शनिवार, 14 जुलाई 2018

ब्रह्म चारी कृष्ण ---

ब्रह्मचर्यं महद् घोरं तीर्त्त्वा द्वादशवार्षिकम् । हिमवत्पार्श्वमास्थाय यो मया तपसार्जितः ।। समानव्रतचारिण्यां रुक्मिण्यां योsन्वजायत । सनत्कुमारस्तेजस्वी प्रद्युम्नो नाम में सुतः ।।-(सौप्तिकपर्व १२/३०,३१) अर्थ:-मैंने १२ वर्ष तक रुक्मिणी के साथ हिमालय में ठहरकर महान् घोर ब्रह्मचर्य का पालन करके सनत्कुमार के समान तेजस्वी प्रद्युम्न नाम के पुत्र को प्राप्त किया था।विवाह के पश्चात् १२ वर्ष तक घोर ब्रह्मचर्य को धारण करना उनके संयम का महान् उदाहरण है। ऐसे संयमी और जितेन्द्रिय पुरुष को पुराणकारों ने कितना बीभत्स और घृणास्पद बना दिया है।5) राधा कौन थी?:-
वृषभानोश्च वैश्यस्य सा च कन्या बभूव ह ।
सार्द्धं रायणवैश्येन तत्सम्बन्धं चकार सः ।।
कृष्णमातुर्यशोदाया रायणस्तत्सहोदरः ।
गोकोले गोपकृष्णांश सम्बन्धात्कृष्णमातुलः ।।-
(ब्रह्म० प्रकृति ४९/३२,३७,४०)

अर्थ:-राधा वृषभानु वैश्य की कन्या थी।रायण वैश्य के साथ उसका सम्बन्ध किया गया।वह रायण यशोदा का भाई था और कृष्ण का मामा था।राधा उसकी पत्नि थी।सो राधा तो कृष्ण की मामी ठहरी।
मामी और भांजे का प्रेम-व्यापार कहाँ तक उचित है?

पुराणकारों ने कृष्ण के स्वरुप को बिगाड़ दिया।उनके पवित्र व्यक्तित्व को घृणित और बीभत्स बना दिया।

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