बुधवार, 29 जनवरी 2025

श्रीकृष्ण चालीसा- आत्मा नन्द की-

श्रीकृष्ण चालीसा-


दोहा-
जीव   चराचर  जगत   पति,  दीनबंधु भगवान,
मनसा   वाचा  कर्मणा,   हरिकीर्तन   गुणगान।
सुर नर मुनि जनगण करत, गोप श्रेष्ठ का ध्यान,            
कष्ट हरन,सन्मति  भरन,  कृष्णचंद्र   भगवान।।
                                          
              (चौपाई छन्द) 
१- जय केशव यदुनन्दन प्यारे ।
     लाल  यशोदा  नन्द  दुलारे ।।
जीवन नौका है मझ धारे ।
      भक्त पुकारे  वंशी  वारे।।

२- भादो भाग्य उदय यादव के।
         यदुकुल चरण पड़े माधव के।।
गोपों में गोपाल गजब के 
       काज सबारे तुमने सब के।

३- यमुना धन्य चरण रज पाकर।
         पुलकित दर्शन पाय दिवाकर।।
भक्त धन्य होते यश  गाकर
         गोकुल चले प्रभु मुस्कराकर।।

४-मंगल मुरली माखन छींको।
       यही छवि रूप कन्हैया जी को।।
 छोटो बड़ो और कटु नीको 
        सब फल पाते है करनी को।।

५- नटवर नागर जय बनवारी।
           वेग खबर लेयु प्रभु हम्हारी
     वृन्दावन जय जय गिरधारी।।
             तेरे  नाम कि महिमा भारी ।।

६- मुरली अधर गाय रखवारे।
          मोर मुकुट पीताम्बर धारे।।
  ज्ञान की शिखा दिखा रहा रे।
          मोहन मोह हन मुरलि वारे।

७- - महिमा धन्य गोप सम्बोधन।
          धर्म विवेचक कर्म के शोधन।
     माखन दूध दहि घृत गोधन।।
          धन्य वही जिस पे है ये धन।।

८-  बलधर हलधर गोसेवक भारी।
                कृषि वृषी के पालन हारी।
  तुम बिन सारे गोप दु:खारी ।
                खबर लेऊ प्रभु कृष्ण मुरारी।।

९- रूप  विराट  धनञ्जय  पाया।
          छवि मनमोहक श्मामल काया।।
    भक्तों ने संकीरतन गाया 
           अद्भुत तेरी  मोहन माया।

१०- कमलनयन ओ मुरली वाले।
                गायन वादन नृत्य निराले।
    तान मधुर धुर‌ ताल सम्हाले।
                 राग अहीर अहीरों वाले।।

११-  हम राही कठिन मंजिल के।
             पढावों से दूर चले निकल के ।
      हरि कीर्तन करलो कहीं चल के
              चलते फिरते रहो सम्हल के।।


१२- मोह के भंवर लोभ के गोते ।
           उमर बीत गयी सोते सोते ।
  इच्छाओं की लहरों में डुबोते।
             संसारी सब मतलब के होते।

१३- वन्दन नमन अखिल अधिपति का।
         नाश करें   प्रभु   कष्ट   विपति का।।
  अखण्ड प्रवाह ये समय की गति का
             निर्मल विमल रूप हो  मति का ।।

१४- ब्रह्म   मुहूर्त   गोप   जो    जागे। ❓
              कृष्ण कथा सुनि भय दुःख भागे।।
 कृष्ण- कीर्तन में मन लागे ।
               कृष्ण के द्रोही रहे अभागे।

१५- बल्लभ प्राण गर्ग अभयंकर।
                  कृष्णचन्द्र बलराम शुभंकर।।
 यश का हनन  कुकर्म भयंकर
                  कोई कर्म ऐसा तू मत कर।।

१६- नंदक खड्ग सुदर्शन धारी।
               गुरु आंगीरस शिक्षा न्यारी।।
वन के हार न हार तुम्हारी
              व्रज में विचर रहे त्रिपुरारी ।
    
१७- लीलाधर प्रभु माटी खाए।
       यसुमति मुख ब्रह्मांड दिखाए।।
  लीला कला के मेल मिलाए
        संगीत कला को जग में लाए।।

१८- गणपति चरण गोपाल नवाया।
                   सुर नर मुनि मनमोहक माया।।
      चंचल मन क्षणभंगुर काया।
                   कौन ले गया कौन क्या लाया।

१९- माखन चोर  स्वभाव  रसीला।
                 नटखट बालगोविंद की लीला।।
      चित्र चरित्र विचित्र न हीला 
                   

२०- बंशी  वृंदावन गोपकुल गईया।
       सबके मध्य में बसे कन्हईया।।
 दूध फेरती जशोदा मइईया।
        माँगें माखन दाऊ भइया।।
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२१- युगविराट माधव की महिमा।
      अखिलभुवन गोपेश्वर गरिमा।।

२२- धन्य धरा प्रभु किए बसाकर।
       गोपों को गोलोक से लाकर।।
भक्त पड़े तेरे चरणों में आकर।
        धन्य बनाया गले लगाकर।।

२३- गोपेश्वर श्रीकृष्ण की जय हो।
       गाय गोप गोलोक अभय हो।।
मन में भक्तों के निश्चय हो।
       वही पूरण करे सदा सदय हो।

२४- पांडव पक्ष जुगति कर नाना।
      शकुनी क्षीण किए अभिमाना ।।
  अर्जुन का भी अहम जब जाना।
       नारायणी  गोपों को पठाना।।


२५- निंदा शतक क्षमा गोपाला।
       चक्रसुदर्शन वध शिशुपाला।।
      उन्मत्त हुए नृप पीकर हाला।
        उनको  भी प्रभु ने मार डाला।

२६- शैशवकाल पूतना तारे।
      रक्षा भक्त अधम संहारे।।
      जिसके छूटे सभी सहारे 
      उसके सहायक वंशी वारे।।

२७- दुष्टदलन संतन हितकारी।
          बका अघा धेनुका पछारी ।।
 युग-युग में प्रभु तुम अवतारी।
        धर्म पर अधर्म हुआ जब भारी
      

२८- तारन भक्त भूमि अवतारा।
       गोपों में ही रूप पसारा।
      दुष्ट दलन अरि कंस संहारा।
           तब भूमि का भार उतारा।।

२९- मातु पिता बेड़ी छुड़वाए।
       उग्रसेन साम्राज्य दिलाए।।
जब जब प्रभु भक्त घबराए।
        तब तब तुम धरणी पे आए।।

३०- जब जब होवे हानि धरम की।
             काली छाया पड़े अधरम की।।
       बड़ती जग में होय कुकरम की।
             नंगे पन में  न बात  शरम की 
                    
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३१- 

 धर्मयुद्ध निर्दोष है भारत।
             गीता का उद्घोष है भारत।।

३२- गूंजे धरती गगन समंदर।
      भगवतगीता धर्म धुरंधर।।

३३- कर्म कृपाण दिया अवगुन को।
       गीताज्ञान सखा अर्जुन को।।

३४- युध आयुध कुरुक्षेत्र भयंकर।
       धर्मपक्ष परिणाम शुभंकर।।

३५- ब्रह्मा रुद्र हरी मुसुकाए।
       भार भूमि गोविंद छुड़ाए।।

३६- यादव कुलज कृष्ण प्रण लीन्हा।
       हाथ यादवी ब्रह्मा दीन्हा।।

३७- मथुरा मुक्त कंस के डर से।
       कालिंदी का नीर ज़हर से।।

३८- प्रभुपद पंकज पुण्य प्रसादा।
       कृष्ण बसें उर अंतस राधा।।

३९- सूर नर मुनि आरती उतारें।
       देवकी सुत वसुदेव दुलारे।।

४०-  परमपुरुष महिपाल की जय-जय।
        राधेकृष्ण   गोपाल  की जय-जय।।

दोहाः - चरण कमल घनश्याम के, पड़ जाए मम धाम।
           दिव्य दृष्टि हरिदास पर, साँस-साँस प्रभु नाम


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