मंगलवार, 31 अक्तूबर 2017

अहीर, गुर्जर तथा जाट हैं वास्तविक यादव -

अहीर ही वास्तविक यादवों का रूप हैं ।
जिनकी अन्य शाखाएें गौश्चर: (गुर्जर) तथा जाट आदि  हैं ।
दशवीं सदी में अल बरुनी ने नन्द को जाट के रूप में वर्णित किया है ।
जाट अर्थात् जादु (यदु ) अहीर ,जाट ,गुर्जर आदि जन जातियों को शारीरिक रूप से शक्ति शाली और वीर होने पर भी तथा कथित ब्राह्मणों ने कभी क्षत्रिय ही नहीं माना । _______________________________________ क्योंकि इनके पूर्वज यदु को वेदों में दास घोषित कर दिया  था ।.... और आज जो राजपूत अथवा ठाकुर मूँछें खींच खींच कर  स्वयं को यदु वंशी क्षत्रिय  लिख रहे हैं ।
... वो यदु वंश के कभी नहीं हैं यदि स्वयं को ब्राह्मणों द्वारा घोषित क्षत्रिय कहते हैं।
क्योंकि वेदों में भी यदु को दास अथवा असुर के रूप में वर्णित किया है।
और जिस ऋग्वेद को विश्व का सबसे प्राचीनत्तम ग्रन्थ माना गया है ।
उसी ऋग्वेद के दशम् मण्डल के ६२वें सूक्त की १० वीं ऋचा " इस तथ्य का महाप्रमाण है । यद्यपि तत्कालीन कुछ ब्राह्मणों द्वारा द्वेष वश अहीरों को शूद्र कह कर ही सम्बोधित किया गया था ।
परन्तु अहीर (शुद्ध रूप अभीर तथा समूहवाचक रूप आभीर ) अपने नाम- व्युत्पत्ति- मूलक अर्थ के द्वारा ही
प्रकाशन करता है :- अ = नहीं + भीर = कायर अर्थात् जो किसी से डरता नहीं वीर अथवा यौद्धा
असली यदु वंशी प्रमाणित करने के लिए ब्रह्म - वाक्य ही नहीं विवादों के युद्ध में ब्रह्मास्त्र है ।
ऋग्वेद की यह प्राचीनत्तम ऋचा :-
_________________________________________
उत् दासा परिविषे स्मद्दिष्टी गोपरीणसा
यदुस्तुर्वश्च च मामहे ।(१०/६२/१० ऋग्वेद)
_________________________________________
अर्थात् यदु और तुर्वसु नामक दौनो दास जो गायों से घिरे हुए हैं , हम उन मुस्कराहट से पूर्ण दृष्टि वाले यदु और तुर्वसु दौनों गोपों की प्रशंसा करते हैं ।
ऋग्वेद की यह ऋचा प्राचीनत्तम है क्यों कि लौकिक संस्कृत में अकारान्त पुल्लिंग संज्ञा का द्विवचन रूप दासौ होगा न कि दासा यही इस सूक्त की प्राचीनता का प्रमाण है ।
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कुछ जादौन समुदाय के लोग यद्यपि अहीरों को
कहते हैं ,कि अहीरों  ने यादव उपाधि (sir name)
हमसे छीन ली और ये विदेशी लोग हमारे वाप को अपना वाप कह रहे हैं । परन्तु विश्व एैतिहासिक सन्दर्भों से हम उद्धृत करते हैं । कि
जादौन तो अफ़्ग़ानिस्तान में तथा पश्चिमोत्तर पाकिस्तान में पठान थे ।
पठानिया वंश की उत्पत्ति
हिन्दू पण्डितों के अनुसार
इस वंश की उत्पत्ति पर कई मत हैं,
श्री ईश्वर सिंह मढ़ाड कृत राजपूत वंशावली के पृष्ठ संख्या 181-182 के अनुसार पठानिया राजपूत बनाफर वंश की शाखा है,उनके अनुसार बनाफर राजपूत पांडू पुत्र भीम की हिडिम्बा नामक नागवंशी कन्या से विवाह हुआ था हिडिम्बा से उत्पन्न पुत्र घटोत्कच के वंशज वनस्पर के वंशज बनाफर राजपूत हैं,पंजाब के पठानकोट में रहने वाले बनाफर राजपूत ही पठानिया राजपूत कहलाते है ।
परन्तु पठान कोटी सरनेम न होकर पठानिया होना ।
इस तथ्य को प्रमाणित नहीं करता है ।
सत्य तो यह है कि पठान यहूदीयों की एक शाखा थी ।
जो स्वयं को जादौन पठान कहती है पठान संस्कृत पृक्तन् का ही अपर विकसित रूप है ।
जो सातवीं सदी में कुछ इस्लाम में चले गये और कुछ भारत में राजपूत अथवा ठाकुर के रूप में उदित हुए ।
क्योंकि पठान ही वाद में प्रस्थ तथा प्रस्थान कहे गये । यद्यपि जादौन पठान स्वयं को यहूदी ही मानते हैं .... ________________________________________ परन्तु हैं ये पठान लोग धर्म की दृष्टि से मुसलमान है ... पश्चिमीय एशिया में भी अबीर (अभीर) यहूदीयों की प्रमाणित शाखा है ।🔪🔪🔪🔪🔪🔪🔪
यहुदह् को ही यदु कहा गया ... हिब्रू बाइबिल में यदु के समान यहुदह् शब्द की व्युत्पत्ति मूलक अर्थ है " जिसके लिए यज्ञ की जाये" और यदु शब्द यज् --यज्ञ करणे धातु से व्युत्पन्न वैदिक शब्द है । ----------------------------------------------------------------- वेदों में वर्णित तथ्य ही ऐतिहासिक श्रोत हो सकते हैं । न कि रामायण और महाभारत आदि ग्रन्थ में वर्णित तथ्य.... ये पुराण आदि ग्रन्थ बुद्ध के परवर्ती काल में रचे गये । और भविष्य-पुराण सबसे बाद अर्थात् में उन्नीसवीं सदी में.. ----------------------------------------------------------------- आभीर: , गौश्चर: ,गोप: गोपाल : गुप्त: यादव - इन शब्दों को एक दूसरे का पर्याय वाची समझा जाता है। अहीरों को एक जाति, वर्ण, आदिम जाति या नस्ल के रूप मे वर्णित किया जाता है, जिन्होने भारत व नेपाल के कई हिस्सों पर राज किया था । गुप्त कालीन संस्कृत शब्द -कोश "अमरकोष " में गोप शब्द के अर्थ ---गोपाल, गोसंख्य, गोधुक, आभीर:, वल्लभ, आदि बताये गए हैं। प्राकृत-हिन्दी शब्दकोश के अनुसार भी अहिर, अहीर, अरोरा व ग्वाला सभी समानार्थी शब्द हैं। हिन्दी क्षेत्रों में अहीर, ग्वाला तथा यादव शब्द प्रायः परस्पर समानार्थी माने जाते हैं।. वे कई अन्य नामो से भी जाने जाते हैं, जैसे कि गवली, घोसी या घोषी अहीर, घोषी नामक जो मुसलमान गद्दी जन-जाति है । वह भी इन्ही अहीरों से विकसित है । हिमाचल प्रदेश में गद्दी आज भी हिन्दू हैं । तमिल भाषा के एक- दो विद्वानों को छोडकर शेष सभी भारतीय विद्वान इस बात से सहमत हैं कि अहीर शब्द संस्कृत के आभीर शब्द का तद्भव रूप है। आभीर (हिंदी अहीर) एक घुमक्कड़ जाति थी जो शकों की भांति बाहर से हिंदुस्तान में आई। _________________________________________ इतिहास कारों ने ऐसा लिखा ... परन्तु प्रमाण तो यह भी हैं कि अहीर लोग , देव संस्कृति के उपासक जर्मनिक जन-जातियाँ से सम्बद्ध भारतीय आर्यों से बहुत पहले ही इस भू- मध्य रेखीय देश में आ गये थे, जब भरत नाम की इनकी सहवर्ती जन-जाति निवास कर कहा थी । भारत नामकरण भी यहीं से हुआ है... शूद्रों की यूरोपीय पुरातन शाखा स्कॉटलेण्ड में शुट्र (Shouter) थी । स्कॉटलेण्ड का नाम आयर लेण्ड भी नाम था । तथा जॉर्जिया (गुर्जिस्तान) भी इसी को कहा गया ... स्पेन और पुर्तगाल का क्षेत्र आयबेरिया इन अहीरों की एक शाखा की क्रीडा-स्थली रहा है ! आयरिश भाषा और संस्कृति का समन्वय प्राचीन फ्रॉन्स की ड्रयूड (Druids) अथवा द्रविड संस्कृति से था । ब्रिटेन के मूल निवासी ब्रिटॉन् भी इसी संस्कृति से सम्बद्ध थे । ______________________________________ परन्तु पाँचवी-सदी में जर्मन जाति से सम्बद्ध एेंजीलस शाखा ने इनको परास्त कर ब्रिटेन का नया नाम आंग्ललेण्ड देकर अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया --- भारत के नाम का भी ऐसा ही इतिहास है । _______________________________________ आभीर शब्द की व्युत्पत्ति- " अभित: ईरयति इति आभीर " के रूप में भी मान्य है । इनका तादात्म्य यहूदीयों के कबीले अबीरों (Abeer) से प्रस्तावित है । "( और इस शब्द की व्युत्पत्ति- अभीरु के अर्थ अभीर से प्रस्तावित है--- जिसका अर्थ होता है ।जो भीरु अथवा कायर नहीं है ,अर्थात् अभीर ________________________________________ इतिहास मे भी अहीरों की निर्भीकता और वीरता का वर्णन प्राचीनत्तम है । इज़राएल में आज भी अबीर यहूदीयों का एक वर्ग है । जो अपनी वीरता तथा युद्ध कला के लिए विश्व प्रसिद्ध है । कहीं पर " आ समन्तात् भीयं राति ददाति इति आभीर : इस प्रकार आभीर शब्द की व्युत्पत्ति-की है , जो अहीर जाति के भयप्रद रूप का प्रकाशन करती है । अर्थात् सर्वत्र भय उत्पन्न करने वाला आभीर है । यह सत्य है कि अहीरों ने दास होने की अपेक्षा दस्यु होना उचित समझा ... तत्कालीन ब्राह्मण समाज द्वारा बल-पूर्वक आरोपित आडम्बर का विरोध किया । अत: ये ब्राह्मणों के चिर विरोधी बन गये और ब्राह्मणों ने इन्हें दस्यु ही कहा " _________________________________________ बारहवीं सदी में लिपिबद्ध ग्रन्थ श्रीमद्भागवत् पुराण में अहीरों को बाहर से आया हुआ बताया है , वह भी यवन (यूनानीयों)के साथ ... देखिए कितना विरोधाभासी वर्णन है । फिर महाभारत में मूसल पर्व में वर्णित अभीर कहाँ से आ गया.... और वह भी गोपिकाओं को लूटने वाले .. ________________________________________ जबकि गोप को ही अहीर कहा गया है । संस्कृत साहित्य में.. इधर उसी महाभारत के लेखन काल में लिखित स्मृति-ग्रन्थों में व्यास-स्मृति के अध्याय १ के श्लोक संख्या ११---१२ पर गोप, कायस्थ ,कोल आदि को इतना अपवित्र माना, कि इनको देखने के बाद तुरन्त स्नान करना चाहिए.. _______________________________________ यूनानी लोग भारत में ई०पू० ३२३ में आये और महाभारत को आप ई०पू० ३०००वर्ष पूर्व का मानते हो.. फिर अहीर कब बाहर से आये ई०पू० ३२३ अथवा ई०पू० ३०००में .... भागवत पुराण में तथागत बुद्ध को विष्णु का अवतार माना लिया गया है । जबकि वाल्मीकि-रामायण में राम बुद्ध को चोर और नास्तिक कहते हैं । राम का और बुद्ध के समय का क्या मेल है ? अयोध्या काण्ड सर्ग १०९ के ३४ वें श्लोक में राम कहते हैं--जावालि ऋषि से---- -------------------------------------------------------------- यथा ही चोर:स तथा हि बुद्धस्तथागतं नास्तिकमत्र विद्धि ------------------------------------------------------------------- --------------------------------------- बारहवीं सदी में लिपिबद्ध ग्रन्थ श्रीमद्भागवत् पुराण में अहीरों को बाहर से आया बताया गया..... फिर महाभारत में मूसल पर्व में वर्णित अभीर कहाँ से आ गये.... -------------------------------- किरात हूणान्ध्र पुलिन्द पुलकसा: आभीर शका यवना खशादय :। येsन्यत्र पापा यदुपाश्रयाश्रया शुध्यन्ति तस्यै प्रभविष्णवे नम: ------------------------------------ श्रीमद्भागवत् पुराण-- २/४/१८ वास्तव में एैसे काल्पनिक ग्रन्थों का उद्धरण देकर जो लोग अहीरों(यादवों) पर आक्षेप करते हैं । नि: सन्देह वे अल्पज्ञानी व मानसिक रोगी हैं .. वैदिक साहित्य का अध्ययन कर के वे अपना उपचार कर लें ... ------------------------------------------------------------ हिब्रू भाषा में अबीर शब्द का अर्थ---वीर अथवा शक्तिशाली (Strong or brave) आभीरों को म्लेच्छ देश में निवास करने के कारण अन्य स्थानीय आदिम जातियों के साथ म्लेच्छों की कोटि में रखा जाता था, तथा वृत्य क्षत्रिय कहा जाता था। वृत्य अथवा वार्त्र भरत जन-जाति जो वृत्र की अनुयायी तथा उपासक थी । जिस वृत्र को कैल्ट संस्कृति में ए-बरटा (Abarta)कहा है । जो त्वष्टा परिवार का सदस्य हैं । तो इसके पीछे यह कारण था , कि ये यदु की सन्तानें हैं _______________________________________ यदु को ब्राह्मणों ने आर्य वर्ग से बहिष्कृत कर उसके वंशजों को ज्ञान संस्कार तथा धार्मिक अनुष्ठानों से वञ्चित कर दिया था । और इन्हें दास -(दक्ष) घोषित कर दिया था । इसका एक प्रमाण देखें --- ------------------------------------------------------------------- उत् दासा परिविषे स्मद्दिष्टी गोपरीणसा यदुस्तुर्वश्च च मामहे- ------------------------------------------------------------- ऋग्वेद के दशम् मण्डल के ६२ सूक्त के १० वें श्लोकाँश में.. यहाँ यदु और तुर्वसु दौनों को दास कर सम्बोधित किया गया है । यदु और तुर्वसु नामक दास गायों से घिरे हुए हैं हम उनकी प्रशंसा करते हैं। ---------------------------------------------------------------- ईरानी आर्यों की भाषा में दास शब्द दाह/ के रूप में है जिसका अर्थ है ---पूज्य व पवित्र अर्थात् (दक्ष ) यदु का वर्णन प्राचीन पश्चिमीय एशिया के धार्मिक साहित्य में गायों के सानिध्य में ही किया है । अत: यदु के वंशज गोप अथवा गोपाल के रूप में भारत में प्रसिद्ध हुए..... हिब्रू बाइबिल में ईसा मसीह की बिलादत(जन्म) भी गौओं के सानिध्य में ही हुई ... ईसा( कृष्ट) और कृष्ण के चरित्र का भी साम्य है | ईसा के गुरु एेंजीलस( Angelus)/Angel हैं ,जिसे हिब्रू परम्पराओं ने फ़रिश्ता माना है । तो कृष्ण के गुरु घोर- आंगीरस हैं । ---------. ------------ ---------------------------------------- दास शब्द ईरानी असुर आर्यों की भाषा में दाहे के रूप में उच्च अर्थों को ध्वनित करता है। बहुतायत से अहीरों को दस्यु उपाधि से विभूषित किया जाता रहा है । सम्भवत: इन्होंने चतुर्थ वर्ण के रूप में दासता की वेणियों को स्वीकार नहीं किया, और ब्राह्मण जाति के प्रति विद्रोह कर दिया तभी से ये दास से दस्यु: हो गये ... जाटों में दाहिया गोत्र इसका रूप है । वस्तुत: दास का बहुवचन रूप ही दस्यु: रहा है । जो अंगेजी प्रभाव से डॉकू अथवा (dacoit )हो गया । ------------------------------------------------------------------- महाभारत में भी युद्धप्रिय, घुमक्कड़, गोपाल अभीरों का उल्लेख मिलता है। महाभारत के मूसल पर्व में आभीरों को लक्ष्य करके प्रक्षिप्त और विरोधाभासी अंश जोड़ दिए हैं । कि इन्होने प्रभास क्षेत्र में गोपियों सहित अर्जुन को भील रूप में लूट लिया था । आभीरों का उल्लेख अनेक शिलालेखों में पाया जाता है। शक राजाओं की सेनाओं में ये लोग सेनापति के पद पर नियुक्त थे। आभीर राजा ईश्वरसेन का उल्लेख नासिक के एक शिलालेख में मिलता है। ईस्वी सन्‌ की चौथी शताब्दी तक अभीरों का राज्य रहा। अन्ततोगत्वा कुछ अभीर राजपूत जाति में अंतर्मुक्त हुये व कुछ अहीर कहलाए, जिन्हें राजपूतों सा ही योद्धा माना गया। ---------------------------------------------------------- मनु-स्मृति में अहीरों को काल्पनिक रूप में ब्राह्मण पिता तथा अम्बष्ठ माता से उत्पन्न कर दिया है । आजकल की अहीर जाति ही प्राचीन काल के आभीर हैं। ______________________________________ ब्राह्मणद्वैश्य कन्यायायामबष्ठो नाम जायते । "आभीरोsम्बष्टकन्यायामायोगव्यान्तु धिग्वण" इति-----( मनु-स्मृति ) अध्याय १०/१५ तारानाथ वाचस्पत्य कोश में आभीर शब्द की व्युत्पत्ति- दी है --- "आ समन्तात् भियं राति ददाति - इति आभीर : " अर्थात् सर्वत्र भय भीत करने वाले हैं । - यह अर्थ तो इनकी साहसी और वीर प्रवृत्ति के कारण दिया गया था । क्योंकि शूद्रों का दर्जा इन्होने स्वीकार नहीं किया । दास होने की अपेक्षा दस्यु बनना उचित समझा। अत: इतिहास कारों नें इन्हें दस्यु या लुटेरा ही लिखा । जबकि अपने अधिकारों के लिए इनकी यह लड़ाई थी ।

35 टिप्‍पणियां:

  1. वेद में असुर दासा दस्यु दानव राक्षस यातव्
    सब काला चमड़ी वाला द्राविड़ जाती को
    कहा गया है।
    कृष्णयोनि भी कहा गया।
    श्री कृष्णा का वध के बारे में कई
    मंत्र है वेद में।
    यातव् को शिश्नदेवा भी कहा गया।
    कृष्णा का दूसरा नाम है शम्बरा।
    शम्बरा वेद का सबसे बड़ा असुर
    राजा है

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    1. Abey krishna abheer jaati ke yaduvanshi abheer heer herek yudes to middle east ki sabse badi race hai south india mai pure aheer milte hi nahi hai

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  2. Asur ka matlab kali chamdi wala nahi hota asur iraan ke logo ko kaha gaya hai jo pure aryana hai iran ka matlab aryan aaj bhi gujrat kr ahir ayar aur ayrani kahlati hai maxmuller ne ahir ko central asian mana hai poore middle east ki abaadi yaduvanshi ki hai yaduvanshi koi jaati nahi ek race hai pure ahir north western india mai paye jaate hai samma ahir middle east tak gajpayti yadav ka afganistaan aur iraq mai raaj tha iraan ahir aur jaato ka ghar tha spain purtgal ukraine russia mai scythian avar rahte hai

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  3. Daitya diti ki santaan hai rakshak alag hai asur iraani aryo ko kaha gaya hai jiska matlab hota hai jo sharaab nahi peeta sura nahi leta bhratiya aryo aur iraani aryo ki dusmani isliye ye naam diya gaya beta yadav se austroid moolnivasi ko na jodo north western india pakistan ke sindh ke aheer ka caucasian dna bhraman se bhi jyada pure up bihar ke bhraman ka r1a5o hi hai jabki aheero ka 63 se lekar 72 tak hai jo indo afghani aur indo iranian family se belong karta hai

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    1. Abe madarchod mulle ki aulad. Afghanistan bhi pakistan ki tarah bharat se alag hua. Pahle ye pura aaryavart tha. Shakuni bhi afghanistan se tha. Afghanistan ko gandhar desh kaha jata tha. Chudasama yaduvanshi rajput he aur use abhir ya ahirrana kaha jata he.
      Tum randiputo ki tarah ham mughalo se sambandh nai banate. Jodhabai yad he na

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  4. Jai shri Krishna jai YADAV jai samaajwaadi jai madhav ( yadav hai Krishnavansi

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    1. Nhi bhai
      Waise to sabhi manu ki santaan h to hum sab ek h Na koi Rajput na Ahir na jaat aur na hi gujjar bs milkar rho ek saath raho Hindu Bankar ek baar sabhi bhai bolenge Har Har Mahadev

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    2. Har har mahadev jay shiri ram ye sabd bhahut ache lage bhai phir se jay mahadev jay shiri ram jay pirathavi raj singh chauhan

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  6. Mano to shabhi ak he na mano to koi ak nahi kiyu ki jat biradari hami logo ne bana di he kiyu darati pe kebal inshan aye the na ki jat biradari bas ham sab inshan ham sab ko ak hona padega tabhi kahe layege kashtariya rajput ram ram

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  7. 😂😂😂😂😂
    बाह बुद्ध के बेटा😂😂😂

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  8. तेरी मा की चुद में किसी असली वाले यदवंश का लण्ड गया लगता है इसलिए फर्जी को असली बता रहा है ग्वाले

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  9. Mubarak ho charwaho farzi yadavo gwale charwahe nokar vanshiyo dudh bechane ka itihas rakhne walo mubarak ho...mansiha yadav puja yadav ke bad ab salini yadav yani gwal vansh ke charwha9 ki betiyo ko muslim lund pasnd agaya he ..chudayi mubarak ho mugalo oe salo farzi charwaho banoge yadusvhi aur chudwaoge mugalo se😂 tum chudro se koi kshatruya vansh sadi hi nahi karta salo askiyat yahi he kyuki tum sb chor ho title chor vansh chor dudh me pani milate milate ahir gop mandal raj ne khud ko yadav likh ke khud ko krihsn se joorna chaha magar fail ajtak koi kshtriya vans tumse sadi. Vivah nahi karta...chudro

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    1. wo hum se ni humunse nhi karna chate kyuki yadav yadav se hi shadi karta haii naki jikar dekhe ga to mahabhart khol le tab pata chalega mc..........

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  10. Bhai kripya mugal put is post se dur rahe vo khud toh videshi hai sale dusro ko judje kare ge 🤣🤣 hamraa varnan sab jatio se pahle milta hai samja aur ved aur puran padh lo jalo mat mugal put yadav jaat gurjar ka bhaichara hamesha bana rahe jai hind jai shri krishna bhai

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    1. ahiraand ki choot boht mulayam or santusht krne waali hoti hai is choot ko kbhi turk kbhi mughal or kbhi khiljio ne maara or aaj KSHATRIYA MAAR RHE HAI >
      I LOVE MY AHIRAAND

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  11. गोवर्धन अंगुल उठे , उठे इन्द्र के नीर।
    भय चिन्ता वो ना करे जाके मित्र अहीर
    जय श्री कृष्ण
    जय अहिराना

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  12. रस्खान की कविता मे भी लिखा गया है ।
    मनुष हो तो वही रश्खां बसो ब्रज गोकुल गाँव के द्वारन।।।।।।।।।।।।।।
    ।।।
    ताहि अहीर की छोकरियां छछियां भर छांछ पे नाच नचावै

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  13. उत्तर प्रदेश के ब्रिटिश रिकार्ड में 1896ई
    अवध के छेत्र में पासी जाति में ग्वाल
    गुजर , कैथवास पाए गए । पासी जाति
    में गुजर , कैथवास में ग्वाल में होते है ।

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  14. पासी जाति में ग्वाल, गुजर, कैथवास होते है
    परंतु वे शुद्र नही है ना किसी ग्रंथ में पासी जाति
    को शुद्र है लिखा है । ब्रिटिश के अभिलेख में
    पासी जाति में गौदुहा ग्वाल होते है बिहार में

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  15. उत्तर प्रदेश के अवध के छेत्र में सत्र 1896ई o में ब्रिटिश शासन काल के गजेड़ियर में पासी
    जाति में कैथवास, गुर्जर में ग्वालो का समूह था।
    अर्थात पासी जाति में ग्वाल होते थे। ऐसे अंग्रेजो
    ने अवध के गजेडियर पृष्ठ संख्या 143 पर लिखा है। यही नहीं पासी जाति गौधुवा ग्वाल
    होते है। जो विहार छेत्र में है। पासी जाति किसी
    हिन्दू धर्म के ग्रन्थ में शुद्र नही नही लिखा है।
    पासी जाति का इतिहास ब्रिटिश अभिलेखों में
    आज भी मौजूद है। वे श्री कृष्ण भगवान को अपना पूर्वज मानते है। इतिहास का सबसे बड़ा प्रमाण यह है। पासी जाति नागवंशी मूलनिवासी है। वे

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