गुरुवार, 12 जुलाई 2018

लक्ष्मीबाई_ताम्बें_कुलकर्णी

#लक्ष्मीबाई_ताम्बें_कुलकर्णी
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आज तक साहित्य को इतिहास घोषित कर,   मुनि-मनुओं ने लक्ष्मीबाई का झूठा इतिहास बताया व पढाया जाता है ,कौन है ये लक्ष्मीबाई? झांसी की रानी थी?
,झांसी कभी-भी स्वतंत्र राज्य नही था ! बल्की छत्रपती के अनेक संस्थानों में से एक था। वहाँ कि सारी व्यवस्था छत्रपती के नौकर के रूप मे ब्राहमण गंगाधरपंत कुलकर्णी देखा करते थे। ब्राहमण गंगाधरपंत कुलकर्णी झांसी का प्रधान सेवक था ! इसी ब्राहमण गंगाधरपंत-कुलकर्णी ने बुढापे में किशोरी मनु तांबे नामक एक लडकी के साथ शादी रचाई और उसका नाम मनु से बदलकर लक्ष्मीबाई रख दिया ! झांसी कोई रियासत नही था, बल्कि लगान वसूली का गढ था। इसलिए  मतलब वहाँ न कोई  कोई राजा-रानी नही थी!
लक्ष्मीबाई एक साधारण महिला थी ! और ब्राह्मण गंगाधरपंत कुलकर्णी आठ प्रकार नपुंसक थे ! 1857 के सैनिक विद्रोह में लक्ष्मीबाई ने जखमी ब्रिटीश
सैनिको कि मरहमपट्टी करनेका का काम किया था ! लक्ष्मीबाई ने कभी भी लडाई नही लडी थी, ! बल्कि लक्ष्मीबाई कुलकर्णी का  कैप्टन जोर्डन से गहरा लगाव भी था, बताया जाता है कि लक्ष्मीबाई-कुलकर्णी ने  कैप्टन जार्डन को माफीनामा भी लिखकार दिया था।
झांसी का किला बचाने का काम कॉरी समाज कि झलकारीबाई ने आपने पति पूरन-कोरी के साथ मिलकर किया था। लक्ष्मीबाई कुलकर्णी सन 1858  में प्रतापगड के महाराज की सहायता से झांसी से नेपाल भाग गई थी ! वहीं नेपाल में सन 1915 में  करीब 80 साल की उम्र में लक्ष्मीबाई-कुलकर्णी मर गई थी !
झांसी की लक्ष्मीबाई कुलकर्णी ने कॅपटन जारडन को माफीनामा लिखाकार दिया था, इस बात का सबूत महाराष्ट्र के विद्वान ब्राम्हण तर्कतीर्थ लक्षुमन शास्त्री जोशी ने महाराष्ट्र "मराठी भाषा न्यानकोश" में दिया है! लक्ष्मीबाई कुलकर्णी झांसी में विद्रोह के दौरान कभी लडी ही नही, इसका सबूत यह भी है कि  आज भी झांसी के लोकगीतों मे गाय जाता है, जिसमें झांसी में लक्ष्मीबाई कुलकर्णी का नही बल्की झलकारीबाई के गाए जाते हैं।
भारत सरकार ने झलकारी बाई के सम्मान में डाक टिकट भी जारी किया हुआ है !
लक्ष्मीबाई कुलकर्णी नेपाल भाग गई थी, इसके सबूत इतिहास संशोधक #शाम_पाटील की संशोधन में उपलब्ध है, जिसमें लक्ष्मीबाई कुलकर्णी का पति ब्राह्मण गंगाधर कुलकर्णी करीब  आठ प्रकार  की विभिन्न बीमारियों से ग्रस्त था और बुढापे में नपुंसक होना भी उनकी शारीरिक बीमारियों में शामिल था‌ इसी कारण लक्ष्मीबाई कुलकर्णी का खास "मर्दानखाना" भी बताया जाता है, जिसमें अंग्रेज़ भी शामिल थे।

Hansraj Dhanka Dhanka

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