शास्त्रों के एक स्वरूप को निगम कहा जाता है, जिसमें वेद, पुराण, उपनिषद आदि आते हैं।
इसमें ज्ञान, कर्म और उपासना आदि के विषय में बताया गया है। वेद-शास्त्रों को निगम कहते हैं।शास्त्रों के उस स्वरूप को आगम कहते हैं जो व्यवहार अथवा आचरण में उतारने वाले उपायों का रूप होता है।। तन्त्र अथवा आगम में व्यवहार पक्ष ही मुख्य है।
तन्त्र, क्रियाओं और अनुष्ठान पर बल देता है।
निगम - शब्द, पद और शब्दों का मूल रूप या निरुक्ति। सामान्यतया निगम वेदों के लिए प्रयुक्त होता है। इसमें वैदिक मतों का निरूपण, प्रतिपादन और स्पष्टीकरण शामिल है।
जबकि आगम सामान्यतया तंत्र के लिए प्रयुक्त होता है। तन्त्र-शास्त्र का एक नाम-रूपागम शास्त्र भी है।
"आगमात् शिववक्त्राद् गतं च गिरिजा मुखम्। सम्मतं वासुदेवेनागमः इति कथ्यते ॥
जिससे अभ्युदय-लौकिक कल्याण और निःश्रेयस-मोक्ष के उपाय बुद्धि में आते हैं, वह आगम कहलाता है। [वाचस्पति मिश्र, योग भाष्य, तत्व वैशारदी व्याख्या]
उपास्य देवता की भिन्नता के कारण आगम के तीन प्रकार हैं :- वैष्णव आगम (पंचरात्र तथा वैखानस आगम), शैव आगम (पाशुपत, शैवसिद्धांत, त्रिक आदि) तथा शाक्त आगम।
द्वैत, द्वैताद्वैत तथा अद्वैत की दृष्टि से भी इनमें तीन भेद माने जाते हैं।
आगम वेदमूलक और सम्पूरक हैं। इनके वक्ता प्रायः भगवान् शिव हैं।
यह शास्त्र साधारणतया तंत्रशास्त्र के नाम से प्रसिद्ध है। निगमागम मूलक भारतीय संस्कृति का आधार जिस प्रकार निगम (वेद) है, उसी प्रकार आगम (तंत्र) भी है।
दोनों स्वतंत्र होते हुए भी एक दूसरे के पोषक व सन् पूरक भी हैं।
______________
निगम कर्म, ज्ञान तथा उपासना का स्वरूप बतलाता है तथा आगम इनके उपायभूत साधनों का वर्णन करता है।
(निगम सैद्धांतिक है तो आगम प्रायौगिक)
आगच्छन्ति बुद्धिमारोहन्ति अभ्युदयनि: श्रेयसोपाया यस्मात्, स आगम:। [वाचस्पति मिश्र -तत्ववैशारदी-योगभाष्य की व्याख्या]
आगम का मुख्य लक्ष्य ‘क्रिया’ के ऊपर है, तथापि ज्ञान का भी विवरण यहाँ कम नहीं है।
आगम इन सात लक्षणों से समन्वित होता है :- सृष्टि, प्रलय, देवतार्चन, सर्वसाधन, पुरश्चरण, षट्कर्म, (शांति, वशीकरण, स्तंभन, विद्वेषण, उच्चाटन तथा मारण) साधन तथा ध्यानयोग। [वाराहीतंत्र]
कलियुग में प्राणी मेध्य ( मेध-(यज्ञ) करने योग्य तथा अमेध्य ( यज्ञ न करने योग्य) विचारों से बहुधा किंकर्तव्यविमूढ होते हैं और इन्हीं के कल्याणार्थ भगवान् महादेव ने आगमों का उपदेश माता पार्वती को स्वयं दिया। [महानिर्वाण तंत्र]
शिक्षा शास्त्र में जिस प्रकार आगमन विधि में विशिष्ट तथ्यों और घटनाओं के अध्ययन से सामान्य नियम या सिद्धांत बनाए जाते हैं.
वहीं, निगमन विधि में सामान्य नियमों या सिद्धांतों को पहले बताया जाता है और फिर उनका उदाहरणों के ज़रिए पुष्टि की जाती है
________________
आगमन-निगमन विधि से जुड़ी कुछ और बातें:
- १-आगमन विधि में, उदाहरणों के ज़रिए नियमों को समझाया जाता है।
- इस विधि में, ज्ञात से अज्ञात, स्थूल से सूक्ष्म , और मूर्त से अमूर्त की ओर जाने के सिद्धांतों का इस्तेमाल किया जाता है.
- आगमन विधि में, छात्र उदाहरणों के ज़रिए सरल संप्रत्ययों को समझकर नए ज्ञान को हासिल करते हैं। सामान्यतः किसी शब्द के वास्तविक अर्थ को ही प्रत्यय अथवा संप्रत्यय कहते हैं, परन्तु मनोविज्ञान भाषा में मनुष्य के मस्तिष्क में किसी वस्तु, प्राणी, क्रिया अथवा भावना के किसी मूलभूत गुण के आधार पर बनी जातीय प्रतिमा( प्रतिबिम्ब) को प्रत्यय अथवा संप्रत्यय कहते हैं।
- निगमन विधि में, नियमों और सिद्धांतों को बताया जाता है और फिर उनकी उदाहरणों के ज़रिए पुष्टि की जाती है.
- निगम विधि में, तर्क के ज़रिए प्रक्रिया के कैसे और क्यों को समझाया जाता है.
- निगमन विधि को काल्पनिक रीति, विश्लेषण रीति, अमूर्त रीति जैसे नामों से भी जाना जाता है.
- निगमन विधि, विज्ञान और गणित पढ़ाने के लिए बहुत उपयोगी है.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें