📚: जो लोग अहीरों के प्रति हेय दृष्टि रखते हैं; और उन्हें अधिकतर हेय दृष्टि से देखते हैं, वे कभी भी उनकी विशेषताओं के विषय में नही लिख सकते और न ही उनके बारे में अच्छा सोच सकते हैं।
क्योंकि उनका मूल्यांकन करने का तरीका ही उन्हें निम्नतर आंकना है।
जो लोग पहले ब्राह्मणों के प्रशंसक हैं उन्हें ब्राह्मणों की धूर्तता और धर्म के नाम पर आरोपित व्यभिचार पूर्ण कृत्य दिखाई नहीं देते वे ही लोग चरित्र से पतित , कोरी दीठ हाँकने वाले पदे पदे अपनी प्रतिज्ञाऐं भंग करने वाले राजपूत को भी आदर्श मानने लगते हैं ।
उन लोगों से अहीरों की विशेषताओं के विषय में सुनने की अपेक्षा करना ही मूर्खता पूर्ण है। वे अहीरों की महानता का इतिहास कभी भी सम्यक और मुकम्मल तरीके से नहीं लिख सकते हैं।
अहीरों ने कभी किसी की गुलामी नहीं की वे दास बनने की अपेक्षा दस्यु ( बागी) बनना बेहतर समझते हैं। आज तक सभी जातियाँ एक बैनर तले खड़ी अन्ध भक्त और पाखण्ड को समर्पित हैं। वहीं दो चाअहीरों को छोड़कर सभी यादव पाखण्ड वाद के विरोध में सक्रिय हैं।
मैं अहीरों को दुनियाँ की सबसे दैवीय जनजाति मानता हूँ। उनके कारनामें सभी जातियों से अलग हैं।
वे अधिकतर सरल और निर्भीक प्रवृत्ति के हैं।
यद्यपि सभी जातियों में अच्छे और बुरे लोग होते ही हैं परन्तु अहीर, जाट और गूजर भारत की सबसे श्रेष्ठ जातियाँ है।
जो सदैव जमीन से जुड़ी पाशुपालक हैं। वे प्रकृति की सच्ची आराधिका हैं।
अहीरों को शूद्र और हीन ताने वाले ब्राह्मण और राजपूत समाज के ही लोग हैं। इन अहीरों के छुपे दुश्मनों की तारीफ करना भी परोक्ष रूप से अहीरों की तौहीन करना ही हैं।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें