शनिवार, 3 जून 2017

वाल्मीकि रामायण में बुद्ध कहाँ से आये ?

वाल्मीकि-रामायण में ‘तथागत-बुद्ध’…
कहाँ से आये ?
भले ही ब्राह्मण अपने धर्म और ग्रंथों को अति प्राचीन बताकर कितना ही महिमा मण्डित करें,।
परन्तु वास्तविकता  छिपाई नहीं जा सकती हैं।
‘वाल्मिकी-रामायण’, ‘बुद्ध’ के बाद लिखी गयी रचना थी है ।
, इसका प्रमाण स्वयं वाल्मीकि-रामायण’ ही है।
‘वाल्मिकी रामायण’ मे ऐसे कईं प्रक्षिप्त श्लोक हैं,।
जो वाल्मीकि रामायण की प्राचीनता सन्दिग्ध करते हैं।

जो तथागत बुद्ध और बौद्ध धर्म के विरोधी में लिखे गये हैं ।
वाल्मीकि- रामायण के ये श्लोक, इस तथ्य की स्पष्ट पुष्टि करतें है, कि रामायण, गौतम बुद्ध और ‘बौद्ध धम्म’ के बाद लिखी गयी है।
पुष्यमित्र सुंग ई०पू०१८४ के समकालिक के अनुयायी ब्राह्मणों द्वारा बौद्ध मत को
विरोधात्मक लक्ष्य कर के नये सिरे से लेखन कार्य हुआ..
यहीं नहीं अपितु रामायण की बहुत बातें तो इसके ‘सम्राट अशोक’ से भी बाद लिखे जाने की पुष्टि करती है।
जैसे पाषण्ड: बौद्धों का प्रथम सम्प्रदाय था ।
जिसे अशोक ने अतीव दान दिया था ..तथा संरक्षण भी ..
जिसका मूल अर्थ है --वैदिक कर्म-काण्ड के नाम पर
पशु- बलि अस्पृस्यता आदि रूढ़िवादी पाशों (पाष)को काटने वाला मार्ग अर्थात्
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"पाषाणि बन्धनानि षण्डयति खण्डयति इति पाषण्ड: कथ्यते "
वाल्मिकी रामायण तथा मनु-स्मृति महाभारत तथा पुराणों में भी पाषण्ड शब्द बौद्ध मत के लिए आया है ।
तब तो ये सभी ग्रन्थ बौद्ध मत के बाद की लिपि- बद्ध रचनाऐं हैं ।
कथाऐं प्राचीन हो सकती हैं ।
परन्तु ये कल्पनाओं से रञ्जित अधिक हैं ।
बहुत सी बाते परस्पर विरोधी व मिथ्या हैं ।
बहुत सी बाते नैतिक रूप से भी मिथ्या हैं ।
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ऐसे ही कुछ श्लोक जो ‘आयोध्या-कांड’ में आये है ।
यहाँ पर वाल्मीकि रामायण के  लेखक ने ‘बुद्ध’ और ‘बौद्ध-धम्म’ को नीचा दिखाने की नीयत से  ‘तथागत-बुद्ध’ को स्पष्ट ही श्लोकबद्ध (सम्बोधन) करते हुए,
राम के मुँह से चोर, धर्मच्युत नास्तिक और अपमान-जनक अपमानजनक शब्दों से संबोधित करवा दिया हैं।
यहाँ कुछ उदाहरण प्रस्तुत किये जा रहैं हैं , जिनकी पुष्टि आप ‘वाल्मिकी रामायण से कर सकते हैं ।
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:- उग्र तेज वाले नृपनन्दन श्रीरामचन्द्र, जावालि ऋषि के नास्तिकता से भरे वचन सुनकर उनको सहन न कर सके और उनके वचनों की निंदा करते हुए उनसे फिर बोले :-
“निन्दाम्यहं कर्म पितुः कृतं , तद्धस्तवामगृह्वाद्विप मस्थबुद्धिम्।
बुद्धयाऽनयैवंविधया चरन्त , सुनास्तिकं धर्मपथादपेतम्।।”
– अयोध्याकाण्ड, सर्ग – 109. श्लोक : 33।।
• सरलार्थ :- हे जावालि!
मैं अपने पिता (दशरथ) के इस कार्य की निन्दा करता हूँ।
कि उन्होने तुम्हारे जैसे वेदमार्ग से भ्रष्ट बुद्धि वाले धर्मच्युत नास्तिक को अपने यहाँ स्थान दिया है ।। क्योंकि ‘बुद्ध’ जैसे नास्तिक - मार्गी , जो दूसरों को उपदेश देते हुए घूमा-फिरा करते हैं , वे केवल घोर नास्तिक ही नहीं, प्रत्युत धर्ममार्ग से च्युत भी हैं ।
     देखें राम बुद्ध के विषय में क्या कहते हैं ।
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“यथा हि चोरः स, तथा ही बुद्धस्तथागतं।
नास्तिकमत्र  विद्धि तस्माद्धियः शक्यतमः प्रजानाम् स नास्तिकेनाभिमुखो बुद्धः स्यातम् ।।
” -(अयोध्याकांड, सर्ग -109, श्लोक: 34 / पृष्ठों संख्या
गीता पेरेस गोरख पुर :1678)
सरलार्थ :- जैसे चोर दंडनीय होता है, इसी प्रकार ‘तथागत बुद्ध’ और और उनके नास्तिक अनुयायी भी दंडनीय है ।
‘तथागत'(बुद्ध) और ‘नास्तिक चार्वक’ को भी यहाँ इसी कोटि में समझना चाहिए।
इसलिए राजा को चाहिए कि प्रजा की भलाई के लिए ऐसें मनुष्यों को वहीं दण्ड दें, जो चोर को दिया जाता है।
परन्तु जो इनको दण्ड देने में असमर्थ या वश के बाहर हो, उन ‘नास्तिकों’ से समझदार और विद्वान ब्राह्मण कभी वार्तालाप ना करे।
इससे स्पष्ट है कि रामायण बुद्ध के बाद लिखी गयी रचना है न कि बुद्ध से 7000 साल पहले की रचना
कुछ विद्वान 2000वर्ष पुरातन भी मानते हैं ।

. ये संपूर्ण श्लोक ‘वाल्मिकि रामायण’ (मूल) से उद्घृत है।
अगर किसी को कोई आपत्ति हो तो, कृपया,
‘रामायण’ को अच्छी तरह से पढ़ लेने के बाद ही करें !
प्रतिक्रिया दे अन्यथा नहीं ....
       
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            विचार-विश्लेण---योगेश कुमार रोहि ग्राम आजा़दपुर पत्रालय पहाड़ीपुर जनपद अलीगढ़---के सौजन्य से.....
सम्पर्क-सूत्र 8077160219....💐

17 टिप्‍पणियां:

  1. Kuch aur books ke bare me bata sakte hai kya jisme ram ki asliyat ke bare me likha Ho

    ajitkumarsharma91@gmail.com
    9795330698

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  2. अगर आपको श्री राम चन्द्र जी के बारे में जानना है तो आपको, योग वाशिष्ठ महारामायण और राम गीता पड़नी होगी ,इन दोनों ग्रंथों में राम के हृदय (केन्द्र) का वर्णन है न कि राम के चरित्र का।, रामचरितमानस और वाल्मीकि रामायण से राम को नही जाना जा सकता है राम वास्तविक में थे कौन

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  3. अरे मूर्खो मूर्ख ही हो क्या संस्कृति शब्द के अर्थ का अनर्थ कर रहे हो
    जय श्री राम

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  4. आरोप क्या है?
    रामायण तथागत बुद्ध के बाद लिखी हुई एक कहानी है!....

    कैसे आरोप ?? ....
    यथा हि चोरः स तथा ही बुद्ध स्तथागतं नास्तीक मंत्र विद्धि तस्माद्धि यः शक्यतमः प्रजानाम् स नास्तीके नाभि मुखो बुद्धः स्यातम् -अयोध्याकांड सर्ग 110 श्लोक 34
    “जैसे चोर दंडनीय होता है इसी प्रकार बुद्ध भी दंडनीय है तथागत और नास्तिक (चार्वाक) को भी यहाँ इसी कोटि में समझना चाहिए. इसलिए नास्तिक को दंड दिलाया जा सके तो उसे चोर के समान दंड दिलाया ही जाय. परन्तु जो वश के बाहर हो उस नास्तिक से ब्राह्मण कभी वार्तालाप ना करे! (श्लोक 34, सर्ग 109, वाल्मीकि रामायण, अयोध्या कांड.)”
    👆👆👆.......
    इस श्लोक में बुद्ध-तथागत का उल्लेख होना हैरान करता है और इसके आधार पर मैं इस तर्क को अकाट्य मानता हूँ कि बुद्ध पहले हुए और रामायण की रचना बाद में की गई.
    उत्तर - यह जो प्रसंग चल रहा है इसमें यदि हम इस श्लोक से पहले के श्लोक की ओर देखें तो बुद्ध शब्द का प्रयोग किया गया है जो कि स्पष्ट रूप से गौतम बुद्ध के लिये नही है। इसी श्लोक की कड़ी में 34 नम्बर श्लोक आता है और इसमें बुद्ध शब्द का फिर से उपयोग किया गया है ठीक उसी सन्दर्भ में जिसमें पिछले श्लोक में बुद्ध शब्द का प्रयोग आया है।
    जाबालि को भगवान् श्रीराम श्लोक 33 में उसके नास्तिक विचारों के कारण विषमस्थबुद्धिम् एवं अनय बुद्धया शब्दों से वाचित किया है। विषमस्थबुद्धिम् माने वेद मार्ग से भ्रष्ट नास्तिक बुद्धि एवं अनय बुद्धया (अ-नय) माने कुत्सित बुद्धि। श्लोक 33 का अन्वय इस प्रकार होगा –
    अहं निन्दामि तत् कर्म कृतम् पितुः त्वाम् आगृह्णात् यः विषमस्थ बुद्धिम् चरन्तं अनय एवं विधया बुद्धया सुनास्तिकम् अपेतं धर्म पथात्
    हे जबालि! मै अपने पिता के इस कार्य की निन्दा करता हूँ कि उन्होंने तुम्हारे जैसे वेदमार्ग से भ्रष्ट बुद्धि वाले धर्मच्युत नास्तिक को अपने यहाँ रखा।
    ठीक इसी प्रसंग को आगे बढाते हुए भगवान् श्रीराम कहते हैं कि जाबालि के समान वेदमार्ग से भ्रष्ट बुद्धि वाले धर्मच्युत नास्तिक को सभा में रखना तो दूर की बात राजा को ऐसे व्यक्ति को एक चोर के समान दण्ड देना चाहिये।
    अब गौतम बुद्ध यहाँ कहाँ से आ गए
    श्लोक 34 में बुद्धस्तथागतं में विसर्ग सन्धि है जिसका विच्छेद करने पर बुद्धः + तथागतः एवं इसके बाद शब्द आया है नास्तिकमत्र जिसमें दो शब्द हैं नास्तिकम् + अत्र, इसके बाद आया है विद्धि। इसका अन्वय हुआ – विद्धि नास्तिकम अत्र तथागतम्। अर्थात् नास्तिक (atheist) को केवलमात्र जो बुद्धिजीवी (mere intellectual) है उसके समान (equal) मानना चाहिए। इसके पहले की पंक्ति का अन्वय हुआ – यथा हि तथा हि सः बुद्धाः चोरः – अर्थात् केवलमात्र जो बुद्धिजीवी है उसको चोर के समान मानना चाहिए और दण्डित करना चहिए।
    अन्त में गौतम बुद्ध की चोर के साथ उपमा देना यह अनुवाद केवल गलत है।
    यहा ये कहा जाए कि बुद्ध का अर्थ तो बुद्धिजीवी है तो फिर बुद्धिजीवी को चोर समान क्यों बताया है ? तो इसका उत्तर है कि अर्थ यथा प्रकरण अनुसार विचार करना चाहिए | यहा नास्तिक बुद्धिजीवी के लिए है न कि सभी बुद्धिजीवो के लिए इसका निर्देश पूर्व श्लोक ३३ में बताया है जहा जाबालि के लिए - " विषमस्थबुद्धिम् बुद्ध्यानयेवंविधया " शब्द से वेद मार्ग भ्रष्ट ,विषम बुद्धि वाला कहा गया है अत: ३४ वे श्लोक में आया बुद्ध शब्द का सम्पूर्ण तात्पर्य होगा - विषम बुद्धि वाला ,वेद विरोधी ,कुत्सित बुद्धि वाला बुद्धिजीवी अर्थात ऐसा व्यक्ति जो अपनी तर्क शक्ति का प्रयोग कुत्सित कार्यो में करता है |
    श्लोक कर्ता ने पूर्व में जिस बुद्ध अर्थात बुद्धिजीवी को सम्बोधित किया है उसके ;लक्षण बता दिए है फिर अगले श्लोक में छंद और पुनरुक्ति आदि कारण विचार कर यही लक्षणों का उल्लेख नही किया इसलिए पूर्व श्लोकानुसार यहा बुद्ध का तात्पर्य लेना चाहिए जो कि गौतम बुद्ध में घटित नही होता है | यहा बुद्ध शब्द देख गौतम बुद्ध अर्थ लेना मुर्खता ही है ।
    मित्रों ऐसे आरोप लगाने वाले अल्पज्ञानियो की बातों में ना आये ये बुद्धिहीन है।
    और आपको भी बुद्धिहीन बनाना चाहते है।

    कल को ये लोग यह भी कहेंगे की हनुमान चालीसा में भी रावण अजान करता था,
    "रावण जुद्ध अजान कियो तब" ऐसे लोगो की मती सच में मारी गयी है,

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  5. अब कोई सी भी रामायण हो क्या फर्क पड़ता है,
    जिससे देश चलता है वहीं अब रामायण है,
    आगे समझदार है लोग समझ गए होंगे,

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  6. Valmiki Ramayana me kuchh milaawat ki gayi hai per valimiki ramayana 5000 saal pehle likhi gayi thii per vikramaditya ke time per yaa usse kuchh time pehle kuchh paandulipi kho gayi thii jisse phir se likha gaya isliye itni milaawat najar aati hai per baaki kahani ka kalyug ke time se koi lena dena nahi hai

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  7. रामायण दसा खराब होगई थी इलाहाबाद हाईकोर्ट में ललई सिंह यादव

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  8. मैं पूछना चाहूँगा कि गौतम बुद्ध का जन्म कब हुआ था?

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  9. गौतम बुद्ध अकेले बुद्ध नही थे , गौतमबुद्ध ने बुद्ध धम्म का प्रवर्तन किया , धम्म तो पहले से हि चला आ रहा था .
    गौतम बुद्ध के पहले भी बुद्ध हुये है .
    विपस्सी बुद्ध,सिक्खी बुद्ध, वेसभ्भु बुद्ध, ककुसंध बुद्ध, कोनाकमन बुद्ध ,दिपंकर बुद्ध, सुकिती बुद्ध, गौतम बुद्ध, मैत्रेय बुद्ध, अमिताभ बुद्ध .
    पिप्रहवा स्तुप से मिले अस्थिकलश पर सुकिती बुद्ध का नाम लिखा मिला है, जिनको संस्कृत भाषा में सिद्धार्थ कहा गया .
    निग्लिवा मे सम्राट अशोक के स्तंभलेख में कोनाकमन बुद्ध का उल्लेख है जो गौतम से पहले हुये .
    रुम्मनदेई के स्तंभलेख में ककुसंध बुद्ध का उल्लेख है जो कोनाकमन से भी पहले हुये , जिनका जन्म रुम्मनदेई अर्थात लुम्बिनी के वन में हुआ था .
    नालंदा,तक्षशिला के साथ साथ भारत के बौद्ध विद्यापिठों को एक मुहिम के साथ जलाया गया,समाप्त कर दिया गया है. बौद्धों के विनाश के बाद में ब्राम्हण लेखकोद्वारा बौद्ध साहित्य मे भी मिलावट कि गयी है .
    हम आज भी मोहंजोदारो में स्तुप देख सकते है , हड्डपा /सिंधु सभ्यता स्तुप कि ही खुदाई में प्राप्त हुई है . ईन सभी नगरोंमे स्तुप हि थे और बौद्ध सभ्यता थी , यही बात सिद्ध होती है .
    तिसरी सदी में बनाई गयी संस्कृत भाषा के बाद में लिखें संस्कृत ग्रंथो में इन सभ्यताओं का कोई वर्णन नही मिलता .
    पुराणों मे तो सारी काल्पनिक बाते लिखी हुई है.
    वेदों के अनुसार पाच कबिलोंने मिलकर एक आर्य जाती बनाई थी , जो इराण से आकार कुछ पिढीं तक कंधार में रूके जहा उन्होंने वेदों कि रचना कि , इनका नेतृत्व विदेख माथव कर रहा था , वेदो में जो सरस्वती है वोह अफगानीस्थान कि हरैवेती/हरहवती नदी है .
    शरयु भी पश्चिम अफगाणिस्थान में है .
    वैदिक लोग भारतीय वंश के नही है .
    भारतीय वंश के लोग मुल रूप से बौद्ध संस्कृती को मानते है , इसिलिये वेदो पर आधारीत व्यवस्था यहा पर टिक नहीं पाती .

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  10. मित्र सत्य कहा आपने वाल्मीकि रामायण बुद्ध के बाद लिखी गई है. ये तो मान्य है. जातक कथा और महायान ग्रंथ वैफल्य सूत्र (लंकावतार सुत्र) मैं से लिखा गया है. रामायण पर वाल्मीकि रामायण में जो बुद्ध का नाम आया है. ओ कौनसे बुद्ध हें क्योंकि 28 बुद्ध हुए हैं. इनमें से भगवान गौतम बुद्ध है या और बुद्ध कृपया इसका भी उत्तर दे फिर भी ये सत्य है. की रामायण बाद में लिखा गया है.

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    उत्तर
    1. वाल्मीकि रामायण के अयोध्याकांड में केवल 82 सर्ग हैं।। और महर्षि वाल्मीकि ने रामायण की रचना संस्कृत के इकलौते अनुष्टुप छंद में लिखा है।। अनुष्टुप छंद में 32 पूर्ण अक्षर होते हैं।। अब आप बुद्ध वाला श्लोक पढियेगा अगर उसमे 32 मात्रा मिले तो बताईयेगा और 82 सर्ग में 109 सर्ग कहाँ से आया ये भी बताईयेगा।।

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    2. महोदय आपका जवाबी प्रश्न बहुत मजेदार है कृपया अपनी बात को थोड़ा अधिक स्पष्टता से बताएं, हम छंद वाली बात समझ नहीं पा रहे हैं

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  11. वाल्मीकि रामायण के अयोध्याकांड में केवल 82 सर्ग हैं।। और महर्षि वाल्मीकि ने रामायण की रचना संस्कृत के इकलौते अनुष्टुप छंद में लिखा है।। अनुष्टुप छंद में 32 पूर्ण अक्षर होते हैं।। अब आप बुद्ध वाला श्लोक पढियेगा अगर उसमे 32 मात्रा मिले तो बताईयेगा और 82 सर्ग में 109 सर्ग कहाँ से आया ये भी बताईयेगा।।

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  12. ये पोस्ट फेक है,,अज्ञानतासे पूर्ण है|कोई विश्वास ना करे, संस्कृत श्लोकों का गलत अनुवाद किया है

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  13. अगर आप किसी को नीचा दिखाने के लिए ऐसा लिख रहे हो तो एक बार उन श्लोकों को फिर से पढ़े । क्यों कि पहले जो संस्कृत लिखी जाती थी आज की संस्कृत से बहुत अलग थी । और बुद्ध धर्म मे टोटल 24 बुद्ध हुए है । और उनका समय भी लाखों सालों के बताया गया है । उसी तरह जैन धर्म को भी लाखों वर्षो पुराना बताया गया है । एक बार आप जैन गर्न्थो और बौद्ध ग्रंथों को भी पढ़े

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