरातन शोधकर्ताओं की माने तो ब्रह्मा भी ईरान के एक प्रदेश (प्राचीन सुषानगर) के थे।

वैसे सच चाहे जो भी हो, पर भारतीय आर्यो और ईरानी आर्यों का गहरा सम्बन्ध जरूर है। अवेस्ता मे तो ईरान का प्राचीन नाम "अइर यान वेज" अर्थात "आर्यों का देश" बताया भी गया है ।

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