बामनो की गपोड कहानी का अंश इस पोस्ट में देखिये ।।
#सीता के साथ #ब्राह्मण वेश में आए #रावण का #अश्लील (गंदी)बाते करना। फिर भी #सीता के द्वारा उसका आदर सत्कार करना।
अतिष्ठत् प्रेक्ष्य वैदेहीं रामपत्नीं यशस्विनीम्।
तिष्ठन् सम्प्रेक्ष्य च तदा पत्नीं रामस्य रावणः॥ ११॥
शुभां रुचिरदन्तोष्ठीं पूर्णचन्द्रनिभाननाम्।
आसीनां पर्णशालायां बाष्पशोकाभिपीडिताम्॥ १२॥
स तां पद्मपलाशाक्षीं पीतकौशेयवासिनीम्।
अभ्यगच्छत वैदेहीं हृष्टचेता निशाचरः॥ १३॥
दृष्ट्वा कामशराविद्धो ब्रह्मघोषमुदीरयन्।
अब्रवीत् प्रश्रितं वाक्यं रहिते राक्षसाधिपः॥ १४॥
तामुत्तमां त्रिलोकानां पद्महीनामिव श्रियम्।
विभ्राजमानां वपुषा रावणः प्रशशंस ह॥ १५॥
रौप्यकाञ्चनवर्णाभे पीतकौशेयवासिनि।
कमलानां शुभां मालां पद्मिनीव च बिभ्रती॥ १६॥
ह्रीः श्रीः कीर्तिः शुभा लक्ष्मीरप्सरा वा शुभानने।
भूतिर्वा त्वं वरारोहे रतिर्वा स्वैरचारिणी॥ १७॥
समाः शिखरिणः स्निग्धाः पाण्डुरा दशनास्तव।
विशाले विमले नेत्रे रक्तान्ते कृष्णतारके॥ १८॥
विशालं जघनं पीनमूरू करिकरोपमौ।
एतावुपचितौ वृत्तौ संहतौ सम्प्रगल्भितौ॥ १९॥
पीनोन्नतमुखौ कान्तौ स्निग्धतालफलोपमौ।
मणिप्रवेकाभरणौ रुचिरौ ते पयोधरौ॥ २०॥
चारुस्मिते चारुदति चारुनेत्रे विलासिनि।
मनो हरसि मे रामे नदीकूलमिवाम्भसा॥ २१॥
करान्तमितमध्यासि सुकेशे संहतस्तनि।
नैव देवी न गन्धर्वी न यक्षी न च किंनरी॥ २२॥
नैवंरूपा मया नारी दृष्टपूर्वा महीतले।
रूपमग्र्यं च लोकेषु सौकुमार्यं वयश्च ते॥ २३॥
इह वासश्च कान्तारे चित्तमुन्माथयन्ति मे।
सा प्रतिक्राम भद्रं ते न त्वं वस्तुमिहार्हसि॥ २४॥
राक्षसानामयं वासो घोराणां कामरूपिणाम्।
प्रासादाग्राणि रम्याणि नगरोपवनानि च॥ २५॥
सम्पन्नानि सुगन्धीनि युक्तान्याचरितुं त्वया।
वरं माल्यं वरं गन्धं वरं वस्त्रं च शोभने॥ २६॥
भर्तारं च वरं मन्ये त्वद्युक्तमसितेक्षणे।
का त्वं भवसि रुद्राणां मरुतां वा शुचिस्मिते॥ २७॥
वसूनां वा वरारोहे देवता प्रतिभासि मे।
नेह गच्छन्ति गन्धर्वा न देवा न च किन्नराः॥ २८॥
राक्षसानामयं वासः कथं तु त्वमिहागता।
इह शाखामृगाः सिंहा द्वीपिव्याघ्रमृगा वृकाः॥ २९॥
ऋक्षास्तरक्षवः कङ्काः कथं तेभ्यो न बिभ्यसे।
मदान्वितानां घोराणां कुञ्जराणां तरस्विनाम्॥ ३०॥
कथमेका महारण्ये न बिभेषि वरानने।
कासि कस्य कुतश्च त्वं किं निमित्तं च दण्डकान्॥ ३१॥
एका चरसि कल्याणि घोरान् राक्षससेवितान्।
इति प्रशस्ता वैदेही रावणेन महात्मना॥ ३२॥
द्विजातिवेषेण हि तं दृष्ट्वा रावणमागतम्।
सर्वैरतिथिसत्कारैः पूजयामास मैथिली॥ ३३॥
उपानीयासनं पूर्वं पाद्येनाभिनिमन्त्र्य च।
अब्रवीत् सिद्धमित्येव तदा तं सौम्यदर्शनम्॥ ३४॥
द्विजातिवेषेण समीक्ष्य मैथिली
समागतं पात्रकुसुम्भधारिणम्।
अशक्यमुद्द्वेष्टुमुपायदर्शना-
न्न्यमन्त्रयद् ब्राह्मणवत् तथागतम्॥ ३५॥
इयं बृसी ब्राह्मण काममास्यता-
मिदं च पाद्यं प्रतिगृह्यतामिति।
इदं च सिद्धं वनजातमुत्तमं
त्वदर्थमव्यग्रमिहोपभुज्यताम्॥ ३६॥
निमन्त्र्यमाणः प्रतिपूर्णभाषिणीं
नरेन्द्रपत्नीं प्रसमीक्ष्य मैथिलीम्।
प्रसह्य तस्या हरणे दृढं मनः
समर्पयामास वधाय रावणः॥ ३७॥
ततः सुवेषं मृगयागतं पतिं
प्रतीक्षमाणा सहलक्ष्मणं तदा।
निरीक्षमाणा हरितं ददर्श त-
न्महद् वनं नैव तु रामलक्ष्मणौ॥ ३८॥
इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्ये अरण्यकाण्डे षट्चत्वारिंशः सर्गः ॥३-४६॥
👉 #वाल्मीकिरामायण के #अरण्यकाण्ड के 46वे सर्ग में बताया है कि जब #राम से बदला लेने के उद्देश्य से #रावणराज #मातासीता को हरण करने आया। तब #रावण सीता के साथ बहुत ही अश्लील बाते करता है और सीता भी उसकी बाते सुनती है किंतु उसके ऐसा करने का विरोध नहीं करती है। रावण कहता है कि ...
🫵 श्लोक 13-16:- #रावण प्रसन्नचित होकर रेशमी पीतांबर से सुशोभित कमलनयनी #सीता के सामने जाता है। उसे देखते ही कामदेव के बाणों से घायल हो रावण #वेदमन्त्र का उच्चारण करने लगता है। रावण उसकी प्रशंसा करते हुए बोला - उत्तम कान्तिवाली तथा रेशम पीतांबर धारण करने वाली सुंदरी तुम कौन हो?
🫵 श्लोक 17:- तूम भूती या स्वेच्छापूर्वक विहार करने वाली कामदेव की पत्नी रति तो नहीं हो? फिर #रावण उसके अंगों की तारीफ करते हुए बोला -
🫵 श्लोक 18:- तुम्हारे दांत बराबर है, उनके अग्रभाग कुंद की कलियों के समान शोभा पाते हैं। वे सब के सब चिकने और सफेद हैं। तुम्हारी दोनों आँखें बड़ी बड़ी एवं कोमल है। उनके दोनों कोए लाल है और पुतलियां काली है। #कटिका का अग्रभाग विशाल एवं मांशल है। दोनों #जांघें हाथी की सूड के समान शोभा पाते हैं।
🫵 श्लोक 19-20:- तुम्हारे ये दोनों #स्तन पुष्ट, गोलाकार, परस्पर सटे हुए, प्रगल्फ, मोटे, उठे हुए मुखवाले, कमनीय, चिकने, ताड़फल के समान आकार वाले, परम सुंदर और श्रेष्ठ मणिमय आभूषणों से विभूषित है। 😱😱
🫵 श्लोक 21:- सुंदर मुस्कान, रुचिर दन्तावल और मनोहर नेत्रवाली विलासिनी रमणी! तुम अपने रूप सौंदर्य से मेरे मन को वैसे ही हर लेती हो, जैसे नदी जल के द्वारा अपने तट का अपहरण करती है।
🫵 श्लोक 22:- तुम्हारी कमर इतनी पतली है कि मुट्ठी में आ जाए। केश चिकने और मनोहर है। दोनों #स्तन एक दूसरे से सटे हुए हैं। सुंदरी! देवता, गंधर्व, यक्ष और #किन्नर जाति की स्त्रियों में भी कोई तुम जैसी नहीं है।
🫵 श्लोक 23:- पृथ्वी पर तो ऐसी रूपवती नारी मैने आज तक कभी नहीं देखी। कहां तो तुम्हारा यह तीनों लोको में सबसे सुंदर रूप, सुकुमारता और नई अवस्था तथा कहां इस दुर्गम वन में निवास। ये सब बातें ध्यान में आते ही मेरे मन को मथ डालती है।
🫵 श्लोक 27:- पवित्र मुस्कान और सुंदर अंगों वाली देवी! तुम कौन हो? मुझे तो रुद्रों, मरुद्रनों अथवा वसुओं से संबंध रखने वाली देवी जान पड़ती हो।
🫵 श्लोक 33:- वेशभूषा से महात्मा बनकर आए रावण ने जब सीता की इस प्रकार प्रशंसा की, तो #ब्राह्मणवेश में आए रावण को देखकर #सीता ने उसका अतिथि सत्कार के लिए उपयोगी सभी सामग्रियों द्वारा उसका पूजन किया।
🫵 श्लोक 34:- पहले बैठने के लिये आसन दिया, फिर पैर धोने के लिए जल दिया। उसके बाद उस #ब्राह्मण
को भोजन के लिए निमंत्रण देते हुए कहा - ब्राह्मण! भोजन तैयार है ग्रहण कीजिए।
👉👉विमर्श:- जैसे कि इस #ब्राह्मणधर्म में #स्त्रियों को सिर्फ अपने उपभोग की वस्तु मात्र माना है। एक #महिला
से चाहे वो किसी भी वर्ण की हो, #ब्राह्मणों द्वारा कितनी भी अभद्रता से बाते की जाए, कितनी भी अश्लील बाते की जाए तो भी ब्राह्मण उसके लिए पूजनीय है। इस e माध्यम से यही दिखाया गया है। भले ही वो रावण था किंतु सीता के सामने तो तो वो एक #ब्राह्मण के रूप में गया था। सीता के लिए तो वो ब्राह्मण ही था। सीता के साथ वो इतनी घटिया और अश्लील बाते उसके अंगों को लेकर कर रहा था, तो भी सीता खड़े खड़े विनम्रता से सुन रही थी। नहीं तो ऐसी अश्लील बाते करने वाले पुरुष को चाहे वह किसी भी जाति या वर्ण से हो, चप्पल उठा के मरना चाहिए था। लेकिन इस ब्राह्मण धर्म ने लोगो को खासकर #महिलाओं को यही सिखाया गया है कि ब्राह्मण चाहे कुछ भी कहे या करे उसको पूजनीय ही मानना है। खुद को इन फर्जी ग्रंथों के माध्यम से श्रेष्ठ साबित करने लगे थे।
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