रविवार, 26 जनवरी 2025

पञ्चायत की अवधारणा-



प्राचीन भारतीय समाज में पञ्च- पञ्चायत और पञ्चजन जैसे शब्द सामाजिक व्यवस्था में पाँच वर्णों की मान्यता व उनके निर्णयों पर आधारित पञ्चप्रथा के ही सूचक थे।

ऋग्वेद में पञ्चजन: और पञ्चकृष्टी संज्ञा पद  बताते हैं  । कि  समाज में पांच प्रकार के व्यक्ति थे। जिनका समाज में वर्चस्व होता था ऋग्वेद में उल्लिखित पञ्चजना: शब्द पाँच जातियों के प्रतिनिधियों  का वाचक है।
________________________________
वेदेषु वर्णिता: पञ्चजना: शब्दपद: पञ्चवर्णानां -प्रतिनिधय: सन्ति । ब्रह्मणरुत्पन्ना ब्राह्मण-क्षत्रिय- वैश्य शूद्रा: च चत्वारो वर्णा- इति  तथा पञ्चमः वर्णो जातिर्वा शास्त्रेषु वैष्णववर्णस्य नाम्ना विष्णू रोमकूपेभ्यिति निर्मिता: गोपानां जातिरूपेण वा वर्णितम् अस्ति। तस्य विष्णुना सह निकटसम्बन्धोऽस्ति। अत एव ते सर्वे वैष्णावा  भवन्ति ।
अनुवाद:-
वेदों में लिखित पञ्चजन पाँच वर्णों के प्रतिनिधि पाँच -वर्ण ही हैं। चार वर्ण ब्रह्मा से उत्पन्न हुए - ब्राह्मण- क्षत्रिय- वैश्य और शूद्रों के रूप में वर्णित हैं। और पाँचवां वर्ण अथवा जाति विष्णु के रोम-कूपों से उत्पन्न गोपों की वैष्णव वर्ण अथवा जाति के रूप में शास्त्रों में वर्णित है। विष्णु से इनका निकट सम्बन्ध है। इस लिए ये वैष्णव है।

संसार में इस वैष्णव वर्ण से सम्बन्धित जाति को गोप कहा जाता है संसार में यही पाँच वर्ण हैं। निषाद अथवा कायस्थ कोई नये पाँचवें वर्ण नहीं है। वह तो शूद्र वर्ण के ही अन्तर्गत हैं। इसलिए निषाद जाति को पाँचवाँ वर्ण नहीं माना जा सकता है। 
कुछ लोग कायस्थ जाति को पञ्चम वर्ण में स्वीकार करते हैं। कायस्थों के आदि पुरुष चित्रगुप्त ब्रह्मा की काया से उत्पन्न होने से भी ब्राह्मी सृष्टि के अन्तर्गत हैं। लेखन और गणितीय ज्ञान से सम्पन्न होने के कारण तथा प्राणीयों
के चरित्रों का चित्रण करने से भी ये ब्राह्मण वर्ण के समकक्ष हैं। इस लिए ये सदैव ब्राह्मी वर्ण - व्यवस्था के अन्तर्गत हैं।
भारतीय पुराणों में ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य और शूद्रों के अतिरिक्त एक स्वतन्त्र जाति अथवा वर्ण भी विद्यमान (अस्तित्व में) बताया गया है। ब्रह्मवैवर्त पुराण में पञ्चम वर्ण के विषय में कहा गाया है।

ब्रह्मक्षत्त्रियविट्शूद्राश्चतस्रो जातयो यथा।।
स्वतन्त्रा जातिरेका च विश्वस्मिन्वैष्णवाभिधा ।। ४३।।
अनुवाद:-ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र  जो चार जातियाँ इस विश्व में हैं वैसे ही वैष्णव नाम कि एक स्वतन्त्र जाति भी इस विश्व में जानी जाती है।४३।

ध्यायन्ति वैष्णवाः शश्वद्गोविन्दपदपङ्कजम्।।
ध्यायते तांश्च गोविन्दः शश्वत्तेषां च सन्निधौ।।४४।।
अनुवाद:-  वैष्णव जन सदैव भगवान श्रीकृष्ण के चरण- कमलों का ध्यान करते हैं। और गोपेश्वर श्रीकृष्ण भी अपने पास में स्थित उन गोप वैष्णवो का सदैव  ध्यान करते रहते हैं।४४।

उपर्युक्त श्लोक में पञ्चम जाति( वर्ण) के रूप में भागवत धर्म के प्रर्वतक आभीर / गोप- यादव लोगो को स्वीकार किया गया है । क्योंकि वैष्णव शब्द स्वराट् विष्णु (गोपेश्वर श्रीकृष्ण) के रोमकूपों से उत्पन्न वैष्णव हैं ।  
सन्दर्भ:-ब्रह्मवैवर्त पुराण- ब्रह्मखण्ड अध्याय११ श्लोक संख्या (४३) 

पद्म पुराण के उत्तराखण्ड के अध्याय(६८ ) श्लोक संख्या १-२-३। में भी वैष्णव वर्ण की श्रेष्ठता बतायी गयीं है। और वैष्णवो को संसार में सर्वश्रेष्ठ बताया गया है। निम्नलिखित श्लोकों में भगवान शिव नारद से कहते हैं।

  1. महेश्वर उवाच- शृणु नारद! वक्ष्यामि वैष्णवानां च लक्षणम् यच्छ्रुत्वा मुच्यते लोको ब्रह्महत्यादिपातकात् ।१।                 
  2. तेषां वै लक्षणं यादृक्स्वरूपं यादृशं भवेत् ।तादृशंमुनिशार्दूलशृणु त्वं वच्मिसाम्प्रतम्।२।                                                     
  3. विष्णोरयं यतो ह्यासीत्तस्माद्वैष्णव उच्यते। सर्वेषां चैव वर्णानां वैष्णवःश्रेष्ठ उच्यते ।३।     
अनुवाद:- 
 १-महेश्वर- उवाच ! हे नारद , सुनो, मैं तुम्हें वैष्णव का लक्षण बतलाता हूँ। जिन्हें सुनने से लोग ब्रह्म- हत्या जैसे पाप से मुक्त हो जाते हैं।१।     
                      
 २-वैष्णवों के जैसे लक्षण और स्वरूप होते हैं। उसे मैं बतला रहा हूँ। हे मुनि श्रेष्ठ ! उसे तुम सुनो ।२।                                   

 ३-चूँकि वह विष्णु से उत्पन्न होने से ही वैष्णव कहलाते है; और सभी वर्णों मे वैष्णव वर्ण श्रेष्ठ कहा जाता हैं।३।          
"पद्म पुराण उत्तराखण्ड अध्याय(६८  श्लोक संख्या १-२-३।

परम्परागत रूप से हम देखते हैं। ग्रामीण समाज में किसी समस्या का समाधान पञ्चों द्वारा की गयी पञ्चायत से ही होता था ।

पञ्चायत की उत्पत्ति भारतीय और नेपाली समाज में पारम्परिक ग्राम संस्थाओं से ही हुई है
  • भारत में  पंचायत राज प्रणाली, भारतीय समाज में पारम्परिक ग्राम संस्थाओं पर आधारित है. ग्राम पंचायत, गाँव की मंत्रिपरिषद का काम करती है. ग्राम पंचायत के सदस्यों का चुनाव जनता करती है इस जनता मे सभी पाँचों वर्णों के प्रतिनिधि पंच के रूप में उपस्थित होकर अपना निष्पक्ष निर्णय देते हैं।.
,_______
ऋग्वेद में पञ्चकृष्टी और पञ्चजन शब्द पाँच वर्णों के सूचक पञ्चों के रूपान्तरण है।

आ दधिक्राः शवसा पञ्चकृष्टीः सूर्य इव ज्योतिषापस्ततान।
सहस्रसाः शतसा वाज्यर्वा पृणक्तु मध्वा समिमा वचांसि ॥१०॥ ऋग्वेद ४/३८/१०

_______________  

तदद्य वाचः प्रथमं मसीय येनासुराँ अभि देवा असाम । ऊर्जाद उत यज्ञियास: पञ्चजना मम होत्रं जुषध्वम् ॥ ऋग्वेद-१०.५३.४।

पदों का  अर्थ-
 (अद्य) = आज (तद् वाचः प्रथमम्) = उस प्रथम वाणी को   (मसीय) = हृदयस्थरूपेण उच्चारण करता हूँ। है (येन) = जिससे  (देवाः) = और देव (असुरान्) = आसुरों का (अभि असाम) = अभिभव करते हैं । 
(ऊर्जादः) = पौष्टिक ही अन्नों का सेवन करनेवाले (उत) = और (यज्ञियासः) = यज्ञशील (पञ्चजना:) = पाँच वर्ण( जाति) ! (मम होत्रम्) = मेरे हवन को (जुषध्वम्) = प्रीतिपूर्वक सेवन करो। 
उपर्युक्त ऋचाओं में पञ्च पञ्चकृष्टी और पञ्च जन जैसे पद पर ध्यान केन्द्रित किया गया है।

स्पेनिश और पुर्तगाली भाषा में काष्टा शब्द जाति नसल का सूचक है। जो भारोपीय भाषा परिवार के शब्द "काष्टा और कास्ट शब्द से निर्मित वैदिक कृष्टि के रूपान्तरण हैं । संस्कृत में भी कृष्टि शब्द कृषि- फसल (फलस्) और  सन्तान आदि का- वाचक  है। 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें