६२-भव सागर है कठिन डगर है।
हम कर बैठे खुद से समझौते !
डूब न जाए जीवन की किश्ती ।
यहाँ मोह के भंवर लोभ के गोते ।
संसृत्यौ सिन्धौ शष्पिता सरणि।
वयमाकरोत् स्वेण सम्मध्यता:।
न मज्जेद् मध्य जीवनस्य तरणि"
अवतात् मोहन ! इह मोहावृता।।५।
संसार सागर है जिसमे कठिन डगर है।
हे मोहन हम हम अहं काम लोभ आदि ठगों से समझौत कर बैठे हैं ! जीवन की नौका कहीं मोह को भँवर और लोभ को गीतों मे डूब न जाय
आप ही रक्षा करें।५।
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