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चक्षुर्निमीलने तस्य लयं प्राकृतिकं विदुः।
प्रलये प्राकृताः सर्वे देवाद्याश्च चराचराः।५७।
अनुवाद:-
• उस परम्- ब्रह्म परमात्मा के नेत्र - निमीलन (आँखें बन्द करने पर) प्राकृतिक प्रलय हो जाती है। इसके परिणाम स्वरूप सम्पूर्ण चराचर जगत के प्राणी तथा देवादि गण पहले ब्रह्मा में विलय होते या समा जाते हैं।५७।
लीना धातरि धाता च श्रीकृष्णे नाभिपङ्कजे।
विष्णुः क्षीरोदशायी च वैकुण्ठे यश्चतुर्भुजः ।५८।
अनुवाद:-
और ब्रह्मा श्रीकृष्ण के अंश रूप
क्षुद्रविष्णु के नाभि- कमल में विलय हो जाते हैं। और क्षुद्र-विष्णु भी विराट-विष्णु में और विराट-विष्णु सर्वोच्चत्तम व परिपूर्णत्तम सत्ता स्वराट्- विष्णु में( श्रीकृष्ण) में विलय हो जाते हैं। अर्थात्-
इसी क्रम में क्षीरोदशायी विष्णु- नारायण और वैकुण्ठ निवासी चतुर्भुज विष्णु गोपेश्वर श्रीकृष्ण के वामपार्श्व (बाई बगल) में समा जाते हैं।५८
रुद्राद्या भैरवाद्याश्च यावन्तश्च शिवानुगाः।
शिवाधारे शिवे लीना ज्ञानानन्दे सनातने ।५९।
अनुवाद:-
• रूद्र और भैरव आदि जितने भी शिव के अनुचर हैं। वे मंगलाधार सनातन ज्ञान नन्दन स्वरूप शिव में लीन हो जाते हैं। ५९ ।
ज्ञानाधिदेवः कृष्णस्य महादेवस्य चात्मनः।
तस्य ज्ञाने विलीनश्च बभूवाथ क्षणं हरेः ।६०।
अनुवाद -•
•और ज्ञान के अधिष्ठात्री देव परमात्मा शिव उन श्री कृष्ण के ज्ञान में विलीन हो जाते हैं।६०।
दुर्गायां विष्णुमायायां विलीनाः सर्व शक्तयः ।६१।
अनुवाद:-संपूर्ण शक्तियां विष्णु माया दुर्गा में तिरोहित हो जाती है।६१।
सा च कृष्णस्य बुद्धौ च बुद्ध्यधिष्ठातृदेवता ।।
नारायणांशः स्कन्दश्च लीनो वक्षसि तस्य च।६२।
अनुवाद :-विष्णु माया दुर्गा भगवान श्री कृष्ण की बुद्धि में स्थान ग्रहण कर लेती है, क्योंकि वे उनकी बुद्धि की अधिष्ठात्री की देवी है। नारायण के अंश स्वामिकार्तिकेय उनके वक्षः स्थल में लीन हो जाते हैं।६२।
श्रीकृष्णांशश्च तद्बाहौ देवाधीशो गणेश्वरः ।।
पद्मांशभूता पद्मायां सा राधायां च सुव्रते ।।६३।।
अनुवाद:-सुब्रते ! गणों के स्वामी देवेश्वर गणेश को भगवान श्रीकृष्ण का अंश माना गया है। वे उनकी दोनों भुजाओं में प्रविष्ट हो जाते हैं। लक्ष्मी की अंशभूता देवियां लक्ष्मी में तथा लक्ष्मी श्रीराधा में लीन हो जाती हैं।६३।
गोप्यश्चापि च तस्यां च सर्वा वै देवयोषितः।।
कृष्णप्राणाधिदेवी सा तस्य प्राणेषु सा स्थिता।६४।
अनुवाद:- गोपियां तथा संपूर्ण देवपत्नियां भी श्रीराधा में ही लीन हो जाती हैं। भगवान श्री कृष्ण के प्राणों की अधीश्वरी देवी श्रीराधा उनके प्राणों में निवास कर जाती हैं।६४।
सावित्री च सरस्वत्यां वेदशास्त्राणि यानि च ।
स्थिता वाणी च जिह्वायां तस्यैव परमात्मनः।६५।
अनुवाद:-सावित्री, वेद एवं संपूर्ण शास्त्र सरस्वती में प्रवेश कर जाते हैं।और सरस्वती परब्रह्म परमात्मा भगवान श्रीकृष्ण की जिह्वा में विलीन हो जाती है।६५।
गोलोकस्थस्य गोपाश्च विलीनास्तस्य लोमसु।
तत्प्राणेषु च सर्वेषां प्राणा वाता हुताशनः।६६।
अनुवाद:-गोलोक के संपूर्ण गोप भगवान श्रीकृष्ण के रोम कूपों लीन हो जाते हैं। और उन प्रभु के प्राणों में सम्पूर्ण प्राणियों की प्राण स्वरूप वायु का तथा उनकी जठराग्नि में समस्त अग्नियों का विलय हो जाता है।६६।
ब्रह्मवैवर्तपुराण- (प्रकृतिखण्डः) अध्यायः (३४)
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