'हे केशव मया भवते
नमतो भक्त्या अर्प्यते।
यत्किमपि अस्मिन् भवे
नमनानि तुभ्यं भगवते।।१।
अनुवाद:- हे केशव मेरे द्वारा आपके लिए नमन करते हुए इस संसार में जो कुछ है सब भक्तिपूर्वक अर्पण किया जाता है।
हे भगवन् में तुमको अनेकों नमन करता हूँ।१।
जड-जङ्गम चेतन -स्थावरम्"
आद्यन्ताश्च न्यूनञ्च पुरुम्।।
अमूनि सर्वाणि तवेव।
त्वमेव हर्षेण स्वीकुरु।।२।
अनुवाद :-जड़ - चेतन चल- अचल आदि और अन्त तथा कम ज्यादा सब तुम्हारा ही है। वह सबकुछ तुम्हारा ही है। तुम ही उसे हर्षपूर्वक स्वीकार करो।
२।
ज्ञानपुञ्जं प्रवासिकुञ्जम्
मुरलीमधुरं यत्र कदम्ब द्रुम।
गीतां पुनीतां सुवक्तारम्"
अहं वन्दे कृष्णं जगद्गुरुम्।।३।।
अनुवाद :- ज्ञान के समुच्चय तथा कुञ्जों में रहने वाले और कदम्ब वृक्ष के तले मधुर मुरली बजाने वाले। कुरुक्षेत्र में पवित्र गीता का वाचन करने वाले जगद् के गुरु भगवान श्रीकृष्ण की मैं वन्दना करता हूँ।३।
सर्वेचराचरेषु व्याप्नोसि ते सत्ता
निर्गुणसगुणयोरुभयोर्रूपयोर्।
जानान्ति रहस्यं केशवस्य भक्ता:"
अन्वेषयति तु कर्मकाण्डेषु घोर:।।४।
अनुवाद :- हे केशव! आप की सता समस्त चराचर में निर्गुण और सगुण दोनों रूप में व्याप्त हैं। आपके इस रहस्य को तुम्हारे भक्त ही जानते हैं। किंतु भयानक और मूढ व्यक्ति आपको कर्मकाण्डों में खोजते है।४।
संसृत्यौ सिन्धौ शष्पिता सरणि।
वयमाकृण्म भावोर्म्या सम्मध्यता:।
न मज्जेद् मम जीवनस्य तरणि"
हे मोहन ! तर अत्र लोभमोहावृता:।।५।
अनुवाद:- हे मोहन ! संसार रूपी सागर में जीवन रूपी नौका पर आरूढ यह जीवात्मा है। इस जीवन रूपी नौका का मार्ग बड़ा जटिल हैं। यहाँ काम , लोभ आदि भावना रूपी उत्ताल तरंगे निरन्तर उठती रहती है। जीवात्मा इन्हीं से समझौता कर बैठी हैं ; हे मोहन ! जीवन की यह नौका डगमगा रही है इन मोह -लोभ आदि के भँवरोंं में कहीं डूब न जाय ; इसलिए आप ही इस नौका को पार करें।५।
भावसाम्य-
उदाहरण-
"भव सागर है कठिन डगर है।
हम कर बैठे खुद से समझौते !
डूब न जाए जीवन की किश्ती।
यहाँ मोह के भंवर लोभ के गोते।
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