शनिवार, 14 सितंबर 2024



गीता के अध्याय 4 का श्लोक संख्या 7, 8, 9 भी प्रमाण है की गोविंद विष्णु के अवतार नही....!!

क्वाहं त्मोमहदहं खचराग्निवार्भू संवेष्टितांडघटसप्तवितस्तिकायः ।
क्वेदृग्विधाऽविगणिताण्डपराणुचर्या वाताध्वरोम विवरस्य च ते महित्वम्। भा १०.१४.११

"जिस प्रकार एक छोटे से छिद्र से आती हुई सूर्य की किरणों में अनंत धूल के कण दृष्टिगोचर होते हैं, उसी प्रकार आपके शरीर के रोम-रोम  में अनंत ब्रह्मा, विष्णु शंकर और उनके ब्रह्मांड समाए हुए हैं। आप की महिमा अवर्णनीय है"



यह स्वयं ब्रह्मा जी प्रार्थना कर रहे है गोविंद से

 
Divya Ras Bindu

क्या श्री कृष्ण और महाविष्णु एक हैं?

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प्रश्न

शास्त्रों के अनेक कथानक हमें यह आभास दिलाते हैं कि भगवान श्री कृष्ण और भगवान विष्णु एक ही हैं । 

कुछ कथानक यह इंगित​ करते हैं कि श्री कृष्ण महाविष्णु के अवतार हैं, जैसे भगवान श्री कृष्ण के प्रकट होने से पहले जेल में देवकी और वसुदेव के समक्ष महाविष्णु प्रकट हुए थे, बाद में उन्होंने बालक श्रीकृष्ण  का रूप धारण कर लिया। 

कुछ कथानक यह भी इंगित करते हैं कि श्रीकृष्ण ही परात्पर ब्रह्म हैं अन्य सभी उनके अवतार हैं जैसे ब्रह्म संहिता में लिखा है--:

यस्यैक निःश्वसितकालमथावलम्ब्य​,
                 जीवन्ति लोमविलजाः जगदण्ड नाथा ।
विष्णुर्महान्स इह यस्य कलाविशेषो,
          गोविंदमादि पुरुषं तमहं भजामि ॥

ब्रह्म संहिता
“अनंत कोटि ब्रह्माण्डों के संचालक भगवान श्री कृष्ण के ही अंश हैं और उनका अस्तित्व भगवान श्री कृष्ण की एक श्वास से प्रतिपालित है।  इससे अधिक और क्या इस तथ्य को पुष्ट किया जा सकता है कि  महाविष्णु स्वयं भगवान श्री कृष्ण की  एक कला के अवतार हैं ।”

Picture
Shri Krishna and Arjun visit Lord Vishnu
उपर्युक्त कथानक साधकों में यह भ्रम पैदा करता है कि क्या भगवान श्री कृष्ण और महाविष्णु  दो प्रथक व्यक्तित्व हैं या एक होते हुए भी विभिन्न अवतार हैं?

उत्तर 

आइए इस गुत्थि को सुलझायें । 

श्रीमद्भागवत महापुराण के अनुसार सृष्टि की रचना के समय परब्रह्म ने अपनी एक शक्ति को कार्णार्णवशायी महाविष्णु के रूप में प्रकट किया।
आद्योऽवतारः पुरुषः परस्य कालः स्वभावः सद्-असन्मनश्च ।
द्रव्यं विकारो गुण इन्द्रियाणि विराट् स्वराट् स्थास्नु चरिष्णु भूम्नः ॥
भाग २.६.४२ ॥
“कार्णार्णवशायी विष्णु परब्रह्म के प्रथम अवतार माने जाते हैं। वे शाश्वत काल, पंच महाभूत की माया एवं उसमें व्याप्त अहंकार, परब्रह्म का सर्वव्यापक​ रूप गर्भोदशायी महाविष्णु तथा संपूर्ण जगत के चराचर​ जीवात्माओं के स्वामी है”। कार्णार्णवशायी महाविष्णु को परब्रह्म के प्रथम अवतार होने के कारण​ प्रथम पुरुष भी कहा जाता है ।
गर्भोदशायी महाविष्णु को द्वितीय पुरुष भी कहा जाता है । गर्भोदशायी महाविष्णु ने अनंत ब्रह्माण्डों को प्रकट किया और प्रत्येक ब्रह्माण्ड में एक ब्रह्मा, एक विष्णु तथा एक शंकर को प्रकट किया । प्रत्येक ब्रह्माण्ड के विष्णु को क्षीरोदशायी महाविष्णु या तृतीय पुरुष कहते हैं। इनको परमात्मा भी कहते हैं जो अनंत कोटि ब्रह्माण्डों के सभी जीवों के हृदय में बैठकर उनके प्रत्येक क्षण के प्रत्येक कर्मों का साक्षी बन तत्पश्चात उसका फल प्रदान करते हैं ।
अतः यह स्पष्ट है कि भगवान श्री कृष्ण की शक्ति (कार्णार्णवशायी विष्णु) की शक्ति (गर्भोदशायी महाविष्णु) की शक्ति का प्राकट्य क्षीरोदशायी महाविष्णु हैं । इसीलिए कहा गया है -
विष्णुर्महान्स इह  यस्य  कलाविशेषो 
ब्रह्म संहिता
एक बार सृष्टि रचयिता ब्रह्मा जी भगवान श्री कृष्ण से मिलने द्वारिका गए। ब्रह्मा जी ने द्वारपाल से अहंकार पूर्वक कहा कि,"भगवान श्री कृष्ण को सूचना दे दो कि ब्रह्मा उनसे मिलने के लिए प्रतीक्षा कर रहे हैं"। जब द्वारपाल ने ब्रह्मा का संदेश सुनाया तो श्रीकृष्ण ने पूछा कि, "कौन ब्रह्मा?"। यह सुनकर ब्रह्मा जी स्तब्ध रह गये, फिर ब्रह्मा जी ने उत्तर दिया,"मैं सृष्टि रचयिता तथा चार कुमार परमहंसों का पिता"। द्वारपाल ने ब्रह्मा जी को भगवान श्री कृष्ण से मिलने दिया। तब ब्रह्मा जी ने भगवान श्रीकृष्ण से नम्रता पूर्वक उनके द्वारा पूछे गए प्रश्न का कारण पूछा ।

भगवान के ब्रह्मा जी को अपने विराट रूप का दर्शन कराया जिसमें अनंत ब्रह्मा, विष्णु, शंकर इत्यादि समाये हुये थे । दर्शन मात्रा से ब्रह्मा जी का मिथ्या अहंकार नष्ट​ हो गया। तब ब्रह्मा जी को ज्ञात हुआ कि भगवान श्री कृष्ण समस्त ब्रह्माण्डों के पालक हैं और ब्रह्मा तो उनमें से सबसे छोटे ब्रह्माण्ड के रचयिता है।

ब्रह्मा जी ने भगवान श्री कृष्ण के चरणकमलों में गिरकर क्षमा याचना की तथा उनकी स्तुति की -
ब्रह्मा श्री कृष्ण की स्तुति की करते हुये
ब्रह्मा जी ने भगवान श्री कृष्ण के चरणकमलों में गिरकर क्षमा याचना की तथा उनकी स्तुति की
क्वाहं त्मोमहदहं खचराग्निवार्भू संवेष्टितांडघटसप्तवितस्तिकायः ।
क्वेदृग्विधाऽविगणिताण्डपराणुचर्या वाताध्वरोम विवरस्य च ते महित्वम्।

भा १०.१४.११
"जिस प्रकार एक छोटे से छिद्र से आती हुई सूर्य की किरणों में अनंत धूल के कण दृष्टिगोचर होते हैं, उसी प्रकार आपके शरीर के रोम-रोम  में अनंत ब्रह्मा, विष्णु शंकर और उनके ब्रह्मांड समाए हुए हैं। आप की महिमा अवर्णनीय है"।

निष्कर्ष

अतः निष्कर्ष यह निकलता है कि भगवान श्रीकृष्ण के दो प्रकार के अवतार होते हैं । एक युगावतार श्री कृष्ण और एक स्वयं श्री कृष्ण।

युगावतार श्रीकृष्ण प्रत्येक द्वापर में अवतारित होते हैं जबकी स्वयं श्री कृष्ण एक कल्प में केवल एक बार आते हैं ।

युगावतार तथा महाविष्णु दोनों अवतार हैं । जबकि स्वयं श्री कृष्ण अन्य सभी अवतारों के स्रोत हैं। यद्यपि अवतारी और सभी अवतारों में अनंत दिव्यानंद है तथा श्री कृष्ण के समकक्ष शक्तियां होती हैं परन्तु अवतार उन परम शक्तियों के अध्यक्ष नहीं होते । स्वयं श्री कृष्ण ही समस्त  दिव्य शक्तियों के स्वामी और नियंत्रण कर्ता हैं ।
आपके शरीर के रोम-रोम  में अनंत ब्रह्मा, विष्णु शंकर और उनके ब्रह्मांड समाए हुए हैं
आपके शरीर के रोम-रोम में अनंत ब्रह्मा, विष्णु शंकर और उनके ब्रह्मांड समाए हुए हैं
दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि भगवान श्री कृष्ण ही अपनी शक्तियाँ अपने सभी अवतारों को देते हैं और श्री कृष्ण अपनी शक्ति निस्पंद भी कर सकते हैं क्योंकि वे स्वयं ही समस्त शक्तियों के नियन्त्रक​ हैं ।

गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं।--
हरहिं हरिता विधिहिं विधिता, शिवहिं शिवता जो द​ई ।
"वे ही हैं जो विष्णु को पालन की शक्ति देते हैं, ब्रह्मा को रचना करने की शक्ति देते हैं, शिव को संहार करने की शक्ति देते हैं"।

नाहं न यूयं यद‍ृतां गतिं विदु- र्न वामदेव: किमुतापरे सुरा: । 
तन्मायया मोहितबुद्धयस्त्विदं विनिर्मितं चात्मसमं विचक्ष्महे ॥ 
भा २.६.३७ ॥
"न ही भगवान शंकर, न ही तुम और न ही मैं दिव्यानंद की सीमाओं का अंत पा सकते हैं तो देवी देवता की क्या बिसात? और हम सभी लोग भगवान की माया से मोहित​ हैं अतः व्यक्तिगत क्षमता के अनुसार ही हम लोग ब्रह्माण्डों को देख सकते हैं।
PictureIn the jail before Shri Krishna MahaVishnu appeared in front of Devaki and Vasudev
यह सभी प्रमाण सिद्ध करते हैं कि एक ही परमेश्वर परमब्रह्म है और सभी अवतार उसी की शक्तियों से या उसकी शक्ति की शक्ति से शक्ति प्राप्त करते हैं।

स्वयं श्रीकृष्ण एक कल्प में एक बार​ अवतरित होते हैं । आज से 5000 वर्ष पूर्व​ नंद और यशोदा के दुलारे पुत्र के रूप में जो श्रीकृष्ण अवतरित हुए थे वे स्वयं श्री कृष्ण थे। वे केवल अधिकारी जीवात्माओं को  दिव्यानंद प्रदान करने हेतु अवतरित होते हैं। उस अवतारकाल में प्रेम दान के अतिरिक्त सभी कर्म - जैसे राक्षसों का वध, महाभारत में सहयोग आदि - स्वयं श्रीकृष्ण के माध्यम से युगावतार श्रीकृष्ण करते हैं।

प्रश्न 

यदि 5000 वर्ष पहले श्री कृष्ण ने अवतार लिया था, वे विष्णु नहीं थे तो वे देवकी  के सामने विष्णु के रूप में क्यों प्रकट हुए?

श्री कृष्ण ही सर्वशक्तिमान परब्रह्म है। वे किसी भी समय किसी भी रूप में प्रकट हो सकते हैं। पूर्व जन्म में देवकी वासुदेव ने भगवान के माता-पिता होने का वरदान माँगा था । उस वरदान की याद दिलाने के लिये भगवान प्रथम परमात्मा महाविष्णु के रूप में प्रकट हुये । तत्पश्चात, उनको पृथ्वी पर अवतरित होने के बाद भगवत स्वरूप को छुपाकर देवकी और यशोदा की अर्चना के अनुरूप, बालक रूप में समस्त बाल लीलायेँ सम्पादित करनी थीं । इसके अनंतर  उन्हें प्राणीमात्र के लिए कुछ महत्वपूर्ण लोकाद​र्शों को भी स्थापित करना था।


 
होत विभोर सुनत ब्रजनारिन, वाक्यन चोरी जारी के ।
भाव न मो कहँ चरण समर्चन​, पद्मा सी घरवारी के ।
(प्रेम रस मदिरा सिद्धान्त माधुरी पद १३२)
श्री कृष्ण गोपियों की प्रेम भरी "चोर​" और "जार​" गालियाँ खाकर विभोर हो जाते हैं । किंतु अपनी अर्धांगिनी महालक्ष्मी की आदर युक्त चरण सेवा नहीं भाती है ।

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