नि:शङ्क का मूल अर्थ निर्भीक है। अहीरो (गोपों) की निर्भीकता प्रवृत्ति जातिगत है।
अत: नि:शङ्क अथवा निर्भीक विशेषण पद आभीर शब्द का पर्याय है। आभीर लोग वैष्णव वर्ण तथा धर्म के अनुयायी होते ही हैं।
अत: ब्रह्मवैवर्त पुराण श्रीकृष्ण जन्मखण्ड का निम्नलिखित श्लोक गोप जाति की निर्भीकता प्रवृत्ति का भी संकेत करता है।
अनुवाद- मैं पशुओं में गाय हूँ। और वनों में चंदन हूँ। पवित्र स्थानों में तीर्थ हूँ। और निशंकों ( अभीरों अथवा निर्भीकों ) में वैष्णव हूँ।९२।
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