रविवार, 11 नवंबर 2018

चौहान शब्द की व्युत्पत्ति--

चौहान उपनाम उपयोगकर्ता सबमिशन: चौथी शताब्दी ईस्वी में व्हाइट हंस, चहल्स (यूरोपीय इतिहास की चोल) के वंशज, कैस्पियन समुद्र के पूर्व में बस गए थे। यही वह अवधि थी जब चहल गजनी क्षेत्र में ज़बुलिस्तान पर कब्जा कर रहे थे। वंश मध्य एशियाई है और मूल निवासी के साथ अंतःक्रिया के कारण यह भारतीय, ईरानी और तुर्की है। इस उपनाम के बारे में और पढ़ें   चौहान उपनाम वितरण + - 25% पत्रक | जनसंख्या डेटा © Forebears घटनाओं से पूर्ण स्क्रीन 2014 क्षेत्र में घटना आवृत्ति रैंक रखें भारत 1,592,334 1: 482 53 इंग्लैंड 9150 1: 6076 861 संयुक्त राज्य अमेरिका 3,730 1: 96,850 10,829 संयुक्त अरब अमीरात 2,679 1: 3,425 428 सऊदी अरब 2,0 9 2 1: 14,751 2,0 9 5 पाकिस्तान 1,719 1: 101,474 3310 कनाडा 1,677 1: 21,943 3006 ओमान 1,549 1: 2,547 505 केन्या 1,349 1: 34,128 4126 फिजी 943 1: 948 108 सभी राष्ट्र दिखाओ चौहान उपनाम अर्थ $ 100 वंशावली डीएनए परीक्षण जीतने की संभावना के लिए इस उपनाम पर जानकारी जमा करें डीएनए परीक्षण जानकारी उपयोगकर्ता द्वारा प्रस्तुत संदर्भ चौथी शताब्दी ईस्वी में व्हाइट हंस, चहल्स (यूरोपीय इतिहास की चोल) के वंशज, कैस्पियन समुद्र के पूर्व में बस गए थे। यही वह अवधि थी जब चहल गजनी क्षेत्र में ज़बुलिस्तान पर कब्जा कर रहे थे। वंश मध्य एशियाई है और मूल निवासी के साथ अंतःक्रिया के कारण यह भारतीय, ईरानी और तुर्की है। हालांकि, नाम चहल को एक और कबीले द्वारा साझा किया जाता है और अंतर मिश्रण होता है; इसलिए वंश मिश्रित है। चाहल नाम लेबनान, इज़राइल और मध्य एशियाई देशों के मूल निवासी पाया जा सकता है। - hsingh1861 ध्वन्यात्मक रूप से समान नाम उपनाम समानता घटना Prevalency Chaouhan 93 307 / Chauahan 93 253 / Chauhaan 93 243 / Chauhana 93 94 / Chauhanu 93 60 / Chauehan 93 46 / Chauohan 93 35 / Chauhann 93 21 / Chaauhan 93 18 / Chauhani 93 15 / सभी समान सुरनाम दिखाओ चौहान उपनाम लिप्यंतरण घटनाओं का लिप्यंतरण आईसीयू लैटिन प्रतिशत बंगाली में चौहान চৌহান cauhana - हिंदी में चौहान चौहान cauhana 98.92 सभी अनुवाद दिखाएं मराठी में चौहान चौहान cauhana 77.03 चौहाण cauhana 16.16 छगन chagana 1.99 चोहान cohana 1.23 सभी अनुवाद दिखाएं तिब्बती में चौहान ཅུ་ ཝཱན ་. chuwen 66.67 ཅུ་ ཧན ་. chuhen 33.33 उडिया में चौहान େଚୗହାନ ecahana 60.75 େଚୗହାନ୍ 14.52 ecahan ଚଉହାନ ca'uhana 6.99 େଚୖହାନ ecahana 4.84 େଚୖାହାନ ecaahana 3.23 େଚୗହାଣ ecahana 2.15 େଚୗହନ ecahana 2.15 େଚୗାନ ecaana 2.15 सभी अनुवाद दिखाएं अरबी में चौहान شوهان shwhan - उपनाम आंकड़े अभी भी विकास में हैं, अधिक मानचित्र और डेटा पर जानकारी के लिए साइन अप करें सदस्यता लें मेलिंग सूची में साइन अप करके आप केवल विशेष रूप से फोरबियर पर उपनाम संदर्भ के बारे में ईमेल प्राप्त करेंगे और आपकी जानकारी तीसरे पक्ष को वितरित नहीं की जाएगी। फुटनोट उपनाम वितरण आंकड़े 4 बिलियन लोगों के वैश्विक नमूने से उत्पन्न होते हैं रैंक: उपनामों को क्रमिक रैंकिंग विधि का उपयोग करके घटनाओं द्वारा क्रमबद्ध किया जाता है; उपनाम जो सबसे अधिक होता है उसे 1 का रैंक सौंपा जाता है; उपनाम जो अक्सर कम होते हैं, एक वृद्धिशील रैंक प्राप्त करते हैं; यदि दो या दो से अधिक उपनाम समान संख्या में होते हैं तो उन्हें एक ही रैंक आवंटित किया जाता है और कुल रैंक को उपरोक्त उपनामों द्वारा क्रमशः बढ़ाया जाता है इसी तरह: "समान उपनाम" खंड में सूचीबद्ध उपनाम ध्वन्यात्मक रूप से समान हैं और शायद चौहान से कोई संबंध नहीं हो सकता है वेबसाइट जानकारी AboutContactCopyrightPrivacyCredits संसाधन forenames उपनाम वंशावली संसाधन इंग्लैंड और वेल्स गाइड © Forebears 2012-2018

Chauhan Surname User-submission:

Descandants of White Huns, the Chahals (Chols of European history) in the fourth century AD, were settled on the east of Caspian sea. This was the period when Chahals were occupying Zabulistan in the Ghazni area. Ancestry is Central Asian and due to interbreeding with natives it is Indian, Iranian, and Turkish.

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Chauhan Surname Distribution
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25%
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By incidence
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2014
PlaceIncidenceFrequencyRank in Area
India1,592,3341:48253
England9,1501:6,076861
United States3,7301:96,85010,829
United Arab Emirates2,6791:3,425428
Saudi Arabia2,0921:14,7512,095
Pakistan1,7191:101,4743,310
Canada1,6771:21,9433,006
Oman1,5491:2,547505
Kenya1,3491:34,1284,126
Fiji9431:948108
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Chauhan Surname Meaning
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User-submitted Reference

Descandants of White Huns, the Chahals (Chols of European history) in the fourth century AD, were settled on the east of Caspian sea. This was the period when Chahals were occupying Zabulistan in the Ghazni area. Ancestry is Central Asian and due to interbreeding with natives it is Indian, Iranian, and Turkish.

However, the name Chahal is shared by another clan and inter mixing has occurred; so ancestry is mixed. The name Chahal can be found native to Lebanon, Israel and Central Asian countries.

- hsingh1861
Phonetically Similar Names
SurnameSimilarityIncidencePrevalency
Chaouhan93307/
Chauahan93253/
Chauhaan93243/
Chauhana9394/
Chauhanu9360/
Chauehan9346/
Chauohan9335/
Chauhann9321/
Chaauhan9318/
Chauhani9315/
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Chauhan Surname Transliterations
TransliterationICU LatinPercentage of Incidence
Chauhan in Bengali
চৌহানcauhana-
Chauhan in Hindi
चौहानcauhana98.92
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Chauhan in Marathi
चौहानcauhana77.03
चौहाणcauhana16.16
छगनchagana1.99
चोहानcohana1.23
SHOW ALL TRANSLITERATIONS
Chauhan in Tibetan
ཅུ་ཝཱན།chuwen66.67
ཅུ་ཧན།chuhen33.33
Chauhan in Oriya
େଚୗହାନecahana60.75
େଚୗହାନ୍ecahan14.52
ଚଉହାନca'uhana6.99
େଚୖହାନecahana4.84
େଚୖାହାନecaahana3.23
େଚୗହାଣecahana2.15
େଚୗହନecahana2.15
େଚୗାନecaana2.15
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Chauhan in Arabic
شوهانshwhan-
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चह्वान (चतुर्भुज)
अग्निवंश के सम्मेलन कर्ता ऋषि
१.वत्सम ऋषि,२.भार्गव ऋषि,३.अत्रि ऋषि,४.विश्वामित्र,५.चमन ऋषि
विभिन्न ऋषियों ने प्रकट होकर अग्नि में आहुति दी तो विभिन्न चार वंशों की उत्पत्ति हुयी जो इस इस प्रकार से है-
१.पाराशर ऋषि ने प्रकट होकर आहुति दी तो परिहार की उत्पत्ति हुयी (पाराशर गोत्र)
२.वशिष्ठ ऋषि की आहुति से परमार की उत्पत्ति हुयी (वशिष्ठ गोत्र)
३.भारद्वाज ऋषि ने आहुति दी तो सोलंकी की उत्पत्ति हुयी (भारद्वाज गोत्र)
४.वत्स ऋषि ने आहुति दी तो चतुर्भुज चौहान की उत्पत्ति हुयी (वत्स गोत्र)
चौहानों की उत्पत्ति आबू शिखर मे हुयी
दोहा-
चौहान को वंश उजागर है,जिन जन्म लियो धरि के भुज चारी,
बौद्ध मतों को विनास कियो और विप्रन को दिये वेद सुचारी॥
चौहान की कई पीढियों के बाद अजय पाल जी महाराज पैदा हुये
जिन्होने आबू पर्वत छोड कर अजमेर शहर बसाया
अजमेर मे पृथ्वी तल से १५ मील ऊंचा तारागढ किला बनाया जिसकी वर्तमान में १० मील ऊंचाई है,महाराज अजयपाल जी चक्रवर्ती सम्राट हुये.
इसी में कई वंश बाद माणिकदेवजू हुये,जिन्होने सांभर झील बनवाई थी।
सांभर बिन अलोना खाय,माटी बिके यह भेद कहाय"
इनकी बहुत पीढियों के बाद माणिकदेवजू उर्फ़ लाखनदेवजू हुये
इनके चौबीस पुत्र हुये और इन्ही नामो से २४ शाखायें चलीं
चौबीस शाखायें इस प्रकार से है-
१. मुहुकर्ण जी उजपारिया या उजपालिया चौहान पृथ्वीराज का वंश
२.लालशाह उर्फ़ लालसिंह मदरेचा चौहान जो मद्रास में बसे हैं
३. हरि सिंह जी धधेडा चौहान बुन्देलखंड और सिद्धगढ में बसे है
४. सारदूलजी सोनगरा चौहान जालोर झन्डी ईसानगर मे बसे है
५. भगतराजजी निर्वाण चौहान खंडेला से बिखराव
६. अष्टपाल जी हाडा चौहान कोटा बूंदी गद्दी सरकार से सम्मानित २१ तोपों की सलामी
७.चन्द्रपाल जी भदौरिया चौहान चन्द्रवार भदौरा गांव नौगांव जिला आगरा
८.चौहिल जी चौहिल चौहान नाडौल मारवाड बिखराव हो गया
९. शूरसेन जी देवडा चौहान सिरोही (सम्मानित)
१०.सामन्त जी साचौरा चौहान सन्चौर का राज्य टूट गया
११.मौहिल जी मौहिल चौहान मोहिल गढ का राज्य टूट गया
१२.खेवराज जी उर्फ़ अंड जी वालेगा चौहान पटल गढ का राज्य टूट गया बिखराव
१३. पोहपसेन जी पवैया चौहान पवैया गढ गुजरात
१४. मानपाल जी मोरी चौहान चान्दौर गढ की गद्दी
१५. राजकुमारजी राजकुमार चौहान बालोरघाट जिला सुल्तानपुर में
१६.जसराजजी जैनवार चौहान पटना बिहार गद्दी टूट गयी
१७.सहसमल जी वालेसा चौहान मारवाड गद्दी
१८.बच्छराजजी बच्छगोत्री चौहान अवध में गद्दी टूटगयी.
१९.चन्द्रराजजी चन्द्राणा चौहान अब यह कुल खत्म हो गया है
२०. खनगराजजी कायमखानी चौहान झुन्झुनू मे है लेकिन गद्दी टूट गयी है,मुसलमान बन गये है
२१. हर्राजजी जावला चौहान जोहरगढ की गद्दी थे लेकिन टूट गयी.
२२.धुजपाल जी गोखा चौहान गढददरेश मे जाकर रहे.
२३.किल्लनजी किशाना चौहान किशाना गोत्र के गूजर हुये जो बांदनवाडा अजमेर मे है
२४.कनकपाल जी कटैया चौहान सिद्धगढ मे गद्दी (पंजाब)
उपरोक्त प्रशाखाओं में अब करीब १२५ हैं
बाद में आनादेवजू पैदा हुये
आनादेवजू के सूरसेन जी और दत्तकदेवजू पैदा हुये
सूरसेन जी के ढोडेदेवजी हुये जो ढूढाड प्रान्त में था,यह नरमांस भक्षी भी थे.
ढोडेदेवजी के चौरंगी-—सोमेश्वरजी--—कान्हदेवजी हुये
सोम्श्वरजी को चन्द्रवंश में उत्पन्न अनंगपाल की पुत्री कमला ब्याही गयीं थीं
सोमेश्वरजी के पृथ्वीराजजी हुये
पृथ्वीराजजी के-
रेनसी कुमार जो कन्नौज की लडाई मे मारे गये
अक्षयकुमारजी जो महमूदगजनवी के साथ लडाई मे मारे गये
बलभद्र जी गजनी की लडाई में मारे गये
इन्द्रसी कुमार जो चन्गेज खां की लडाई में मारे गये
पृथ्वीराज ने अपने चाचा कान्हादेवजी का लडका गोद लिया जिसका नाम राव हम्मीरदेवजू था
हम्मीरदेवजू के-दो पुत्र हुये रावरतन जी और खानवालेसी जी
रावरतन सिंह जी ने नौ विवाह किये थे और जिनके अठारह संताने थीं,
सत्रह पुत्र मारे गये
एक पुत्र चन्द्रसेनजी रहे
चार पुत्र बांदियों के रहे
खानवालेसी जी हुये जो नेपाल चले गये और सिसौदिया चौहान कहलाये.
रावरतन देवजी के पुत्र संकट देवजी हुये
संकटदेव जी के छ: पुत्र हुये
१. धिराज जू जो रिजोर एटा में जाकर बसे इन्हे राजा रामपुर की लडकी ब्याही गयी थी
२. रणसुम्मेरदेवजी जो इटावा खास में जाकर बसे और बाद में प्रतापनेर में बसे
३. प्रतापरुद्रजी जो मैनपुरी में बसे
४. चन्द्रसेन जी जो चकरनकर में जाकर बसे
५. चन्द्रशेव जी जो चन्द्रकोणा आसाम में जाकर बसे इनकी आगे की संतति में सबल सिंह चौहान हुये जिन्होने महाभारत पुराण की टीका लिखी.
मैनपुरी में बसे राजा प्रतापरुद्रजी के दो पुत्र हुये
१.राजा विरसिंह जू देव जो मैनपुरी में बसे
२. धारक देवजू जो पतारा क्षेत्र मे जाकर बसे
मैनपुरी के राजा विरसिंह जू देव के चार पुत्र हुये
१. महाराजा धीरशाह जी इनसे मैनपुरी के आसपास के गांव बसे

हूण बंजारे लोग थे जिनका मूल स्थान वोल्गा के पूर्व में था। वे ३७० ई में यूरोप में पहुँचे और वहाँ विशाल हूण साम्राज्य खड़ा किया। हूण वास्तव में चीन के पास रहने वाली एक जाति थी। इन्हें चीनी लोग "ह्यून यू" अथवा "हून यू" कहते थे। कालान्तर में इसकी दो शाखाएँ बन गईँ जिसमें से एक वोल्गा नदी के पास बस गई तथा दूसरी शाखा ने ईरान पर आक्रमण किया और वहाँ के सासानी वंश के शासक फिरोज़ को मार कर राज्य स्थापित कर लिया। बदलते समय के साथ-साथ कालान्तर में इसी शाखा ने भारत पर आक्रमण किया इसकी पश्चिमी शाखा ने यूरोप के महान रोमन साम्राज्य का पतन कर दिया।

यूरोप पर आक्रमण करने वाले हूणों का नेता अट्टिला था। भारत पर आक्रमण करने वाले हूणों को श्वेत हूण तथा यूरोप पर आक्रमण करने वाले हूणों को अश्वेत हूण कहा गया भारत पर आक्रमण करने वाले हूणों के नेता क्रमशः तोरमाण व मिहिरकुल थे तोरमाण ने स्कन्दगुप्त को शासन काल में भारत पर आक्रमण किया था।

चित्र दीर्घा
संज्ञा पुं० [देश० या सं०] एक प्राचीन मंगोल जाति जो पहले चीन की पूरबी सीमा पर लूट मार किया करती थी, पर पीछेअत्यंत प्रबल होकर अशिया और योरप के सभ्य देशों पर आक्रमण करती हुई फैली। विशेष—हूणों का इतना भारी दल चलता था कि उस समय के बड़े बड़े सभ्य साम्राज्य उनका उवरोध नहीं कर सकते थे। चीन की ओर से हटाए गए हूण लोग तुर्किस्तान पर अधिकार करके सन् ४०० ई० से पहले वंक्षु नद (आवसस नदी) के किनारे आ बसे। यहाँ से उनकी एक शाखा ने तो योरप के रोम साम्राज्य की जड़ हिलाई और शेष पारस साम्राज्य में घुसकर लूटपाट करने लगे। पारसवाले इन्हें 'हैताल' कहते थे। कालिदास के समय में हूण वंक्षु के ही किनारे तक आए थे, भारतवर्ष के भीतर नहीं घुसे थे; क्योंकि रघु के दिग्विजय के वर्णन में कालिदास ने हूणों का उल्लेख वहीं पर किया है। कुछ आधुनिक प्रतियों में 'वंक्षु' के स्थान पर 'सिंधु' पाठ कर दिया गया है, पर वह ठीक नहीं। प्राचीन मिली हुई रघुवंश की प्रतियों में 'वंक्षु' ही पाठ पाया जाता है। वंक्षु नद के किनारे से जब हूण लोग फारस में बहुत अपद्रव करने लगे, तब फारस के प्रसिद्ध बादशाह बहराम गोर ने सन् ४२५ ई० में उन्हें पूर्ण रूप से परास्त करके वंक्षु नद के उस पार भगा दिया। पर बहराम गोर के पौत्र फीरोज के समय में हूणों का प्रभाव फारस में बढ़ा। वे धीरे धीरे फारसी सभ्यता ग्रहण कर चुके थे और अपने नाम आदि फारसी ढंग के रखने लगे थे। फीरोज को हरानेवाले हूण बादशाह का नाम खुशनेवाज था। जब फारस में हूण साम्राज्य स्थापित न हो सका, तब हूणों ने भारतवर्ष की ओर रुख किया। पहले उन्होंने सीमांत प्रदेश कपिश और गांधार पर अधिकार किया, फिर मध्यदेश की ओर चढ़ाई पर चढ़ाई करने लगे। गुप्त सम्राट् कुमारगुप्त इन्हीं चढ़ाइयों में मारा गया। इन चढ़ाइयों से तत्कालीन गुप्त साम्राज्य निर्बल पड़ने लगा। कुमारगुप्त के पुत्र महाराज स्कंदगुप्त बड़ी योग्यता और वीरता से जीवन भर हूणों से लड़ते रहे। सन् ४५७ ई० तक अंतर्वेद, मगध आदि पर स्कंदगुप्त का अधिकार बराबर पाया जाता है। सन् ४६५ के उपरांत हुण प्रबल पड़ने लगे और अंत में स्कंदगुप्त हूणों के साथ युध्द करने में मारे गए। सन् ४९९ ई० में हूणों के प्रतापी राजा तुरमान शाह (सं० तोरमाण) ने गुप्त साम्राज्य के पश्चिमी भाग पर पूर्ण अधिकार कर लिया। इस प्रकार गांधार, काश्मीर, पंजाब, राजपूताना, मालवा और काठियावाड़ उसके शासन में आए। तुरमान शाह या तोरमाण का पुत्र मिहिरगुल (सं० मिहिरकुल) बड़ा ही अत्याचारी और निर्दय हुआ। पहले वह बौद्ध था, पर पीछे कट्टर शैव हुआ। गुप्तवंशीय नरसिंहगुप्त और मालव के राजा यशोधर्मन् से उसने सन् ५३२ ई० मे गहरी हार खाई और अपना इधर का सारा राज्य छोड़कर वह काश्मीर भाग गया। हूणों में ये ही दो सम्राट् उल्लेख योग्य हुए। कहने की आवश्यकता नहीं कि हूण लोग कुछ और प्राचीन जातियों के समान धीरे धीरे भारतीय सभ्यता में मिल गए। राजपूतों में एक शाखा हूण भी है। कुछ लोग अनुमान करते हैं कि राजपूताने और गुजरात के कुनबी भी हूणों के वंशज हैं। २. एक स्वर्णमुद्रा। दे० 'हुन' (को०)। ३. बृहत्संहिता के अनुसार एक देश का नाम जहाँ हूण रहते थे।—बृहत्०, पृ० ८६।

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