भारतीय तथा योरोपीय आर्यों में प्रचलित थी -- मृतक के दाह संस्कार की पृथा ~ --------- ----- ---------- ------------------------------- यादव योगेश कुमार रोहि ग्राम :---आज़ादपुर पत्रालय:--- पहाड़ीपुर जनपद अलीगढ़
----- ----------------------------------------------------
अन्तिम संस्कार के सर्वाधिक प्रचलित विधियों में एक है, मृतदेह को भूमि में दबाना जिसे दफ़न करना कहते हैं इसके बाद आता है दाहसंस्कार जो हिन्दू धर्म तथा उससे निकले कुछ पंथो में प्रचलित है। ऐसी आधुनिक इतिहस कारों की मान्यता है ! इतिहास- कार ये भी कहते हैं | कि ईसाइयों, मुस्लिमों, यहूदियों समेत कई अन्य समाज-संस्कृतियों में शवों को दफ़नाने की परम्परा है। मुस्लिम समाज में शवों को जहां गाड़ा जाता है उसे कब्रिस्तान कहते हैं। श्मशान शब्द का विकास भी इन्हीं रूपों से हुआ है हिन्दुओं में उस स्थान को श्मशान कहते हैं। हिन्दुओं में आमतौर पर दाहसंस्कार की परम्परा है मगर उसके कुछ पंथो में शवों को दफ़नाया भी जाता है जिसे समाधि देना कहते हैं। हिन्दी के समाधि शब्द में कई अर्थ छिपे हैं। आमतौर पर चिंतन-मनन की मुद्रा अथवा ध्यानमग्न अवस्था को भी समाधि कहते हैं और कब्र को भी समाधि कहते हैं। समाधि शब्द बना है आधानम् से जिसका अर्थ होता है ----- ऊपर रखना, प्राप्त करना, मानना, यज्ञाग्नि स्थापित करना आदि। इसके अलावा कार्यरूप में परिणत करना भाव भी इसमें शामिल है। आधानम् में सम् उपसर्ग लगने से बनता है समाधानम्। जब सम् अर्थात समान रूप से बहुत सी चीज़ें अथवा तथ्य सामने रखे जाते हैं, गहरी बातों को उभारा जाता है तो सब कुछ स्पष्ट होने लगता है। यही है समाधानम् या समाधान अर्थात निष्कर्ष, संदेह निवारण, शांति, सन्तोष आदि। समाधि इसी कड़ी का हिस्सा है जिसमें संग्रह, एकाग्र, चिंतन, आदि भाव हैं। जब बहुत सारी चीज़ों को सामने रखा जाता है तब उनमें से चुनने की प्रक्रिया शुरू होती है। भौतिक तौर पर विभिन्न वस्तुओं के बीच इसे चुनाव कहा जाता है। पर जब यह प्रक्रिया मन में चलती है तब यह भाव चिन्तन कहलाती है। यह भाव-चिन्तन ही मनोयोग है, तपस्या है, समाधि है। आमतौर पर ऋषि-मुनि, तपस्वी ही समाधि अवस्था में पहुंचते हैं। ऐसे लोगों की आत्मा जब देहत्याग करती थी तो उसे मृत्यु न कह कर समाधि लगना कहा जाता था .... परन्तु में इसके विपरीत कुछ तथ्य समायोजित करना चाहता हूँ ---- सर्व प्रथम दफ़न शब्द संस्कृत भाषा के तपन = दाहकरण का फारसी प्रतिरूप है परन्तु ईरानी आर्य असुर संस्कृति के उपासक थे अत: उन्होंने उस अग्नि में मृतक को जलाना पाप माना जिसकी वह नित्य उपासना करते हैं परन्तु मुसलमानों ने दफ़न शब्द को मुर्दे को दबाने के अर्थ में ग्रहण किया ---- और प्रचीन यूरोपीय आर्यों के दाह संस्कार सम्बन्धी वर्णन होमर ई०पू० ८०० के समकक्ष उनके इलियड महाकाव्य में यूनानी योद्धा सिकन्दर का पूर्वज हर्कुलिस ( एक्लीश ) अपने चचेरे भाई का दाह संस्कार एक ऊँचे टापू पर मृतक की आँखों पर दो स्वर्ण सिक्के रखकर करता है -! और ऐसा ही ट्रॉय के हेक्टर का पिता प्रियम अपने पुत्र हेक्टर के दाह संस्कार के समय करता है |🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥 प्राचीन यूनान तथा ट्रॉय में मृतक दाह संस्कार के बारह दिन तक शोक की पृथा भारतीय आर्यों के समान कायम थी प्राचीन जर्मन संस्कृति में भी दाह संस्कार की पृथा प्रचलित थी रोमन संस्कृति में दाह- संस्कार को क्रीमेशन Cremation कहते थे यह शब्द लैटिन क्रिया Cremare = to burn
It is the hypothetical source of/evidence for its existence is provided by: Sanskrit kudayati "singes;" Latin carbo "a coal, glowing coal; charcoal," cremare "to burn;" Lithuanian kuriu "to heat," karštas "hot," krosnis "oven;" Old Church Slavonic kurjo "to smoke," krada "fireplace, hearth;" Russian ceren "brazier;" Old High German harsta "roasting;" Gothic hauri "coal;" Old Norse hyrr "fire;" Old English heorð "hearth."
________________________________________
cremare = जलाने के लिए
यह अपने अस्तित्व के लिए / साक्ष्य का काल्पनिक स्रोत है: संस्कृत कुदायती "गायन"; लैटिन कार्बो "कोयला, चमकदार कोयले, लकड़ी का कोयला," जलाने के लिए दमखम ";" लिथुआनियाई कुरी "गर्मी", "गर्म", "कुर्निश" ओवन; " पुराना चर्च स्लावोनिक कूर्जो "धूम्रपान करने के लिए," क्राडा "चिमनी, चूल्हा;" रूसी सीरेन "ब्रेज़ीयर;" पुरानी हाई जर्मन हार्स्टा "बरस रही"; गॉथिक हौरी "कोयला;" पुराना नॉर्स हायर "आग;" पुरानी अंग्रेजी भाषा "चूल्हा।"
परन्तु संस्कृत भाषा में श्रमु श्रिष् आदि धातुऐं हैं ।
दाहे
( श्रेषति शिश्रेष शिश्लेषिथ श्लेषिता ) शिषि पिपिं शुष्यतिशिष्यती त्विषिं श्लिषिमित्यनिट्कारिकायां दैवादिकस्य श्लिषेर्ग्रहणं तेनास्येतीह् उदातः उक्तं च कैयटे श्लिष आलिङ्गन इति क्सविघावनिट इत्यनवर्त्तनाद् दाह्मार्थस्य सेटो ग्रहणाभाव इति एवं तत्र न्यासपदमञ्जर्योरपि यस्त्वनिट्कारिकाव्याख्यानन्यासे द्वयोर्ग्रहणमिति पाठः सस्वोक्तिविरोधाद् ग्रन्थान्तरविरोधाच्च प्रमादलिखितः तथा च वर्द्धमानस्वामिसंमताकारादयश्चामुं सेटमाहुः श्लेषयतीति (श्लेषः)"श्याद्व्यधास्त्रुसंस्त्रतीणवसावहृलिहश्लिषश्वसश्च'' इति कर्त्तारि, णः ( श्लेष्मा श्लेष्मलः मत्वर्थे श्लष्मणः) पामादित्वान्नः, अयमपि मत्वर्थे श्लेष्मणःशमनं कोपनं वा (श्लेष्मिकम् ) तस्य निमित्तप्रकरणे "वातपित्तश्लेष्मभ्यः शमनकोपनयोरुपसंख्यानम्''इति ठक्(श्लक्ष्णः)"श्लिषेरच्चोपधाया'' इति क्नप्रत्ययः उपधायाश्चकारः श्लिष्यतेर्वा (श्लक्ष्णः आचारश्लक्ष्णः) "पूर्वस दृश'' इत्यादिना समासः आलिङ्गने दिवादिः श्लेषणे चुरादिः ( प्रोषति प्लोषतीत्यादि ) प्लुष्यतीति दिवादिपाठात् सेट् प्रुषिप्लुषी द्वौ स्त्रैहने क्र्यादौ
_________________________________________
मृतक का दाह करना वस्तुत: इस रुप का तादात्म्य संस्कृत भाषा के श्रमशान् रूप से प्रस्तावित है संस्कृत में श्रमु = तापसि दाहे खेदे च उ० श्राम्यति -- श्राम्यते श्रम्
आदि धातु के आत्मने पदीय क्रिया रूप में शानच् प्रत्यय करने पर श्रमशान् रूप सिद्ध होता है = अर्थात् जलता हुआ वामन शिव राम आप्टे ने वाचस्पत्यम् को के आधार पर श्मशानम्--------श्मान: शय्या: शेरतेsत्र -- शी -- आनच् डिच्च अथवा श्मन् शब्देन शब: प्रोक्त: तस्य शानं शयनं )------- 🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥--- वस्तुत: श्रम् धातु की सहवर्ति अन्य धातुऐं श्रा - पाके | श्रै - पाके श्रीञ् - पाके श्रिषु - दाहे तथा श्यैन -करणम् = अलग चिता पर मृतक का दाह संस्कार करना |शव- शयैन -- श्मशान -------- श्यै = भ्वा० आत्मने पदीय श्यायते ,श्यान , शीत ,शीन, १-- जाना २-- जमना ३-- जलाना , सुखाना ---आदि ... अत: प्रबल प्रमाणों के अभाव में इतिहास कार इस तथ्य को सिद्ध नहीं कर सकते हैं कि भारतीयों का श्मशान शब्द कब्रुस्तान का समानार्थक है || 🔯🔯🔯🔯🔯🔯🔯🔯🔯🔯🔯🔯🔯
_________________________________________
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें