ब्राह्मणों की कल्पना तो देखें कि ये गाय के गोबर से ही मनुष्य उत्पन्न कर देते हैं ।
और पर्वतों का नदीयों से बलात्कार करना भी देख लेते हैं
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महाभारत में एक काल्पनिक कथा सृजित करके महाभारत आदि पर्व के ‘चैत्ररथ पर्व’ के अंतर्गत अध्याय 174 के अनुसार वसिष्ठ के अद्भुत क्षमा-बल के सन्दर्भ में विश्वामित्र का पराभव को दर्शाते हुए कहा -- कि एकवार जब विश्वामित्र और वशिष्ठ का युद्ध हुआ तो वशिष्ठ की गाय नन्दिनी ने --
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अपनी पूंछ से बांरबार अगार की भारी वर्षा करते हुए पूंछ से ही पह्रवों की सृष्टि की, थनों से द्रविडों और शकों को उत्पन्न किया, योनिदेश से यवनों और गोबर से बहुतेरे शबरों को जन्म दिया।
कितने ही शबर उसके मूत्र से प्रकट हुए। उसके पार्श्वभाग से पौण्ड्र, किरात, यवन, सिंहल सि़घल), बर्बर और खसों की सृष्टि की। इसी प्रकार उस गाय ने फेन से चिबुक, पुलिन्द, चीन, हूण, केरल आदि बहुत प्रकार के ग्लेच्छों की सृष्टि की।
उसके द्वारा रचे गये नाना प्रकार के म्लेच्छों के गणों की वे विशाल सेनाएं जो अनेक प्रकार के कवच आदि से आच्छादित थीं। सबने भाँति-भाँति के आयुध धारण कर रखे थे और सभी सैनिक क्रोध में भरे हुए थे। उन्होंने विश्वामित्र के देखते-देखते उसकी सेना को तितर-बितर कर दिया। विश्वामित्र के एक-एक सैनिक को म्लेच्छ सेना के पांच-पांच, सात-सात योद्धाओं ने घेर रखा था। उस समय अस्त्र-शस्त्रों की भारी वर्षा से घायल होकर विश्वामित्र की सेना के पांव उखड़ गये और उनके सामने ही वे सभी योद्धा भयभीत हो सब ओर भाग चले।
भरतश्रेष्ठ क्रोध में भरे हुए होने पर वशिष्ठ सेना के सैनिक विश्वामित्र के किसी भी योद्धा का प्राण नहीं लेते थे। इस प्रकार नंदिनी गाय ने उनको सारी सेना को दूर भगा दिया।
क्या प्रजनन का यह सिद्धान्त भी प्रमाणित है ।
अन्धों पर शासन करने के लिए कानों (काणों) ने ये कपोल कल्पित कथाऐं बना डाली .
अर्थात् शबर जन-जाति का उल्लेख हिन्दू पौराणिक महाकाव्य महाभारत के आदि पर्व में हुआ है। और लिखा कि यह एक म्लेच्छ जाति थी, जो वशिष्ठ जी की नंदिनी नामक गाय के गोबर तथा गोमूत्र से उत्पन्न हुई थी।
काशी के असी- घाट पर शास्त्रार्थ महारथी
ब्राह्मण विद्वानों के मुखार- बिन्दु सुना है कि महाभारत पञ्चम् वेद है
महाभारत काल्पनिक देवता गणेश ने लिखा !
जो स्वयं पार्वती के शरीर के मैले से पार्वती ने अपने प्रहरी के रूप में बनाया ।
और तो और महाभारत में दार्शनिक मूढ़ता की मर्यादाऐं भंग होगयी ।" वहले तो महाभारत किसी एक व्यक्ति की रचना नहीं है यह पुष्यमित्र सुंग ई०पू०१८४ के काल में रचित रचना है ; जिसका लेखक इसे अपौरुषेय सिद्ध करने के लिए गणेश जी को बना दिया गया ।
अब महाभारत में वर्णित दार्शनिक विवेचनाओं की वैज्ञानिकता ही देखें 👹
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संस्वेदजा अण्डजाश्चोद्भिदश्च
सरीसृपा : कृमयो८थाप्सु मत्स्य:।
तथा अश्मानस्तृण काष्ठं च
सर्वे दिष्टक्षये स्वयं प्रकृतिं भजन्ति ।११।
(महाभारत आदि पर्व २९ वाँ अध्याय )
स्वेदज पसीने से उत्पन्न होने वाले
,अण्डज , उद्भिज्ज, सरीसृप, कृमि तथा जल में रहने वाले मत्स्य आदि जीव तथा पर्वत तृण, काष्ठ - ये सभी प्रारब्ध भोग का सर्वथा क्षय होने पर अपनी प्रकृति (मूल रूप)को प्राप्त होते हैं।
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अब यहाँ जड़ पदार्थ भी प्रारब्ध भोग के भागी मान लिये गये ।
परन्तु प्रारब्ध तो जीवन का परिमाण ( मात्रा) तथा कर्म का प्रतिरूप है ।
और फिर पत्थर, तिनका तथा लकड़ी का भाग्य से क्या सम्बन्ध ? परन्तु मूढ़ ब्राह्मणों ने यहाँ भी भाग्य को जोड़ दिया ।
परन्तु महाभारत के भीष्म पर्व में जो श्रीमद्भगवत् गीता 700 श्लोकों में वर्णित है ।उसमें भी केवल 75 शलोक ही कृष्ण के विचारों का अनुमोदन करते हैं
और तो बाद में जोड़े गयीं कल्प - कलाप मात्र हैं
दुर्भाग्य से महाभारत में अच्छी तथा बुरी दौनों बातें का समायोजन हो गया है।
परन्तु अधिकतर सारहीन तथा गल्प मात्र हैं ।
और महाभारत में यह कथन मिथ्या है !
कि स्त्रीयों का दामाद में पुत्र से अधिक स्नेह होता है ।
यह भी सामाजिक व्यवहारिक कषौटी पर खरा नहीं है ।
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अधिका किल नारीणां प्रीतिर्जामातृजा भवेत् ।१२।
(महाभारत आदि पर्व ११४वाँ अध्याय)
स्त्रीयों का दामाद में पुत्र से अधिक स्नेह होना चाहिए ।
वास्तविक रूप में यह स्नेह केवल लड़की के कारण से है ;अन्यथा दामाद तो सुसराल मे पिटते देखे गये हैं ।
और जिस समय ये ग्रन्थ लिखे गये उस समय समाज में राजा सामी विलासी ही अधिक थे । अत: उनके पुरोहित भी इसी प्रकार के थे ।
कामुकता भी हर चीज में इन्हें नजर आयी ।
देखें--- 👇
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पुरोपवाहिनी तस्य नदीं शुक्तिमतीं गिरि:।
अरोत्सीच्चेतना युक्त: कामात् कोलाहल: किल ।।३५।।
अर्थात् राजा उपरिचर की राजधानी के समीप शुक्तिमती नदी वहती है। एक समय 'कोलाहल' नामकपर्वत ने सचेतन होकर काम (sex) के वश होकर नदी को पकड़ लिया और उसके साथ बलात्कार कर दिया !
(महाभारत आदि पर्व ६३ वाँ अध्याय )
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तस्यां नद्याम् अजनयत् मिथुनं पर्वत: स्वयम् ।
तस्माद्धि विमोक्षणात् प्रीति नदी राज्ञेन्यवेदयत् ।।३७।
अर्थात् और उस नदी के साथ बलात्कार करने पर उस पर्वत ने नदी के गर्भ से एक पुत्र और एक कन्या जुँड़वा रूप से उत्पन्न की ।
पर्वत के अवरोध से मुक्त कराने के कारण राजा उपरिचर को नदी ने अपनी दौनो सन्तान भेंट में दे दी ।
अब पर्वत ही बलात्कार करते हैं तो आदमी क्यों नहीं करेगा ?
अब मूसल पर्व में भी देखें---
की सृष्टी का प्रजनन - सिद्धान्त भी कितना अवैज्ञानिक है
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व्यजानयन्त खरा गोषु करभा८श्वतरीषु च ।
शुनीष्वापि बिडालश्च मूषिका नकुलीषु च।९।
अर्थात् गायों के पेट से गदहे , तथा खच्चरियों के पेट से हाथी ।और कुतिया से बिलोटा 'और नेवलियों के गर्भ से चूहा उत्पन्न होने लगे ।
(महाभारत मूसल पर्व द्वित्तीय अध्याय)
महाभारत मूसल पर्व में कृष्ण की सोलह हजार पत्नियों का का वर्णन भी है ।
-षोडश स्त्रीसहस्राणि वासुदेव परिग्रह ।६।
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असृजत् पह्लवान् पुच्छात् प्रस्रवाद् द्रविडाञ्छकान् (द्रविडान् शकान्)।
योनिदेशाच्च यवनान् शकृत: शबरान् बहून् ।३६।
मूत्रतश्चासृजत् कांश्चित् शबरांश्चैव पार्श्वत: ।
पौण्ड्रान् किरातान् यवनान् सिंहलान् बर्बरान् खसान् ।३७।
नन्दनी गाय ने पूँछ से पह्लव उत्पन्न किये । तथा धनों से द्रविड और शकों को । योनि से यूनानीयों को और गोबर से शबर उत्पन्न हुए। कितने ही शबर उसके मूत्र ये उत्पन्न हुए उसके पार्श्व-वर्ती भाग से पौंड्र किरात यवन सिंहल बर्बर और खसों की -सृष्टि ।३७।
चिबुकांश्च पुलिन्दांश्च चीनान् हूणान् सकेरलान्।
ससरज फेनत: सा गौर् म्लेच्छान् बहुविधानपि ।३८।
इसी प्रकार गाय ने फेन से चिबुक पुलिन्द चीन हूण केरल आदि बहुत प्रकार के म्लेच्छों की उत्पत्ति हुई ।
महाभारत आदि पर्व चैत्ररथ पर्व १७४वाँ अध्याय
भीमोच्छ्रितमहाचक्रं बृहद्अट्टाल संवृतम् ।
दृढ़प्राकार निर्यूहं शतघ्नी जालसंवृतम् ।
भारत में तोप का प्रचलन सौलहवीं सदी के पूर्वार्ध में होने लगा था ।
और सन् 1313 ई. से यूरोप में तोप के प्रयोग का पक्का प्रमाण मिलता है। भारत में बाबर ने पानीपत की लड़ाई (सन् 1526 ई.) में तोपों का पहले-पहले प्रयोग किया।
संस्कृत में इसे शतघ्नी कहते हैं ।
शतं हन्ति हन--टक् इति शतघ्नी।
१ अस्त्रभेदे “अयःकण्ट- कसंछन्ना शतघ्नी महती शिला” विजयरक्षितः ।
२ वृश्चिकाल्यां ३ करञ्जे च मेदिनीकोश ।
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प्राचीन काल का एक प्रकार का शस्त्र। विशेष—किसी बड़े पत्थर या लकड़ी के कुंद में बहुत से कीलकाँटे ठोंककर यह शस्त्र बनाया जाता था और इसका व्यवहार युद्ध केसमय शत्रुओं पर फेंकनें में होता था।
लोग इसे तोप या राकेट जैसा शस्त्र कहते हैं जिससे सैकड़ों व्यक्ति मारे जा सकते थे।
२. वृश्चिकाली। बिछाती।
३. एक प्रकार की घास। ४. करंज या कंजे का पेड़।
इसी से सम्बद्ध शब्द संस्कृत में भुशुण्डी भी है ।
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पाषाणक्षेपणार्थे चर्ममययन्त्ररूपे अस्त्रभेदे “भुशुण्ड्युद्यतबाहव..........
तोपों से घिरी हुई यह नगरी बड़ी बड़ी अट्टालिका वाली है
महाभारत आदि पर्व विदुरागमन राज्यलम्भ पर्व ।१९९वाँ अध्याय ।
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प्रस्तुति-करण यादव योगेश कुमार "रोहि
सम्पर्क सूत्र --- 8077160219
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