शनिवार, 29 जुलाई 2017

छन्दोग्य उपनिषद वेदों में में वर्णित कृष्ण और अर्जुन ।

आंगिरस ऋषि ने देवकी-पुत्र श्रीकृष्ण को तत्त्वदर्शन का उपदेश दिया था ।उससे वे सभी तरह की पिपासाओं से मुक्त हो गये थे। साधक को मृत्युकाल में तीन मन्त्रों का स्मरण करना चाहिए-
(तध्दैत्दघोर आगिंरस कृष्ण्णाय देवकीपुत्रायोक्त्वोवाचापिपास एव स बभूव सोऽन्तवेलायामेतत्त्रय प्रतिपद्ये ताक्षितमस्यच्युतमसि प्राण्सँशितमसीति तत्रैते द्वे ॠचौ भवत: ॥)
त्वे धर्माण आसते जुहूभिः सिञ्चतीरिव ।

कृष्णा रूपाण्यर्जुना वि वो मदे विश्वा अधि श्रियो धिषे विवक्षसे ॥३॥( ऋग्वेद दशम् मण्डल) सूक्त २३
तथा
अहस्ता यदपदी वर्धत क्षाः शचीभिर्वेद्यानाम् ।
शुष्णं परि प्रदक्षिणिद्विश्वायवे नि शिश्नथः ॥१४॥
ऋग्वेद १०/२३/१४

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें