एक प्राचीन क्षत्रिय जाति जो नेपाल की तराई में बसती थी और जिसमें गौतम बुद्घ उत्पन्न हुए थे।
विशेष—बौद्ध ग्रंथों में शाक्य इक्ष्वाकुवंशी कहे गए हैं।
जिस स्थान में वे रहते थे, उसमें 'शाक' या सागौन के पेड़ अधिक थे; इसी से उसका 'शाक्य' नाम पड़ा।
विद्वानों का अनुमान है कि लिच्छवियों के समान शाक्य भी व्रात्य क्षत्रिय थे।
२. बुद्ध का एक नाम शाक्यसिंह पुराणों में मिलता है ।
३. शाक्यनरेश शुद्धोदन जो बुद्ध के पिता थे ।
शक्यमुनि। शाक्यसिंह। शाक्यशासन = बुद्ध का उपदेश
शक--थञ् तत्र साधुः यत् ।
बुद्धे । शाक्यशब्दनिरुक्तिरन्यथोक्ता यथा
“शाकवृक्षप्रतिच्छन्नं वासं यस्मात् प्रचक्रिरे ।
तस्मादि- क्ष्वाकुवंश्यास्ते भुवि शाक्या इति श्रुताः”
भरतधृतवच- नम् ।
इयमत्राख्यायिका पितृशप्ताः केचिदिक्ष्वाकुवंश्या गोतमवंशजकपिलमुनेराश्रमे योगाभ्यासाय शाकवृक्षे कृतवासाः शाक्या इति ख्यातिमापन्नाः ।
क्षमायां सक० दि० उभ० सेट् । शक्यति ते अशाकीत्- अशकीत् अशकिष्ट “शक्योऽस्य मन्यु र्भवता विनेतुम्” रघुः ।
शक् + अच् ।) जातिभेदः । नृपभेदः ।इति मेदिनी ॥
स च नृपः शकादित्यः इतिशालिवाहन इति च नाम्ना ख्यातः ।
तस्यमरणदिनावधि वत्सरगणनाङ्कः शकाब्देतिनाम्ना पञ्जिकायां लिख्यते ।
स च म्लेच्छजातिविशेषः । सत्ययुगे सगरराजेनास्य मस्तकार्द्धं मुण्डयित्वा वेदबाह्यत्वमकारि । यथा --“ततः शकान् सयवनान् काम्बोजान् पारदांस्तथा ।पह्नवांश्चापि निःशेषान् कर्त्तुं व्यवसितो नृपः ॥
ते हन्यमाना वीरेण सगरेण महौजसा ।
वशिष्ठं शरणं जग्मुः सूर्य्यवंशपुरोहितम् ॥वशिष्ठः शरणापन्नान समये स्थाप्य तानृषिः ।सगरं वारयामास तेभ्यो दत्त्वाभयं तदा ॥
सगरस्तां प्रतिज्ञान्तु निशम्य सुमहाबलः ।धर्म्मं जघान तेषाञ्च वेशानन्यांश्चकार ह ॥अर्द्धं शिरः शकानान्तु मुण्डयामास भूपतिः ।
जवनानां शिरः सर्व्वं काम्बोजानामपि द्विज ॥पारदान्मुक्तकेशांस्तु पह्रवान् श्मश्रुधारिणः ।निःस्वाध्यायवषट्कारान् सर्व्वानेव चकार ह ॥”इति पाद्मे स्वर्गखण्डे सगरोपाख्यानम् १५ अः ॥देशभेदः । इति विश्वः ॥ (यथा मात्स्ये ।१२० । ४५ ।“तुषारान् वर्व्वरान् कारान् पह्रवान् पारदान्शकान् ।एतान् जनपदान् मङ्क्षु प्लावयित्वोदधिं गता ॥”)
शब्दः शाक: शकोऽभिधानमस्येति । शक +“शण्डिकादिभ्यो ञ्यः ।”
४ । ३ । ९२ । इति ञ्यः )बुद्धः । इ
ति हलायुधः ॥
'शाकवृक्षप्रतिच्छन्नं वासं यस्माच्च चक्रिरे,
तस्मादिक्ष्वाकुवंशास्तेभुवि शाक्या इति स्मृताः।
'साक' या सागौन के वृक्षों के आधिक्य के कारण यहां रहने वाले लोग साक्य कहलाये। सागौन या (सागवन) से हि साक्य (शाक्य) शब्द कि उत्पत्ति हुई होगी। साक के पेड़ के बहुतायत के कारण यहाँ रहने वाले लोग साक्य कहलाय।
साकिया शब्द का उल्लेख सम्राट अशोक के शिलालेख में भी मिलता है जिसमें उन्होनें खुद को साक्य कुल का बताया है।
साक- साक्य (शाक्य) ये प्रदेश साक के पेड़ो के बाहुल्यता के कारण शाक्य गणराज्य कहलाया। या यूं कह ले साक वन में रहने वाले लोग साक्य कहलाये और साक वन का पूरा क्षेत्र साक्य गणराज्य कहलाया।
नेपाल में और नेपाल से सटे उत्तर भारत में आज भी इन पेड़ों कि बाहुल्यता पाई जाती है। नेपाल में साक वन अभी भी है जिसे नेपाल कि ठेठ भाषा में सकुवा वन कहते है।
इस तरह ये प्रदेश शाक्य गणराज्य के नाम से जाना जाने लगा। जब शाक्यो का विस्तार हुआ तो इन्होंने एक राजधानी कि स्थापना कि जिसका नाम कपिलवस्तु रखा।
और आगे चल कर ये वंश दुनियां का सबसे महान वंश कहलाया। इस वंश कि दूसरी शाखा मौर्य वंश ने बाद में विश्वविजय का खिताब हासिल किया।
विदूडभ के आक्रमण के दौरान राज परिवार के लोग विभिन्न प्रदेशों में विभिन्न आजीविका अपना कर रहने लगे
जैसे : फूलों की खेती
साग सब्जी उगाना
खेती करना इत्यादि
कालान्तर में वे सैनी, माली , कुशवाहा , कोईरी , काछी, मुराव, महतो इत्यादि उपजातियों के नाम से जाना जाने लगे ।
शताब्दी ई0पू0 के भारत में सूर्यवंशी क्षत्रिय राजा इक्ष्वाकु अपनी प्रिया मानपा रानी के पुत्र को राज्य देने की इच्छा से उल्कामुख, करण्डक, हात्थिनिक और सीनीसुर नामक चार लड़को को राज्य से निकाल दिया वह हिमालय के पास सरोवर किनार के एक विशाल शाकव वन में निवास करनें लगे। अपने कुल, वंश को शुद्ध रखनें के लिए सजातिय बहनो के साथ सहवास किया।
राजा इक्ष्वाकु के जानने पर उन्होंने ने उदान कहा शाकव वन की तरह शाक्य कहा सर्वशक्तिमान कहा। तब से शाक्य नाम से प्रसिद्ध हुए। वही शाक्यों का पूर्वज राजा इक्ष्वाकु थे। उसी राजा इक्ष्वाकु की दिशा नाम की दासी थी।
उससे कृष्ण नामक काला पुत्र पैदा हुआ। उसी कृष्ण से उत्पन्न वंश आगे काष्णर्यायनो का पूर्वज था।
काष्णर्यायनो से कहवाती ब्राह्मणों के अनेक प्रसिद्ध गोत्र चले। इस प्रकार भगवान
बुद्ध ने अपना परिचय देते हुए-
आदिच्चा नाम गोतेन, सकिया नाम जातिया।
– सुन्तनिपात
आदित्य गोत्र शाक्य वंश का हूॅ।
खत्तियसम्भवंग अग्गकुलिनो देवमनुस्स नमास्ति पादो। – राहुलकत्थणावना
जो क्षत्रियो के अग्रज कुल उत्पन्न है, जिनकी की चरणो की वन्दना देव और मनुष्य भी करते है।
देवो ब्रह्मा च सास्ता । (अम्बठसुत्त)
वन से साक्य से शाक्य हुवा शाक्य का अर्थ है सर्वशक्तिमान साकव वन या वृक्ष की तरह विशाल
ऐसा पालि साहित्य में वर्णन मिलता है
मास्की के लघु शिलालेख में भी सम्राट अशोक ने आपने आप को शाक्यबुद्ध कुल कहा है
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