शनिवार, 10 नवंबर 2018

भविष्य पुराण अंक

भविष्य पुराण में मध्यम पर्व के बाद प्रतिसर्ग पर्व चार खण्डों में है । भविष्य पुराण निश्चित रूप से 18वीं सदी की रचना है । अत: इसमें आधुनिक  राजनेताओं के  साथ साथ आधुनिक प्रसिद्ध सन्तों ऩमहात्माओं का वर्णन भी प्राप्त होता है ।
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प्रारम्भिक रूप में राजा प्रद्योत कुरुक्षेत्र में यज्ञ करके
म्लेच्‍छों का विनाश करता है । परन्तु कलि युग मानव रूप धारण कर स्वयं ही म्लेच्‍छों के रूप में राज करता है
तभी भगवान अपनी पूजा से प्रसन्न होकर कलि को को वरदान देते हैं ! और कलि से कहते हैं कि कई दृष्टियों से तुम ए़अन्य युगों में श्रेष्ठ हो ।
तभी इसी वरदान के प्रभाव से  आदम नामक पुरुष तथा हव्यवती ( हव्वा) नामकी पत्नी से म्लेच्‍छों के वंश की वृद्धि होती है ।
कलि युग में तीन हजार वर्ष व्यतीत होने पर  भारत में विक्रमादित्य का आविर्भाव होता है । इसी समय रूद्रकिंकर वैताल का आगमन होता है ।

इसके बाद श्री सत्यनाराण व्रत की कथा है ।
भारतीय धरा पर सत्य नारायण की कथा अत्यन्त प्रसिद्ध है । भविष्य पुराण के प्रतिसर्ग पर्व में श्रीसत्य-नारायण की कथा  छ: अध्यायों में वर्णित है---------
यह कथा स्कन्द पुराण की प्रचलित कथा से मिलती  है
इसी खण्ड के अन्तिम अध्यायों में  पितृ शर्मा  और उनके वंश में  चार पुत्रो १- व्याणि २-मीमांसक ३ वररुचि  ४ पणिनी  आदि की  रोचक कथाऐं प्राप्त होती हैं।
मध्यचरित्र के  महात्म्य में  कात्यायन और मगध के राजा महानन्द की कथा तथा उत्तर- चरित में योगाचार्य
पतञ्जलि काे चरित्र का वर्णन है ।
      भविष्य पुराण के प्रतिसर्ग पर्व के तृत्तीय खण्ड में वलदेव के अंशावतारी आल्हा तथा कृष्ण के अंशावतारी ऊदल के चरित्र का आनुमानिक विवरण है ।
तथा जयचन्द और पृथ्वी राज चौहन की वीरगाथाओं का वर्णन है । 
इसी खण्ड में शकों के अधीश शालिवाहन ने हिमालय पर्वत के हिमशिखर पर गौर वर्ण
के एक  सुन्दर पुरुष को देखा ; जो श्वेताम्बर धारण किए हुआ था ।
जिसने अपना नाम ईसा- मसीह बताया ।
शालिवाहन के वंशज अन्तिम दशवें राजा भोज हुए ।जिनके साथ महामद ( मोहम्मद -इस्लाम के पैगम्बर) का वर्णन है ।
राजा भोज ने मरुस्थल ( मदीन) में स्थित महादेव का दर्शन किया ; तथा भक्ति भाव पूर्वक पूजन- स्तुति की -- भगवान शिव ने प्रकट होकर  म्लेच्‍छों से दूषित उस स्थान को त्याग कर महाकालेश्वर तीर्थ में जाने की आज्ञा प्रदान की -- तत्पश्चात देशराज आदि राजाओं के जन्म की कथा है ।
पृथ्वी राज चपहानि ( चौहान) की वीरगति प्राप्त होने के सहोड्डीन ( मोहम्मद गौरी) के द्वारा कोतुकोद्दीन को दिल्ली का शासन सौंप कर  इस देश से धन लूटकर ले जाने का विवरण प्राप्त है।
      प्रतिसर्ग पर्व का अन्तिम चतुर्थ खण्ड है । जिस में सर्व प्रथम आन्ध्र: वंशीय राजाओं के वंश का वर्णन है ।
तदन्तर राजपूताना और दिल्ली नगर के राजवंशों का इतिहास प्राप्त होता है  जो कुछ कल्पना रञ्जित है ।

राजस्थान के प्रमुख नगर अजमेर की कथा मिलती है जो काल्पनिक रूप से वर्णित की गयी है ।
अज ( अजन्में ) ब्रह्मा के द्वारा रचित होने से तथा देवी लक्ष्मी (रमा) शुभ आगमन से से रम्य या रमणीय यह नगर अजमेर नाम से प्रसिद्ध हुआ । यह भारत का तल्कालीन सबसे सुन्दर नगर माना गया ।
कृष्ण वर्मा के पुत्र उदयन  ने उदय पुर नामक नगर बसाया । और कान्यकुब्ज ( कन्नौज) नगर की कथा भी विचित्र है ।
एक वार राजा प्रणय की कथा से प्रसन्न होकर भगवती शारदा ने प्रसन्न होकर  कन्या रूप में वर्णन वादन करती हुई आई ,और राजा प्रणय को वरदा. रूप में यह नगर प्रदान किया । इस लिए यह नगर कान्यकुब्ज हुआ ।😊😊😊

चित्र-कूट का निर्माण भी भगवती की कृपा से हुआ
वहाँ कलियुग प्रवेश नहीं कर सकता इस लिए उसका नाम कलिञ्जर हुआ ।

" नगरं चित्रकूटाद्रौ चकार कलिनिर्जरम् ।
कलिर्यत्र भवेदबद्धो नगरे८स्मिन् सुर प्रिये।।
अत: कलिंजरो नाम्ना प्रसिद्धो८भून्महीतले ।।प्रतिसर्ग पर्व (4/4/3-4)
इसी प्रकार बंगाल के राजा भोगवर्मा ने महाकाली की उपासना की  तब भगवती काली ने प्रसन्न होकर एक सुन्दर नगर उत्पन्न किया जो कलिकाता पुरी कहलाया । इसी क्रम  में वर्णन है दिल्ली नगर पर पठानों का के शासन का - तैमूर लंग द्वारा भारत पर आक्रमण और लुटने का वर्णन है ।

कलियुग में अवतीर्ण होने वाले विभिन्न आचार्य सन्तों का वर्णन है जैसे -- सातवीं सदी के शंकराचार्य रामानन्द , निम्बादित्य, श्रीधर पाठक, विष्णु स्वामी, वाराहमिहिर ,भट्टोजिदीक्षित ,धन्वन्तरि, चैतन्य महाप्रभु , रामानुज ,श्रीमध्वाचार्य ,गोरखनाथ ।आदि का विस्तृत चरित्र-विवरण है। ये सभी सूर्य के अंश से उत्पन्न बताए गये ।
इन्हें ही द्वादश आदित्य( सूर्य) कहा गया है ।

इसी श्रृंखला में सूरदास का वर्णन है।

सूरदास का जन्म १४७८ ईस्वी में रुनकता नामक गाँव में हुआ। यह गाँव मथुरा-आगरा मार्ग के किनारे स्थित है।  तुलसीदास , कबीर ,नरसी मेहता ,पीपा ,नानक, रैदास ,नामदेव, रंक्कण , धन्नाजाटभगत , आदि की कथाऐं आती है ।
था इसी श्रृंखला में विभिन्न अखाड़ों के नाम जैसे
आनन्द , गुरू, पुरी, वन,आश्रम, पर्वत,भारती ।एवं नाथ आदि दशनामी दश साधुओं की जन्म कथा है।
इसी में हनुमान के द्वारा सूर्य के निकलने की कथा है ।

अन्तिम अध्याय में मुगलों का वर्णन है - जैसे बाबर, हुमायूँ ,अकबर, शाहजहाँ , जहाँगीर , तथा औरंगजेब आदि प्रमुख मुगल शासकों का वर्णन है।
इसी क्रम में वीर शिवाजी की वीरता का वर्णन भी है।

फिर ब्रिटिश महारानी विक्टोरिया और उसके पार्लियामेण्ट का वर्णन  हुआ है ।
रानी विक्टोरिया को विकटावती कहागया है ।

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