पौराणिक पंडे-पुरोहित हमेशा ही इस बात को लेकर असमंजस मे रहे हैं कि वे गौतम बुद्ध को स्वीकार करें या न करे?
पुराणों के अध्ययन से भी यह बात पता चलती है कि गौतम बुद्ध को लेकर पौराणिकों मे सदैव दो मत रहे हैं। कुछ पौराणिक चाहते थे कि बुद्ध को विष्णु का अवतार बनाकर हिन्दूधर्म का ही अंग घोषित कर दे, और कुछ बुद्ध से काफी चिढ़े थे तो उनके लिये अपशब्द ही बोलते थे।
वायुपुराण, विष्णुपुराण और नरसिंहपुराण ने खुले तौर पर बुद्ध को विष्णु का अवतार माना तो भविष्यपुराण ने बुद्ध को आसुरी-स्वरूप घोषित कर दिया।
भविष्यपुराण (गीताप्रेस कोड-584) प्रतिसर्गपर्व चतुर्थखण्ड (पृष्ठ सं-372) मे लिखा है कि "2700 साल कलियुग बीत जाने के बाद बलि नामक असुर के द्धारा भेजा गया 'मय' नामक असुर धरती पर आया! वह असुर शाक्यगुरू बनकर दैत्यपक्ष को बढ़ाने लगा और जो उसका शिष्य होता उसे 'बौद्ध' कहा जाता। उसने तमाम तीर्थों पर मायावी यन्त्रों को स्थापित कर दिया था, जिससे जो भी मानव उन तीर्थों पर जाता वह 'बौद्ध' हो जाता। इससे चारों तरफ बौद्ध व्याप्त हो गये और दस करोड़ आर्य बौद्ध बन गये।"
इस पुराण मे जिस "मय" असुर का वर्णन है, वह कोई और नही बल्कि गौतम बुद्ध है! इस पुराण मे बुद्ध को मानने वाले बौद्धों को "दैत्यपक्षी" कहा गया है।
भविष्यपुराण के इस कथन से यह स्पष्ट है कि पौराणिकों को बुद्ध से किस कदर चिढ़ थी कि उन्हे दैत्य ही घोषित कर दिया। जबकि इसके पूर्व के पुराणों ने बुद्ध को विष्णु का अवतार माना है।
नरसिंहपुराण अध्याय-36 श्लोक-9 मे लिखा है-
"कलौ प्राप्ते यथा बुद्धो भवेन्नारायणः प्रभुः"
अर्थात- कलियुग प्राप्त होने पर भगवान नारायण बुद्ध का रूप धारण करेंगे।
इसी नरसिंहपुराण मे एक अन्य स्थान पर बुद्ध को राम का ही वंशज तथा सूर्यवंशी भी बताया गया है। इस पुराण के 21वें अध्याय मे लिखा है कि राम के पुत्र लव, लव के पुत्र पद्म, पद्म के पुत्र अनुपर्ण, अनुपर्ण के पुत्र वस्त्रपाणि, वस्त्रपाणि के पुत्र शुद्धोधन और शुद्धोधन के पुत्र गौतम बुद्ध हुये।
अर्थात राम की छठवीं पीठी मे बुद्ध पैदा हुये थे।
वैसे अगर इसे पूर्ण सच मान लिया जाये तो फिर राम का समय आज से लगभग तीन हजार साल के आसपास का ही होता है!
यदि बुद्ध अब से ढ़ाई हजार साल पहले थे तो उनके छः पूर्वज अधिकतम छः सौ साल और पूर्व होगे, जो लगभग ईसा से 1100 सौ वर्ष पूर्व का हो सकता है!
अब यह गणना इतनी कम है,
अतः सनातनी इसे मानने से तुरन्त इनकार कर देंगे।
यहाँ मै आपको एक बात और बता दूँ कि नरसिंहपुराण हिन्दूधर्म के 18 पुराणों मे नही आता।
यह एक उपपुराण है, अतः अधिकांश लोग यही मानते हैं की इसमे मिलावट नही है।
अब सोचना यह है कि यदि इतने पुराणों मे बुद्ध को विष्णु का अवतार कहा गया है तो सबसे अन्त मे लिखे गये भविष्यपुराण मे उन्हे असुर क्यों कहा गया?
इसी भविष्यपुराण प्रतिसर्गपर्व के तृतीयखण्ड मे आल्हा के भाई ऊदल को कृष्ण का अवतार कहता है, पर इतने बड़े समाज-सुधारक तथागत बुद्ध को असुर बताता है।
(Repost थोड़े बदलाव के साथ)
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