सोमवार, 2 सितंबर 2024

चित्ररथ के पुत्र शूसेन और उनके पुत्र वसुदेव-

चित्ररथ - यादव वंश के एक राजा। वे उषङ्क: के पुत्र और शूर के पिता थे। (श्लोक 29, अध्याय- 251, अनुशासन पर्व)।

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यदुस्तस्मान्महासत्वः क्रोष्टा तस्माद्भविष्यति।
क्रोष्टुश्चैव महान्पुत्रो वृजिनीवान्भविष्यति।28। (महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय-251)

वृजिनीवतश्च भविता उषङ्गुरपराजितः
उषङ्गोर्भविता पुत्रः शूरश्चित्ररथस्तथा
तस्य त्ववरजः पुत्रः शूरो नाम भविष्यति।29।(महाभारत अनुशासनपर्व अध्याय-251)

तेषां विख्यातवीर्याणां चरित्रगुणशालिनाम्।
यज्वनां सुविशुद्धानां वंशे ब्राह्मणसम्मते।।30।
(महाभारत अनुशासन-पर्व अध्याय-251)

स शूरः क्षत्रियश्रेष्ठो महावीर्यो महायशाः।
स्ववंशविस्तरकरं जनयिष्यति मानदः।
वसुदेव इति ख्यातं पुत्रमानकदुन्दुभिम्।।31।

तस्य पुत्रश्चतुर्बाहुर्वासुदेवो भविष्यति।
दाता ब्राह्मणसत्कर्ता ब्रह्मभूतो द्विजप्रियः।32।

राज्ञो मागधसंरुद्धान्मोक्षयिष्यति यादवः।
जरासंधं तु राजानं निर्जित्य गिरिगह्वरे।33।

सर्वपार्थिवरत्नाढ्यो भविष्यति स वीर्यवान्।
पृथिव्यामप्रतिहतो वीर्येण च भविष्यति।34।

विक्रमेण च सम्पन्नः सर्वपार्थिवपार्थिवः।।
शूरसेनेषु भूत्वा स द्वारकायां वसन्प्रभुः।35।

अनुवाद:-
यदु से क्रोष्टा का जन्म होगा, क्रोष्टा से महान् पुत्र वृजिनीवान् होंगे। वृजिनीवान् से विजय वीर उषंक का जन्म होगा। उषंक का पुत्र शूरवीर चित्ररथ होगा। उसका छोटा पुत्र शूर नाम से विख्यात होगा। 
वे सभी यदुवंशी विख्यात पराक्रमी, सदाचार और सद्गुण से सुशोभित, यज्ञशील और विशुद्ध आचार-विचार वाले होंगे। 
उनका कुल ब्राह्मणों द्वारा सम्मानित होगा।
 उस कुल में महापराक्रमी, महायशस्वी और दूसरों को सम्मान देने वाले क्षत्रिय-शिरोमणि शूर अपने वंश का विस्तार करने वाले वसुदेव नामक पुत्र को जन्म देंगे, 
जिसका दूसरा नाम आनकदुन्दुभि होगा।

उन्हीं के पुत्र चार भुजाधारी भगवान वासुदेव होंगे। भगवान वासुदेव दानी, ब्राह्मणों का सत्कार करने वाले, ब्रह्मभूत और ब्राह्मणप्रिय होंगे। वे यदुकुलतिलक श्रीकृष्ण मगधराज जरासंध की कैद में पड़े हुए राजाओं को बन्धन से छुड़ायेंगे। 

वे पराक्रमी श्रीहरि पर्वत की कन्दरा(राजगृह)- में राजा जरासंध को जीतकर समस्त राजाओं के द्वारा उपहृत रत्नों से सम्पन्न होंगे।
 वे इस भूमण्डल में अपने बल-पराक्रम द्वारा अजेय होंगे। विक्रम से सम्पन्न् तथा समस्त राजाओं के भी राजा होंगे। नीतिवेत्ता भगवान श्रीकृष्ण शूरसेन देश (मथुरा-मण्डल)- में अवतीर्ण होकर वहाँ से द्वारकापुरी में जाकर रहेंगे और समस्त राजाओं को जीतकर सदा इस पृथ्वी देवी का पालन करेंगे। 

"श्रीमन्महाभारत अनुशासनपर्व
दानधर्मपर्व नामक एकपञ्चाशदधिकद्विशततमोऽध्यायः।251


इसी प्रकार का वर्णन यथावत् ब्राह्मपुराण के (226) वें अध्याय में हैं। सम्भवतः दोनों  समान  श्लोक एक लेखक के द्वारा लिखित हैं।

यदुस्तस्मान्महासत्त्वः क्रोष्टा तस्माद्‌भविष्यति।
क्रोष्टुश्चैव महान्पुत्रो वृजीनीवान्भविष्यति।। २२६.३६ ।।

वृजिनीवतश्च भविता उषङ्गरपराजितः।
उषङ्गोर्भविता पुत्रः शूरश्चित्ररथस्तथा।२२६.३७ ।

तस्य त्ववरजः पुत्रः शुरो नाम भविष्यति।
तेषां विख्यातवीर्याणां चारित्रगुणशालिनाम्। २२६.३८।

यज्विनां च विशुद्धानां वंशे ब्राह्मणसत्तमाः।
स शूरः क्षत्रियश्रेष्ठो महावीर्यो महायशाः।२२६.३९।

स्ववंशविस्तारकरं जनयिष्यति मानदम्।
वसुदेवमिति ख्यातं पुत्रमानकदुन्दुभिम्। २२६.४०।

तस्य पुत्रश्चतुर्बाहुर्वासुदेवो भविष्यति।
दाता ब्राह्मणसत्कर्ता ब्रह्मभूतो द्विजप्रियः। २२६.४१

श्री ब्रह्मपुराणे आदिब्राह्मे ऋषिमहेश्वरसंवादे षड़विंशत्यधिकद्विशततमोऽध्यायः।। २२६ ।।

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