अहो श्रीकृष्ण ! अस्मिन्मायानागरीयां
को गुरूरिति मम इह तेन विना ।।
अहमोऽनाथ एष शून्यपाथ त्वं जगद्गुरु।
स्वीकुरु बन्धको नित्यनियतिना।।१।
अनुवाद:-
हे श्रीकृष्ण ! इस माया नगरी में तेरे विना मेरा कौन गुरु है। मैं अनाथ हूँ जिसके सभी जीवन के रास्ते सूने सूने हैं। हे जगद्गुरु! मैं सदैव नियति ( प्रारब्ध) के बन्धनों में बँधा हुआ हूँ। मुझे तुम स्वीकार करो।१।
"अवगमनात्परमत: हे विभो !
सर्वं त्यक्त्वा निजगुरू: त्वं मत्वा ।।
स्तोत्र लेखनकार्यं साधयिष्यामि ।।
कृपया कुरु पथदर्शनं मे स्वामि।।२।
अनुवाद:-
पहुँच से परे सर्वव्यापक! हे प्रभु सब त्यागकर के तुमको अपना गुरु मानकर स्तोत्र( स्तुतियाँ) के लेखन की क्रिया करुँगा। कृपया मेरा मार्गदर्शन करो मेरे स्वामि!२।
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हे गोपेश्वर ! भवतो विहाय न मम कश्चिद्गुरुः
न कश्चिदीश्वरोऽस्मिन् कर्मभूमौ तिष्ठामि।
अतः मां निजपादयोः स्थापयित्वा नित्यं गुरुत्वेन कुरु हे मम स्वामि ते अनुगामि ।३।
अनुवाद:-
हे गोपेश्वर आपको छोड़कर न मेरा कोई गुरु है। न मेरा कोई ईश्वर मैं इस कर्म- भूमि स्थित हूँ। इस लिए अपने युगल चरणों मे स्थापित कर अपने गुरुत्व के द्वारा मुझे अनुग्रहीत कर मेरे स्वामी मैं तेरा अनुगामी हूँ।३।
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अहो गोपेश्वर: श्री कृष्ण ! मम एकमेव निवेदनं यद्यदा यदा अहं भवन्तं स्मरामि।।
तदा तदा त्वं आगच्छ स्वप्रियया सह
यतः भवन्तौ विना तेन ना सिद्धं कार्यं न शक्नोमि स्वामि।।४।
अनुवाद:-
हे गोपेश्वर श्रीकृष्ण मेरा एक ही निवेदन है कि जब जब मैं तुम्हारा स्मरण करूँ। तब तब तुम अपनी प्रिया राधा जी के साथ आओ ! क्योंकि आपके विना मैं एक कार्य भी सिद्ध नहीं कर सकता स्वामि!।४।
-हे गोपेश्वर श्रीकृष्ण ! त्वां विहाय अन्यस्य ना अनुगामी।
कालस्य निर्माता विधाता ते शरणमिच्छामि। भक्तिं प्रयच्छ. त्वं मह्यं हे नाथ हे स्वामि ।।५।
अनुवाद:-
हे गोपेश्वर श्रीकृष्ण तुम्हारे विना अन्य का में अनुयायी नहीं हूँ। तुम काल को निर्माता सृष्टि के विधाता हो मैं तेरी शरण जाता हूँ। भक्ति दो तुम मुझे हे नाथ हे मेरे स्वामी।५।
हे देव ! जगति सर्वाणि वस्तूनि भवतः एव सन्ति। एतन्मनसि निश्चय कृत्वा सर्व त्यक्त्वा अस्मिन् समये यत्किञ्चिदपि तुभ्यं समर्पयामि।
हर्षेण गृहाण च कुरु दीनस्य त्राण ओ सर्व जगते: स्वामि ।६।
अनुवाद:-
संसार की सभी वस्तुऐं आपसे ही अस्तित्व में हैं। ऐसा मन में निश्चय करके सब त्यागकर इस समय जो कुछ भी है वह तुम्हें समर्पित करता हूँ।६।
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