शुक्रवार, 27 दिसंबर 2024


 1- हे केशव, पूर्णादरेण भक्त्या च यत्किमपि फलं, पुष्पं, पत्रं, जलं च अहम् अस्मिन् समये अर्पयामि, तत् सर्वं तव एव।  हर्षेण स्वीकुरुत।          
 2- अहो गोपेश्वर !   त्वत्तो निर्मितं सृष्टं च इति ज्ञात्वा।  तथापि यद्यदर्पयामि ते भक्त्या तद्गृहीता हर्षेण ।      
 3- हे केशव !  त्वां विहाय मम अन्यस्य भक्तेः आवश्यकता नास्ति, यतः त्वं कालस्य निर्माता अपि च कालस्य निर्माता असि ।  अहो देव, अहं समर्पणं करोमि।  भक्तिं दत्त्वा मां जीवनबन्धनात् मुञ्चतु |    
 4- अहो गोपेश्वर श्री कृष्ण !  मम एकमात्रं निवेदनं यत् यदा यदा अहं भवन्तं स्मरामि तदा तदा भवन्तः स्वप्रियश्रीराधा सह आगच्छन्तु।  यतः भवन्तौ विना मम एकं कार्यं न सिद्ध्यति ।
 5- हे केशव !  निर्गुणसगुणरूपेषु सर्वेषु जीवेषु (निर्जीवेषु, सजीवेषु, स्थावरेषु, स्थावरेषु, जगतः सर्वेषु प्राणिषु) वर्तमानः असि।  तव रहस्यं भक्ताः भक्त्या योगिनः योगशक्त्या च जानन्ति।  अज्ञानिनः तु त्वां संस्कारेषु अन्वेषयन्ति।  ईश्वरः मां तादृशात् अज्ञानात् रक्षतु।




१- हे केशव मैं आपको शत-शत नमन करते हुए, भक्तिभाव से फल, फूल, पत्र और जल जो भी इस समय अर्पित कर रहा हूँ, वह सब आपका ही है। इसे सहर्ष स्वीकार करें।    
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हे केशव मया भवते शतश् नमतो  भक्त्याभावनाया  अर्प्यते।
फलपुष्पपत्राणि यत्किमपि अस्मिन्समये  ।      समर्पणं सर्वं  तुभ्यं  भगवते।।१।

अमूनि सर्वाणि तवेव।
            त्वमेव हर्षेण स्वीकुरु।
जड-जङ्गम चेतन -स्थावरम्।
            आद्यन्ताश्च न्यूनञ्च पुरुम्।२।


गीतं  पुनीतं सुवक्तारम्। 
            अहं वन्दे कृष्णं जगद्गुरुम्।।२।।
 

२- हे गोपेश्वर! यह जानते हुए कि- ब्राह्मणपर्यन्त संसार की समस्त वस्तुऐं आप से ही निर्मित व सृजित हैं। फिर भी मैं  आपको भक्तिभाव से जो भी कुछ अर्पित कर रहा हूँ, उसे सहर्ष स्वीकार करें।      
३- हे केशव ! आप के अतिरिक्त मुझे और किसी की भक्ति नहीं चाहिए, क्योंकि आप काल के भी काल और विधाता के भी विधाता हैं। हे परमेश्वर मैं शरणागत हूँ। मुझे भक्ति प्रदान कर भवबंधन से मुक्त करें।    
४- हे गोपेश्वर श्रीकृष्ण ! आपसे यही विनती है की जब भी मैं आपका स्मरण करूं, आप अपनी प्राणप्रिया श्रीराधा के साथ ही आना। क्योंकि आप दोनों के बिना मेरा एक भी कार्य सिद्ध नहीं हो सकता।
५- हे केशव! आप समस्त चराचर (जड़-चेतन, स्थावर-जंगम, संसार के सभी प्राणियों) में निर्गुण और सगुण दोनों रूपों में व्याप्त हैं। आपके इस रहस्य को भक्त भक्तिभाव से तथा योगी योगबल से जान ही लेते हैं। किंतु अज्ञानी लोग आपको कर्मकाण्डों में खोजा करते हैं। प्रभु ऐसी अज्ञानता से मेरी रक्षा करें, रक्षा करें।




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