• हे केशव, यानि फलानि, पुष्पाणि, पत्राणि, जलं च अस्मिन् समये भक्त्या अर्पयामि, तानि सर्वाणि तव, तानि हर्षेण स्वीकुरुत।1।.
• अहो श्री कृष्ण ! अनाथोऽस्मि त्वां विनाऽस्मिन् मायापुरे मम जीवनस्य सर्वे मार्गाः निर्जनाः सन्ति। हे जगद्गुरु ! दैवबन्धैः सदा बद्धोऽस्मि । त्वं मां स्वीकुर्वसि।२।
• हे केशव मैं आपको शत-शत नमन करते हुए, भक्तिभाव से फल, फूल, पत्ते और जल जो भी इस समय अर्पित कर रहा हूँ, वह सब आपका ही है उसे सहर्ष स्वीकार करें।१।
• हे श्रीकृष्ण ! इस माया नगरी में तेरे बिना मैं अनाथ हूँ। मेरे जीवन के सभी रास्ते सूने सूने हैं। हे जगद्गुरु! मैं सदैव नियति (प्रारब्ध) के बन्धनों में बँधा हुआ हूँ। मुझे तुम स्वीकार करो।२।
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