सोमवार, 30 दिसंबर 2024

६२-भव सागर है कठिन डगर है। 
हम कर बैठे खुद से समझौते ! 
डूब न जाए जीवन की किश्ती । 
यहाँ मोह के भंवर लोभ के गोते ।

संसृत्यौ सिन्धौ शष्पिता सरणि।
वयमाकरोत् स्वेण सम्मध्यता:।
न मज्जेद् मध्य जीवनस्य तरणि"
अवतात् मोहन ! इह मोहावृता।।५।

संसार सागर है जिसमे कठिन डगर है। 
 हे मोहन हम हम अहं काम लोभ आदि ठगों से समझौत कर बैठे हैं !  जीवन की नौका  कहीं मोह को भँवर और लोभ को गीतों मे डूब न जाय 
आप ही रक्षा करें।५।

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