वीप्सा :----(वि + आप--सन्--अच ईत्)--
अ अभ्यासलोपश्च ।
व्याप्तौक्रियागुणद्रव्येर्युगपद्ब्याप्तुमिच्छा । यथा -“ मुक्तिर्नर्त्तेऽच्युतोपास्तिं भूतं भूतमभि प्रभुः । भक्तो विभुमभि प्राज्ञो गोविन्दमभितिष्ठति ॥ “ अच्युतोपास्तिं ऋते मुक्तिर्न स्यादित्यर्थः । प्रभुरीश्वरः भूतं भूतं अभि सर्व्वप्राणिषु अस्ति इत्यर्थः । वीप्सायां प्रयुक्तस्य पदस्य द्विर्भावः । इति मुग्धबोधटीकायां दुर्गादासः
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कविता है सार्थक वही, जिसका भाव स्वभाव.
वीप्सा घृणा-विरक्ति है, जिससे कठिन निभाव..
अलंकार वीप्सा वहाँ, जहाँ शब्द-आवृत्ति.
घृणा या कि वैराग की, दर्शित करे प्रवृत्ति..
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जहाँ पर शब्द की पुनरुक्ति द्वारा घृणा या विरक्ति के भाव की अभिव्यक्ति की जाती है वहाँ वीप्सा अलंकार होता है.
उदाहरण:१--
शिव शिव शिव कहते हो यह क्या?
ऐसा फिर मत कहना.
राम राम यह बात भूलकर,
मित्र कभी मत गहना. .
२.
राम राम यह कैसी दुनिया?
कैसी तेरी माया?
जिसने पाया उसने खोया,
जिसने खोया पाया..
३.
चिता जलाकर पिता की,
हाय-हाय मैं दीन.
नहा नर्मदा में हुआ,
यादों में तल्लीन.
४
'उठा लो ये दुनिया, जला दो ये दुनिया.
तुम्हारी है तुम ही सम्हालो ये दुनिया.
'ये दुनिया अगर मिल भी जाये तो क्या है?
ये दुनिया अगर मिल भी जाये तो क्या है?'
५.
मेरे मौला, प्यारे मौला, मेरे मौला...
मेरे मौला बुला ले मदीने मुझे
मेरे मौला बुला ले मदीने मुझे
वीप्सा में शब्दों के दोहराव से घृणा या वैराग्य के भावों की सघनता दृष्टव्य है.
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वस्तुतः पुनरुक्त प्रकाश, पुनरुक्त वदाभास तथा वीप्सा तीनों ही आवृत्ति मूलक अलंकार हैं. पुनरुक्त प्रकाश में शब्द की अनेक आवृत्तियों से अर्थ और भावना का प्रकाशन विशेष सबलता से होता है, पुनरुक्त वदाभास् में शब्द पर्याय अर्थ न देकर अन्य अर्थ देते हैं जबकि वीप्सा में शब्द की पुनरावृत्ति घृणा या विरक्ति दर्शाती है.
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